Geeta shlok in sanskrit with meaning in hindi

  1. कृष्णं वंदे जगत गुरुं:गीता के ये हैं टॉप 10 श्लोक, अर्थ सहित इन्हें समझिए
  2. Shreemad Bhagwat Geeta
  3. Bhagwat geeta chapter 1
  4. Bhagavad Gita Chapter 18 Sanskrit Shloka [Mp3, PDF] Hindi Meaning
  5. भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  6. श्रीमद् भगवद्गीता
  7. श्रीमद् भगवद्गीता
  8. भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  9. Bhagwat geeta chapter 1
  10. कृष्णं वंदे जगत गुरुं:गीता के ये हैं टॉप 10 श्लोक, अर्थ सहित इन्हें समझिए


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कृष्णं वंदे जगत गुरुं:गीता के ये हैं टॉप 10 श्लोक, अर्थ सहित इन्हें समझिए

कहते हैं कलयुग में श्रीकृष्ण का महात्म्य और बढ़ेगा। श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनके मुख से निकली गीता में काफी सारे श्लोक जीवन दर्शन का एहसास कराते हैं। दुनिया में सबसे अधिक आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथ गीता के श्लोक समुंदर से हमने टॉप 10 श्लोक चयनित किए हैं। जन्माष्टमी पर आप उन्हें पढ़कर कृष्ण को और अधिक ढंग से समझ सकेंगे। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47) अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो। janmashtami gita shloka, krishna, lord krishna, janmashtami 2018, janmashtami festival, जन्माष्टमी, गीता, श्लोक, गीता के टॉप 10 श्लोक, जन्माष्टमी 2018 janmashtami special and this is Bhagavad Gita top 10 shloka हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 37) अर्थ: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 62) अर्थ: विषय-वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए ...

Shreemad Bhagwat Geeta

Shree mad Bhagwat Geeta is a collection of Sanskrit shlokas from the Mahabharat, very ancient history of Hindus. Bhagvat Geeta starts from chapter 25th of Bhishma parv of Mahabharat. In Geeta, the conversation between Krishna and Arjuna is portrayed. The best thing about Geeta is that it does not favor any religion, caste, cult, and creed. any person from any part of the world, of any religion, of any ideology, can read it and get the great knowledge shared by Krishna. In this the warrior Arjuna gets panicked due to affection with family members when he saw his all relatives ready to fight in front of him . he gave away the thought of fighting the battle and surrendered himself to his friend and Charioteer Krishna to guide him what to do. then Krishna guided him to stood up and fight and gave him a very secretdiscourse which is very profound that whole discourse is known as shreemad Bhagwat Geeta. In this discourse Krishna told Arjuna about the three Yogas(methods) which are 1. Karmayoga 2. Jyanyoga 3. Bhakti yoga. these three methods are the pathways to nirvana. if one practices any one method out of these he gets free from the bond with the physical world which is mortal in nature and connects with the supreme entity, which is immortal and present everywhere. Bhagwat Geeta is given in the Hindi with English language also to make understand the people who do not know devnagri. Geeta has 18 chapters containing 700 shlokas. श्रीमद भगवत गीता भारतीय महाकाव्य महाभारत से संस्कृ...

Bhagwat geeta chapter 1

Meaning: In this army, with big bows and equal in military prowess to Bhima and Arjuna , the mighty Satyaki and Virat and the Maharathi kings Drupada, Dhrishketu, and Chekitana and the mighty Kashiraj, Purjita, Kuntibhoja and the great in humans Shaiabya, mighty Yudhamanyu and strong Uttamauja, Son of Subhadra, Abhimanyu and The five sons of Draupadi - who are all great warrior chiefs. भावार्थ: इस सेना में बड़े-बड़े धनुष वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं nāyakā mama sainyasya saṅjñārthaṅ tānbravīmi tē 1.7 Meaning: Hey great Brahmin! You should also understand the leaders who are in your favor. For your information, I tell the commanders of my army. भावार्थ : हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ paryāptaṅ tvidamētēṣāṅ balaṅ bhīmābhirakṣitam 1.10 Meaning: Our army guarded by Bhishma Pitamah is invincible in every way and this army of these people protected by Bhima is easy to win. भावार्थ : भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है. Meaning-King Yudhishthir, the son of Kunti, blew his conchshell, the Anantavijaya, and Nakula and Sahadeva blew the Su...

Bhagavad Gita Chapter 18 Sanskrit Shloka [Mp3, PDF] Hindi Meaning

।। अथाष्टादशोऽध्यायः ।। अर्जुन उवाच संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् । त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ।।1।। अर्जुन बोले : हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे वासुदेव ! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक-पृथक जानना चाहता हूँ । श्रीभगवानुवाच काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्यासं कवयो विदुः । सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः ­।।2।। श्री भगवान बोले : कितने ही पण्डितजन तो काम्य कर्मों के त्याग को संन्यास समझते हैं तथा दूसरे विचारकुशल पुरुष सब कर्मों के फल के त्याग को त्याग कहते हैं । (2) त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः । यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे ।।3।। कुछ विद्वान ऐसा कहते हैं कि कर्ममात्र दोषयुक्त हैं, इसलिए त्यागने के योग्य हैं और दूसरे विद्वान यह कहते हैं कि यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं । (3) निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम । त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः सम्प्रकीर्तितः ।।4।। हे पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन ! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में तू मेरा निश्चय सुन । क्योंकि त्याग सात्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है । (4) यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्। यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ।।5।। यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप – ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं । (5) एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च । कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्चतं मतमुत्तमम् ।।6।। इसलिए हे पार्थ ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्...

भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिंदी अर्थ सहित

Geeta Shlok in Sanskrit: श्री कृष्ण भगवान के द्वारा महाभारत युद्ध से पहले जो उपदेश दिए गये, वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जाने जाते हैं। जब महाभारत के समय अर्जुन युद्ध करने से मना कर देते हैं तब भगवान श्री कृष्ण उपदेश देकर धर्म और कर्मे के सच्चे ज्ञान से अवगत करवाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के इन सभी उपदेशों को भगवत गीता ग्रन्थ में संकलित किया हुआ है। गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान्।। भावार्थ: महाभारत युद्ध के दौरान जब उनके रिश्तेदार और शिक्षक अर्जुन के सामने खड़े थे, तो अर्जुन दुखी हो गए और श्री कृष्ण से कहा कि अपने महान शिक्षक को मारकर जीने की तुलना में भीख मांगकर जीना बेहतर है। भले ही वह लालच से बुराई का समर्थन करता है, लेकिन वह मेरा शिक्षक है, भले ही मैं उसे मारकर कुछ हासिल कर लूं, तो यह सब उसके खून से रंगा होगा। Bhagwat Geeta Shlok in Hindi न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:। यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।। भावार्थ: अर्जुन कहते हैं कि मैं यह भी नहीं जानता कि क्या सही है और क्या नहीं – हम उन पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं या उनसे जीतना चाहते हैं। धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी नहीं जीना चाहेंगे, फिर भी वे सभी हमारे सामने युद्ध के मैदान में खड़े हैं। कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्म सम्मूढचेताः। यच्छ्रेयः स्यान्निश्र्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेSहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।। भावार्थ: अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मेरी दुर्बलता के कारण मैं अपना धैर्य खो रहा हूं, मैं अपने कर्तव्यों को भूल रहा हूं। अब आप भी मुझे सही बताओ जो ...

श्रीमद् भगवद्गीता

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati ।।18.66।।अधुना तु ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशे तिष्ठति तमेव सर्वभावेन शरणं गच्छेति यदुक्तं तद्विवृणोति -- सर्वधर्मान्प्ररित्यज्येति। केचिद्वर्णधर्माः केचिदाश्रमधर्माः केचित्सामान्यधर्मा इत्येवं सर्वानपि धर्मान्परित्यज्य विद्यमानानविद्यमानान्वा शरणत्वेनानादृत्य मामीश्वरमेकमद्वितीयं सर्वधर्माणामधिष्ठातारं फलदातारं च शरणं व्रज। धर्माः सन्तु न सन्तु वा किं तैरन्यसापेक्षैः। भगवदनुग्रहादेव त्वन्यनिरपेक्षादहं कृतार्थो भविष्यामीति निश्चयेन परमानन्दघनमूर्तिमनन्तं श्रीवासुदेवमेव भगवन्तमनुक्षणं भावनया भजस्व। इदमेव परमं तत्त्वं नातोऽधिकमस्तीति विचारपूर्वकेण प्रेमप्रकर्षेण सर्वानात्मचिन्ताशून्यया मनोवृत्त्या तैलधारावदविच्छिन्नया सततं चिन्तयेत्यर्थः। अत्र मामेकं शरणं ब्रजेत्यनेनैव सर्वधर्मशरणतापरित्यागे लब्धे सर्वधर्मान्परित्यज्येति निषेधानुवादस्तु कार्यकारितालाभाययज्ञायज्ञीये साम्नि ऐरं कृत्वोद्भेयमित्यत्र न गिरा गिरेतिब्रूयात् इतिवत्। तथाच ममेव सर्वधर्मकार्यकारित्वान्मदेकशरणस्य नास्ति धर्मापेक्षेत्यर्थः। एतेनेदमपास्तं सर्वधर्मान्परित्यज्येत्युक्ते नाधर्माणां परित्यागो लभ्यते अतो धर्मपदं कर्ममात्रपरमिति। नह्यत्र कर्मत्यागो विधीयते अपितु विद्यमानेऽपि कर्मणि तत्रानादरेण भगवदेकशरणतामात्रं ब्रह्मचारिगृहस्थवानप्रस्थभिक्षूणां साधारण्येन विधीयते। तत्र सर्वधर्मान्परित्यज्येति तेषां स्वधर्मादरसंभवेन तन्निवारणार्थम्। अधर्मे चानर्थफले कस्याप्यादराभावात्तत्परित्यागवचनमनर्थकमेव? शास्त्रान्तरप्राप्तत्वाच्च।,तस्माद्वर्णाश्रमधर्माणामभ्युदयहेतुत्वप्रसिद्धेर्मोक्षहेतुत्वमपि स्यादिति शङ्कानिराकरणार्थमेवैतद्वच इति न्याय्यम्। नच सर्वधर्माधर्मपरित्यागोऽत्र विधी...

श्रीमद् भगवद्गीता

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati ।।18.66।।अधुना तु ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशे तिष्ठति तमेव सर्वभावेन शरणं गच्छेति यदुक्तं तद्विवृणोति -- सर्वधर्मान्प्ररित्यज्येति। केचिद्वर्णधर्माः केचिदाश्रमधर्माः केचित्सामान्यधर्मा इत्येवं सर्वानपि धर्मान्परित्यज्य विद्यमानानविद्यमानान्वा शरणत्वेनानादृत्य मामीश्वरमेकमद्वितीयं सर्वधर्माणामधिष्ठातारं फलदातारं च शरणं व्रज। धर्माः सन्तु न सन्तु वा किं तैरन्यसापेक्षैः। भगवदनुग्रहादेव त्वन्यनिरपेक्षादहं कृतार्थो भविष्यामीति निश्चयेन परमानन्दघनमूर्तिमनन्तं श्रीवासुदेवमेव भगवन्तमनुक्षणं भावनया भजस्व। इदमेव परमं तत्त्वं नातोऽधिकमस्तीति विचारपूर्वकेण प्रेमप्रकर्षेण सर्वानात्मचिन्ताशून्यया मनोवृत्त्या तैलधारावदविच्छिन्नया सततं चिन्तयेत्यर्थः। अत्र मामेकं शरणं ब्रजेत्यनेनैव सर्वधर्मशरणतापरित्यागे लब्धे सर्वधर्मान्परित्यज्येति निषेधानुवादस्तु कार्यकारितालाभाययज्ञायज्ञीये साम्नि ऐरं कृत्वोद्भेयमित्यत्र न गिरा गिरेतिब्रूयात् इतिवत्। तथाच ममेव सर्वधर्मकार्यकारित्वान्मदेकशरणस्य नास्ति धर्मापेक्षेत्यर्थः। एतेनेदमपास्तं सर्वधर्मान्परित्यज्येत्युक्ते नाधर्माणां परित्यागो लभ्यते अतो धर्मपदं कर्ममात्रपरमिति। नह्यत्र कर्मत्यागो विधीयते अपितु विद्यमानेऽपि कर्मणि तत्रानादरेण भगवदेकशरणतामात्रं ब्रह्मचारिगृहस्थवानप्रस्थभिक्षूणां साधारण्येन विधीयते। तत्र सर्वधर्मान्परित्यज्येति तेषां स्वधर्मादरसंभवेन तन्निवारणार्थम्। अधर्मे चानर्थफले कस्याप्यादराभावात्तत्परित्यागवचनमनर्थकमेव? शास्त्रान्तरप्राप्तत्वाच्च।,तस्माद्वर्णाश्रमधर्माणामभ्युदयहेतुत्वप्रसिद्धेर्मोक्षहेतुत्वमपि स्यादिति शङ्कानिराकरणार्थमेवैतद्वच इति न्याय्यम्। नच सर्वधर्माधर्मपरित्यागोऽत्र विधी...

भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिंदी अर्थ सहित

Geeta Shlok in Sanskrit: श्री कृष्ण भगवान के द्वारा महाभारत युद्ध से पहले जो उपदेश दिए गये, वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जाने जाते हैं। जब महाभारत के समय अर्जुन युद्ध करने से मना कर देते हैं तब भगवान श्री कृष्ण उपदेश देकर धर्म और कर्मे के सच्चे ज्ञान से अवगत करवाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के इन सभी उपदेशों को भगवत गीता ग्रन्थ में संकलित किया हुआ है। गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान्।। भावार्थ: महाभारत युद्ध के दौरान जब उनके रिश्तेदार और शिक्षक अर्जुन के सामने खड़े थे, तो अर्जुन दुखी हो गए और श्री कृष्ण से कहा कि अपने महान शिक्षक को मारकर जीने की तुलना में भीख मांगकर जीना बेहतर है। भले ही वह लालच से बुराई का समर्थन करता है, लेकिन वह मेरा शिक्षक है, भले ही मैं उसे मारकर कुछ हासिल कर लूं, तो यह सब उसके खून से रंगा होगा। Bhagwat Geeta Shlok in Hindi न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:। यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।। भावार्थ: अर्जुन कहते हैं कि मैं यह भी नहीं जानता कि क्या सही है और क्या नहीं – हम उन पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं या उनसे जीतना चाहते हैं। धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी नहीं जीना चाहेंगे, फिर भी वे सभी हमारे सामने युद्ध के मैदान में खड़े हैं। कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्म सम्मूढचेताः। यच्छ्रेयः स्यान्निश्र्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेSहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।। भावार्थ: अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मेरी दुर्बलता के कारण मैं अपना धैर्य खो रहा हूं, मैं अपने कर्तव्यों को भूल रहा हूं। अब आप भी मुझे सही बताओ जो ...

Bhagwat geeta chapter 1

Meaning: In this army, with big bows and equal in military prowess to Bhima and Arjuna , the mighty Satyaki and Virat and the Maharathi kings Drupada, Dhrishketu, and Chekitana and the mighty Kashiraj, Purjita, Kuntibhoja and the great in humans Shaiabya, mighty Yudhamanyu and strong Uttamauja, Son of Subhadra, Abhimanyu and The five sons of Draupadi - who are all great warrior chiefs. भावार्थ: इस सेना में बड़े-बड़े धनुष वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं nāyakā mama sainyasya saṅjñārthaṅ tānbravīmi tē 1.7 Meaning: Hey great Brahmin! You should also understand the leaders who are in your favor. For your information, I tell the commanders of my army. भावार्थ : हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ paryāptaṅ tvidamētēṣāṅ balaṅ bhīmābhirakṣitam 1.10 Meaning: Our army guarded by Bhishma Pitamah is invincible in every way and this army of these people protected by Bhima is easy to win. भावार्थ : भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है. Meaning-King Yudhishthir, the son of Kunti, blew his conchshell, the Anantavijaya, and Nakula and Sahadeva blew the Su...

कृष्णं वंदे जगत गुरुं:गीता के ये हैं टॉप 10 श्लोक, अर्थ सहित इन्हें समझिए

कहते हैं कलयुग में श्रीकृष्ण का महात्म्य और बढ़ेगा। श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनके मुख से निकली गीता में काफी सारे श्लोक जीवन दर्शन का एहसास कराते हैं। दुनिया में सबसे अधिक आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथ गीता के श्लोक समुंदर से हमने टॉप 10 श्लोक चयनित किए हैं। जन्माष्टमी पर आप उन्हें पढ़कर कृष्ण को और अधिक ढंग से समझ सकेंगे। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47) अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो। janmashtami gita shloka, krishna, lord krishna, janmashtami 2018, janmashtami festival, जन्माष्टमी, गीता, श्लोक, गीता के टॉप 10 श्लोक, जन्माष्टमी 2018 janmashtami special and this is Bhagavad Gita top 10 shloka हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 37) अर्थ: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 62) अर्थ: विषय-वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए ...