हंस पत्रिका के संपादक थे

  1. हंस पत्रिका
  2. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:मधुप गुन
  3. Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay
  4. हंस पत्रिका के वर्तमान संपादक
  5. हंस (संपादक प्रेमचंद)
  6. हंस के संपादक राजेंद्र यादव


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हंस पत्रिका

राजेन्द्र यादव का जन्म 28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में हुआ था। शिक्षा भी आगरा में रहकर हुई। बाद में दिल्ली आना हुआ और कई व्यापक साहित्यिक परियोजनाएं यहीं सम्पन्न हुईं। देवताओं की मूर्तियां, खेल-खिलौने, जहां लक्ष्मी कैद है, अभिमन्यु की आत्महत्या, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, टूटना, अपने पार, ढोल तथा अन्य कहानियां, हासिल तथा अन्य कहानियां व वहां तक पहुंचने की दौड़, इनके कहानी संग्रह हैं। उपन्यास हैं-प्रेत बोलते हैं, उखड़े हुए लोग, कुलटा, शह और मात, एक इंच मुस्कान, अनदेखे अनजाने पुल। ‘सारा आकाश,’‘प्रेत बोलते हैं’ का संशोधित रूप है। जैसे महावीर प्रसाद द्विवेदी और ‘सरस्वती’ एक दूसरे के पर्याय-से बन गए वैसे ही राजेन्द्र यादव और ‘हंस’ भी। हिन्दी जगत में विमर्श-परक और अस्मितामूलक लेखन में जितना हस्तक्षेप राजेन्द्र यादव ने किया, दूसरों को इस दिशा में जागरूक और सक्रिय किया और संस्था की तरह कार्य किया, उतना शायद किसी और ने नहीं। इसके लिए ये बारंबार प्रतिक्रियावादी, ब्राह्मणवादी और सांप्रदायिक ताकतों का निशाना भी बने पर उन्हें जो सच लगा उसे कहने से नहीं चूके। 28 अक्टूबर 2013 अपनी अंतिम सांस तक आपने हंस का संपादन पूरी निष्ठा के साथ किया। हंस की उड़ान को इन ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय राजेन्द्र यादव को जाता है। हंस में आई कोई भी रचना ऐसी नहीं होती जो पढ़ी न जाए। प्राप्त रचनाओं को प्रारम्भिक स्तर पर पढ़ने में उदय शंकर संपादक का सहयोग करते हैं । हिंदी आलोचक, संपादक और अनुवादक उदय शंकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़े हैं। उन्होंने कथा-आलोचक सुरेंद्र चौधरी की रचनाओं को तीन जिल्दों में संपादित किया है। ‘नई कहानी आलोचना’ शीर्षक से एक आलोचना पुस्तक प्रकाशित। उत्तर प्र...

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:मधुप गुन

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहासयह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहासतब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती। from Hindi जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य Class 10 Uttarakhand Board - Hindi Medium निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये: मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी। इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती। प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है जिसके रचयिता छायावादी काव्य के प्रवर्त्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने मुंशी प्रेमचंद के आग्रह पर भी उनकी पत्रिका ‘हंस’ के ‘आत्मकथा अंक’ के लिए अपनी आत्मकथा नहीं लिखी थी। उन्होंने माना था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं था जो औरों को कुछ सरस दे पाता। व्याख्या- कवि कहता है कि जीवन रूपी उपवन में उसका मन रूपी भंवरा गुंजार करता हुआ पता नहीं अपनी कौन-सी कहानी कह जाता है। उस कहानी से किसी को सुख मिलता है या दुःख, वह नहीं जानता। पर इतना अवश्य है कि आज उपवन में कितनी अधिक पत्तियाँ मुरझा कर झड़ रही हैं। कवि का स्वर निराशा के भावों से भरा हुआ है। उसे केवल दुःख और पीड़ा रूपी मुरझाई पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं। उसकी न जाने कितनी इच्छाएँ बिना पूरी हुए ही मन में घुटकर रह गई। ...

Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay

इसमें आप पढ़ेंगे। • • • • • • • • • • • Munshi Premchand ka jeevan parichay– मुंशी प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखक थे। उनकी गिनती हिन्दी साहित्य के महान उपन्यासकारों में अग्रणी है। बर्ष 1880 में भारत के उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में जन्मे प्रेमचंद्र का बचपन बड़े ही कष्टों और गरीबी में वीता। लेकिन अपने कड़ी मेहनत के वल पर उन्होंने शिक्षक की नौकरी पाई। बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर साहित्य को अपना पूर्णकालीन कैरियर बना लिया। उनके द्वारा लिखी गई उपन्यास और कहानियाँ को पाठक ने मुक्त कंठ से सराहा। उनकी 3 प्रसिद्ध रचनाओं में “गोदान,”“कफ़न,” और “रंगभूमि” का नाम सम्मिलित है। मुंशी प्रेमचंद्र को कलम का सिपाही कहा जाता है। कुछ विद्वान उनकी तुलना गोर्की से भी किया है। उन्होंने रामदास गौड़ से प्रेरणा पाकर हिन्दी साहित्य में लेखन का आरंभ किया था। उपन्यास के रचना के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के कारण प्रसिद्ध कवि व लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहा था। वे मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने प्रारंभ में अपनी रचना नवाब राय के नाम से ही लिखी थी बाद में उन्होंने प्रेमचंद्र नाम रख लिया था। गोदान उनकी कालजयी रचना कहलाती है, जबकि कफन उनकी आखरी रचना मानी जाती है। आइए इस लेख में उनके जीवन और रचनाओं के बारें में थोड़ा विस्तार से जानते हैं। मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय संक्षेप में– Munshi Premchand ka jeevan parichay पूरा नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद। जन्म तिथि व स्थान : 31 जुलाई 1880 बनारस के पास पिता का नाम : मुंशी अजायब राय माता का नाम : आनंदी देवी। पत्नी का नाम : शिवरानी देवी सम्पादि...

हंस पत्रिका के वर्तमान संपादक

हंस का प्रकाशन सन् 1930 ई0 में बनारस से प्रारम्भ हुआ था। इसके सम्पादक मुंशी प्रेमचन्द थे। प्रेमचन्द के सम्पादकत्व में यह पत्रिका हिन्दी की प्रगति में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई। सन् 1933 में प्रेमचन्द ने इसका काशी विशेषांक बड़े परिश्रम से निकाला। वे सन् 1930 से लेकर 1936 तक इसके सम्पादक रहे। उसके बाद जैनेन्द्र और प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने संयुक्त रूप से इसका सम्पादन प्रारम्भ किया। हंस के विशेषांकों में प्रेमचन्द स्मृति अंक, एकांकी नाटक अंक 1938, रेखाचित्र अंक, कहानी अंक, प्रगति अंक तथा शान्ति अंक विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे। जैनेन्द्र और शिवरानी देवी के बाद इसके सम्पादक शिवदान सिंह चौहान और श्रीपत राय उसके बाद अमृत राय और तत्पश्चात् नरोत्तम नागर रहे। बहुत दिनों बाद सन् 1959 में हंस का एक वृहत् संकलन सामने आया जिसमें बालकृष्ण राव और अमृत राय के संयुक्त सम्पादन में आधुनिक साहित्य एवं उससे सम्बन्धित नवीन मूल्यों पर विचार किया गया था।

हंस (संपादक प्रेमचंद)

हंस का प्रकाशन सन् प्रेमचन्द स्मृति अंक, एकांकी नाटक अंक रेखाचित्र अंक, कहानी अंक, प्रगति अंक तथा शान्ति अंक विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे। जैनेन्द्र और शिवरानी देवी के बाद इसके सम्पादक शिवदान सिंह चौहान और श्रीपत राय उसके बाद सन्दर्भ [ ] • बाहरी, डॉ॰ हरदेव (1986). साहित्य कोश, भाग-2,. वाराणसी: |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए ( इन्हेंभीदेखें [ ] •

हंस के संपादक राजेंद्र यादव

मंगल यादव एक इच्छा जो पूरी नहीं हुई जिनकी कसक मुझे जीवन पर्यन्त रहेगा.. सोचा था एक न एक दिन जरुर उस शख्स से मुलाकात करुंगा जो हिन्दी साहित्य का आधुनिक देवता थे..जिनकी कलम में वो धार थी जो आजादी के दौर में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले वीरों की तलवार में होती थी…जिनकी लेखनी में शोषित वर्गों और पिछड़ी जातियों की आवाज होती थी.. वह हिन्दी का महानायक अब हमारे बीच नहीं रहे…। हम बात कर रहे हैं हिन्दी साहित्य की प्रख्यात पत्रिका हंस के संपादक राजेंद्र यादव की ….। यही वो शख्स थे जिन्होंने नई कहानी नाम से नई विधा की शुरुआत की थी… राजेंद्र यादव ही वे साहित्यकार थे जिन्होंने मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा संपादित हंस पत्रिका के कारवां को आगे बढ़ाया….। 1953 से बंद पड़ी हंस पत्रिका का पुर्नप्रकाशन मुंशी प्रेमचंद्र की जयंती के अवसर पर 31 जुलाई 1986 को प्रारम्भ किया था…। हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले राजेंद्र यादव ही वे साहित्यकार थे जिनकी इज्जत उनके विरोधी भी करते थे..। विरोधी शब्द मैं इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूं कि राजेंद्र यादव भी अपने जीवन में विवादों से ज्यादा दूर नहीं रह सके..। कुछ एक मामलों में जैसे ज्योति कुमारी केस में उन्हें कई लोगों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा । लेकिन उनकी हिम्मत तो देखिए बीमारी के बावजूद जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर भी उन्होंने किसी से हार नहीं मानी । राजेंद्र यादव ने अपने आलोचकों को जवाब देते कहा कहा था कि ….बहुत ही अफ़सोस है मुझे कि वेब की दुनिया में मेरे और ज्योति कुमारी के संबंध को लेकर एक से एक कयास लगाये जा रहे हैं … मैंने हमेशा ज्योति कुमारी को अपनी बेटी की तरह माना है। इस सम्बन्ध में कुछ लोग गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी कर रहे है। मै उनकी भर्त्सना करता...