गुरु अर्जुन देव जी का इतिहास

  1. Guru Arjan Dev Martyrdom Day गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस आज जानें
  2. गुरु हरगोबिन्द
  3. गुरु अर्जुन देव शहादत दिवस:क्या है इसका महत्व और इतिहास? यहां पढ़ें
  4. शाही संगत गुरुद्वारा में सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी गुरु पर्व मनाया
  5. Guru Arjan Dev Shaheedi Diwas 2021:गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस आज, धर्म की खातिर हुए थे बलिदान
  6. श्री गुरु अर्जुन देव का 413वां शहीदी दिवस आज


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Guru Arjan Dev Martyrdom Day गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस आज जानें

नई दिल्ली, जेएनएन। धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे प्रेमी थे गुरु अर्जुन देव जी। सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में ही व्यतीत किया। साल 1606 में लाहौर में मुगल बादशाह जहांगीर ने उन्हें बंदी बना लिया था और मृत्युदंग की सजा सुनाई थी। गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे और उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था। मुगलकाल में अकबर, गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे, लेकिन जब अकबर का निधन हो गया तो इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में इनके रिश्तों में खटास पैदा हो गई। ऐसा कहा जाता है कि शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने देश निकाला का आदेश दिया था, तो गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी। यही वजह थी कि जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। गुरु अर्जुन देव ईश्वर को यादकर सभी यातनाएं सह गए और 30 मई, 1606 को उनका निधन हो गया। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने यह अरदास की। हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥ जानें कब और कहां हुआ था जन्म गुरु अर्जुन देव जी की अमर गाथा आज भी पंजाब के हर घर में सुनाई जाती है। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। उनके पिता गुरु राम दास थे, जो सिखों के चौथे गुरु थे और माता का नाम बीवी भानी था। गुरु अर्जुन देव बचपन से ही धर्म-कर्म में रुचि लेते थे। उन्हें अध्यात्म से भी काफी लगाव था और समाज सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म और कर्म मानते थे। सिर्फ 16 साल की उम्र में ही उनका विवाह माता गंगा से हो गया था। वहीं, 1582 में उन्हें सिखों के चौथे गुरु रामदास ने अर्जुन देव जी को अपने स्थान पर पांचवें गुरु के रूप में नियुक्त किया था। गुरु अर्जुन देव की रचनाएं अर्जुन देव को साहित्य...

गुरु हरगोबिन्द

• अकाल तख़त का निर्माण • युद्ध में शामिल होने वाले पैहले गुरू • सिखों को युद्ध कलाएं साखने और सैन्य परीक्षण के लिये प्रेरित करना • मीरी पीरी की स्थापना • इन लड़ाइयों में भागिदारी: • रोहिला की लड़ाई • करतारपुर की लड़ाई • अमृतसर की लड़ाई (१६३४) • हरगोबिंदपुर की लड़ाई • गुरुसर की लड़ाई • कीरतपुर की लड़ाई पूर्वाधिकारी उत्तराधिकारी जीवनसाथी माता नानकी, माता महादेवी और माता दामोदरी बच्चे बाबा गुरदिता, बाबा सूरजमल, बाबा अनि राय, बाबा अटल राय, माता-पिता Close ▲ Quick facts: सिख सतगुरु एवं भक्त, धर्म ग्रंथ, सम्बन्धित वि... ▼ पर एक सिख · · · · · · · · धर्म ग्रंथ · सम्बन्धित विषय · विकार · · · नितनेम · शब्दकोष · Close ▲ बदलते हुए हालातों के मुताबिक गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा भी ग्रहण की। वह महान योद्धा भी थे। विभिन्न प्रकार के शस्त्र चलाने का उन्हें अद्भुत अभ्यास था। गुरु हरगोबिन्दसाहिब का चिन्तन भी क्रान्तिकारी था। वह चाहते थे कि सिख कौम शान्ति, भक्ति एवं धर्म के साथ-साथ अत्याचार एवं जुल्म का मुकाबला करने के लिए भी सशक्त बने। वह अध्यात्म चिन्तन को दर्शन की नई भंगिमाओं से जोडना चाहते थे। गुरु- गद्दी संभालते ही उन्होंने मीरी एवं पीरी की दो तलवारें ग्रहण की। मीरी और पीरी की दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डाजीने पहनाई। यहीं से सिख इतिहास एक नया मोड लेता है। गुरु हरगोबिन्दसाहिब मीरी-पीरी के संकल्प के साथ सिख-दर्शन की चेतना को नए अध्यात्म दर्शन के साथ जोड देते हैं। इस प्रक्रिया में राजनीति और धर्म एक दूसरे के पूरक बने। गुरु जी की प्रेरणा से श्री अकाल तख्त साहिब का भी भव्य अस्तित्व निर्मित हुआ। देश के विभिन्न भागों की संगत ने गुरु जी को भेंट स्वरूप शस्त्र एवं घोडे द...

गुरु अर्जुन देव शहादत दिवस:क्या है इसका महत्व और इतिहास? यहां पढ़ें

गुरु अर्जुन देव शहादत दिवस: क्या है इसका महत्व और इतिहास? यहां पढ़ें विस्तार गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें गुरु थे। इस साल आज यानी 14 जून को गुरु अर्जुन देव का शहादत दिवस है। गुरु अर्जन देव जी गुरु परंपरा का पालन करते हुए कभी भी गलत चीजों के आगे नहीं झुके। उन्होंने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर देना स्वीकार किया, लेकिन मुगलशासक जहांगीर के आगे झुके नहीं। वे हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे। सिख धर्म में वे सच्चे बलिदानी थे। उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ। आइए जानते हैं गुरु अर्जुन देव के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें... गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल साल 1563 में हुआ था। वे गुरु रामदास और माता बीवी भानी के पुत्र थे। उनके पिता गुरु रामदास स्वयं सिखों के चौथे गुरु थे, जबकि उनके नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी का बचपन गुरु अमरदास की देखरेख में बीता था। उन्होंने ही अर्जुन देव जी को गुरमुखी की शिक्षा दी। साल 1579 में उनका विवाह माता गंगा जी के साथ हुआ था। दोनों का एक पुत्र हुआ, जिनका नाम हरगोविंद सिंह था, जो बाद में सिखों के छठवें गुरु बने। गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन भाई गुरदास के सहयोग से किया था। उन्होंने रागों के आधार पर गुरु वाणियों का वर्गीकरण भी किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्वयं गुरु अर्जुन देव के हजारों शब्द हैं। उनके अलावा इस पवित्र ग्रंथ में भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत नामदेव, संत रविदास जैसे अन्य संत-महात्माओं के भी शब्द हैं। मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद अक्तूबर, 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। साम्राज्य संभालते ही गुरु अर्जुन देव के वि...

शाही संगत गुरुद्वारा में सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी गुरु पर्व मनाया

शहर के मोगलकुआं स्थित गुरुनानक देव शाही संगत गुरुद्वारा में सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी महाराज का 417वां शहीदी गुरु पर्व मनाया गया। गुरुद्वारा में सुखमनी साहिब के पाठों के भोग के बाद धार्मिक दीवान सजाए गए। जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। इस मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि आज समूह मनुष्यता को गुरु अर्जुन देव जी के पवित्र जीवन से सीख लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा समाज में से सभी लड़ाई झगड़े खत्म हो सकते हैं, यदि गुरु अर्जुन देव जी के सहनशीलता के गुण को अपना लिया जाए। उन्होंने कहा कि सिख धर्म के इतिहास की यह पहली शहादत थी। सिखों के पांचवें गुरु के रूप में गुरु अर्जुन देव जी ने देश और धर्म के नाम पर बलिदान होने की ऐसी मिसाल पेश की है जो इतिहास के सुनहरे पन्नों और लोगों के दिलों में अंकित है। मानवता की रक्षा और मानवीय मूल्यों की रक्षा के सिलसिले में दी गई पहली शहादत है। उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान : मौके पर सरदार वीर सिंह ने कहा कि श्री गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे।उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था। मुगल बादशाह जहांगीर ने उनकी जघन्य तरीके से यातना देकर हत्या करवा दी थी। इसी कारण हर साल आज ही के दिन उनका शहीदी दिवस मनाया जाता है। शंखनाद के अध्यक्षडा. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि गुरु जी ने जात-पात,रंगभेद ,नस्ल का अंतर समाप्त करते हुए एकता का संदेश दिया। अर्जुन देव जी को साहित्य से भी अगाध स्नेह था। ये संस्कृत और स्थानीय भाषाओं के प्रकांड पंडित थे। मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहाकिशही दों के सिरताज गुरू अर्जुन देव जी एक महान विभूति संत सतगुरूकवि थे। सरदार रघुवंश सिंह ने कहा कि राष्ट्र तथ...

Guru Arjan Dev Shaheedi Diwas 2021:गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस आज, धर्म की खातिर हुए थे बलिदान

Guru Arjan Dev Shaheedi Diwas 2021: गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस आज, धर्म की खातिर हुए थे बलिदान विस्तार शहीदों के 'सरताज' कहे जाने वाले वीर योद्धा श्रीगुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस मनाया जा रहा है। 1606 में आज ही के दिन मुगल बादशाह जहांगीर ने उनकी जघन्य तरीके से यातना देकर हत्या करवा दी थी। इसी कारण हर साल आज ही के दिन उनका शहीदी दिवस मनाया जाता है। वे सिखों के पांचवें गुरु थे। उन्होंने अपना जीवन धर्म और लोगों की सेवा में बलिदान कर दिया। वे दिन रात संगत और सेवा में लगे रहते थे। वे सभी धर्मों को एक समान दृष्टि से देखते थे। आइए जानते हैं गुरु अर्जुन देव के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें। 15 अप्रैल 1563 में हुआ था जन्म गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल साल 1563 में हुआ था। वे गुरु रामदास और माता बीवी भानी के पुत्र थे। उनके पिता गुरु रामदास स्वयं सिखों के चौथे गुरु थे, जबकि उनके नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी का बचपन गुरु अमर दास की देखरेख में बीता था। उन्होंने ही अर्जुन देव जी को गुरमुखी की शिक्षा दी। साल 1579 में उनका विवाह माता गंगा जी के साथ हुआ था। दोनों का पुत्र हुआ जिनका नाम हरगोविंद सिंह था, जो बाद में सिखों के छठे गुरु बने। अमृतसर में श्रीहरमंदिर साहिब की रखवाई थी नींव साल 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने। उन्होंने ही अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं इस गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं अर्जुन देव जी ने ही बनाया था। इस तरह दी गई थीं यातनाएं श्री गुरु अर्जुन देव जी ने धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। मुगल शासक जहांगीर ने उन्हें लाहौर मे...

श्री गुरु अर्जुन देव का 413वां शहीदी दिवस आज

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : 15 अप्रैल 1563 को सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी के घर में जन्म लेने वाले श्री गुरु अर्जुन देव जी को शांति के पुंज के नाम से भी जाना जाता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के रचयिता श्री गुरु अर्जुन देव जी ने सिखी के प्रचार लिए तरनतारन नगर बसाया था। साथ ही उन्होंने यहां पर श्री दरबार साहिब का निर्माण करवाया जहां पर उनका शहीदी दिवस संगतों द्वारा मनाया जा रहा है। सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी की धर्म पत्नी बीबी भानी जी का नाम भी सिख इतिहास में सम्मान के साथ लिया जाता है। श्री गुरु अर्जुन देव जी का विवाह माता गंगा जी के साथ हुआ था। उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया जो सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद जी के नाम से जाने जाते है। उन्होंने सिखी के प्रचार लिए और जरुरत को महसूस करते हुए दिल्ली से लाहौर (बरास्ता श्री गोइंदवाल साहिब) वाली सड़क पर नगर बसाने लिए गांव पलासोर, मुरादपुरा, कोट काजी व खानेवाल की ढाब पर रुके। यहां का वातावरण गुरु जी को पसंद आया। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने कोट काजी, पलासोर की ढाब वाली जमीन 1 लाख 57 हजार रुपये में खरीद कर यहां पर पावन सरोवर का निर्माण करवाया। गुरु जी ने बाबा बुडढा साहिब जी से अरदास करवाकर तरनतारन नगर की नींव 1590 ई. में रखवाई। गुरुजी ने तरनतारन नगर बसाते वर दिया कि यह नगरी खुद तरेगी और दूसरों को तारेगी जिसके चलते इस नगर को तरनतारन के नाम से जाना जाता है। शेर-ए-पंजाब महाराजा रंजीत सिंह ने 1802 से लेकर 1837 तक तरनतारन नगर के कई बार दर्शन किए। 14 जुलाई 1836 को महाराजा रंजीत सिंह के आदेशों पर तरनतारन नगर की पक्की चारदीवार करवाई गई। महाराजा रंजीत सिंह के पोते कंवर नौनिहाल सिंह की ओर से श्री दरबार साहिब तरनत...