- हिंदी साहित्य का इतिहास/आधुनिक काल गद्य खंड प्रकरण १ हिंदी में गद्य
- आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास
- हिंदी गद्य साहित्य (MIL)/हिंदी गद्य का उद्भव और विकास
Download: हिंदी गद्य का वास्तविक इतिहास कब से आरंभ हुआ
Size: 68.41 MB
हिंदी साहित्य का इतिहास/आधुनिक काल गद्य खंड प्रकरण १ हिंदी में गद्य
[ संवत् १८६० के लगभग हिंदी गद्य का प्रवर्तन तो हुआ पर उसके साहित्य की अखंड परंपरा उस समय से नहीं चली। इधर उधर दो चार पुस्तके अनगढ़ [ "गोरा बादल की कथा गुरु के बस, सरस्वती के मेहरबानगी से, पूरन भई। तिस वास्ते गुरु कूँ व सरस्वती कूँ नमस्कार करता हूँ। ये कथा सोलः से असी के साल में फागुन सुदी पूनम के रोज बनाई। ये कथा में दो रस है––वीररस व शृंगाररस है, सो कथा मोरछड़ो नाँव गाँव का रहनेवाला कवेसर। उस गाँव के लोग भोहोत सुखी हे। घर घर में आनंद होता है, कोई घर में फकीर दीखता नहीं।" संवत् १८६० और १९१५ के बीच का काल गद्य-रचना की दृष्टि से प्रायः शून्य ही मिलता है। संवत् १९१४ के बलवे के पीछे ही हिंदी-गद्य साहित्य की परंपरा अच्छी तरह चली। संवत् १८६० के लगभग हिंदी-गद्य की जो प्रतिष्ठा हुई उसका उस समय यदि किसी ने लाभ उठाया तो ईसाई धर्म-प्रचारको ने, जिन्हें अपने मत को साधारण जनता के बीच फैलाना था। सिरामपुर उस समय पादरियों का प्रधान अड्डा था। विलियम कैरे (william Carey) तथा और कई अँगरेज पादरियों के उद्योग से इजील का अनुवाद उत्तर भारत की कई भाषायों में हुआ| कहा जाता है कि बाइबिल का हिंदी अनुवाद स्वयं केरे साहब ने किया। संवत् १८६६ में उन्होंने "नए धर्म नियम" का हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया और संवत् १८७५ मे समग्र ईसाई-धर्म पुस्तक का अनुवाद पूरा हुआ। इस संबंध में ध्यान देने की बात यह है कि इन ईसाई अनुवादकों ने सदासुख और लल्लूलाल की विशुद्ध भाषा को ही आदर्श माना, उर्दूपन को बिलकुल दूर रखा। इससे यही सूचित होता है कि फारसी अरबी मिली भाषा से साधारण जनता का लगाव नहीं था जिसके बीच मत का प्रचार करना था। जिस भाषा में साधारण हिंदू जनता अपने कथा-पुराण कहती सुनती आती थी उसी भाषा [ ईसाइयो ने अपनी धर्मपुस्तक ...
आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास
• (1) पूर्व भारतेंदु युग(प्राचीन युग): 13 वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक. • (2) भारतेंदु युग(नवजागरण काल): 1868ईस्वी से 1900 ईस्वी तक। • (3) द्विवेदी युग: 1900 ईस्वी से 1922 ईस्वी तक. • (4) शुक्ल युग(छायावादी युग): 1922 ईस्वी से 1938 ईस्वी तक • (5) शुक्लोत्तर युग(छायावादोत्तर युग): 1938 ईस्वी से 1947 तक। • (6) स्वातंत्र्योत्तर युग: 1947 ईस्वी से अब तक। अनुक्रम • 1 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य • 2 भारतेंदु पूर्व युग • 3 भारतेंदु युग • 4 द्विवेदी युग • 5 शुक्ल युग • 6 शुक्लोत्तर युग • 7 इसे भी देखें • 8 बाहरी कड़ियाँ 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य [ ] हिन्दी गद्य के उद्भव को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान हिन्दी गद्य की शुरुआत 19वीं सदी से ही मानते हैं जबकि कुछ अन्य हिन्दी गद्य की परम्परा को 11वीं-12वीं सदी तक ले जाते हैं। आधुनिक काल से पूर्व हिन्दी गद्य की निम्न परम्पराएं मिलती हैं- • (1) राजस्थानी में हिन्दी गद्य:-राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम रुप 10 वीं शताब्दी के दान पत्रों, पट्टे-परवानों, टीकाओं व अनुवाद ग्रंथों में देखने को मिलता है।आराधना, अतियार, बाल शिक्षा, तत्त्व विचार, धनपाल कथा आदि रचनाओं में राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. • (2) मैथिली में हिन्दी गद्य:-कालक्रम की दृष्टि से राजस्थानी के बाद मैथिली में हिन्दी गद्य के प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. मैथिली में प्राचीन हिन्दी गद्य ग्रन्थ ज्योतिरिश्वर की रचना वर्ण रत्नाकर है। इसका रचना काल 1324 ईस्वी सन् है। • (3) ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य:- ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य की प्राचीनतम रचनाएँ 1513 ईस्वी से पूर्व की प्रतीत नहीं होती. इनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ कृत "श्रृंगार रस मंडन", "यमुनाष्टाक", " ...
हिंदी गद्य साहित्य (MIL)/हिंदी गद्य का उद्भव और विकास
हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेज़ी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढ़ा और जीवन में बदलाव आने लगा। भावना के साथ-साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली। पद्य के साथ- साथ गद्य का भी विकास हुआ और छापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नयी क्रांति हुई। सामग्री • १ आधुनिक हिन्दी विधाओं में गद्य का विकास • १.१ भारतेंदु पूर्व युग • १.२ भारतेंदु युग • १.३ द्विवेदी युग • १.४ रामचंद्र शुक्ल एवं प्रेमचंद युग • १.५ अद्यतन काल आधुनिक हिन्दी विधाओं में गद्य का विकास [ ] आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे देश में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है। १. भारतेंदु पूर्व युग - १८०० ईस्वी से १८५० ईस्वी तक २. भारतेंदु युग - १८५० ईस्वी से १९०० ईस्वी तक ३. द्विवेदी युग - १९०० ईस्वी से १९२० ईस्वी तक ४. रामचंद्र शुक्ल व प्रेमचंद युग - १९२० ईस्वी से १९३६ ईस्वी तक ५. अद्यतन युग - १९३६ ईस्वी से आजतक भारतेंदु पूर्व युग [ ] हिन्दी में गद्य का विकास 19वीं शताब्दी के आसपास हुआ। इस विकास में कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इस कॉलेज के दो विद्वानों लल्लूलाल जी तथा सदल मिश्र ने गिलक्राइस्ट के निर्देशन में क्रमश: प्रेमसागर तथा नासिकेतोपाख्यान नामक पुस्तकें तैयार कीं। इ...