ईदगाह कहानी हिंदी

  1. ईदगाह कहानी 10th class ।by motivational speaker Usman Gani
  2. Chapter 1 ईदगाह
  3. ईदगाह कहानी
  4. ईदगाह कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?
  5. ईदगाह कहानी हिंदी,ईदगाह कहानी का सार(Idgah Kahani ka Saransh,idgah kahani mein munshi premchand samaj ko kya sandesh dena chahte hain)
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  7. ईदगाह
  8. ईदगाह प्रेमचन्द की कहानिया
  9. ईद मुबारक! इस ईद पर पढ़िए प्रेमचंद की कहानी


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ईदगाह कहानी 10th class ।by motivational speaker Usman Gani

ईदगाह पहुंचकर सभी लोगों ने नमाज अदा किए और नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे को मुबारकबाद देने लगे एक दूसरे को गले मिलने लगे। इसके बाद बच्चों ने मिठाई की दुकान पर आकर रंग-बिरंगे मिठाइयां खाने लगे लेकिन हामिद ललचाता रहा। क्या करें क्या खरीदें उसे समझ में नहीं आ रहा था। बच्चे आगे बढ़े और रंग बिरंगे खिलौने खरीदे। हामिद सब को छोड़कर आगे बढ़ता गया और एक लोहे की दुकान पर चला गया जहां उसकी जरूरत का कोई भी सामान ना था।लेकिन हामिद जी तीन पैसे में एक चिमटा खरीद लेता है। यह चिमटा को अगर कंधे पर रख लिया तो यह हमारी बंदूक हो गई यह मंजीरे तथा फकीरों की चिमटा है। अगर एक चिमटा तुम्हारे खिलौने को मार दे तो इसका जान निकल जाए। मेरे चिमटे का कोई बाल बांका नहीं कर सकता फिर बच्चे चिमटे के कायल हो गए सबों ने हामिद के चिमटे हाथ में छुए। हामिद ने भी समूह के खिलौने को बारी-बारी से छुआ। इस तरह से वह सभी बच्चों के खिलौने से खेल लिया बच्चे गांव आकर अपने अपने खिलौने से खेलने लगे सभी के खिलौने कुछ ही देर में टूट फूट गए। हामिद को देखकर दादी अमीना गोद में उठा कर गले लगा लेती है। सहसा हामिद के हाथ में चिमटा गिर जाता है। वह चौक जाती है चिमटा कहां से आया। दादी गुस्से में आ जाती हैं।हामिद अब ने कहा दादी तुम्हारा हाथ अब नहीं जलेगा। दादी का क्रोध सनेह में बदल जाता है।। वह सोचने लगती है।हां मिल में कितना त्याग सद्भाव और विवेक है जो बच्चे को मिठाई खाते खिलौने से खेलते देख ललचाया होगा लेकिन सभी इच्छाओं को दबाकर वह अपनी दादी का ख्याल रखा। उत्तर मेरा बच्चा बचपन से अभावग्रस्त हो तो ओह वयस्क की तरह सोचने लगता है। हमीद ने सोचा मिठाई से केवल थोड़ी देर के लिए मजा आता है। जो पल भर के लिए होता है। खिलौने भी मिट्टी के बने हैं ज...

Chapter 1 ईदगाह

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ईदगाह कहानी

idgah kahani by premchand रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर,कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है,खेतों में कुछ अजीब रौनक है,आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो,कितना प्यारा,कितना शीतल है,यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है,पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं,उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जायगी। तीन कोस का पैदल रास्ता,फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना,दोपहर के पहले लौटना असम्भव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है,वह भी दोपहर तक,किसी ने वह भी नहीं,लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे,आज वह आ गयी। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध ओर शक्कर घर में है या नहीं,इनकी बला से,ये तो सेवेयाँ खायेंगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी आँखें बदल लें,तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाय। उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना खजाना निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद गिनता है,एक-दो,दस,-बारह,उसके पास बारह पैसे हैं। मोहसिन के पास एक,दो,तीन,आठ,नौ,पंद्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनती पैसों में अनगिनती चीजें लायेंगें- खिलौने,मिठाइयाँ,बिगुल,गेंद और जाने क्या...

ईदगाह कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?

‘ईदगाह‘ प्रेमचंद द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी का प्रमुख पात्र हामिद है। उसके माता-पिता नहीं हैं, दादी माँ ही उसका पालन-पोषण करती हैं। ईद के मेले में हामिद अपने दोस्तों के साथ जाता है | उसके सभी दोस्त अपनी-अपनी पसंद के खिलौने खरीदते हैं, लेकिन हामिद अपने दादी के लिए चिमटा खरीदता है | क्योंकि चूल्हे पर खाना बनाते समय दादी का हाथ जल जाता था। हामिद की चतुराई से प्रभावित होकर उसके मित्र उसके तीन पैसे के चिमटे को अपने खिलौनों से श्रेष्ठ मानते हैं । ईदगाह कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को प्रत्येक कार्य सोच-समझकर करना चाहिए । सामर्थ्य के अनुसार काम करने पर व्यक्ति प्रशंसा का पात्र बनता है । इस कहानी का उद्देश्य यह भी बताना है की “अपनों के प्रति प्रेम और त्याग की भावना होनी चाहिए” | Post navigation

ईदगाह कहानी हिंदी,ईदगाह कहानी का सार(Idgah Kahani ka Saransh,idgah kahani mein munshi premchand samaj ko kya sandesh dena chahte hain)

ईदगाह कहानी का सार (Idgah Kahani ka Saransh,idgah kahani mein munshi premchand samaj ko kya sandesh dena chahte hain) दोस्तों इस लेख में हम आपके लिए लेकर आए हैं मुंशी प्रेमचंद की कालजई रचना ईदगाह। ईदगाह कहानी का सारांश और संपूर्ण ईदगाह कहानी दोनों ही आपको इसी पेज पर पढ़ने को मिल जाएगी । ईदगाह कहानी एक गरीब लड़के हामिद की है। हामिद अपनी दादी अमीना के साथ रहता है और मुश्किल से जीवन यापन चल रहा है। जब हामिद के सभी दोस्त मेले से अपने लिए खिलौने लाते है तब हामिद बड़ो से व्यहवार कर अपनी इक्षाओ को किनारे कर अपनी दादी के लिए चिमटा लेता है और अपने सभी दोस्तों में भी चिमटे की खूब बड़ाई करता है। जब हामिद घर जाकर अपनी दादी को चिमटा दिखता है और बोलता है कि खाना पकाने में आपकी उंगलियां जल जाती थी इसलिए मैं आपके लिए चिमटा लाया हूं तो बूढ़ी अमीना भी बच्चों की तरह व्यवहार कर रोने लगती है और अपना सम्पूर्ण वात्सल्य हामिद पर लुटा देती है। ईदगाह कहानी हिंदी रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहाव प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना, दोपहर के पहले लोटना असम्भव है। लड़के सबसे ज्यादा प...

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मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह, Munshi Premchand Ki Kahani Idgah Hindi Short Story, Idgah by Premchand- रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद आज ईद आई। कितनी सुहानी और रंगीन सुब्ह है। बच्चे की तरह पुर-तबस्सुम दरख़्तों पर कुछ अजीब हरियावल है। खेतों में कुछ अजीब रौनक़ है। आसमान पर कुछ अजीब फ़िज़ा है। आज का आफ़ताब देख कितना प्यारा है गोया दुनिया को ईद की ख़ुशी पर मुबारकबाद दे रहा है। गांव में कितनी चहल पहल है। ईदगाह जाने की धूम है। किसी के कुरते में बटन नहीं हैं तो सुई-तागा लेने दौड़े जा रहा है। किसी के जूते सख़्त हो गए हैं। उसे तेल और पानी से नर्म कर रहा है। जल्दी जल्दी बैलों को सानी पानी दे दें। ईदगाह से लौटते लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता फिर सैंकड़ों रिश्ते क़राबत वालों से मिलना मिलाना। दोपहर से पहले लौटना ग़ैर मुम्किन है। लड़के सब से ज़्यादा ख़ुश हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा, वो भी दोपहर तक। किसी ने वो भी नहीं लेकिन ईदगाह जाने की ख़ुशी इनका हिस्सा है। रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे, बच्चों के लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे आज वो आ गई। अब जल्दी पड़ी हुई है कि ईदगाह क्यूँ नहीं चलते। उन्हें घर की फ़िक़्रों से क्या वास्ता? सिवइयों के लिए घर में दूध और शकर मेवे हैं या नहीं, उसकी उन्हें क्या फ़िक्र? वो क्या जानें अब्बा क्यूँ बदहवास गांव के महाजन चौधरी क़ासिम अली के घर दौड़े जा रहे हैं, उनकी अपनी जेबों में तो क़ारून का ख़ज़ाना रक्खा हुआ है। बार बार जेब से ख़ज़ाना निकाल कर गिनते हैं। दोस्तों को दिखाते हैं और ख़ुश हो कर रख लेते हैं। इन ही दो चार पैसों में दुनिया की सात नेअमतें लाएंगे। खिलौने और मिठाईयाँ और बगुल और ख़ुदा जाने क्या क्या। सब से ज़्यादा ख़ुश है हामिद। वो चार साल का ग़रीब ख़ूबसूरत बच्...

ईदगाह

लेखक मूल शीर्षक ईदगाह मुख्य पात्र हामिद, अमीना, महमूद, मोहसिन, नूरे, सम्मी कथानक हामिद के मनोभावों और परिस्थितियों का सूक्ष्म चित्रण प्रकाशक दिल्ली पुस्तक सदन प्रकाशन तिथि जनवरी 01, 2008 978-81-88032-23 देश पृष्ठ: 264 भाषा शैली सरल, आदर्शोन्मुख यथार्थवाद विषय बाल मनोवैज्ञानिक विधा कहानी भाग एक विशेष ईदगाह, ईद की सामूहिक नमाज़ पढ़ने का विशेष स्थान टिप्पणी प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास दोनों ही लिखे हैं। वे भारत के श्रेष्ठतम कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद लड़के सबसे ज़्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है— 'तुम डरना नहीं अम्माँ, मैं सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल न डरना।' अमीना का दिल कचोट रहा है। गाँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं। हामिद का बाप अमीना के सिवा और कौन है! उसे कैसे अकेले मेले जाने दे? उस भीड़-भाड़ में बच्चा कहीं खो जाय तो क्या हो? नहीं, अमीना उसे यों न जाने देगी। नन्ही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे? पैर में छाले पड़ जायेंगे। जूते भी तो नहीं हैं। वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेती, लेकिन यहाँ सेवैयाँ कौन पकायेगा? पैसे होते तो लौटते-लौटते सब सामग्री जमा करके चटपट बना लेती। यहाँ तो घंटों चीज़ें जमा करते लगेंगे। माँगे का ही तो भरोसा ठहरा। उस दिन फहीमन के कपड़े सिले थे। आठ आने पैसे मिले थे।...

ईदगाह प्रेमचन्द की कहानिया

ईदगाह – मुंशी प्रेमचन्द की अमर कहानी प्रेमचन्द की कहानिया अपने आप में समाज को एक संदेश देती है और उनकी यही कहानिया समाज को सच्चे पथ का रास्ता दिखलाती है जिनके कारण ही मुंशी प्रेमचन्द को “उपन्यास सम्राट” भी कहा जाता है तो आईये मुंशी प्रेमचन्द | Munshi Premchand द्वारा लिखी गयी कहानी ईदगाह | Idgah को पढ़ते है. हर कोई बच्चा, बुढा, जवान, महिला सभी ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे है सभी बच्चे अपने पैसे बार बार गिनकर खुश हो रहे है आखिर खुश भी क्यू न हो किसी के पास 10 पैसे तो किसी के पास 20 पैसे लेकिन इन पैसो से मानो उनके सपनो के पंख लग आये हो आखिर आज ही तो वो मौका है जब ईदगाह के मेले में सभी अपने मनपसंद से जो खिलौने, मिठाईया और न जाने क्या क्या खरीदने है जो सोचकर ही सभी अपने मन में खुश हो रहे है. हामिद जो की शरीर से बहुत ही दुबला पतला लड़का था जिसकी पिता की मृत्यु हैजे से हो गयी थी जबकि उसकी अम्मी भी न जाने किस पीलिये की रोग की वजह से मर गयी थी और इस तरह हामिद के लालन पालन का पूरा भार उसकी दादी पर आ गया था जिसकी वजह से उसकी दादी कमरे के एक कोने में बैठकर सुबह से ही रो रही थी और सोच रही थी की आज अगर उसका बेटा जिन्दा होता तो क्या घर में सेवईया नही बनती या उसके पोते हामिद को वह मेले नही दिखाने ले जाता, यही सब बाते थी जो कही न कही हामिद की दादी को अंदर ही अंदर दिल पर बैठती जा रही थी आखिर वह चाहकर भी तो कुछ नही कर सकती थी क्यूकी घर में खाने के लिए एक दाना भी तो न था. लेकिन इतने में हामिद अपने दादी के पास आता है और कहता है की दादी आप डरना नही मै जल्द ही मेले से आ जाऊंगा और हा मै ही सबसे पहले मेले से आऊंगा, लेकिन उसकी दादी तो इसी चिंता में डूबी हुई थी की आखिर गाव के सब बच्चे अपने माँ बाप के ...

ईद मुबारक! इस ईद पर पढ़िए प्रेमचंद की कहानी

’साहित्य के पन्नो से ’ में हम, भारत के हिंदी तथा उर्दू के महान लेखको की रचनाओं को आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगे। मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के अमर कथाकार हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने गबन, गोदान, निर्मला, प्रेमाश्रम, सेवासदन और कर्मभूमि सहित 15 उपन्यास और 300 से अधिक कहानियों में समाज का मर्म लिखा है। उनके हजारों लेख, सम्पादकीय और भाषण आज भी समाज की चेतना जगाते हैं। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’, और लौट चलिए बचपने की ईद में, जहाँ ईदगाह पर ईद के जश्न का मेला लगा है और हामिद नया कुर्ता पहनकर मेला देखने आया है। हामिद के साथ-साथ आप मेले से उसकी दादी के आंसुओं तक का सफ़र करेंगे। ईद पर लिखी गयी बड़ी प्यारी सी हिंदी की ये कालजयी रचना है। रमज़ान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गांव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर से सुई-तागा लाने को दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें; ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना, भेंट करना। दोपहर के पहले लौटना असंभव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज़ है। रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे; इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम ...