हरि ओम तत्सत

  1. योगोदय (Yogodaya): क्या "राम नाम सत्" और "ॐ तत्सत्" दोनों का अर्थ एक ही है ? .....
  2. Hari Om Tatsat
  3. हरि ओम तत्सत् जय गुरु दत्त धुन के जाप से भक्तिमय बना वातावरण


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योगोदय (Yogodaya): क्या "राम नाम सत्" और "ॐ तत्सत्" दोनों का अर्थ एक ही है ? .....

क्या "राम नाम सत्" और "ॐ तत्सत्" दोनों का अर्थ एक ही है ? ..... -------------------------------------------------------------------- :"ॐ तत्सत्" शब्द परमात्मा की ओर किया गया एक निर्देश है| इस का प्रयोग गीता के हरेक अध्याय के अंत में किया गया है ....."ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुन ... ." इस शब्द का विशेष प्रयोग भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के सत्रहवें अध्याय के २३ वें श्लोक में किया है ..... ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः| ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा||१७:२३|| इस का भावार्थ है ..... सृष्टि के आरम्भ से "ॐ" (परम-ब्रह्म), "तत्‌" (वह), "सत्‌" (शाश्वत) इस प्रकार से ब्रह्म को उच्चारण के रूप में तीन प्रकार का माना जाता है, और इन तीनों शब्दों का प्रयोग यज्ञ करते समय ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करके ब्रह्म को संतुष्ट करने के लिये किया जाता है| . ईसाई मत में इसी की नक़ल कर के "Father Son and the Holy Ghost" की परिकल्पना की गयी है| गहराई से यदि चिन्तन किया जाए तो "Father Son and the Holy Ghost" का अर्थ भी वही निकलता है जो "ॐ तत्सत्" का अर्थ है| . कल ६ नवम्बर को मैनें राम नाम के ऊपर एक लिखा था जिसमें वह कारण बताया था कि मृतक की शवयात्रा में "राम नाम सत्" का उद्घोष क्यों करते हैं| उस लेख की टिप्पणी में भुवनेश्वर के प्रख्यात वैदिक विद्वान् माननीय श्री अरुण उपाध्याय जी ने बड़े संक्षेप में एक बड़ी ज्ञान की बात कह कर सप्रमाण सिद्ध कर दिया कि "राम नाम सत्" और "ॐ तत्सत्" इन दोनों का अर्थ भी एक ही है, अतः यह लेख मुझे लिखना पड़ रहा है| . जब प्राण की गति होती है, जैसे शरीर से बाहर निकला, तो वह "ॐ...

Hari Om Tatsat

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हरि ओम तत्सत् जय गुरु दत्त धुन के जाप से भक्तिमय बना वातावरण

लोक कल्याण के लिए करीबी गांव समतैहण में आयोजित धार्मिक कार्यक्रम वीरवार को भक्तिमय वातावरण में संपन्न हो गया। इस दौरान भक्तों को इस वर्ष के दौरान अच्छे कार्यो से समाज को संस्कारवान बनाने में योगदान देने की प्रेरणा दी गई। कार्यक्रम में त्रिमूर्ति महालक्ष्मी संस्थान समतैहण के नीम वाले बाबा पवित्राचार्य जी महाराज ने कहा कि सभी धर्म मर्यादाओं से जुड़े रहने के साथ-साथ लगातार संतजनों के साथ संपर्क बनाए रखें, ताकि समाज को नई दिश दी जा सके। उन्होंने कहा कि प्रभु को मानने वाले प्राणी ही दिव्य दृष्टि प्राप्त कर सकता है। बाबा भरथरी मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में बलबीर सिंह तथा महेंद्र सिंह की देखरेख में सुखवंत सिंह भसीन, चरनजीत बिल्लू ने संगीतमय भजनों से यह बताने का प्रयास किया कि मानव जीवन परमात्मा की सबसे बड़ी देन है। इसलिए मानव शरीर के माध्यम से सभी को जीवन में ऐसे काम करने चाहिए जिससे समाज सहित मानवता का कल्याण हो सके। कार्यक्रम में दूर-दराज से आए पूज्य श्री के शिष्यों ने बाबा जी के प्रवचन सुनकर दिव्य मंत्र 'हरि ओम तत्सत जय गुरु दत्त' धुन का जाप किया। इस मौके पर जीत राम, जरनैल सिंह, रछपाल सिंह राणा, अनिल कुमार, संजीव कुमार, दवेंद्र सिंह, वेद प्रकाश, सीता राम, कैप्टन संतोख सिंह, दर्शन, विजय कुमार ऊना, राजेंद्र सिंह, लेख राज व दवेंद्र चौधरी सहित बड़ी संख्या में लोगों ने बाबा जी के प्रवचन सुनकर वर्ष पर सेवा कार्यो को जारी रखने का संकल्प दोहराया।