गोंडी भाषा डिक्शनरी

  1. गोंडी भाषा
  2. Standard Dictionary of Gondi: गोंडी का मानक शब्दकोश बनाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की अनोखी पहल, standard dictionary of gondi language unique initiative of chhattisgarh government
  3. *गोंडी भाषेच्या शब्दकोषाची (डिक्शनरी) निर्मिती व्हावी* *गोंडवाना आदिवासी शिक्षण संस्था जिवती यांनी दिले गोंडवाना विद्यापीठाचे कुलगुरू डॉ. प्रशांत बोकारे यांना निवेदन*
  4. गोंडी व्याकरण, गोडवाना भाषा सिखें
  5. गोंड
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गोंडी भाषा

स्वस्थ्य एवं टीकाकरण सम्बंधित जानकारी गोंडी भाषा में गोंडी भाषा भारत के मध्य प्रदेश के मुख्यतः शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, बालाघाट, छिंदवाड़ा, छत्तीसगढ़*छत्तीसगढ़ बस्तर संभाग की मुख्यभाषा छत्तीसगढ़ीहै, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात आदि में बोली जाने वाली भाषा है। यह दक्षिण-केन्द्रीय द्रविण भाषा है। इसके बोलने वालों की संख्या लगभग २० लाख है जो मुख्यतः गोंड हैं। लगभग आधे गोंडी लोग अभी भी यह भाषा बोलते हैं। गोंडी भाषा में समृद्ध लोकसाहित्य, जैसे विवाह-गीत एवं कहावतें, हैं। . 16 संबंधों: तेलुगु भाषा (तेलुगू:తెలుగు భాష) भारत के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों की मुख्यभाषा और राजभाषा है। ये द्रविड़ भाषा-परिवार के अन्तर्गत आती है। यह भाषा आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के अलावा तमिलनाडु, कर्णाटक, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में भी बोली जाती है। तेलुगु के तीन नाम प्रचलित हैं -- "तेलुगु", "तेनुगु" और "आंध्र"। . नई!!: '''देवनागरी''' में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरिरेखा' कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि . नई!!: बालाघाट वै...

Standard Dictionary of Gondi: गोंडी का मानक शब्दकोश बनाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की अनोखी पहल, standard dictionary of gondi language unique initiative of chhattisgarh government

Initiative to standardize the Gondi language देश के 6 राज्यों में अलग अलग गोंडी बोली जाती है. इनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है. हर इलाके में गोंडी पर वहां की स्थानीय भाषा का प्रभाव है. गोंडी का मानक रुप भी नहीं है. इस वजह से गोंडी बोलने वालों को दूसरे राज्यों में जाने के बाद कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. अब इस समस्या का हल निकालने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने पहल की है. Gondi language in Chhattisgarh मानक गोंडी डिक्शनरी तैयार करने की कवायद रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी प्रदेशों में बोली जाने वाली गोंडी की विभिन्न बोलियों को मिलाकर एक मानक गोंडी भाषा के लिए प्रयास शुरू किया है ताकि गोंडी आठवीं अनुसूची में शामिल हो सके. राज्य सरकार ने उन सभी 6 प्रदेशों से गोंडी के विशेषज्ञों को बुलाया है, जहां गोंडी बोली जाती है. गोंडी को मानक रूप देने की पहल: गोंडी को मानक रूप देने के लिए मानक गोंडी डिक्शनरी तैयार करने की कोशिश की जा रही है. इसी कवायद के तहत छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अलग अलग राज्यों से गोंडी समाज के बुद्धिजीवी और समाज के लोग जुटे और गहन चर्चा की गई. साल 2014 में शुरू हुई थी कोशिश: दिल्ली में साल 2014 में गोंडी के मानक रुप के लिए पहल की गई थी. 3000 शब्दों का मानकीकरण कर प्रकाशन किया गया था. कांकेर के रिटायर्ड शिक्षक शेर सिंह आचला ने बताया कि ''10 हजार शब्द का मानक शब्दकोश बनाने की तैयारी चल रही है.'' मध्यप्रदेश के हरदा से आए शिव प्रसाद धुर्वे ने बताया कि मध्यप्रदेश से करीब 7000 शब्दों का मानकीकरण कर लिया गया है. गोंडी का मानकीकरण होने से शासन प्रशासन से सहयोग मिलेगा. छत्तीसगढ़ सरकार की यह एक अच्छी कोशिश है.'' ये भी पढ़ें: बस्तर में स्थानीय बोली में कवि सम्मेलन, ...

*गोंडी भाषेच्या शब्दकोषाची (डिक्शनरी) निर्मिती व्हावी* *गोंडवाना आदिवासी शिक्षण संस्था जिवती यांनी दिले गोंडवाना विद्यापीठाचे कुलगुरू डॉ. प्रशांत बोकारे यांना निवेदन*

*गोंडी भाषेच्या शब्दकोषाची (डिक्शनरी) निर्मिती व्हावी* *गोंडवाना आदिवासी शिक्षण संस्था जिवती यांनी दिले गोंडवाना विद्यापीठाचे कुलगुरू डॉ. प्रशांत बोकारे यांना निवेदन* ✍️दिनेश झाडे चंद्रपूर जिल्हा प्रतिनिधी 7498975136 चंद्रपूर :- भाषा ही प्रत्येक समूहाचे अस्तित्व व सांस्कृतिक वारसा निर्माण करण्याचे प्रभावी माध्यम आहे. विदर्भासह आजूबाजूच्या राज्यांमध्ये गोंडीयन समुदाय मोठ्या प्रमाणात वास्तव्यास आहे. त्यांची मूळ व दैनंदिन भाषा ही गोंडी आहे. त्या भाषेचे संवर्धन व्हावे आणि आदिवासी समूहाचा सांस्कृतिक वारसा टिकून राहावा यासाठी गोंडी भाषा शब्दकोषाची निर्मिती होणे गरजेचे आहे. त्यासाठी गोंडवाना विद्यापीठाने पुढाकार घ्यावा या आशयाचे निवेदन दि. 25 जानेवारी ला गोंडवाना विद्यापीठाचे कुलगुरू डॉ. प्रशांत बोकारे यांना देण्यात आले. गोंडी भाषेचे संवर्धन व्हावे व ती टिकावी यासाठी डॉ. मोतीरावन कंगाली यांनी देशपातळीवर गोंडी भाषा मानकिकरण कार्यशाळेचा उपक्रम राबविला व तीन हजार शब्दांचा गोंडी भाषेचा शब्दकोष तयार केला. या शब्दकोषाचे प्रकाशन कर्नाटक राज्यातील कन्नड विद्यापीठ हम्पी यांनी केले. मध्य भारतातील चंद्रपूर गोंदिया गडचिरोली भंडारा नागपूर यवतमाळ या जिल्ह्यामध्ये मोठ्या प्रमाणात गोंडी भाषा बोलल्या जाते. गोंडी भाषेचे शब्द विद्यार्थी मनावर बिंबवण्यासाठी गोंडी भाषा शब्दकोष तयार होणे गरजेचे आहे. त्यासाठी जागतिक भाषा तज्ञ तथा गोंडी भाषा तज्ज्ञांची मदत घेऊन गोंडवाना विद्यापीठाने गोंडी भाषा शब्दकोष तयार करून प्रकाशित करावा अशी मागणी गोंडवाना आदिवासी शिक्षण संस्था जिवती यांच्या शिष्टमंडळाने केली. शिष्टमंडळाने सध्या गोंडवाना विद्यापीठाने वनाधिकार व पेसा कायदे थेट आदिवासी कार्यकर्त्यांना शिकवणारा अभ्यास...

गोंडी व्याकरण, गोडवाना भाषा सिखें

Gondwana Darsan आप सभी के लिऐ अपने समाज, रीति - रिवाज व संस्कृति और सभ्यता को जानने व समझने का स्रोत हैं. जिससे आप पुराने सभ्यता को समझे और अपने समुदाय से जुड़े, महान शहीदों, विद्वानों, देवी - देवताओं, त्यौहारों, रीति रिवाजों, गोंडी समाज के बारे में जाने. आप से निवेदन है कि आप सभी आदिवासी भाईयों को Share व Support करे. जय सेवा, जय जोहर, कुछोडों सैल प्रथम पृथ्वी का निर्माण हुआ, जो आगे चलने दो महाद्वीप में हुआ था, जैसा दो महाप्रलय का निर्माण, एक था यूरेशिया और दूसरा था गोंडवान महाप्रलय ये जो गोंडवाँ महाप्रपात एक महाप्रलय था| यह प्राचीन काल के प्राचीन महाप्रलय पैंजिया का दक्षिणी था| उत्तरी भाग के बारे में यह बताया गया| भारत के महाद्वीप के आलावा में महाद्वीप गो और महाद्वीप, जो मौसम में उत्तर में है, का उद्गम स्थल| आज से 13 करोड़ साल पहले गोंडवांस के वायुमंडलीय तूफान, अंटार्टिका, अफ़्रीका और दक्षिणी महाप्रलय का निर्माण | मुझे स्वंय को गोंडी नही आती,मैं गोंडी बोल नही सकता. ना ही समझ सकता .मेरे जैसे पढे लिखे नौकरीपेशा को चुल्लुभर पाणी में डुबकर जान देना चाहिये| दु:ख है ,कष्ट होता है कोई मुझसे गोंडी में बात करे और मै उन्हें जबाब गोंडी में नही दे पाता लानत है मुझपर हंसी आती खुद पर सभी छोटे छोटे बच्चें बोल रहे है . सिख रहे है . कमसे कम प्रयास भी कर रहे है और मैं कुछ नही कर रहा ,बडा दु:ख होता है| हमेशा लगता है की क्या मेरी यह उम्र है भाषा सिखने की .?क्या इस उम्र में मै सिख पाऊंगा ? या गलत सलत उच्चार निकला तो लोग क्या कहेंगे| क्या खाक मैं गोंडीयन संस्कृती के बारें में बताऊंगा .खुद ही नही समझ सकता एंव बोल भी नही सकता तथा दुसरे ने गोंडी भाषामें वार्तालाप किया तो बस बाकी हलो, हलो ,या ,या...

गोंड

आर्य येण्याआधी गोंड जमातीचे अस्तित्व होते. रामायण, महाभारत काळात गोंड हे वैभवी अस्तित्वाचे धनी होते. गोंडांची अतिप्राचीन व समृद्ध भाषा होती. आजही ती आहे. ‘गोंड की कोईतूर’ असा एक सूर गोंड समूहात अलीकडे जोर धरू लागला आहे. परंतु ‘कोईतूर’ हाच मूळ व अचूक शब्द होय. ‘कोईतूर’चा अर्थ होतो माणूस. प्राचीन ग्रंथ ‘ऋग्वेदा’तदेखील ‘गोंड’ असा शब्दप्रयोग नसून ‘कुयवा’ म्हणजे ‘कोया’ असा शब्द आढळतो. ‘गोंड हे नाव त्यांना इतरांनी दिले आहे’, असे कै. डॉ. महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश आणि तेलंगण या राज्यांमध्ये गोंडी भाषा बोलणाऱ्यांची संख्या मोठी आहे. आता ही केवळ ‘बोली’ राहिली नसून ‘भाषा’ झाली आहे, कारण तिची लिपी उपलब्ध आहे. व्यंकटेश आत्राम, मोतीरावण कंगाली, विठ्ठलसिंग धुर्वे आणि इतरही अभ्यासकांनी गोंडी लिपी आपापल्या ग्रंथांमध्ये प्रसिद्ध केली आहे. गोंडी भाषेचा शब्दकोश व तिचे व्याकरण यांवरही विपुल साहित्य उपलब्ध आहे. काही सन्मान्य अपवाद वगळता या भाषेच्या भाषाशास्त्राकडे किंवा सौंदर्यशास्त्राकडे फारसे लक्ष दिले गेले नाही. लिंग, वचन, काळ, विभक्ती यातही गोंडी स्वयंपूर्ण आहे. अतिप्राचीन गोंडवनात गोंडी लिपीने आणि गोंडी भाषेने एक समृद्ध राजभाषा म्हणून सन्मान प्राप्त केला होता. मुन्शी मंगलसिंह मसराम यांनी १९१८ साली गोंडी मुळाक्षरे हस्तलिखिताच्या स्वरूपात लिहिली. पुढे त्यांच्या मुलानं, म्हणजे एडी भावसिंग मसराम यांनी, "गोंडी लिपी‘ या नावाने ते हस्तलिखित २ जुलै १९५१ रोजी प्रसिद्ध केले. १ जून १९५७ रोजी ‘आदर्श आदिवासी गोंडी लिपी बोध’ हे पुस्तक देवनागरी लिपीत प्रकाशित झाले. विठ्ठलसिंग धुर्वे यांनीही "गोंडी लिपी सुबोध‘ नावाचे पुस्तक १९८९मध्ये प्रकाशित केले. सीताराम मंडाले यांनी मुकुंद गोखले यांच्या मार्ग...

सदस्य

आपने प्रशिक्षण सिलेबस के रूप में " धर्म पूर्वी दर्शन, गण्डवाना की सांस्कृतिक संरचना, द ओनर आफ इंडिया, आर्थिक गण्ड व्यवस्था " बनाया व जन जन तक पहुंचाया। आप " गणतंत्र के जनक - कोयतुर गोंड " के लेखक हैं, पुनेम शोध संगत के संस्थापक जिसके द्वारा अनेकों पुस्तक प्रकाशित हो चुके हैं । आर्थिक गण्ड व्यवस्था के तहत् तीन पब्लिक लिमिटेड कंपनियों की स्थापना करते हुए प्रत्येक ब्लाॅक में TRC - स्थापित करने का लक्ष्य है। साथ ही सभी ट्राईबल समुदायों के भाषा, संस्कृति, इतिहास आदि के प्रकोष्ठों की स्थापना करना एवं पुरे देश के प्रत्येक राज्यों में सचालन करने का प्रयास किया जा रहा है। सेवा जोहार,मेरा पारिवारिक वातावरण भुकंई (धर्माचार्य) धार्मिक तथा सामज सेवा का रहा है । इसलिए मेरा भी रुझान सांस्कृतिक समाज सेवा के प्रति अटूट लगाव है। कोयतुर पारसी (गोंडी भाषा) लिपि,संस्कृति गोंडो की अनमोल धरोहर है इसका संरक्षण संवर्धन करना निहायत बहुत जरूरी हो गया है । क्योंकि किसी भी समुदाय का बिना भाषा संस्कृति के अस्तित्व औचित्य हीन है। मातृभाषा अपनी माँ की सासें है जैसे:-पर्यावरण के लिए धरती जरूरी है,ऐसे ही जीव जन्तु मानव के लिए मां की सांसें जरूरी है। जिसे हम मातृभाषा बोलते है यानी मां की सांसें,इसीलिए समाज (गण्ड कबिला) की पहचान के लिए अपनी संस्कृति बोली भाषा निहायत ही जरूरी है। एक गीतकार, गायक व संगीतकार के रूप में काम करते हुए बाकी समय मेरे पूर्वजों की गोंडी भाषा व लिपि को लोगों को सिखाने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से वाटसाप ग्रुप, फेसबुक ग्रुप, टेलीग्राम ग्रुप एवं जूम गोंडी भाषा-लिपि क्लास के माध्यम से इसको सिखाने एवं बचाने का मेरे द्वारा निरंतर कार्य किया जा रहा है क्योंकि यह मेरी मातृभाषा मेरी पहचान ह...