एनिमल प्लांट

  1. प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के बीच अंतर
  2. 'प्लांट बेस्ड मीट' हेल्थ के लिए एनिमल मीट से ज्यादा फायदेमंद? स्टडी में हुआ बड़ा खुलासा
  3. बिहार को मिलेगा देश का पहला ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट, नीतीश कुमार पूर्णिया में करेंगे उद्घाटन
  4. मार्केट में 700
  5. बिहार को मिलेगा देश का पहला ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट, नीतीश कुमार पूर्णिया में करेंगे उद्घाटन
  6. मार्केट में 700
  7. 'प्लांट बेस्ड मीट' हेल्थ के लिए एनिमल मीट से ज्यादा फायदेमंद? स्टडी में हुआ बड़ा खुलासा
  8. प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के बीच अंतर
  9. मार्केट में 700
  10. प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के बीच अंतर


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प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के बीच अंतर

पशु लैनोलिन भेड़ की वसामय ग्रंथियों द्वारा स्रावित एक मोमी पदार्थ है, जिसे बाद में उनकी ऊन से निकाला जाता है।यह एस्टर, अल्कोहल और फैटी एसिड का एक जटिल मिश्रण है और इसका उपयोग कॉस्मेटिक, फार्मास्युटिकल और टेक्सटाइल उद्योगों जैसे अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला में किया जाता है।एनिमल लैनोलिन में एक पीला रंग और एक अलग गंध होती है, और यह आमतौर पर स्किनकेयर उत्पादों में सूखी और फटी त्वचा को मॉइस्चराइज़ करने और शांत करने के लिए उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर, प्लांट लैनोलिन पशु लैनोलिन का एक शाकाहारी विकल्प है और इसे पौधों पर आधारित सामग्री जैसे अरंडी का तेल, जोजोबा ऑयल और कारनौबा वैक्स से बनाया जाता है।प्लांट लैनोलिन एक प्राकृतिक ईमोलिएंट है और इसका उपयोग जानवरों के लैनोलिन जैसे कई अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि त्वचा की देखभाल और कॉस्मेटिक उत्पादों में।यह अक्सर उन लोगों द्वारा पसंद किया जाता है जो शाकाहारी या क्रूरता मुक्त उत्पाद पसंद करते हैं। पशु-आधारित लानौलिन की तुलना में, पौधे-आधारित लानौलिन में पशु वसा नहीं होता है, हानिरहित होने के फायदे हैं, एलर्जी पैदा करना आसान नहीं है, कीटाणुओं को नहीं फैलाता है और इसी तरह, जो स्वास्थ्य अवधारणा और रहने की आदतों के अनुरूप है आधुनिक लोग।इसी समय, पौधे-आधारित लैनोलिन को व्यापक रूप से पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है, क्योंकि इससे पर्यावरण को प्रदूषण या क्षति नहीं होती है।इसलिए, लोगों की पर्यावरण जागरूकता में वृद्धि और स्वास्थ्य और सुरक्षा की खोज के साथ, पौधे-आधारित लैनोलिन धीरे-धीरे पारंपरिक पशु-आधारित लैनोलिन की जगह ले रहा है और अधिक से अधिक उत्पादों में एक आदर्श विकल्प बन रहा है। कुल मिलाकर, प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के ब...

'प्लांट बेस्ड मीट' हेल्थ के लिए एनिमल मीट से ज्यादा फायदेमंद? स्टडी में हुआ बड़ा खुलासा

प्लांट बेस्ड मीट में फैट और कैलोरी की मात्रा कम होती है, जिससे हेल्थ पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता. प्लांट बेस्ड प्रोडक्ट तैयार करने में एनिमल प्रोडक्ट्स की अपेक्षा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है Plant-based meat is healthier: प्लांट बेस्ड मीट इन दिनों एनिमल प्रोडक्ट का एक बेहतर विकल्प बनकर उभर रही है. प्लांट बेस्ड मीट को प्लांट्स से तैयार किया जाता है और यह लोगों को एनिमल मीट जैसा स्वाद देती है. खास बात यह है कि यह बिलकुल मीट की तरह नजर आती है. इसमें फैट और कैलोरी की मात्रा काफी कम होती है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मानी जाती है. इसे बनाने में कोकोनट ऑयल, वेजिटेबल प्रोटीन एक्सट्रैक्ट और बीट जूस का इस्तेमाल किया जाता है. ब्रिटेन में की गई एक स्टडी में प्लांट बेस्ड मीट को लेकर चौंकाने वाली बात सामने आई हैं. इसमें बताया गया है कि यह लोगों की हेल्थ के साथ पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. यह भी पढ़ेंः नई स्टडी में इन बातों का हुआ खुलासा ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के शोधकर्ताओं ने प्लांट बेस्ट प्रोडक्ट्स के फायदों को लेकर एक स्टडी की है. इसमें पता चला है कि प्लांट बेस्ड मीट एनिमल प्रोडक्ट्स की तुलना में ज्यादा फायदेमंद होती है. यह एनिमल प्रोडक्ट्स को रिप्लेस करने के लिए बनाई गई है. प्लांट बेस्ड मीट की बनावट, स्वाद को विशेष रुप से डिजाइन किया जाता है ताकि इसे खाने पर एनिमल मीट जैसा अनुभव हो. इन प्रोडक्ट्स में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं. ऐसे प्रोडक्ट मीट और डेयरी प्रोडक्ट की मांग को कम करने में प्रभावी साबित हो रहे हैं. इससे लोग शाकाहारी खाने के लिए उत्साहित हो रहे हैं. ब्रिटेन की एक रिसर्च में प्लांट बेस्ट प्रोडक्ट्स की तुलना एनिमल मीट वाले प्...

बिहार को मिलेगा देश का पहला ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट, नीतीश कुमार पूर्णिया में करेंगे उद्घाटन

पटना. 30 अप्रैल 2022 को बिहार उद्योग के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल करने जा रहा है. केंद्र और राज्य की इथेनॉल पॉलिसी 2021 के बाद देश के पहले ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट का शुभारंभ होने जा रहा है. पूर्णियां के कृत्यानंद नगर के परोरा में ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा. लि. (EIBPL) द्वारा 105 करोड़ की लागत से स्थापित ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट का शुभारंभ कल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा होगा. बिहार के उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन मुख्य अतिथि के रुप में इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे. साथ ही खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री लेशी सिंह और पूर्णियां सांसद संतोष कुशवाहा की भी मौजूदगी रहेगी. उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि बिहार देश का इथेनॉल हब बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ने लगा है. बिहार इथेनॉल पॉलिसी 2021 के बाद बिहार में स्थापित हो रही 17 इथेनोल इकाइयों में से पहले ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल इकाई ने उत्पादन शुरू कर दिया है और बहुत जल्द तीन और इथेनोल इकाइयों का शुभारंभ होगा. पूर्णिया के इथेनॉल प्लांट की क्या है खासियत पूर्णियां के परोरा में ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा. लि. (EIBPL) द्वारा स्थापित ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट की उत्पादन क्षमता 65 हजार लीटर प्रतिदिन है. इसके साथ ही इस प्लांट से प्रतिदिन 27 टन DDGS (Distiller’s dried grains with Solubles) यानी एनिमल फीड बनाने के लिए जो पोषक तत्व से पूर्ण कच्चे माल की जरुरत होती है. उसका उत्पादन बायप्रोडक्ट के रुप में होगा. पूर्णियां के परोरा में ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा. लि. (EIBPL) द्वारा स्थापित प्लांट की जरुरत को पूरा करने के लिए प्रतिदिन करीब 145 से 150 टन चा...

मार्केट में 700

गुरु अंगद देव वेटरनरी व एनिमल साइंसेस यूनिवर्सिटी(गडवासू) द्वारा पानी की कठोरता की जांच के लिए बेहद कम दाम में जांच किट तैयार की है। जिससे कि बेहद कम दाम में बॉयलर, नल के पानी या आरओ के पानी में मिलने वाले कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा की जांच की जा सकेगी। मार्केट से आधे से भी कम रेट में डेयरी इंडस्ट्री से जुड़े लोग या आम लोग भी इसका लाभ ले सकते हैं। गडवासू के डेयरी साइंस व टेक्नोलॉजी कॉलेज के माहिरों द्वारा ये किट तैयार की गई है। यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. इंद्रजीत सिंह ने बताया कि डेयरी प्लांट की प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले बॉयलर में बेहद सॉफ्ट पानी जाना चाहिए। लेकिन कई बार पानी में कैल्शियम व मैग्नीशियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा होती है। ऐसे में डेयरी सेक्टर में पानी की जांच थोड़े समय में जरुरी होती है। यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स द्वारा 200 रुपए की किट तैयार की गई है। जिससे बॉयलर में इस्तेमाल होने वाले पानी के 100 तक टेस्ट किए जा सकते हैं। ऐसे में 2 रुपये की कीमत में जांच संभव हो सकती है। वहीं, रिपोर्ट के लिए भी ज्यादा समय का इंतजार नहीं करना होगा। तुरंत ही रिपोर्ट भी हासिल हो जाएगी। इस किट से किसी भी जगह के पानी की जांच की जा सकती है। कठोर पानी होने पर मशीनरी की मेंटेनेंस पर पड़ता है असर डेयरी साइंस व टेक्नोलॉजी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनवेश सिहाग ने बताया कि पानी में दो तरह की कठोरता होती है जोकि टेंपरेरी व परमानेंट होती है। कठोरता कैल्शियम और मैग्नीशियम के रूप में होती है जोकि पानी में घुल जाती है। डेयरी प्लांट प्रोसेसिंग में स्टीम बॉयलर का इस्तेमाल होता है। इसके लिए पानी की कठोरता जीरो होनी चाहिए। लेकिन कैल्शियम कार्बोनेट पानी में घुल जाती है। ऐसे म...

बिहार को मिलेगा देश का पहला ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट, नीतीश कुमार पूर्णिया में करेंगे उद्घाटन

पटना. 30 अप्रैल 2022 को बिहार उद्योग के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल करने जा रहा है. केंद्र और राज्य की इथेनॉल पॉलिसी 2021 के बाद देश के पहले ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट का शुभारंभ होने जा रहा है. पूर्णियां के कृत्यानंद नगर के परोरा में ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा. लि. (EIBPL) द्वारा 105 करोड़ की लागत से स्थापित ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट का शुभारंभ कल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा होगा. बिहार के उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन मुख्य अतिथि के रुप में इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे. साथ ही खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री लेशी सिंह और पूर्णियां सांसद संतोष कुशवाहा की भी मौजूदगी रहेगी. उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि बिहार देश का इथेनॉल हब बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ने लगा है. बिहार इथेनॉल पॉलिसी 2021 के बाद बिहार में स्थापित हो रही 17 इथेनोल इकाइयों में से पहले ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल इकाई ने उत्पादन शुरू कर दिया है और बहुत जल्द तीन और इथेनोल इकाइयों का शुभारंभ होगा. पूर्णिया के इथेनॉल प्लांट की क्या है खासियत पूर्णियां के परोरा में ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा. लि. (EIBPL) द्वारा स्थापित ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट की उत्पादन क्षमता 65 हजार लीटर प्रतिदिन है. इसके साथ ही इस प्लांट से प्रतिदिन 27 टन DDGS (Distiller’s dried grains with Solubles) यानी एनिमल फीड बनाने के लिए जो पोषक तत्व से पूर्ण कच्चे माल की जरुरत होती है. उसका उत्पादन बायप्रोडक्ट के रुप में होगा. पूर्णियां के परोरा में ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा. लि. (EIBPL) द्वारा स्थापित प्लांट की जरुरत को पूरा करने के लिए प्रतिदिन करीब 145 से 150 टन चा...

मार्केट में 700

गुरु अंगद देव वेटरनरी व एनिमल साइंसेस यूनिवर्सिटी(गडवासू) द्वारा पानी की कठोरता की जांच के लिए बेहद कम दाम में जांच किट तैयार की है। जिससे कि बेहद कम दाम में बॉयलर, नल के पानी या आरओ के पानी में मिलने वाले कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा की जांच की जा सकेगी। मार्केट से आधे से भी कम रेट में डेयरी इंडस्ट्री से जुड़े लोग या आम लोग भी इसका लाभ ले सकते हैं। गडवासू के डेयरी साइंस व टेक्नोलॉजी कॉलेज के माहिरों द्वारा ये किट तैयार की गई है। यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. इंद्रजीत सिंह ने बताया कि डेयरी प्लांट की प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले बॉयलर में बेहद सॉफ्ट पानी जाना चाहिए। लेकिन कई बार पानी में कैल्शियम व मैग्नीशियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा होती है। ऐसे में डेयरी सेक्टर में पानी की जांच थोड़े समय में जरुरी होती है। यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स द्वारा 200 रुपए की किट तैयार की गई है। जिससे बॉयलर में इस्तेमाल होने वाले पानी के 100 तक टेस्ट किए जा सकते हैं। ऐसे में 2 रुपये की कीमत में जांच संभव हो सकती है। वहीं, रिपोर्ट के लिए भी ज्यादा समय का इंतजार नहीं करना होगा। तुरंत ही रिपोर्ट भी हासिल हो जाएगी। इस किट से किसी भी जगह के पानी की जांच की जा सकती है। कठोर पानी होने पर मशीनरी की मेंटेनेंस पर पड़ता है असर डेयरी साइंस व टेक्नोलॉजी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनवेश सिहाग ने बताया कि पानी में दो तरह की कठोरता होती है जोकि टेंपरेरी व परमानेंट होती है। कठोरता कैल्शियम और मैग्नीशियम के रूप में होती है जोकि पानी में घुल जाती है। डेयरी प्लांट प्रोसेसिंग में स्टीम बॉयलर का इस्तेमाल होता है। इसके लिए पानी की कठोरता जीरो होनी चाहिए। लेकिन कैल्शियम कार्बोनेट पानी में घुल जाती है। ऐसे म...

'प्लांट बेस्ड मीट' हेल्थ के लिए एनिमल मीट से ज्यादा फायदेमंद? स्टडी में हुआ बड़ा खुलासा

प्लांट बेस्ड मीट में फैट और कैलोरी की मात्रा कम होती है, जिससे हेल्थ पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता. प्लांट बेस्ड प्रोडक्ट तैयार करने में एनिमल प्रोडक्ट्स की अपेक्षा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है Plant-based meat is healthier: प्लांट बेस्ड मीट इन दिनों एनिमल प्रोडक्ट का एक बेहतर विकल्प बनकर उभर रही है. प्लांट बेस्ड मीट को प्लांट्स से तैयार किया जाता है और यह लोगों को एनिमल मीट जैसा स्वाद देती है. खास बात यह है कि यह बिलकुल मीट की तरह नजर आती है. इसमें फैट और कैलोरी की मात्रा काफी कम होती है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मानी जाती है. इसे बनाने में कोकोनट ऑयल, वेजिटेबल प्रोटीन एक्सट्रैक्ट और बीट जूस का इस्तेमाल किया जाता है. ब्रिटेन में की गई एक स्टडी में प्लांट बेस्ड मीट को लेकर चौंकाने वाली बात सामने आई हैं. इसमें बताया गया है कि यह लोगों की हेल्थ के साथ पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. यह भी पढ़ेंः नई स्टडी में इन बातों का हुआ खुलासा ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के शोधकर्ताओं ने प्लांट बेस्ट प्रोडक्ट्स के फायदों को लेकर एक स्टडी की है. इसमें पता चला है कि प्लांट बेस्ड मीट एनिमल प्रोडक्ट्स की तुलना में ज्यादा फायदेमंद होती है. यह एनिमल प्रोडक्ट्स को रिप्लेस करने के लिए बनाई गई है. प्लांट बेस्ड मीट की बनावट, स्वाद को विशेष रुप से डिजाइन किया जाता है ताकि इसे खाने पर एनिमल मीट जैसा अनुभव हो. इन प्रोडक्ट्स में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं. ऐसे प्रोडक्ट मीट और डेयरी प्रोडक्ट की मांग को कम करने में प्रभावी साबित हो रहे हैं. इससे लोग शाकाहारी खाने के लिए उत्साहित हो रहे हैं. ब्रिटेन की एक रिसर्च में प्लांट बेस्ट प्रोडक्ट्स की तुलना एनिमल मीट वाले प्...

प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के बीच अंतर

पशु लैनोलिन भेड़ की वसामय ग्रंथियों द्वारा स्रावित एक मोमी पदार्थ है, जिसे बाद में उनकी ऊन से निकाला जाता है।यह एस्टर, अल्कोहल और फैटी एसिड का एक जटिल मिश्रण है और इसका उपयोग कॉस्मेटिक, फार्मास्युटिकल और टेक्सटाइल उद्योगों जैसे अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला में किया जाता है।एनिमल लैनोलिन में एक पीला रंग और एक अलग गंध होती है, और यह आमतौर पर स्किनकेयर उत्पादों में सूखी और फटी त्वचा को मॉइस्चराइज़ करने और शांत करने के लिए उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर, प्लांट लैनोलिन पशु लैनोलिन का एक शाकाहारी विकल्प है और इसे पौधों पर आधारित सामग्री जैसे अरंडी का तेल, जोजोबा ऑयल और कारनौबा वैक्स से बनाया जाता है।प्लांट लैनोलिन एक प्राकृतिक ईमोलिएंट है और इसका उपयोग जानवरों के लैनोलिन जैसे कई अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि त्वचा की देखभाल और कॉस्मेटिक उत्पादों में।यह अक्सर उन लोगों द्वारा पसंद किया जाता है जो शाकाहारी या क्रूरता मुक्त उत्पाद पसंद करते हैं। पशु-आधारित लानौलिन की तुलना में, पौधे-आधारित लानौलिन में पशु वसा नहीं होता है, हानिरहित होने के फायदे हैं, एलर्जी पैदा करना आसान नहीं है, कीटाणुओं को नहीं फैलाता है और इसी तरह, जो स्वास्थ्य अवधारणा और रहने की आदतों के अनुरूप है आधुनिक लोग।इसी समय, पौधे-आधारित लैनोलिन को व्यापक रूप से पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है, क्योंकि इससे पर्यावरण को प्रदूषण या क्षति नहीं होती है।इसलिए, लोगों की पर्यावरण जागरूकता में वृद्धि और स्वास्थ्य और सुरक्षा की खोज के साथ, पौधे-आधारित लैनोलिन धीरे-धीरे पारंपरिक पशु-आधारित लैनोलिन की जगह ले रहा है और अधिक से अधिक उत्पादों में एक आदर्श विकल्प बन रहा है। कुल मिलाकर, प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के ब...

मार्केट में 700

गुरु अंगद देव वेटरनरी व एनिमल साइंसेस यूनिवर्सिटी(गडवासू) द्वारा पानी की कठोरता की जांच के लिए बेहद कम दाम में जांच किट तैयार की है। जिससे कि बेहद कम दाम में बॉयलर, नल के पानी या आरओ के पानी में मिलने वाले कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा की जांच की जा सकेगी। मार्केट से आधे से भी कम रेट में डेयरी इंडस्ट्री से जुड़े लोग या आम लोग भी इसका लाभ ले सकते हैं। गडवासू के डेयरी साइंस व टेक्नोलॉजी कॉलेज के माहिरों द्वारा ये किट तैयार की गई है। यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. इंद्रजीत सिंह ने बताया कि डेयरी प्लांट की प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले बॉयलर में बेहद सॉफ्ट पानी जाना चाहिए। लेकिन कई बार पानी में कैल्शियम व मैग्नीशियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा होती है। ऐसे में डेयरी सेक्टर में पानी की जांच थोड़े समय में जरुरी होती है। यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स द्वारा 200 रुपए की किट तैयार की गई है। जिससे बॉयलर में इस्तेमाल होने वाले पानी के 100 तक टेस्ट किए जा सकते हैं। ऐसे में 2 रुपये की कीमत में जांच संभव हो सकती है। वहीं, रिपोर्ट के लिए भी ज्यादा समय का इंतजार नहीं करना होगा। तुरंत ही रिपोर्ट भी हासिल हो जाएगी। इस किट से किसी भी जगह के पानी की जांच की जा सकती है। कठोर पानी होने पर मशीनरी की मेंटेनेंस पर पड़ता है असर डेयरी साइंस व टेक्नोलॉजी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनवेश सिहाग ने बताया कि पानी में दो तरह की कठोरता होती है जोकि टेंपरेरी व परमानेंट होती है। कठोरता कैल्शियम और मैग्नीशियम के रूप में होती है जोकि पानी में घुल जाती है। डेयरी प्लांट प्रोसेसिंग में स्टीम बॉयलर का इस्तेमाल होता है। इसके लिए पानी की कठोरता जीरो होनी चाहिए। लेकिन कैल्शियम कार्बोनेट पानी में घुल जाती है। ऐसे म...

प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के बीच अंतर

पशु लैनोलिन भेड़ की वसामय ग्रंथियों द्वारा स्रावित एक मोमी पदार्थ है, जिसे बाद में उनकी ऊन से निकाला जाता है।यह एस्टर, अल्कोहल और फैटी एसिड का एक जटिल मिश्रण है और इसका उपयोग कॉस्मेटिक, फार्मास्युटिकल और टेक्सटाइल उद्योगों जैसे अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला में किया जाता है।एनिमल लैनोलिन में एक पीला रंग और एक अलग गंध होती है, और यह आमतौर पर स्किनकेयर उत्पादों में सूखी और फटी त्वचा को मॉइस्चराइज़ करने और शांत करने के लिए उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर, प्लांट लैनोलिन पशु लैनोलिन का एक शाकाहारी विकल्प है और इसे पौधों पर आधारित सामग्री जैसे अरंडी का तेल, जोजोबा ऑयल और कारनौबा वैक्स से बनाया जाता है।प्लांट लैनोलिन एक प्राकृतिक ईमोलिएंट है और इसका उपयोग जानवरों के लैनोलिन जैसे कई अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि त्वचा की देखभाल और कॉस्मेटिक उत्पादों में।यह अक्सर उन लोगों द्वारा पसंद किया जाता है जो शाकाहारी या क्रूरता मुक्त उत्पाद पसंद करते हैं। पशु-आधारित लानौलिन की तुलना में, पौधे-आधारित लानौलिन में पशु वसा नहीं होता है, हानिरहित होने के फायदे हैं, एलर्जी पैदा करना आसान नहीं है, कीटाणुओं को नहीं फैलाता है और इसी तरह, जो स्वास्थ्य अवधारणा और रहने की आदतों के अनुरूप है आधुनिक लोग।इसी समय, पौधे-आधारित लैनोलिन को व्यापक रूप से पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है, क्योंकि इससे पर्यावरण को प्रदूषण या क्षति नहीं होती है।इसलिए, लोगों की पर्यावरण जागरूकता में वृद्धि और स्वास्थ्य और सुरक्षा की खोज के साथ, पौधे-आधारित लैनोलिन धीरे-धीरे पारंपरिक पशु-आधारित लैनोलिन की जगह ले रहा है और अधिक से अधिक उत्पादों में एक आदर्श विकल्प बन रहा है। कुल मिलाकर, प्लांट लैनोलिन और एनिमल लैनोलिन के ब...