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  1. हिन्दी साहित्य का इतिहास
  2. भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी
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हिन्दी साहित्य का इतिहास

हिन्दी साहित्य पर अगर समुचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यन्त विस्तृत व प्राचीन है। सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। यह कहना ही ठीक होगा कि वैदिक भाषा ही दसवीं शताब्दी के आसपास की सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश-अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य-रचना प्रारम्भ हो गयी थी। • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • अनुक्रम • 1 हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का इतिहास • 1.1 हिन्दी साहित्य के इतिहासकार और उनके ग्रन्थ • 2 हिन्दी साहित्य के विकास के विभिन्न काल • 2.1 आदिकाल (1050ई से 1375ई) • 2.2 भक्तिकाल (1375 से 1700 ई.) • 2.3 रीतिकाल (1700 से 1900 ई.) • 2.4 आधुनिक काल (1900 से अब तक) • 2.4.1 उन्नीसवीं शताब्दी • 2.4.2 बीसवीं शताब्दी • 3 हिन्दी एवं उसके साहित्य का इतिहास • 3.1 ब्राह्मी लिपि का विकास • 3.2 अपभ्रंश तथा आदि-हिन्दी का विकास • 3.3 अपभ्रंश का अस्त तथा आधुनिक हिन्दी का विकास • 3.4 आधुनिक हिन्दी • 4 सन्दर्भ • 5 इन्हें भी देखें • 6 बाहरी कड़ियाँ हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का इतिहास [ ] मुख्य लेख: आरम्भिक काल से लेकर आधुनिक व आज की भाषा में आधुनिकोत्तर काल तक साहित्य इतिहास लेखकों के शताधिक नाम गिनाये जा सकते हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहासकार और उनके ग्रन्थ [ ] हिन्दी साहित्य के मुख्य इतिहासकार और उनके ग्रन्थ निम्नानुसार हैं - 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18 .राजेंद्र प्रसाद सिंह: हिन्दी साहित्य के विकास के विभिन्न काल [ ] आदि...

भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी

14 सितम्बर की शाम को संविधान सभा में हुई बहस के समापन के बाद जब संविधान का भाषा सम्बन्धी तत्कालीन भाग 14 क और वर्तमान भाग 17, संविधान का भाग बन गया तब डॉ. यह मानसिक दशा का भी प्रश्न है जिसका हमारे समस्त जीवन पर प्रभाव पड़ेगा। हम केन्द्र में जिस भाषा का प्रयोग करेंगे उससे हम एक-दूसरे के निकटतर आते जाएँगे। आख़िर अंग्रेज़ी से हम निकटतर आए हैं, क्योंकि वह एक भाषा थी। अब उस अंग्रेज़ी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्यमेव हमारे संबंध घनिष्ठतर होंगे, विशेषतः इसलिए कि हमारी परम्पराएँ एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासम्भव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी। संविधान की धारा 343(1) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा अनुक्रम • 1 हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य • 2 अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा • 3 अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश • 4 राजभाषा अधिनियम • 5 राजभाषा संकल्प, 1968 • 6 राजभाषा/हिन्दी समितियाँ • 6.1 केन्द्रीय हिन्दी समिति • 6.2 हिन्दी सलाहकार समिति • 6.3 संसदीय राजभाषा समिति • 6.4 केन्द्रीय राजभाषा कार्यान्यवन समिति • 6.5 नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति • 7 राजभाषा हिन्दी की विकास-यात्रा • 7.1 स्वतन्त्रता पूर्व • 7.2 स्वतन्त्रता के बाद • 8 सन्दर्भ • 9 इन्हें भी देखें • 10 बाहरी कड़ियाँ हिन्दी को ...

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