गांधी की हत्या के माध्यम से उत्पन्न होने वाली किसी भी घटना का नाम बताइए।

  1. 20 जनवरी 1948 को 6 लोग गांधीजी की हत्या करने गए थे, लेकिन नाकाम रहे; 10 दिन बाद गोडसे ने उन पर 3 गोलियां चलाईं
  2. vinoba bhave on gandhi: महात्मा गांधी की हत्या से “लज्जित” क्यों थे संत विनोबा भावे? why vinoba bhave ashamed after murder of mahatma gandhi views
  3. इंदिरा गांधी की हत्या
  4. Rajiv Gandhi Death Anniversary Story Of Rajiv Gandhi Assassination Scene As
  5. महात्मा गांधी की हत्या
  6. गाँधी की हत्या का पुनर्सृजन क्यों?
  7. वो दूसरा शख्स जो गोडसे के साथ गांधी की हत्या में फांसी पर चढ़ा था। Narayan Apte was second killer of Gandhi with Nathuram Godse
  8. कैसे 30 जनवरी को हुई गांधी जी की हत्या का संबंध आज की हर 26 जनवरी से जुड़ा हुआ है
  9. क्या गांधी की हत्या में आरएसएस की भूमिका थी?


Download: गांधी की हत्या के माध्यम से उत्पन्न होने वाली किसी भी घटना का नाम बताइए।
Size: 42.53 MB

20 जनवरी 1948 को 6 लोग गांधीजी की हत्या करने गए थे, लेकिन नाकाम रहे; 10 दिन बाद गोडसे ने उन पर 3 गोलियां चलाईं

• फरवरी 1949 के अदालती फैसले से पढ़ें महात्मा गांधी की हत्या की साजिश की पूरी कहानी, फैसले की कॉपी नेशनल आर्काइव्स में मौजूद • गोडसे और उसके साथी आजादी के बाद नवंबर 1947 से ही गांधीजी को मारने की साजिश रच रहे थे, जनवरी 1948 में रिवॉल्वर और पैसे जुटाए • बाद में दो लोगों ने गोडसे का साथ छोड़ दिया; गोडसे और नारायण आप्टे ने ही ग्वालियर जाकर रिवॉल्वर खरीदी और 29 को दिल्ली पहुंच गए • 30 जनवरी 1948 की शाम जब गांधीजी रोज की तरह प्रार्थना स्थल पहुंचे, तो गोडसे ने एक के बाद एक तीन गोलियां उन पर चला दीं नई दिल्ली. तारीख थी 30 जनवरी 1948 और जगह- दिल्ली का बिड़ला हाउस। शाम के 5 बजकर कुछ मिनट ही हुए थे। महात्मा गांधी रोज की तरह बिड़ला हाउस के प्रार्थना स्थल पहुंचे। उनका एक हाथ आभा बेन तो दूसरा हाथ मनु बेन के कंधे पर था। उस दिन गांधीजी को वहां आने में थोड़ी देर हो गई थी। गांधीजी जब बिड़ला हाउस पहुंचे, तब उन्हें गुरबचन सिंह लेने आए। गांधीजी अंदर प्रार्थना स्थल की तरफ चले गए। गांधीजी ने फिर अपने दोनों हाथ जोड़े और भीड़ का अभिवादन किया। तभी भीड़ में से एक व्यक्ति निकलकर गांधीजी के सामने आया। उसका नाम नाथूराम गोडसे था। नाथूराम ने दोनों हाथ जोड़ रखे थे और हाथों के बीच में रिवॉल्वर छिपा रखी थी। कुछ ही सेकंड में नाथूराम ने रिवॉल्वर तानी और एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी पर चला दीं। गांधीजी के मुंह से 'हे राम...' निकला और वे जमीन पर गिर पड़े। गांधीजी को अंदर ले जाया गया, लेकिन थोड़ी ही देर में डॉक्टरों ने गांधीजी को मृत घोषित कर दिया। फरवरी 1949 में आए महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े फैसले को पढ़कर भास्कर ने यह पता लगाने की कोशिश की कि किस तरह से यह षड्यंत्र रचा गया था। साजिश : जनवरी 1948 में ही न...

vinoba bhave on gandhi: महात्मा गांधी की हत्या से “लज्जित” क्यों थे संत विनोबा भावे? why vinoba bhave ashamed after murder of mahatma gandhi views

30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की कायरतापूर्ण हत्या होने के बाद उनके बेहद करीबी सहयोगी और संत विनोबा भावे बेहद दुखी ही नहीं, ‘लज्जित’ भी थे. लेकिन क्यों? बापू की हत्या से जुड़ी वह क्या बात थी, जिसे सोचकर विनोबा जैसे संत को ‘लज्जा’ का एहसास होता था? इसका खुलासा विनोबा भावे ने खुद ही किया है. वह भी बापू की हत्या के महज 6 हफ्ते बाद, सेवाग्राम आश्रम में हुई एक बेहद अहम कॉन्फ्रेंस में. 5 दिनों तक चली इस बेहद अहम कॉन्फ्रेंस में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, जयप्रकाश नारायण और जेबी कृपलानी जैसे बड़े नेताओं के अलावा काका कालेलकर, शंकर राव देव, जे सी कुमारप्पा, ठक्कर बापा और संत तुकड़ो जी महाराज जैसे गांधीवादी विचारक और समाजसेवी भी शामिल हुए थे. “मैं उस प्रांत का हूं जिसमें RSS का जन्म हुआ. जाति छोड़कर बैठा हूं. फिर भी भूल नहीं सकता कि उसकी जाति का हूं जिसके द्वारा यह घटना हुई. कुमारप्पा जी और कृपलानी जी ने फौजी बंदोबस्त के खिलाफ परसों सख्त बातें कहीं. मैं चुप बैठा रहा. वे दुख के साथ बोलते थे. मैं दुख के साथ चुप था. न बोलनेवाले का दुख जाहिर नहीं होता. मैं इसलिए नहीं बोला कि मुझे दुख के साथ लज्जा भी थी. पवनार में मैं बरसों से रह रहा हूं. वहां पर भी चार-पांच आदमियों को गिरफ्तार किया गया है. बापू की हत्या से किसी न किसी तरह का संबंध होने का उन पर शुबहा है. वर्धा में गिरफ्तारियां हुईं, नागपुर में हुईं, जगह-जगह हो रही हैं. यह संगठन इतने बड़े पैमाने पर बड़ी कुशलता के साथ फैलाया गया है. इसके मूल बहुत गहरे पहुंच चुके हैं. यह संगठन ठीक फासिस्ट ढंग का है. ....इस संगठनवाले दूसरों को विश्वास में नहीं लेते. गांधीजी का नियम सत्य का था. मालूम होता है, इनका निय...

इंदिरा गांधी की हत्या

उनके दो सिख अंगरक्षक, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 को गाँधी को उनके सरकारी कार में अस्पताल पहुँचाते–पहुँचाते रास्ते में ही दम तोड़ दीं थी, लेकिन घंटों तक उनकी मृत्यु घोषित नहीं की गई। उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया। उस वक्त के सरकारी हिसाब 29 प्रवेश और निकास घावों को दर्शाती है तथा कुछ बयाने 31 बुलेटों के उनके शरीर से निकाला जाना बताती है, उन्हें हत्या के बाद की घटनाएँ [ ] इन्हें भी देखें: इन्हें भी देखें [ ] • • • • सन्दर्भ [ ] • ↑ . अभिगमन तिथि 5 सितम्बर 2011. • The New York Times. 1 नवम्बर 1984. मूल से 15 अक्टूबर 2009 को . अभिगमन तिथि 23 जनवरी 2009. • . अभिगमन तिथि 23 January 2009. • Swami, Praveen (16 January 2014). . अभिगमन तिथि 26 अप्रैल 2020. • . अभिगमन तिथि 23 January 2009. • ↑ Dnaindia.com. 5 नवम्बर 2016. मूल से 3 नवम्बर 2017 को . अभिगमन तिथि 29 अक्टूबर 2017. • . अभिगमन तिथि 26 अप्रैल 2020. • Sandhu, Kanwar (15 May 1990). . अभिगमन तिथि 19 June 2018. • Smith, William E. (12 नवम्बर 1984). Time. मूल से 3 नवम्बर 2012 को . अभिगमन तिथि 19 जनवरी 2013. • Bedi, Rahul (1 November 2009). . अभिगमन तिथि 2 November 2009. The 25th anniversary of Indira Gandhi's assassination revives stark memories of some 3,000 Sikhs killed brutally in the orderly pogrom that followed her killing • . अभिगमन तिथि 5 May 2012. • Singh, Pritam (2008). Federalism, Nationalism and Development: India and the Punjab Economy. Routledge. पृ॰45. 978-0-415-45666-1. मूल से 30 अप्रैल 2014 को . अभिगमन तिथि 26 अप 2020. |access-date= में 6 स...

Rajiv Gandhi Death Anniversary Story Of Rajiv Gandhi Assassination Scene As

21 मई 1991: मद्रास से करीब 40 किमी दूर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में सभा के स्टेज से कुछ ही दूर पहले राजीव गांधी ने अपनी मां इंदिरा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और स्टेज की ओर बढ़े. रात 10 बजकर 10 मिनट पर राजीव ने अपनी कार से बाहर आकर हाथ उठाकर भीड़ का अभिवादन किया. वी राममूर्ति ने दो पत्रकारों के लिए रास्ता बनाया और फिर तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी द्वारा अरेंज की गई एक जीप में एक वीडियोग्राफर के साथ पहले स्टेज पर पहुंचे. उन्होंने देखा कि राजीव बैरिकेड्स के पास रुक गए हैं और कुछ प्रशंसकों के साथ हाथ मिला रहे हैं. कुछ ही दूर दो विदेशी पत्रकारों से घिरीं मरागथम को कार से उतरने में बहुत वक्त लगा लेकिन वह राजीव के पास पहुंचीं और उन्होंने कुछ समर्थकों को राजीव से इंट्रोड्यूस कराने की कोशिश की. इतने में राजीव रेड कारपेट की ओर बढ़ गए. वहां एक पार्टी कार्यकर्ता ने शॉल भेंट करते हुए राजीव के साथ एक फोटो की गुजारिश की और राजीव को दोनों बाहों में बांधना चाहा. मरागथम ने उस कार्यकर्ता को राजीव से दूर करने की कोशिश की लेकिन उन्हें धक्का लगा और वह संतुलन खो बैठीं. इससे करीब एक घंटे पहले मद्रास से करीब 40 किमी दूर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में 21 मई 1991 को होने वाली राजीव गांधी की सभा की तैयारियां 20 मई को युद्धस्तर पर थीं. आईजी आरके राघवन पूरी सभा में सुरक्षा प्रबंधों के ओवरआॅल इंचार्ज थे. 17 मई को जैसे ही तमिलनाडु में कुछ जगहों पर राजीव की सभाओं की पुष्टि हुई तो इंटेलिजेंस और सुरक्षा एजेंसियों ने सुरक्षा के इंतजामों के लिए कमर कस ली थी. 20 मई को निर्देश जारी किए गए कि राजीव की श्रीपेरंबदूर सभा में शामिल होने वाली भीड़ को लेकर पुख्ता इंतज़ाम किए जाएं. 21 मई की रात एक सब इंस्पेक्टर की इ...

महात्मा गांधी की हत्या

Quick facts: मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या, स्थान, तिथि, ल... ▼ मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या एक स्मारक बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति), नई दिल्ली में उस स्थान को चिन्हित करता है, जहां 30 जनवरी 1948 को शाम 5:17.30 बजे महात्मा गांधी की हत्या की गई थी।। स्थान तिथि 30 जनवरी 1948 लक्ष्य हथियार अर्ध - स्वचालित पिस्तौल (बैरेटा) मृत्यु 1 (महात्मा गान्धी) घायल कोई नहीं अपराधी Close ▲ इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया। इन आठों लोगों में से तीन आरोपियों

गाँधी की हत्या का पुनर्सृजन क्यों?

गाँधी की हत्या का पुनर्सृजन क्यों? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 71वीं पुण्यतिथि पर अलीगढ़ में हिंदू महासभा की सचिव पूजा शकुन पाण्डेय ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर गांधी के पुतले पर तीन राउंड गोलियां दागकर उनकी हत्या का पुनर्सृजन किया। साथ ही इस निंदनीय घटना को अंजाम देने के बाद यह कहा कि इस कार्य वह हर साल करेंगी 30 जनवरी 2019 को जब पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 71वां बलिदान दिवस मना रहा था, उस दिन अलीगढ़ में हिंदू महासभा के सदस्यों ने गांधी की हत्या की घटना का सार्वजनिक रूप से उनके पुतले पर गोली चलाकर पुनर्सृजन और प्रदर्शन किया। हिंदू महासभा की सचिव पूजा शकुन पाण्डेय के नेतृत्व में भगवा वस्त्र पहने कुछ कार्यकर्ता एक स्थान पर इकट्ठे हुए। पूजा पाण्डेय ने गांधी के पुतले पर तीन गोलियां दागीं और फिर पुतले के अन्दर छुपाये गए गुब्बारे में से खून रिसने लगा। वहां उपस्थित महासभा के नेताओं ने ’गांधी मुर्दाबाद’ और ’गोडसे जिंदाबाद’ और ‘महात्मा नाथूराम गोडसे अमर रहें’ के नारे लगाए और घोषणा की कि अब से वे हर वर्ष, गांधी की हत्या का पुनर्सृजन करेंगे, जिस प्रकार दशहरे पर रावण का पुतला जलाया जाता है। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। पाण्डेय के फेसबुक पेज पर उनका एक पुराना फोटो भी लगाया गया है, जिसमें वह मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री उमा भारती के साथ नजर आ रहीं हैं। पुलिस ने मौके पर मौजूद सभी व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है। और विनायक दामोदर सावरकर का महिमामंडन और गांधी की निंदा, लम्बे समय से हिंदू राष्ट्रवादियों (आरएसएस व हिंदू महासभा) के एजेंडे पर रहे हैं। कुछ साल पहले जब कांग्रेस के (वर्तमान) अध्यक्ष राहुल गांधी ने ...

वो दूसरा शख्स जो गोडसे के साथ गांधी की हत्या में फांसी पर चढ़ा था। Narayan Apte was second killer of Gandhi with Nathuram Godse

महात्मा गांधी के हत्यारे के रूप में नाथूराम गोडसेका नाम तो पूरी दुनिया जानती है लेकिन उस शख्स को शायद ही कोई जानने की कोशिश करता है, जिसे गोडसे के साथ गांधी की हत्या के लिए फांसी की सजा मिली थी, जो गोडसे के साथ ही अंबाला जेल में फांसी पर लटकाया गया था. गोडसे और आप्टे को एक साथ ही 15 नवंबर 1949 को फांसी हुई थी. आप्टे के बारे में बाद में ये बातें भी कही गईं कि वो शायद ब्रिटिश जासूस का काम भी करता था. गांधीजी की हत्या के मामले में 10 फरवरी 1949 के दिन विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी. नौ आरोपियों एक को बरी कर दिया. बरी होने वाले थे विनायक दामोदर सावरकर. बाकी आठ लोगों को गांधीजी की हत्या, साजिश रचने और हिंसा के मामलों में सजा सुनाई गई. दो लोगों नाथूराम गोडसे और हरि नारायण आप्टे को फांसी की सजा मिली. इसके अलावा अन्य छह लोगों को आजीवन कारावास, जिसमें नाथूराम गोडसे का भाई गोपाल गोडसे भी शामिल था. ये भी पढ़ें - नथ पहनने के चलते गोडसे का नाम पड़ा था नाथूराम, उसकी ये बातें जानते होंगे आप क्या वो वाकई ब्रिटिश खुफिया एजेंट था 1966 में जब सरकार ने दोबारा गांधी हत्या मामले को खोला तो जस्टिस जेएल कपूर की अगुवाई में जांच कमीशन का गठन किया गया. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में आप्टे के बारे में कहा कि वो ऐसा शख्स था, जिसकी सही पहचान को लेकर शक है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में उसे भारतीय वायुसेना का पूर्व कर्मी भी बताया. ये भी पढ़ें - कौन लोग हैं जो गांधी के हत्यारे गोडसे की पूजा करना चाहते हैं? इसी रिपोर्ट के बिना पर जब अभिनव भारत मुंबई नाम की संस्था ने तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोह15र पार्रिकर से जानकारी मांगी. तो उन्होंने कहा कि विभिन्न स्तरों पर की गई छानबीन के बाद रिकॉर्ड बताते हैं कि आप्टे कभी एयरफोर्स...

कैसे 30 जनवरी को हुई गांधी जी की हत्या का संबंध आज की हर 26 जनवरी से जुड़ा हुआ है

गणतंत्रदिवसगुज़रगया. तीसजनवरीक़रीबहै. दोनोंकेबीचक्यारिश्ताहै? क्यायहमहजइत्तेफ़ाक़हैकिछब्बीसजनवरीकेचौथेदिनगांधीकाक़त्लउनकेप्रतिनिधिकरदेतेहैंजोभारतकोहिंदूराष्ट्रबनानाचाहतेथे? यहहत्याइसतारीख़केछहदिनपहलेबीसजनवरीकोभीतोहोसकतीथीजबहत्यारोंकेइसीदलनेगांधीकीप्रार्थनासभापरबमफेंकाथा. जोभीहो, लेकिनयहतयहैकिजैसेसंविधानएकसुविचारितविचारप्रक्रियाकापरिणामहै, उसीप्रकारगांधीकाक़त्लभीकिसीग़ुस्सेकेउबालकानतीजानथा. जैसाकिएकशिक्षासंस्थानकेकर्मचारीकहतेहैं - ‘आख़िरगोडसेभीपढ़ेलिखेथे, कुछसोच-समझकरहीउन्होंनेगांधीकोमारनेकाफैसलाकियाहोगा.’ आमतौरपर 26 जनवरीकोभारतकेगणतांत्रिकचरित्रकीघोषणाऔरउसकेसंकल्पकेदिनकेरूपमेंमनायाजाताहै. भारतीयोंकेप्रजासेजनबननेकीयात्रा 1950 मेंसंविधानकोदेशकाजीवनसिद्धांतमाननेकेसाथहीआरंभहोगईथी. वैसेगणतांत्रिकताभारतीयस्वाधीनताआंदोलनकेदौरानहीएकमूल्यकेरूपमेंस्वीकारकरलीगईथी, संविधाननेसिर्फ़उसेअभिव्यक्तकिया. इससंविधाननिर्माणप्रक्रियाकामहत्वपूर्णहिस्साथाइसकाउद्देश्योंसेसंबंधितप्रस्तावजोजवाहरलालनेहरूने 13 दिसंबर, 1946 कोपेशकियाथा. यहभारतकेसंविधानकीनींवयाआधारभूमिहै. इसीपरसंविधानकापूराढांचाटिकाहुआहै. इसेपेशतोनेहरूनेकियालेकिनएकतरहसेवेअपनेमित्रऔरगुरूकेप्रवक्ताकाकामकररहेथे. लेकिनवहगुरूतोसंविधानसभाकासदस्यभीनथा. गांधीसंविधानसभाकेगठनकेवक़्तदिल्लीमेंनथे. वेदोनएराष्ट्रोंकेजन्मसेपहलेकीसांप्रदायिकहिंसाकीआगमेंकूदपड़ेथे. जिससमयदिल्लीमेंइसपरविचारकरनेकेलिएकिनयाभारतीयराष्ट्रकिनसाझाउसूलोंपरचलेगा, यहसभाकामशुरूकरनेजारहीथी, गांधीनोआख़ालीमेंथे. आजकेबांग्लादेशऔरतबकेपूर्वीपाकिस्तानमेंजानेकोतैयारनोआख़ालीमेंमुसलमानबहुसंख्यकथे. हिंदूपड़ोसियोंपरउन्होंनेहमलाकियाऔरसैकड़ोंहिंदूमारेगए. उसकेठीकपहलेकोलकातामेंजिन्नाकेसीधीकार्रवाईके...

क्या गांधी की हत्या में आरएसएस की भूमिका थी?

गांधीजी की हत्या में आरएसएस का हाथ होने के मामले को अदालती कार्यवाही पर छोड़ना उचित है. लेकिन इतिहास लेखन उनकी हत्या के पीछे छुपे विचार को पकड़ने में दिलचस्पी रखता है. (फोटो:Gandhimemorial.in) (यह लेख मूल रूप से 19 जून 2018 को प्रकाशित किया गया था.) मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर में जुम्मन शेख की खाला जुम्मन शेख से कहती हैं- ‘बेटा क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?’ पिछले कई दशकों से गांधीजी की हत्या के बारे में ईमान की जो बात बिगाड़ के डर से नहीं कही जा रही थी, राहुल गांधी ने कह दी. इसी से तिलमिलाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कोर्ट-कचहरी का सहारा लेना चाहती है क्योंकि गोपाल गोडसे के शब्दों में कहें तो ‘आरएसएस ने कोई (लिखित) प्रस्ताव पारित नहीं किया था कि जाओ और गांधी को मार दो.’ आरएसएस जानती है कि मामला पूरी तरह राजनीतिक और विचारधारात्मक है और आरएसएस को पता है कि इन मोर्चों पर उसका पक्ष बेहद कमजोर है. भारत में गांधीजी की हत्या का पहला प्रयास 25 जून 1934 को हुआ था जब उनकी कार पर पूना में बम फेंका गया. 1944 में एक बार फिर पंचगनी में तकरीबन बीस लड़के बस में भरकर आये और दिन भर गांधी-विरोधी नारे लगाते रहे. फिर उनका नेता नाथूराम गोडसे गांधीजी पर छुरा लेकर लपका जिसको वहां मौजूद भिलारे गुरुजी और मणिशंकर पुरोहित ने दबोच लिया. लेकिन उनकी कोई शिकायत पुलिस में दर्ज नहीं कराई गई. 1944 में ही गांधीजी के वर्धा स्थित सेवाग्राम आश्रम में नाथूराम के पास चाकू बरामद हुआ. गांधीजी के निजी सचिव प्यारेलाल इस वाकये को लिखते हुए बताते हैं कि सुबह ही उनको जिले के एसपी ने सूचना दी थी कि ‘स्वयंसेवक’ गंभीर शरारत करना चाहते हैं. यह सवाल वाजिब है कि ये ‘स्वयंसेवक’ कौन हैं जिनका जिक्र प्या...