गुरुजी का गेम साधु की पाठशाला

  1. आनंद सर की पाठशाला :तीसरा दिन :मिडिल गेम !
  2. वाहे गुरुजी का खालसा
  3. Jai Guru Ji History in Hindi
  4. साधु की महान् परम्परा और जिम्मेदारी


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आनंद सर की पाठशाला :तीसरा दिन :मिडिल गेम !

by निकलेश जैन - 21/03/2017 शुरुआत अच्छी होने के बाद भी जीवन में जो लोग समय को या स्थिति को नहीं समझ पाते वो लड़खड़ा जाते है,शतरंज मैं भी ऐसा होना बेहद सामान्य घटना है ,कई बार शानदार ओपेनिंग खेल कर भी समय के दबाव में या स्थिति के गलत आकलन से मिडिल गेम में गलतियाँ कर मैच खो देना अधिकतर देखा गया है ऐसे में आनंद नें प्रशिक्षण शिविर के तीसरे दिन बच्चो को मिडिल गेम की बारीकियाँ सिखाई उन्होने अपनी समझ बेहतर करने ,स्थिति का बेहतर आकलन करने ,अपने समय को नियंत्रित करने के कई शानदार सुझाव बच्चो को दिये । इसके साथ ही तीन दिवसीय यह शानदार आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हो गया । आनंद का एक प्रशिक्षक के तौर पर देखना अपने आप में एक इतिहासिक बात है और इस कार्यक्रम से जुड़ कर चेसबेस इंडिया खुद को सम्मानित महसूस कर रहा है .. चेन्नई में कल तीन दिवसीय शतरंज प्रशिक्षण शिविर का समापन हो गया । 17 से 19 मार्च तक पूर्व विश्व चैम्पियन विश्वानाथन आनंद नें प्रतिदिन बच्चो को 4 घंटे प्रशिक्षण दिया यह पहली बार है की आनंद बच्चो को प्रशिक्षण दे रहे थे । खैर पहले दो दिन एंडगेम और ओपेनिंग पे बात के बाद आज समय था मिडिल गेम का स्थिति को समझने की क्षमता आनंद नें बताया की किसी भी स्थिति में एक प्यादे और मोहरो के बदले जब हम बोर्ड पर कुछ क्षतिपूर्ति या कहे की कुछ फायदा उठाना चाहे तो ऐसी स्थिति को समझने के लिए या अपनी समझ को बेहतर करने के लिए हमें इस तरह की पोजीशन लगातार हल करना चाहिए । इस बात को समझाने के लिए आनंद नें स्मिथ -मोरा गेंबिट का उदाहरण चुना जहां सफ़ेद कभी प्यादे तो कभी मोहरे भी कुर्बान कर देता है और बदले में काले के राजा के उपर हमला करने का प्रयास करता है इस दौरान आनंद नें बताया की कैसे इवान्स गेंबिट जैसी ओपनिं...

वाहे गुरुजी का खालसा

तख्तहरमंदिर साहिब के मुख्य जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह जी बेहद व्यस्त हैं। श्रीगुरुगोविंद सिंह जी का मुख्य संदेश पूछने पर गुरुजी की ही एक वाणी सुनाते हैं- सांच कहो सुन लेहो सबै, जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो। ज्ञानी जी ने गुरु जी की जो वाणी सुनाई, उसके गहरे अर्थ हैं। 30 मार्च, 1699 को आनंदपुर साहिब में जब गुरुजी ने संगत में नंगी तलवार लहराते हुए पूछा था कि कौन ऐसा बंदा है, जो सिर देने को तैयार है, तो वे सच्चे प्रेमी की ही तलाश कर रहे थे। सचमुच प्रेम करना आसान नहीं है। गुरुजी जब कहते हैं कि जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो, तो वे सांसारिक प्रेम की बात नहीं कर रहे हैं। सांसारिक प्रेम में स्वार्थ है। गुरुजी जिस प्रेम की बात करते हैं, उसमें समर्पण चाहिए। ईश्वर के सामने, सद्गुरु के सामने पूरी तरह समर्पण। जहां कोई अहंकार हो, कोई स्वार्थ हो। सिख धर्म में पांच तख्त प्रमुख हैं। तीन पंजाब में हैं, एक महाराष्ट्र और एक तख्त पटना साहिब का तख्त हरमंदिर साहिब है। यहां के मुख्य जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह जी ने जो भी कहा-गुरु की वाणी में ही कहा। तीन वाणियां सुनाई- हिंदूतुरक कोई राफ जी इमाम साफी, मानस की जात सबै एकै पहचान बो। एक ही की सेव सभी को गुरुदेव एक, एक ही स्वरूप सबै एक जोत जानबो। सांच कहो सुन लेहों सबै, जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो। ज्ञानीजी के पास ढेरों काम पड़े हैं। पर उन्होंने गुरु जी की जिन तीन वाणियों को सुनाया, उसी में समाया है श्रीगुरुगोविंद सिंह जी के 350 वें प्रकाशोत्सव का सार। देश, समाज और व्यक्ति तीनों का जीवन बदल सकता है, इन तीन वाणियों में। इन तीन वाणियों पर पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है। ज्ञानी जी की सुनाई तीन वाणियों में क्रम है। पहले को समझे बगैर दूसरे को नहीं समझ...

Jai Guru Ji History in Hindi

Guru Ji History in Hindi: हमारे देश में संत-महात्माओं की कोई कमी नहीं है। यहां जितने ज्यादा संत-महात्मा हैं उससे भी कई गुना ज्यादा उनके भक्त मौजूद हैं। हमारा देश सदियों से साधु-संतों का सम्मान करता आया है और इन्हें एक अलग ही खास नजर से देखा जाता है। चूंकि आज हम आधुनिक जमाने में जी रहे हैं और आज विज्ञान ने बहुत ही ज्यादा तरक्की कर ली है। लेकिन इसके बाद भी लोगों में संत-महात्माओं के प्रति सम्मान और निष्ठा बनी हुई है। ऐसा नहीं है कि इन लोगों की महानता प्राचीन समय से ही बनी हुई है बल्कि इनको अपनी महानता बनानी पड़ती है। तब जाकर लोग इनकी तरफ आकर्षित होते हैं और इनके प्रति समर्पित होते हैं। कुछ इसी तरह की अलौकिक और दिव्य क्षमता वाले हैं “गुरुजी”(Jai Guru Ji) जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने इस धरती पर मानवता को आशीर्वाद देने और उन्हें जागरूक करने के लिए ही जन्म लिया है। जय गुरु जी की जीवनी(Guru Ji Biography in Hindi) 7 जुलाई, 1954 को पंजाब के मलेरकोटला जिले(Malerkotla) के डूगरी गांव(Dugri village) में गुरुजी का जन्म हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा डूगरी गांव और आस-पास ही हुई थी। इन्होंने यहीं से स्कूल, कॉलेज सब किया। गुरुजी ने राजनीति शास्त्र में स्नातक की डिग्री ले रखी है। आपको बता दें कि इन्हें बालावस्था से ही आध्यात्म से जुड़ाव हो गया था और जैसे-जैसे वक़्त गुजरता गया इनके अंदर का ये लगाव उभरकर बाहर आने लगा। लोग उनसे काफी आकर्षित होते और उनकी शरण में आने लगे। गुरुजी की प्रतिष्ठा चरम पर पहुंचने लगी थी। खास बात तो यह थी कि गुरुजी ने अन्य बड़े-बड़े साधु-महात्माओं की तरह कोई प्रवचन नही दिया और न ही कोई श्लोक बताया। मगर इसके बाद भी इनकी लोकप्रियता और भी ज्यादा बढ़ती चली गयी। Im...

साधु की महान् परम्परा और जिम्मेदारी

भारत वर्ष की साधुता विश्व-विख्यात है। यहां साधु-सन्तों का सदा से बाहुल्य रहा है। गृहस्थों के रूप में भी और विरक्तों के रूप में भी। साधु सज्जन को कहते हैं। जिसमें निष्कलंक सज्जनता है, उसे साधु ही कहा जायगा। यह सज्जनता का उच्चतम स्तर है कि अपने समय, श्रम, ज्ञान एवं मनोभाव अपने व्यक्तिगत एवं पारिवारिक प्रयोजनों में सीमित न रखकर उसे समस्त विश्व के लिये समर्पित कर दें। अपने व्यक्तित्व को सार्वजनिक सम्पत्ति समझें और उसका उपयोग इस प्रकार करें कि उसका लाभ अपने शरीर को ही नहीं, वरन् समस्त विश्व को प्राप्त हो। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की उदारता एवं महानता जिस किसी अन्तःकरण में उदय हो रही होगी, वह अपनी आन्तरिक महानता के कारण इस धरती का देवता माना जायगा, इसे साधु-महात्मा कहकर पूजा जायगा। ज्ञान के प्रकाश में अरुणोदय — साधु गेरुआ वस्त्र पहनते हैं। यह रंग प्रातःकाल की ऊषा का है। अरुणोदय के समय सर्वत्र लालिमा छाई रहती है, यही भगवा रंग है। ब्रह्म-मुहूर्त की पूर्व से उदय होने वाली लालिमा संसार में नव-जीवन का संचार करने, नई स्फूर्ति उत्पन्न करने, जागरण का सन्देश देने एवं प्रकाश उत्पन्न करने आया करती हैं। साधु का जीवनोद्देश्य भी यही होता है। अपने उद्देश्य एवं कार्यक्रम की जानकारी सर्व-साधारण को कराने के लिये वह वस्त्र पहने जाते हैं। जिस प्रकार फौज या पुलिस की वर्दी पहने हुए व्यक्ति को हर कोई आदमी आसानी से पहचान लेता है और यदि उससे कुछ प्रयोजन होता है, तो उसकी सूचना उन्हें देता है। बड़े रेलवे स्टेशनों पर मुसाफिरों की सेवा सहायता एवं मार्गदर्शन के लिये कुछ कर्मचारी नियत रहते हैं। उनकी भुजा पर एक पट्टी लगी रहती है, जिसमें उनका परिचय लिखा होता है। यह इसलिये कि जिन मुसाफिरों को उनकी आवश्यकता हो, वे उन्...