गिरिजाकुमार माथुर किस युग के कवि हैं

  1. युग
  2. जन्मदिन विशेष: हिंदी कविता की एक अविस्‍मणीय प्रतिमूर्ति हैं गिरिजा कुमार माथुर
  3. PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर – PSEB Solutions
  4. 07: गिरिज़ाकुमार माथुर: छाया मत छून / Kshitij
  5. छायावादोत्तर युग/शुक्लोत्तर युग


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युग

अनुक्रम • 1 युग आदि का परिमाण • 2 गधर्म • 3 वैज्ञानिक प्रमाण • 4 कलियुग का आरम्भ • 5 इन्हें भी देखें युग आदि का परिमाण [ ] मुख्य लौकिक युग सत्य (उकृत), त्रेता, द्वापर और कलि नाम से चार भागों में (चतुर्धा) विभक्त है। इस युग के आधार पर ही मन्वंतर और कल्प की गणना की जाती है। इस गणना के अनुसार सत्य आदि चार युग संध्या (युगारंभ के पहले का काल) और संध्यांश (युगांत के बाद का काल) के साथ 12000 वर्ष परिमित होते हैं। चार युगों का मान 4000 + 3000 + 2000 + 1000 = 10000 वर्ष है; संध्या का 400 + 300 + 200 + 100 = 1000 वर्ष; संध्यांश का भी 1000 वर्ष है। युगों का यह परिमाण दिव्य वर्ष में है। दिव्य वर्ष = 360 मनुष्य वर्ष है; अत: 12000 x 360 = 4320000 वर्ष चतुर्युग का मानुष परिमाण हुआ। तदनुसार सत्ययुग = 1728000; त्रेता = 1296000; द्वापर = 864000; कलि = 432000 वर्ष है। ईद्दश 1000 चतुर्युग (चतुर्युग को युग भी कहा जाता है) से एक कल्प याने ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष है। 71 दिव्ययुगों से एक मन्वंतर होता है। यह वस्तुत: महायुग है। अन्य अवांतर युग भी है। प्रत्येक संख्या में ३६० के गुणा करना होता है क्योंकि और कलियुग जो की १२०० दिव्यवर्ष अवधि का था वह मानव वर्षों के रूप में ४३२००० वर्ष का बना होता है चारों युगों की अवधि इस प्रकार है सत्य 17,28,000 वर्ष ,त्रेता 12,96,000 वर्ष ,द्वापर 8,64,000 वर्ष कलियुग 4,32,000 वर्ष चारों युगों का जोड़ 43,20,000 वर्ष यानी एक चतुर्युग | दुसरी गलती यह हुई कि जब द्वापर समाप्त हुआ तो उस समय २४०० वा वर्ष चल रहा था जब कलियुग शुरू हुआ तो उसको कलियुग प्रथम वर्ष लिखा जाना चाहिए था लेकिन लिखा गया कलियुग २४०१ तो जो कहा जाता है की २०१८ में कलियुग शुरू हुए ५१२० वर्ष हो गए हैं उसमे ...

जन्मदिन विशेष: हिंदी कविता की एक अविस्‍मणीय प्रतिमूर्ति हैं गिरिजा कुमार माथुर

‘मेरे युवा आम में नया बौर आया है’, यह गीत मुझे बहुत प्रिय है. लखनऊ में रहते हुए उनके कई संग्रह पढ़ चुका था. ‘मंजीर’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘धूप के धान’, बाद में – ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्‍त के हूँ सामने’ और उनका कविता चयन ‘छाया मत छूना मन.’ कहना न होगा कि मालवा की मिट्टी से आने वाले पत्रकारों में राजेंद्र माथुर हों, प्रभाष जोशी या राहुल बारपुते, अथवा कवियों में कवि शिरोमणि नरेश मेहता, माखन लाल चतुर्वेदी और गिरिजा कुमार माथुर तथा आलोचना में प्रभाकर श्रोत्रिय, हिंदी के पद्य और गद्य के सांचे में जिस तरह की सौष्‍ठवता और प्राणवत्‍ता इन लेखकों में दिखती है वैसी सुगंध और प्राणवत्‍ता अन्‍यत्र दुर्लभ है. जब भी गीत के गलियारे से होकर गुजरना हुआ बच्चन, नीरज, रामावतार त्‍यागी व शंभुनाथ सिंह आदि के प्रारंभिक प्रभावों के बाद गिरिजाकुमार माथुर और उमाकांत मालवीय के गीतों ने छुआ. हिंदी कविता के बड़े कवियों के संपर्क में आने के बाद जहां केदारनाथ सिंह के प्रांजल बिम्‍बों वाले गीत लुभाते थे तो गिरिजाकुमार माथुर के मांसल बिम्‍बों वाले गीत ‘ले चल मुझे भुलावा देकर’ (जयशंकर प्रसाद) वाले दिनों में उड़ा ले जाते थे. कविता में धीरे-धीरे गिरिजा कुमार माथुर की एक बड़ी प्रतिमूर्ति बने. जिन दिनों बनारस में शंभुनाथ सिंह लिख रहे थे, ‘मन का आकाश उड़ा जा रहा, पुरवइया धीरे बहो’, उन्‍हीं दिनों गिरिजा कुमार माथुर का गीत ‘छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना मन’ हर उदास मन का गीत बन गया था. यों उनका व्‍यक्‍तित्‍व चमकीले कागज जैसा प्रभावान लगता था पर भीतर के तहखाने में ऐसे उदास कर देने वाले गीत भी थे. अपने इन्‍हीं गुणों के कारण वे अज्ञेय के ‘तारसप्‍तक’ के कवि बने. एक ऐसी पैस्‍टोरल इमेजरी उनके गीतों में थी जैसी कभी ठ...

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर – PSEB Solutions

Punjab State Board PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 11 गिरिजा कुमार माथुर Hindi Guide for Class 12 PSEB गिरिजा कुमार माथुर Textbook Questions and Answers (क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो: प्रश्न 1. ‘आदमी का अनुपात’ कविता में कवि ने मानव की संकीर्ण सोच और उसकी अहम् की भावना का चित्रण किया है-अपने शब्दों में लिखो। उत्तर: कवि ने प्रस्तुत कविता में दो व्यक्तियों के एक ही कमरे में रहते हुए अलग-अलग रास्ते पर चलने, मिलजुल कर न रह सकने को उसकी संकीर्ण सोच का कारण बताया है। उसमें आपसी सहयोग की कमी भी इसी भाव के अन्तर्गत . आती है। मानव कल्याण के लिए यह मानसिक संकीर्णता उपयुक्त नहीं है। प्रश्न 2. विशाल संसार में मनुष्य का अस्तित्व क्या है ? प्रस्तुत कविता के आधार पर लिखो। उत्तर: इस विशाल संसार के अनेक ब्रह्माण्डों में से एक में मनुष्य रहता है। इस विशाल संसार में अनेक पृथ्वियाँ, भूमियाँ और सृष्टियाँ हैं। अतः आदमी का इस संसार में स्थान बहुत छोटा है। इतना छोटा कि वह किसी सूरत में विशाल संसार की बराबरी नहीं कर सकता। उसका अस्तित्व अत्यन्त तुच्छ है। प्रश्न 3. ‘आदमी का अनुपात’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखें। उत्तर: कवि का मानना है कि आदमी का अस्तित्व उस विराटःसत्ता के सामने तुच्छ है। आदमी इस बात को समझता हुआ भी ईर्ष्या, अभिमान, स्वार्थ, घृणा और अविश्वास में पड़कर मानव कल्याण के रास्ते में रुकावटें खड़ी कर रहा है। वह अपने को दूसरों का स्वामी समझता है। ऐसे में भला वह दूसरों से कैसे मिलजुल कर रह सकता है। देश तो एक है किन्तु आज का आदमी इतने संकुचित दृष्टिकोण वाला, इतना व्यक्तिवादी हो गया है कि एक कमरे में रहने वाले दो व्यक्ति भी आपस में मिलजुल कर नहीं रह सकते। उन दोनों के रास्ते अलग...

07: गिरिज़ाकुमार माथुर: छाया मत छून / Kshitij

• • NCERT: Text Format • • • • • • • • • • • • • Rationalised NCERT • • • • • • • • • • • • • Old NCERT (2015) • • • • • • • • • • • • • Lab Manuals & Kits • • e-Books for UPSC • • Android App • • NCERT Books • • • • • • • • • H. C. Verma • • • Lakhmir Singh • • • • • • • • • R. D. Sharma • • • • • • • • R. S. Aggarwal • • • • • • • All in One • • • • • • • • • Evergreen Science • • • Together with Science • • • Xam Idea 10 th Science • • Classroom Courses • • • • • • • UPSC Exams • • Teaching • • Banking • • • Hair Accessories • Jewellery • Stationery • Lunch Boxes • • Explore Store 7 गिरिजाकुमार माथुर िग रिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में गुना, मध्य प्रदेश में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के बाद उन्होंने एम.ए. अंग्रेज़ी व एल.एल.बी. की उपाधि लखनऊ से अर्जित की। शुरू में कुछ समय तक वकालत की। बाद में आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए। उनका निधन सन् 1994 में हुआ। गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएँ हैं– नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नदी की यात्रा (काव्य-संग्रह) ; जन्म कैद (नाटक) ; नयी कविता ः सीमाएँ और संभावनाएँ (आलोचना)। नयी कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर रोमानी मिज़ाज के कवि माने जाते हैं। वे विषय की मौलिकता के पक्षधर तो हैं परंतु शिल्प की विलक्षणता को नज़रअंदाज़ करके नहीं। चित्र को अधिक स्पष्ट करने के लिए वे वातावरण के रंग को भरते हैं। वे मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता संभव कर सके हैं। भाषा के दो रंग उनकी कविताओं में मौजूद हैं। वे जहाँ रोमानी कविताओं में छोटी-छोटी ध्वनि व...

छायावादोत्तर युग/शुक्लोत्तर युग

छायावादोत्तर युग या शुक्लोत्तर युग (1936 ई. के बाद) का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है, छायावादोत्तर युग (शुक्लोत्तर युग) सन् 1936 ईo से 1947 ईo तक के काल को शुक्लोत्तर युग या छायावादोत्तर युग कहा गया। छायावादोत्तर युग में हिन्दी काव्यधारा बहुमुखी हो जाती है। छायावादोत्तर युग में हिन्दी काव्यधारा दो भागों में विभक्त हो जाती है- • पुरानी काव्यधारा • नवीन काव्यधारा पुरानी काव्यधारा पुरानी काव्यधारा के कवियों को दो धाराओं “राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा” और “उत्तर-छायावादी काव्यधारा” में वर्गीकृत किया गया है। • राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा -सियाराम शरण गुप्त, माखन लाल चतुर्वेदी, दिनकर, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, सोहन लाल द्विवेदी, श्याम नारायण पाण्डेय आदि। • उत्तर-छायावादी काव्यधारा– निराला, पंत, महादेवी, जानकी वल्लभ शास्त्री आदि। नवीन काव्यधारा नवीन काव्यधारा के कवियों को भी “वैयक्तिक गीति कविता”, “प्रगतिवादी काव्य”, “प्रयोगवादी काव्य” और “नयी कविता” आदि धाराओं में वर्गीकृत किया गया है। • वैयक्तिक गीति कविता धारा (प्रेम और मस्ती की काव्य धारा)– बच्चन, नरेंद्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, भगवती चरण वर्मा, नेपाली, आरसी प्रसाद सिंह आदि। • • • छायावादोत्तर या शुक्लोत्तर युग की मुख्य रचना एवं रचयिता या रचनाकार इस list में नीचे दिये हुए हैं। छायावादोत्तर या शुक्लोत्तर युग के कवि और उनकी रचनाएँ- छायावादोत्तर या शुक्लोत्तर युग के कवि और उनकी रचनाएँ क्रम रचनाकार छायावादोत्तर युगीन रचना 1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हुंकार, रेणुका, द्वंद्वगीत, कुरुक्षेत्र, इतिहास के आँसू, रश्मिरथी, धूप और धुआँ, दिल्ली, रसवंती, उर्वशी। 2. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ कुंकुम, उर्मिला, अपलक, रश्मिरेखा, क्वासि, ह...