हरतालिका रंगोली

  1. पोंगल
  2. Hartalika Teej 2022: इस शुभ संयोग में मनाई जाएगी हरितालिका तीज, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
  3. हरतालिका
  4. हरतालिकेची आरती
  5. रंगोली


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पोंगल

इस पर्व के महत्व का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह चार दिनों तक चलता है। हर दिन के पोंगल का अलग अलग नाम होता है। यह जनवरी से शुरू होता है। पहली पोंगल को भोगी पोंगल कहते हैं जो देवराज दूसरी पोंगल को सूर्य पोंगल कहते हैं। यह भगवान सूर्य को निवेदित होता है। इसदिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है जो मिट्टी के बर्तन में नये धान से तैयार चावल, मूंग दाल और गुड से बनती है। पोंगल तैयार होनेके बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में यह पोंगल व गन्ना अर्पण किया जाता है और फसल देने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। तमिल मान्यताओं के अनुसार माट्टु भगवान शंकर काबैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है। इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं। उनके सिंगों में तेल लगाते हैं एवं अन्य प्रकार से बैलों को सजाते है। बालों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है। बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ों की भी पूजा की जाती है। कही कहीं लोग इसे कनु पोंगल के नाम से भी जानते हैं, जिसमें बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं। चार दिनों के इस त्यौहार के अंतिम दिन कानुम पोंगल मनाया जाता है जिसे तिरूवल्लूर के नाम से भी लोग पुकारते हैं। इस दिन घर को सजाया जाता है। आम के पलल्व और नारियल के पत्ते से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है। महिलाएं इस दिन घर के मुख्य द्वारा पर कोलम यानी रंगोली बनाती हैं। इसदिन पोंगल बहुत ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है लोग नये वस्त्र पहनते है और दूसरे के यहां पोंगल और मिठाई वयन...

Hartalika Teej 2022: इस शुभ संयोग में मनाई जाएगी हरितालिका तीज, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Hartalika Teej Vrat 2022: शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि हरतालिका तीज को सबसे बड़ी तीज माना जाता है. हरतालिका तीज में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करने पर घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. हरतालिका तीज से पहले हरियाली और कजरी तीज मनाया जाता है, लेकिन इन दोनों से बड़ी हरतालिका तीज को माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार हरतालिका तीज को भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. वहीं इस बार यह तिथि 30 अगस्त 2022 को पड़ रही है. ऐसी मान्यता है कि हरतालिका तीज (hartalika teej) के दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. हरतालिका तीज के दिन व्रती महिलाएं निर्जला और निराहार व्रत रखकर पति के लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं के अलावा कुवांरी कन्याएं भी रखती हैं. ऐसा माना जाता है कि कुवारी कन्याएं ये व्रत करती है तो इसके पुण्य प्रभाव से उन्हें मनचाहा वर मिलता है. हरतालिका तीज 2022 व्रत का शुभ मुहूर्त पंचाग के अनुसार इस बार हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाएगा. इस बार हरतालिका तीज 30 अगस्त 2022 को पड़ रहा है. हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त के दिन सुबह 6 बजकर 30 मिनट से लेकर 8 बजकर 33 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहने वाला है. वहीं इस दिन शाम 6 बजकर 33 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक प्रदोष काल रहने वाला है. हरतालिका तीज 2022 पूजा विधि हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के साथ श्रीगणेश जी की भी पूजा की जाती है. इनकी पूजा करने के लिए आप सबसे पहले इनकी मिट्टी से तीनों की प्रतिमा बनाएं. इसके बाद भगवान गणेश का तिलक करके उन्हें दूर्वा अर्पित करें. इ...

हरतालिका

भाद्रपद महिन्यात शुक्ल पक्षाच्या तृतीयेस हे व्रत करण्यात येते.अखंड सौभाग्य रहावे यासाठी हरतालिकेचे व्रत केले जाते. ‘हर’ हे भगवान शंकराचेच नाव आहे. शंकराची आराधना करण्यात येत असल्याने या व्रतास हरतालिका म्हणून संबोधण्यात येते. ‘हरी’ हे भगवान विष्णूचे नाव आहे. हरतालिकेसंबंधी पौराणिक कथाही आहेत. पार्वतीने एकदा आपल्या सख्यांना सोबत घेऊन हे व्रत केले होते. कालांतराने हे हरतालिका व्रत म्हणून प्रसिद्ध झाले. या व्रतासाठी हरतालिका किवा हरितालिका दोन्ही शब्दांचा उपयोग करण्यात येतो. ग्रंथामध्येही दोन्ही शब्द आढळतात. हरतालिका व्रत सर्व पाप व कौटुंबिक चिंतांना दूर करणारे आहे. शास्त्रात या व्रताबाबत ‘हरित पापान सांसारिकान क्लेशाञ्च’, अर्थात हे व्रत सर्वप्रकारचे दु:ख, कलह, व पापांपासून मुक्ती देते, असे म्हटले आहे. शिव-पार्वतीच्या आराधनेचे हे सौभाग्य व्रत फक्त महिलांसाठी आहे. निर्जला एकादशीप्रमाणेच हरतालिका व्रताच्या दिवशीही उपवास पाळण्यात येतो. पार्वतीने भगवान शंकराशी लग्न करण्यासाठी हे व्रत केले होते. पार्वतीच्या इच्छेची पूर्तीही याच दिवशी झाली होती.पतीप्रती आपली भक्ती व इच्छित पती मिळावा यासाठी या व्रताचे पालन करण्यात येते. इच्छेनुसार पती मिळावा यासाठी मुलीही या व्रताचे पालन करतात. व्रतात आठ प्रहर उपवास केल्यानंतर अन्नसेवन करण्यात येते. व्रतापासून मिळणार्‍या फळाचे वर्णन ‘अवैधव्यकारा स्त्रीणा पुत्र-पौत्र प्रर्वधिनी’ असे करण्यात आले आहे. अर्थात जीवनात सुख लाभण्यासाठी व्रताचे विधिपूर्वक पालन करण्यास सांगण्यात आले आहे. भविष्योत्तर पुराणानुसार हरतालिका व्रताच्या दिवशी भाद्रपद महिन्यातील शुक्ल पक्षाच्या तृतीयेस ‘हस्तगौरी, ‘हरिकाली व ‘कोटेश्वरी’ व्रताचेही पालन करण्यात येते. दुसर्‍या शब्दात सा...

हरतालिकेची आरती

Hartalika Aarti in Marathi आरती संग्रह या लेखाच्या माध्यमातून आज आपण हरतालिकेच्या दिवशी देवी पार्वती यांना अनुसरून पठन करण्यात येणाऱ्या देवी हरतालिकेच्या आरतीचे लिखाण करणार आहोत. आपल्या हरतालिकेची आरती – Hartalika Aarti in Marathi Hartalika Aarti जय देवी हरितालिके। सखी पार्वती अंबिके। आरती ओवाळीतें। ज्ञानदीपकळिके।। धृ.।। हरअर्धांगी वससी। जासी यज्ञा माहेरासी। तेथें अपमान पावसी। यज्ञकुंडींत गुप्त होसी। जय. ।।1।। रिघसी हिमाद्रीच्या पोटी। कन्या होसी तू गोमटी। उग्र तपश्चर्या मोठी। आचरसी उठाउठी ।।जय. ।।2।। तापपंचाग्निसाधनें। धूम्रपानें अधोवदनें।केली बहु उपोषणें। शंभु भ्रताराकारणें। ।।जय.।।3।। लीला दाखविसी दृष्टी। हें व्रत करिसी लोकांसाठी। पुन्हां वरिसी धूर्जटी। मज रक्षावें संकटीं।। जय.।। 4।। काय वर्ण तव गुण। अल्पमति नारायण। मातें दाखवीं चरण। चुकवावें जन्म मरण। जय. देवी।।5।। हिंदू धार्मिक कथानुसार हिंदू धर्मातील महिला आणि कुमारीकांसाठी सांगण्यात आलेले सर्वात पवित्र आणि महत्वपूर्ण व्रत म्हणजे हरतालिका हे व्रत होय. या व्रताचे विशेष असे महत्व असल्याने महिला व कुमारिका मोठ्या संख्येने हे व्रत दरवर्षी करीत असतात. आपले सौभाग्य अखंड रहावे या करिता हे हरतालिका व्रत केलं जाते. हिंदू धार्मिक पंचांगानुसार भाद्रपद महिन्यातील शुक्ल पक्ष तृतीयेच्या दिवशी हे व्रत केले जाते. हरतालिकेची पौराणिक कथा – Hartalika Vrat Katha in Marathi या व्रताबद्दल पौराणिक कथा देखील प्रसिद्ध आहे. या व्रतानिमित्ताने महिला व कुमारिका भगवान शंकराची आराधना करत असतात. हरतालिका या नावातील हरि म्हणजे भगवान विष्णू होय. या दिवसाचे विशेष महत्व सांगायचं म्हणजे देवी पार्वती यांनी भगवान शंकर यांना प्रसन्न करण्यासाठी आपल्या सख्या...

अपने जीवन साथी की आयु एवं उत्तम स्वास्थ्य के लिए विवाहिता स्त्रियां इस व्रत को करती हैं तथा कन्याएं अपने लिए एक उत्तम एवं मनचाहे वर की कामना हेतु इस व्रत को रखती हैं. देवी पार्वती एवं भगवान शिव का पूजन इस दिन पर विशेष रुप से किया जाता है. जिस प्रकार देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने वर रुप में प्राप्त किया उसी प्रकार सभी को ये सुख प्राप्त हो सके इसलिए स्त्रियां इस व्रत को श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ रखती हैं. इस व्रत को निराहार रुप में संपन्न किया जाता है. हरितालिका तीज पूजा मुहूर्त समय हरितालिका तीज मंगलवार, 19 अगस्त, 2023 को मनाया जाएगा. तृतीया तिथि प्रारम्भ - 18 अगस्त, 2023 को 20:03 तृतीया तिथि समाप्त - 19 अगस्त, 2023 को 22:20 प्रातःकाल हरितालिका पूजा मुहूर्त - 05:58 से 08:31 तक हरतालिका पूजन विधि फूल, गीली मिट्टी अथवा बालू रेत, केले के पत्ते, बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, जनेउ, वस्त्र, समस्त सुहाग सामग्री, घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, चन्दन, कलावा, नारियल, अक्षत, पान, कलश, पंचामृत, भोग सामग्री इत्यादि वस्तुओं को पूजा हेतु उपयोग में लाया जाता है. हरतालिका पूजा में भगवान, देवी पार्वती, श्री गणेश, कार्तिकेय जी के सतह समस्त शिव परिवार को पूजा जाता है. इस में इनकी प्रतिमा अथवा चित्र इत्यादि को स्थापित करने के बाद पूजन आरंभ होता है. कुछ स्थानोम पर मिट्टी से मूर्तियां भी निर्मित की जाती हैं. रंगोली बनाते हैं तथा मंदिर में कलश स्थापित करते हैं जिस पर नारियल रखा जाता है कलश को कलावे से बांधा जाता है और अक्षत अर्पित करके कलश पूजन होता है इसके पश्चात भगवान का पूजन आरंभ होता है. समस्त सामग्री को भगवान शिव एवं देवी पार्वती को अर्पित किया जाता है देवी को सुहाग सा...

रंगोली

रंगोली धार्मिक, सांस्कृतिक आस्थाओं की प्रतीक रही है। इसको आध्यात्मिक प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। विभिन्न प्रांतों की रंगोली रंगोली एक अलंकरण कला है जिसका भारत के अलग अलग प्रांतों में अलग अलग नाम है। रंगोली के प्रमुख तत्त्व रंगोली भारत के किसी भी प्रांत की हो, वह लोक कला है, अतः इसके तत्व भी लोक से लिए गए हैं और सामान्य हैं। रंगोली का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व उत्सवधर्मिता है। इसके लिए शुभ प्रतीकों का चयन किया जाता है। इस प्रकार के प्रतीक पीढ़ियों से उसी रूप में बनाए जाते रहे हैं - और इन प्रतीकों का बनाना आवश्यक होता है। नई पीढी पारंपरिक रूप से इस कला को सीखती है और इस प्रकार अपने-अपने परिवार की परंपरा को कायम रखती है। रंगोली की रचना रंगोली दो प्रकार से बनाई जाती है। सूखी और गीली। दोनों में एक मुक्तहस्त से और दूसरी बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाती है। बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाने वाली रंगोली के लिए पहले सफेद रंग से जमीन पर किसी विशेष आकार में निश्चित बिंदु बनाए जाते हैं फिर उन बिंदुओं को मिलाते हुए एक सुंदर आकृति आकार ले लेती है। आकृति बनाने के बाद उसमें मनचाहे रंग भरे जाते हैं। मुक्तहस्त रंगोली में सीधे जमीन पर ही आकृति बनाई जाती है। पानी और रंगोली आजकल रंगोली के लिए कलाकारों ने पानी को भी माध्यम बना लिया है। इसके लिए एक टब या टैंक में पानी को लेकर स्थिर व समतल क्षेत्र में पानी को डाल दिया जाता है। कोशिश यह की जाती है कि पानी को हवा या किसी अन्य तरह के संवेग से वास्ता न पड़े। इसके बाद चारकोल के पावडर को छिड़क दिया जाता है। इस पर कलाकार अन्य सामग्रियों के साथ रंगोली सजाते हैं। इस तरह की रंगोली भव्य नजर आती है। विश्वास और मान्यताएँ यह कलात्मकता और लालित्य आज भी रू...