गुरु गोविंद सिंह ने मुसलमानों के बारे में क्या कहा

  1. गुरु गोविन्द सिंह की जीवनी (जन्म, परिवार, मृत्यु), खालसा की स्थापना, पुत्र का नाम, व्यक्तिगत जीवन Guru Govind Singh biography in Hindi
  2. जाने गुरु गोबिंद सिंह के बारे मैं ऐसी बातें जो आपको अचंभित कर देगी
  3. गुरु गोविंद सिंह जी ने मुसलमानों के बारे में क्या कहा था? – Expert
  4. श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन के बचपन की कहानी और इतिहास
  5. muslim family takes care of guru govind singh gangasagar surahi
  6. Guru Gobind Singhji: प्रेरणादायी हैं गुरू गोबिंद सिंह के उपदेश
  7. गुरु गोविंद सिंह: भारत के बलिदानी परम्परा के सर्वश्रेष्ठ नायक
  8. गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं


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गुरु गोविन्द सिंह की जीवनी (जन्म, परिवार, मृत्यु), खालसा की स्थापना, पुत्र का नाम, व्यक्तिगत जीवन Guru Govind Singh biography in Hindi

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • गुरु गोविंद सिंह की जीवनी ( Guru Govind Singh biography in Hindi) नमस्कार ! आज हम सिखों के दसवें गुरु यानी कि गुरु गोविंद सिंह की जीवनी आपके साथ शेयर कर रहे हैं, जिसमें हम आपको बताने वाले हैं उनके जीवन से जुड़े हर महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में, जो आज भी हमारे लिए प्रेरणा का एक प्रमुख स्रोत है। गुरु गोविंद सिंह की जीवनी (Biography of Guru Gobind Singh in Hindi) के अंतर्गत हम उनके जन्म, शिक्षा, परिवार, पत्नियों एवं पुत्रों के अलावा गुरु गोविंद सिंह जी के द्वारा खालसा की स्थापना एवं लड़े गए विभिन्न युद्धों की चर्चा करने वाले हैं। तो चलिए जानते हैं गुरु गोविंद सिंह जी के बारे में। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म (Birth of Guru Gobind Singh) कब हुआ? गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म (Birth of Guru Gobind Singh) 22 दिसंबर 1966 ईस्वी में हुआ था। गुरु गोविंद सिंह जी के जन्म के समय इनके पिता असम में धर्म शिक्षा दे रहे थे, उसी वक्त इनका जन्म हुआ था। गुरु गोविंद सिंह के माता एवं पिता का नाम क्रमशाह तेग बहादुर एवं गुजरी था। इनके पिता नौवें सिख गुरु श्री तेग बहादुर जी थे। गुरु गोविंद सिंह के बचपन का नाम गोविंद राय था। इनका जन्म जिस स्थान पर हुआ था एवं उन्होंने अपना 4 वर्ष जन्म के पश्चात जिस स्थान पर बिताए थे, उस स्थान पर आज तखत श्री हरीमंदिर जी पटना साहिब स्थित है। गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार (Family of Guru Gobind Singh) कैसा था? गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार (Family of Guru Gobind Singh) की बात करें तो बता दें कि गुरु गोविंद सिंह सिक्ख परिवार से आते थे। सिक्खों के गुरु गोविंद सिंह जी के पिता का नाम गुरु तेग बहादुर एवं माता का नाम गुजरी था। गुरु ...

जाने गुरु गोबिंद सिंह के बारे मैं ऐसी बातें जो आपको अचंभित कर देगी

सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु माने जाने वाले गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती आज 5 जनवरी, गुरुवार को है। गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के नवें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। गुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना में हुआ था। उस समय तेगबहादुर असम में थे। जब वह वहगां से वापस लौटकर आए तो गुरु गोविंद सिंह 4 साल के हो चुके थे। कहा जाता है कि जब तेग बहादुर असम की यात्रा में गए थे। उससे पहले ही होने वाले बच्चे का नाम गुरु गोविंद सिंह रख दिया गया था। जिसके कारण उन्हे बचपन में गोविंद राय कहा जाता था। गुरु गोविंद बचपन से ही अपनी उम्र के बच्चों से बिल्कुल अलग थे। जब उनके साथी खिलौने से खेलते थे। और गुरु गोविंद सिंह तलवार, कटार, धनुष से खेलते थे। जब गुरु गोविंद सिंह छोटे थे तभी गुरु तेगबहादुर ने उनकी शिक्षा के लिए आनंदपुर में समुचित व्यवस्था की गई थी। जिसके कारण वह थोडे समय में कई भाषाओं में महारत हासिल कर लिया था। संवत् 1731 जब मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचार बढते चले जा रहे थे। वह कश्मीरी पंडितों में घोर अत्याचार कर रहा था। जिसके कारण यह लोग गुरु तेगबहादुर की शरण में आए। जब उनकी बात सुनकर गुरु तेगबहादुर ने कहा था कि हमारे हिंदु धर्म की रक्षा के लिए किसी महापुरुष की आवश्यकता है। इस बात को सुन कर गुरु गोविंद सिंह ने अपने पिता से कहा कि 'इस संसार में आपसे बड़ा महापुरुष कौन हो सकता है'। जब गुरु गोविंद सिंह ने यह बात की उस समय उनकी उम्र महज 9 साल की थी। इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण मिलेंगे जब किसी बालक ने अपने पिता को ही धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की प्रेरणा दी हो। गुरु तेगबहादुर के शहीद हो जाने पर 1733 को गोविंद राय गद्दी पर बैठे। तब तक काफी लोग उन्हें चमत्कारी पुरुष मानने लगे थे। सिख धर्म के दसवें ...

गुरु गोविंद सिंह जी ने मुसलमानों के बारे में क्या कहा था? – Expert

Table of Contents • • • • • • • • • • गुरु गोविंद सिंह जी ने मुसलमानों के बारे में क्या कहा था? उन्होंने जब भीखन शाह से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि इन दो मटकों में से एक हिन्दू और दूसरा मुस्लिम कौम का था। मैं ये देखना चाहता था कि अल्लाह का भेजा हुआ यह अवतार मुसलामानों की रक्षा के लिए आया है या हिन्दूओं की। मगर जो मैंने देखा उसके बाद मैं चकित रहा गया। गुरु गोविंद सिंह जी की हत्या कैसे हुई? गुरु गोबिंद सिंह जब अपने कक्ष में आराम कर रहे थे तभी इनमें से एक पठान ने गुरू के दिल के नीचे बाईं ओर छुरा घोंप दिया. इससे पहले कि वह दूसरा हमला करता, गुरु गोबिंद सिंह ने उस पर कृपाण से वार कर दिया और उन्हें मार गिराया. गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु कहाँ हुई थी? 7 अक्तूबर 1708गुरु गोविंद सिंह / हत्या तारीख गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों का बलिदान कब हुआ? चंडीगढ़। फतेहगढ़ साहिब में आज शनिवार से शहीदी जोड़ मेला शुरू होने जा रहा है, 26 दिसंबर 1704 में आज के ही दिन गुरुगोबिंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था, माता गुजरी को किले की दीवार से गिराकर शहीद कर दिया गया था। READ: सोमवार के दिन कौन से भगवान की पूजा करनी चाहिए? गुरु तेग बहादुर का सिर क्यों कटवा दिया? गुरू तेग बहादुर ने हिंदु धर्म की रक्षा के लिए अपना सिर कटवा दिया था। औरंगजेब द्वारा हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाए जाने की मुहिम पर उन्होंने अपनी शहीदी के जरिए रोक लगाई। इस्लाम धर्म के गुरु कौन थे? इस्लाम में धर्मगुरु को मौलाना कहते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी की कास्ट क्या थी? गुरु गोविन्द सिंह जी का जीवन परिचय नाम (Name ) गुरु गोविन्द सिंह जी धर्म ...

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन के बचपन की कहानी और इतिहास

जन्म तिथि : 22 दिसंबर 1666 मृत्यु तिथि : 7 अक्टूबर 1708 गुरु में पद : 10वें गुरु थे माता-पिता का नाम : गुजरी जी और गुरु तेग बहादुर जी पत्नीयों के नाम : माता जीतो जी, माता सुंदरी जी, माता साहिब देवां बेटों के नाम : जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह, अजित सिंह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का बचपन गुरु गोबिंद जी सिखों के दसवें गुरु थे। कहा जाता है कि उनके पिता की मृत्यु के बाद उन्हें 11 नवम्बर सन् 1675 को गुरु बनाया गया था। सन् 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की जो कि सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा, कवी, भक्त और अध्यात्मिक नेता थे। गुरु ग्रंथ साहिब जी सिखों की पवित्र ग्रन्थ है। ये ग्रन्थ गुरु गोबिंद सिंह द्वारा ही पूरा किया गया था और उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। विचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यह दसम ग्रंथ का एक भाग है, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा किये गए कार्यों का एक संकलन है। उन्होंने मुगलों व उनके साथियों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म के लिए उन्होंने अपने पूरे परिवार का बलिदान भी किया जिसके कारण उन्हें “ सर्वस्व्दानी” भी कहा जाता है और उनके कई नाम है:- • कल्गीधर • दशमेश • बाजांवाले आदि नामों से जाने जाते हैं। Shri Guru Gobind Singh Ji History in Hindi गुरु गोबिंद जी हिस्ट्री: गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान लेखक, मौलिक चिंतन तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई ग्रंथों की रचना की। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसलिए उन्हें “संत सिपाही” भी कहा जाता है। उन्होंने हमेशा सभी को प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। उनके अनुसार मनुष्य को क...

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सिख इतिहास में दिसंबर को 'कुर्बानियों का महीना' कहा जाता है। इसलिए कि नौंवे गुरु गोविंद सिंह जी का समूचा परिवार दिसंबर महीने की इन्हीं तारीखों में शहीद हुआ था। शहादतों के वक्त दशम पातशाह मुगलों के खिलाफ जंग लड़ रहे थे। इसी जंग में उनका पूरा परिवार शहादत को हासिल हो गया। बेशुमार मुस्लिम परिवारों ने भी तब गुरु साहिब का साथ दिया था। तमाम खतरे उठाकर। वे सब सिख इतिहास के पन्नों में बेहद ऐहतराम के साथ दर्ज किए गए हैं।बेहद अहम है कि गुरु गोविंद सिंह जी से संबंधित उनकी कई वस्तुएँ अथवा निशानियां मुस्लिम परिवारों ने बेहद श्रद्धा तथा पवित्रता के साथ संभाल कर रखी हुई हैं। इनमें से एक है 'गंगासागर'। सिख इतिहास में इसका खास ज़िक्र है? ‘गंगासागर’ दरअसल तांबे-पीतल तथा अन्य धातुओं से बना एक अनमोल बर्तन है, जिसमें से गुरुजी पेय पदार्थों (यानी दूध-जल वगैरह) का सेवन किया करते थे और हमेशा उसे अपने साथ रखते थे। यहां तक कि मैदान-ए-जंग में भी। मुगलों के साथ निर्णायक युद्ध में भी गंगासागर उनके साथ था। चमकौर की गढ़ी में बड़े साहिबजादे बाबा जुझार सिंह और बाबा अजीत सिंह शहीद हो गए। गुरुजी ने आनंदपुर साहिब का क़िला छोड़ दिया और सरसा नदी पर शेष परिवार उनसे जुदा हो गया। गुरु गोविंद सिंह लड़ते लड़ते मछीवाड़ा पहुंच गए। जहां दो मुसलमान भाइयों नवी खान और गनी खान ने उन्हें, तमाम ख़तरे उठाकर, पनाह दी और मर्यादा अनुसार पूरी श्रद्धा के साथ उनकी सेवा की। खान बंधु घोड़ों के व्यापारी थे और गुरु साहिब ने वहाँ से रुखसत होने से पहले उनकी सेवा के मद्देनज़र उन्हें बाकायदा पीर का दर्जा दिया। नवी खान और गनी खान मुगलों की मुखालफत से बखूबी वाकिफ थे। उन्होंने पूरे सत्कार के साथ, कुछ अन्य भरोसेमंद मुसलमानों को साथ लेकर गुरु ...

Guru Gobind Singhji: प्रेरणादायी हैं गुरू गोबिंद सिंह के उपदेश

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 1667 ई. में पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1723 विक्रम संवत् को पटना साहिब में हुआ था। प्रतिवर्ष इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह का प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। सिखों के 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी का 356वां प्रकाश पर्व इस वर्ष 29 दिसम्बर को मनाया जा रहा है। बचपन में गुरु गोबिंद सिंह जी को गोबिंद राय के नाम से जाना जाता था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर सिखों के 9वें गुरु थे। पंजाबी, हिन्दी, संस्कृत, बृज, फारसी भाषाएं सीखने के साथ गुरु गोबिंद सिंह जी ने घुड़सवारी, तीरंदाजी, नेजेबाजी इत्यादि युद्धकलाओं में भी महारत हासिल की थी। कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए उनके पिता और सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर जी द्वारा नवम्बर 1975 में दिल्ली के चांदनी चौक में शीश कटाकर शहादत दिए जाने के बाद मात्र 9 वर्ष की आयु में ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों के 10वें गुरू पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली और खालसा पंथ के संस्थापक बने। अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उनका वाक्य ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं तां गोबिंद सिंह नाम धराऊं’ सैकड़ों वर्षों बाद आज भी प्रेरणा और हिम्मत देता है। ‘भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन’ वाक्य के जरिये गुरु गोबिंद सिंह कहते थे कि किसी भी व्यक्ति को न किसी से डरना चाहिए और न ही दूसरों को डराना चाहिए। उन्होंने समाज में फैले भेदभाव को समाप्त कर समानता स्थापित की थी और लोगों में आत्मसम्मान तथा निडर रहने की भावना पैदा की। शौर्य, साहस, त्याग और बलिदान के सच्चे प्रतीक तथा इतिहास को नई धारा देने वाले अद्वितीय, विलक्षण और अनुपम व्यक्तित्व के स्वामी गुरु गोबिंद सिंह को इतिहास में एक विलक्षण क्रांतिका...

गुरु गोविंद सिंह: भारत के बलिदानी परम्परा के सर्वश्रेष्ठ नायक

विश्व के एकमात्र योद्धा जिनकी लड़ाई न राज्य के सीमा के लिए थी, न धन के लिए और न ही किसी अन्य लालसा के लिए था … वो था मात्र धर्म रक्षा का संकल्प युद्ध … महाभारत था धर्म युद्ध और अर्जुन से बड़ा धनुर्धारी न पैदा हुआ लेकिन पुत्र अभिमन्यु वध का समाचार मिलते ही दुःख और क्षोभ से गांडीव फ़िसल गया, पैर काँप गया …… अर्जुन के गुरु द्रोण अपने पुत्र की मृत्यु के झूठे ख़बर मात्र से धनुष रख के रोने लगे और युद्ध बंद कर दिया …. पुत्र से बिछड़ने मात्र के संताप से देवासुर संग्राम के विजेता चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ गिर पड़े और फिर न उठे … ऐसे में इतिहास का सिंहावलोकन करने पर गुरु गोविंद सिंह ही मात्र एक ऐसे देवतुल्य महापुरुष हुए जिन्होंने पुत्रों को बलिदान होने के लिए अपने हाथ से सज़ा के भेजा …. चमकौर का क़िला छोड़ते समय जब उनके अनुयायियों ने अपने पगड़ी खोलकर दोनो साहबजादों के बलिदानी शरीर को ढकना चाहा तो गुरु जी ने ये कह के मना कर दिया कि बाकी के बलिदानी भी उनके पुत्र ही हैं .. फिर इनके लिए व्यवस्था क्यों, बाक़ी के वंचित रहें क्यों ? लड़ाई चलते रहने के समय, पुत्रों के बलिदानी होने के पहले या बाद … उफ़नाइ नदी पार करने के बाद उसी हाल में गुरु जी ने धर्म रक्षा के लिए बिना विचलित हुए ईश्वर का पूजन और शबद कीर्तन भी किया …. चारों साहबजादों के बलिदान होने पर गुरु जी ही एक मात्र थे, जिनके न पैर कांपे, न धनुष फिसला, न तलवार की चमक कम हुई, जिन्होंने धर्म रक्षार्थ योद्धा लोगों की ओर देखकर कहा … इन पुतरन के शीश पर वार दिए सुत चार .. चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हज़ार .. गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं...

गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं

सिक्खों के दसवें और अन्तिम गुरू, गुरु गोविंद सिंह का जन्म संवत् 1723 विक्रमी की पौष सुदी सप्तमी अर्थात् 22 दिसम्बर, 1666 ई0 को भारतीय संस्कृति की उस प्राचीन पवित्र पटना नगरी में हुआ जिसका नाम कभी पाटलीपुत्र था। यह जन्म गुरु गोविंद सिंह के शरीर का नहीं अपितु उस परम आत्मा और दिव्य ज्योति का था जिसने समस्त भारत को एक नवीन विचार क्रांति द्वारा आलोकित किया। उस परम-दिव्य ज्योति का नाम रखा गया‘नानक’। बालक गोबिन्द राय ने जीवन के प्रारम्भिक 6 वर्ष अपनी माता तथा मामा के संरक्षण में पटना में ही व्यतीत किए। उनके पिता जिस समय पूर्वी भारत के राज्यों में सिक्ख गुरूओं की परमपरागत विचार-वाणी को प्रचारित कर रहे थे तब बालक गोबिन्द समान्य बालकों के रूचिपरक खेलों की अपेक्षा अस्त्र-शस्त्र के खेलों को खेलते थे। नकली दुर्ग बनाकर उन्हें विध्वंस करना, खेतों और खलिहानों पर कृतिम सेना का सेनापति बन अपने मित्रों को युद्ध की सभी क्रियायें सिखाया करते थे। लगभग 6 वर्ष तक पटना में रहने के पश्चात् बालक गोबिन्द पिता के बुलावे पर माता गूजरी, दादी नानकी, व अन्य लोगों के साथ पटना से आन्नदपुर की ओर चल पड़े। पटना से विदाई के समय विशाल जनसमूह, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम राजा फतेह चंद मैनी, उसकी रानी, पण्डित शिवदत्त तथा गोबिन्द के अन्य बाल मित्र उनके समूह के साथ-साथ चलते रहे। इस समूह यात्रा के दौरान वाराणसी, अयोध्या और लखनऊ में लम्बे समय तक रूका। अम्बाला के समीप लखनूर में जो यह समूह लगभग छ: महीने तक पड़ाव डाले रहा। इसके अतिरिक्त मार्ग में दानापुर, प्रयाग, कानपुर, हरिद्वार, मथुरा, वृन्दावन आदि विभिन्न तीर्थ स्थलों के दर्शन और वहाँ के सांस्कृतिक परम्परा को उन्होंने आत्मसात करने का प्रयास किया। हर पड़ाव के दौरान अनेक लोग...