गृहलक्ष्मी की कहानियां

  1. प्रेम की पराकाष्ठा
  2. #14 दिन 14 कहानियां (१३)(गृहलक्ष्मी)
  3. 78 पंचतंत्र की कहानियां


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प्रेम की पराकाष्ठा

प्रेम की पराकाष्ठा-गृहलक्ष्मी की कहानियां Close • Search for: Search • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • • Open dropdown menu • • Open dropdown menu • • • • • • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • • • • • • • • Facebook • Instagram • YouTube • Twitter • Linkedin Close गृहलक्ष्मी की कहानियां ओ हो! ये क्या हाल बना रखा है आपने अपना! और देखो तो सही पलंग पर भी कैसे सामान फैला रखा है? कोई बैठना चाहे तो बैठ भी ना सके। अरे लेक्चर ना सुनाओ मुझे, जैसा रखा है वैसा ही रखा रहने दो तुम मेरा सामान। तुम तो सफाई के नाम पर कहीं का कहीं रख देती हो और फिर मैं घंटों ढूंढता रहता हूं। अच्छा चलो सामान की बात छोड़ो अपनी सेहत की बात बताओ। सेहत को क्या हुआ है, ठीक है। हां बस ज़रा सी खांसी है ठीक हो जाएगी वो भी। आप शुरू से ही अपनी सेहत के प्रति लापरवाह रहे हो पर अब बुढ़ापे में लापरवाही सही नहीं है। सोनू कह रहा था कि आप सुबह जल्दी उठकर सर्दी में भी नंगे पैर घूमने लगते हो। ना मफलर पहनते हो ना टेापी। आपको तो वैसे भी जल्दी ही ठंड जकड़ लेती है। आपके लिए एक से एक टोपी, मफलर और मोजे अपने हाथों से बुनकर रखे हैं पर आपको तो उसकी कोई कद्र ही नहीं। पहन लोगे तो आपको ही फायदा होगा मुझे नहीं। अरे इतना परेशान मत हो,सोनू लाया था मेरी दवा। खा रहा हूं उसे,अब फायदा होने में टाइम तो लगेगा ही। यह भी पढ़ें | अरे बुढ़ापे में तो अपनी ज़िद छोड़ दो। सारी उम्र तो आपने अपनी मनमानी ही की है। किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा क्यों नहीं देते? आपको तो कोई कुछ नहीं कहेगा पर सब सोनू पर ही उंगली उठाने लगेंगे कि वह अपने में ही मस्त रहता है,आप पर ध्यान ही नहीं...

#14 दिन 14 कहानियां (१३)(गृहलक्ष्मी)

पत्नी घर की धुरी होती है। उसके मुखमंडल की आभा कम हुई तो घर में भूचाल आया समझो। लेकिन यदि वह खुश है तो घर के हर कण कण में खुशियां आपको बिखरी मिलेगी। पत्नियां चाहे वर्किग वूमेन हो या हाउस वाइफ, घर के प्रति समर्पण, प्रेम आदि गुण दोनों में समान रूप से होते हैं। जिस पति को पत्नी को खुश रखने की कला अा गई, उसका घर स्वर्ग बन गया समझो। थोड़े में, पत्नी आपके घर की लक्ष्मी है। गृहलक्ष्मी! रघुनंदन पांच बहनों का बड़ा भाई था। अब भाई बहन का प्यार तो जग जाहिर है उसपर ज्यादा क्या लिखूं। मगर बहनें जब भाई पर हुक्म चलाएं तो ऐसे में कुछ लिखना ही पड़ता है। रघुनंदन भी कभी अपनी बहनों को निराश नहीं करता। उनकी हर डिमांड को पूरा करने में उसको आंतरिक खुशी का अनुभव होता। यह उसका स्वाभाविक गुण था। माता- पिता अपने पुत्र के इस स्वभाव और भाई - बहन के बीच का प्यार देखकर खुश होते रहते। नियत समय पर बारी बारी से सभी बहनों का ब्याह हो गया। सभी अपने पति के संग आनंदपूर्वक जीवन बिताने लगीं। अब रघुनंदन की शादी होनी थी। बहनों ने अपने प्यारे भाई के लिए बीसो लड़कियां देखने के बाद एक सर्वगुण सम्पन्न, गृह कार्य में दक्ष लड़की का चुनाव अपने प्यारे भाई के लिए किया। शहनाई बजी। लड़की भाभी बनकर घर में अा गई। समय बीतता चला गया। रघुनंदन भी दो बच्चों का बाप बन गया। घर में बच्चों के आने से पत्नी प्रभा का काम रोज बढ़ने लगा। कभी ऐसा नहीं था कि वह दम भर के लिए अपने लिए वक्त निकाल सके। प्रभा को हमेशा घर के कामों में व्यस्त देख रघुनंदन का दिल करता भी कि पत्नी के काम में हाथ बटाए, मगर मां- पिताजी क्या कहेंगे, इसी लज्जा के कारण वह पत्नी का सहयोग करने से रुक जाता था। लॉक्ड डाउन होने के कारण नटखट बच्चों के उपद्रव से प्रभा परेशान होने लग...

78 पंचतंत्र की कहानियां

पंचतंत्र की कहानियां बच्चों के कोमल मन में बातों को गहराई तक पहुंचाने का तरीका कहानियों से बेहतर और क्या हो सकता है। खासकर, पंचतंत्र की कहानियां, जिसमें बेहतर सीख, संस्कार व जीवन में अच्छी चीजों की ओर बढ़ने की प्रेरणा मौजूद होती है।पांच भागों में बंटी पंचतंत्र की कहानियां ही हैं, जो दोस्ती की अहमियत, व्यवहारिकता व नेतृत्व जैसी अहम बातों को सरल और आसान शब्दों में बच्चों तक पहुंचा कर उन पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं। शायद यही वजह है कि अक्सर बचपन में सुनी कहानियां और उनकी सीख जीवन के अहम पड़ाव में मार्ग दर्शक के रूप में भी काम कर जाती हैं।हम कौआ-उल्लू के बीच का बैर, दोस्ती-दुश्मनी, दोस्तों के होने का लाभ, कर्म न करने से होने वाली हानि, हड़बड़ी में कदम उठाने से होने वाले नुकसान जैसी कई पंचतंत्र की कहानियां आप तक इस प्लेटफॉर्म के जरिए लेकर आ रहे हैं। आप इन कहानियों के माध्यम से बच्चों को खुशी देने और उनका मन बहलाने के साथ ही उनके अंदर नैतिकता व सदाचार के भाव को पहुंचा सकते हैं। तो देर किस बात की, अपने बच्चों को ये शिक्षाप्रद कहानियां सुनाते हुए अपने बचपन में खो जाइए।

कंकाल

कंकाल- गृहलक्ष्मी की कहानियां Close • Search for: Search • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • • Open dropdown menu • • Open dropdown menu • • • • • • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • • • • • • • • Facebook • Instagram • YouTube • Twitter • Linkedin Close हम तीन बाल्य साथी जिस कमरे में सोते थे, उसकी बग़ल के कमरे की दीवार पर एक पूरा नरकंकाल लटका हुआ था। रात को हवा में उसकी हड्डियाँ खट्खट् शब्द करतीं हिलती रहती। दिन के समय हम लोगों को उन हड्डियों को हिलाना-डुलाना पड़ता। तब हम पंडित महाशय से मेघनाद-वध और कैम्बल स्कूल के छात्र से अस्थि-विद्या पढ़ते थे। हमारे अभिभावकों की इच्छा थी कि हम लोगों को एकबारगी ही सर्व-विद्याओं में पारदर्शी बना देंगे। उनका उद्देश्य कहाँ तक सफल हुआ, हम लोगों को जो जानते हैं; उनके समक्ष प्रकट करना बेकार है और जो जानते नहीं, उनसे छिपाना ही बेहतर है। उसके बाद बहुत दिन बीत गए। इस बीच उस कमरे से कंकाल और हमारे मस्तिष्क से अस्थि-विद्या कहाँ स्थानांतरित हुई, खोज करने पर भी पता नहीं पड़ा। कुछ दिन हुए, एक दिन रात में किसी कारण अन्यत्र स्थानाभाव होने से मुझे उसी कमरे में सोना पड़ा। अनभ्यासवश नींद नहीं आ रही थी। इस करवट उस करवट करते गिरजा की घड़ी के बड़े-बड़े घंटों ने लगभग सारे घंटे बजा दिए। इतने में कमरे के कोने में जो तेल का शेज जल रहा था, वह करीब पाँच मिनट तक भभकता हुआ एकबारगी बुझ गया। इसके पहले ही हमारे घर में दो-एक दुर्घटनाएँ घट चुकी थी। इसलिए इस प्रकाश के बुझने से सहज ही मृत्यु की बात मन में उदित हुई। मन में आया, यह जो रात के दूसरे प्रहर में एक दीप-शिखा चिर अंधकार में विलीन हो गई...