ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलाती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि सी।

  1. SANJAY JHA
  2. कुरुक्षेत्र (टीकासहित)
  3. नीरज सिंह: कुरुक्षेत्र / प्रथम सर्ग / भाग 1
  4. वह कौन रोता है वहाँ
  5. रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र
  6. SANJAY JHA
  7. रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र


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वह कौन रोता है वहाँ– इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहू का मोल है प्रत्यय किसी बूढ़े, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का; जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है; जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की ? और तब सम्मान से जाते गिने नाम उनके, देश-मुख की लालिमा है बची जिनके लुटे सिन्दूर से; देश की इज्जत बचाने के लिए या चढ़ा जिनने दिये निज लाल हैं। ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्त्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि-सी। विश्व-मानव के हृदय निर्द्वेष में मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का; चाहता लड़ना नहीं समुदाय है, फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से। हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से, हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही– उपचार एक अमोघ है अन्याय का, अपकर्ष का, विष का, गरलमय द्रोह का। लड़ना उसे पड़ता मगर। औ’ जीतने के बाद भी, रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ; वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता। उस सत्य के आघात से हैं झनझना उठती शिराएँ प्राण की असहाय-सी, सहसा विपंची पर लगे कोई अपरिचित हाथ ज्यों। वह तिलमिला उठता, मगर, है जानता इस चोट का उत्तर न उसके पास है। सहसा हृदय को तोड़कर कढ़ती प्रतिध्वनि प्राणगत अनिवार सत्याघात की– ‘नर का बहाया रक्त, हे भगवान ! मैंने क्या किया ?’ लेकिन, मनुज के प्राण, शायद, पत्थरों के हैं बने। इस दंश का दुख भूल कर होता समर-आरूढ़ फिर; फिर मारता, मरता, विजय पाकर बहाता अश्रु है। यों ही, बहुत पहले कभी कुर...

SANJAY JHA

LinkedIn และบุคคลที่สามใช้คุกกี้ที่จำเป็นและไม่จำเป็นเพื่อจัดหา รักษาความปลอดภัย วิเคราะห์ และปรับปรุงบริการของเรา และเพื่อแสดงโฆษณาที่เกี่ยวข้องแก่คุณ (รวมถึง โฆษณาระดับมืออาชีพและโฆษณารับสมัครงาน) ทั้งในและนอก LinkedIn เรียนรู้เพิ่มเติมใน เลือกยอมรับเพื่อยินยอมหรือปฏิเสธเพื่อปฏิเสธคุกกี้ที่ไม่จำเป็นสำหรับการใช้งานนี้ คุณสามารถอัพเดทตัวเลือกของคุณได้ตลอดเวลาใน HONO and ETHRWorld curated an insightful leadership discussion on 'Transforming Employee Experience with Conversational AI & Intelligent HRMS'. Industry experts and notable HR leaders shared crucial insights on the role of next-gen technologies in reshaping the HR landscape. The key discussion points were: ✅ What defines the success of an HRMS? Aligning with business performance and driving outcomes. ✅ The role of conversational AI in engaging a distributed workforce and improving productivity. ✅ Utilizing HRMS data to provide business intelligence and valuable insights. ✅ The business case for a conversational AI-powered intelligent HRMS and its impact on employee experience. Read more: Tech at Work at Mumbai: Transforming Employee Experience with Conversational AI & Intelligent HRMS hono.ai • العربية (ภาษาอาหรับ) • Čeština (ภาษาเชค) • Dansk (ภาษาเดนมาร์ก) • Deutsch (ภาษาเยอรมัน) • English (ภาษาอังกฤษ) • Español (ภาษาสเปน) • Français (ภาษาฝรั่งเศส) • हिंदी (ภาษาฮินดี) • Bahasa Indonesia (ภาษาอินโดนีเซีย) • Italiano (ภาษาอิตาลี) • 日本語 (ภาษาญี่ปุ่น) • 한국어 (ภาษาเกาหลี) • Bahasa Malaysia (ภาษามาเลย์) • Nederlands (ภาษา...

कुरुक्षेत्र (टीकासहित)

पुस्तककाविवरण (Description of Book of कुरुक्षेत्र PDF | Kurukshetra PDF Download) :- नाम📖 कुरुक्षेत्र PDF | Kurukshetra PDF Download लेखक🖊️ रामधारीसिंह 'दिनकर' / Ramdhari Singh Dinkar आकार 19.8 MB कुलपृष्ठ 141 भाषा Hindi श्रेणी Download Link 📥 Working कुरुक्षेत्रएकहिंदीक्लासिकहै।यहमहाभारतमेंवर्णितकुरुक्षेत्रयुद्धकाएकअसाधारणविवरणदेताहै।यहपांडवोंऔरकौरवोंकेबीचहुएसशस्त्रटकरावकाविशदविवरणदेताहै।यहखूनीयुद्धअठारहदिनोंतकचला। युद्धपरलेखककेअपनेविचारइसकाममेंदिखाएगएहैं।वहयुद्धकीआलोचनाकरताहैलेकिनयहभीस्वीकारकरताहैकियहएकआवश्यकबुराईहै।यहयुद्धकेअवगुणोंऔरकविताकेमाध्यमसेमानवजातिकोहोनेवालेनुकसानकावर्णनकरताहै। ऐसीस्थितिमेंजहांकिसीकीदेशकीस्वतंत्रताकोखतराहो, किसीकोयुद्धकासहारालेनापड़ताहै, भलेहीउसेखुदकाबचावकरनापड़े।शक्तिकेमहत्वपरभीबलदियाजाताहै।युद्धकेनकारात्मकपरिणामोंकोभीष्मऔरयुधिष्ठिरकेसंवादोंऔरअपनेस्वयंकेकार्योंपरबादकेपछतावेकेमाध्यमसेउजागरकियागयाहै। कुरुक्षेत्रएकसुंदरलिखितकृतिहैऔरइसमेंएककालातीतअपीलहै। [adinserter block="1"] पुस्तककाकुछअंश प्रथमसर्ग वहकौनरोताहैवहाँइतिहासकेअध्यायपर, जिसमेंलिखाहै, नौजवानोंकेलहूकामोलहै प्रत्ययकिसीबूढ़े, कुटिलनीतिज्ञकेव्याहारका; जिसकाहृदयउतनागलिनजितनाकिशीर्षवलक्षहै; जोआपतोलड़तानहीं, कटवाकिशोरोंकोमगर, आश्वस्तहोकरसोचता, शोणितबहा, लेकिन, गयीबवलाजसारेदेशकी? औरतबसम्मानसेजातेगिने नामउनके, देश-मुखकीलालिमा हैबवीजिनकेलुटेसिन्दूरसे; देशकीइज्जतबचानेकेलिए याचढ़ाजिननेदियेनिजलालहैं। ईशजानें, देशकालज्जाविषय तत्त्वहैकोईकिकेवलआवरण उसहलाहल-सीकुटिलद्रोहाग्निका जोकिजलतीआरहीचिरकालसे स्वार्थ-लोलुपसभ्यताकेअग्रणी नायकोंकेपेटमेंजठराग्नि-सी। डाउनलोडलिंक (कुरुक्षेत्र PDF | Kurukshetra PDF Down...

नीरज सिंह: कुरुक्षेत्र / प्रथम सर्ग / भाग 1

वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का; जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है; जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोनित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की? और तब सम्मान से जाते गिने नाम उनके, देश-मुख की लालिमा है बची जिनके लुटे सिन्दूर से; देश की इज्जत बचाने के लिए या चढा जिनने दिये निज लाल हैं। ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्त्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि-सी। विश्व-मानव के हृदय निर्द्वेष में मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का; चाहता लड़ना नहीं समुदाय है, फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से। हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से, हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही- उपचार एक अमोघ है अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का! लड़ना उसे पड़ता मगर। औ' जीतने के बाद भी, रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ; वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता। उस सत्य के आघात से हैं झनझना उठ्ती शिराएँ प्राण की असहाय-सी, सहसा विपंचि लगे कोई अपरिचित हाथ ज्यों। वह तिलमिला उठता, मगर, है जानता इस चोट का उत्तर न उसके पास है। सहसा हृदय को तोड़कर कढती प्रतिध्वनि प्राणगत अनिवार सत्याघात की- 'नर का बहाया रक्त, हे भगवान! मैंने क्या किया लेकिन, मनुज के प्राण, शायद, पत्थरों के हैं बने। इस दंश क दुख भूल कर होता समर-आरूढ फिर; फिर मारता, मरता, विजय पाकर बहाता अश्रु है। यों ही, बहुत पहले कभी कुरुभूमि में नर-...

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युद्धकापरिणामअन्तिमध्वंसहै ! ईशजानें, देशकालज्जाविषय तत्त्वहैकोईकिकेवलआवरण उसहलाहल-सीकुटिलद्रोहाग्निका जोकिजलतीआरहीचिरकालसे स्वार्थ-लोलुपसभ्यताकेअग्रणी नायकोंकेपेटमेंजठराग्नि-सी। प्रधानमंत्रीनरेंद्रमोदीनेराष्ट्रसंघसेकहाहैकिपाकिस्तानदुनियाकासबसेबड़ाआतंकवादनिर्यातकदेशहै।पाकिस्तानभीअक्सरभारतकेकश्मीरमेंमानवाधिकारकेहननकीबातकरतारहताहै।भारतभीबलोचिस्तानमेंमानवाधिकारकेहननकामसलाउठाताहै।दोनोंतरफसेआरोप–प्रत्यारोपचलरहेहैं।इसेसाबितकरनेकेलियेखूनखराबेहोरहेंहैं, इंसानियतशर्मसारहोरहीहैपरकोईभीयहनहींसोचताकिकुछखामियांहममेभीहोसकतीहैं।हमभारतीयऔरपाकिस्तानीमानसिकतामेंएकहीतरहकेलोगहैंइतिहासकेएकनिर्ममक्षणमेंहमदोनोंअलगहोगये।खूनकीलकीरखींचकरजमीनबांटदीगयी।परइसनजरियेसेसोचानहींजारहाहै। लड़नाउसेपड़तामगर। औ' जीतनेकेबादभी, रणभूमिमेंवहदेखताहैसत्यकोरोताहुआ; वहसत्य, हैजोरोरहाइतिहासकेअध्यायमें विजयीपुरुषकेनामपरकीचड़नयनकाडालता। पिछलेहफ्तेभारतीयवायुसेनानेअपना 84 वांस्थापनादिवसमनाया।इसजश्नमेंरॉयलएयरफोर्सकीरेडएरोबटालियनभीशामिलहुईथी।दनियाकीसबसेअच्छीवायुसेनामेंभारतीयवायुसेनाकाभीनामलियाजाताहै।इससेनाकादिलचस्पइतिहासहै।आजादीकेपहलेजोलोगइसफौजमेंशामिलहुयेथे, एयरमार्शलअर्जनसिंहभीउनमेंएकथे, येलागेजिसइलाकेपरबमगिराकरटार्गेटप्रैक्टिसकरतेथे‘बागीआदिवासीइलाका’कहाजाताथा।आजवहपाकिस्तानकावजीरिस्तानऔरखैबरपख्तूनवाहै।इनदिनों‘जर्बे–अजब’ (पैगम्बरहजरतमोहम्मदकीतलवार ) नामकाऑपरेशनचलाकरइसइलाकेपरबमबारीकररहाहै।यहबातकेवलपाकिस्तानकीनहींहैभारतीयवायुसेनाने 1966 मेंएजलपरबमबारीकीथी।अतएवइनदिनोंजबमोदीजीनेपाकिस्तानीवायुसेनाद्वाराअपनीहीजनतापरबमबारीयाहवाईहमलेकीबातउठाईहैऔरउन्होंनेयहबिल्कुलसहीकामकियाहैपरवेयहनहींजानतेकिउनकीवायुसेनानेभीअतीतमेंक्याकियाहै? इसकाअर्थ...

वह कौन रोता है वहाँ

--------------- वह कौन रोता है वहाँ... --------------- 🔴🔵 रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र के प्रथम सर्ग से उद्धृत: वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहू का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्यवहार का; जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है; जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की? और तब सम्मान से जाते गिने नाम उनके, देश-मुख की लालिमा है बची जिनके लुटे सिन्दूर से; देश की इज्जत बचाने के लिए या चढा जिसने दिये निज लाल हैं। ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि-सी। विश्व-मानव के हृदय निर्द्वेष में मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का; चाहता लड़ना नहीं समुदाय है, फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से। हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से, हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही- उपचार एक अमोघ है अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का! लड़ना उसे पड़ता मगर। औ' जीतने के बाद भी, रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ; वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता। उस सत्य के आघात से हैं झनझना उठती शिराएँ प्राण की असहाय-सी, सहसा विपंचि लगे कोई अपरिचित हाथ ज्यों। वह तिलमिला उठता, मगर, है जानता इस चोट का उत्तर न उसके पास है। सहसा हृदय को तोड़कर कढती प्रतिध्वनि प्राणगत अनिवार सत्याघात की- 'नर का बहाया रक्त, हे भगवान! मैंने क्या किया लेकिन, मनुज के प्राण, शायद, पत्थरों के हैं बने। ...

रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र

रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र : यहाँ हम आपको रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र का प्रथम सर्ग की लिरिक्स बता रहे है, जिसे आप गुनगुना सकते है... वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है..! जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की ? और तब सम्मान से जाते गिने नाम उनके, देश-मुख की लालिमा है बची जिनके लुटे सिन्दूर से देश की इज्जत बचाने के लिए या चढा जिनने दिये निज लाल हैं..! ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्त्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि-सी..! विश्व-मानव के हृदय निर्द्वेष में मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का; चाहता लड़ना नहीं समुदाय है, फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से । हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से, हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही- उपचार एक अमोघ है अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का ! लड़ना उसे पड़ता मगर औ जीतने के बाद भी, रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता..! उस सत्य के आघात से हैं झनझना उठ्ती शिराएँ प्राण की असहाय-सी, सहसा विपंचि लगे कोई अपरिचित हाथ ज्यों..! वह तिलमिला उठता, मगर, है जानता इस चोट का उत्तर न उसके पास है..! सहसा हृदय को तोड़कर कढती प्रतिध्वनि प्राणगत अनिवार सत्याघात की- नर का बहाया रक्त, हे भगवान ! मैंने क्या किया...

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रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र : यहाँ हम आपको रामधारी सिंह दिनकर की कविता कुरुक्षेत्र का प्रथम सर्ग की लिरिक्स बता रहे है, जिसे आप गुनगुना सकते है... वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है..! जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की ? और तब सम्मान से जाते गिने नाम उनके, देश-मुख की लालिमा है बची जिनके लुटे सिन्दूर से देश की इज्जत बचाने के लिए या चढा जिनने दिये निज लाल हैं..! ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्त्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि-सी..! विश्व-मानव के हृदय निर्द्वेष में मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का; चाहता लड़ना नहीं समुदाय है, फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से । हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से, हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही- उपचार एक अमोघ है अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का ! लड़ना उसे पड़ता मगर औ जीतने के बाद भी, रणभूमि में वह देखता है सत्य को रोता हुआ वह सत्य, है जो रो रहा इतिहास के अध्याय में विजयी पुरुष के नाम पर कीचड़ नयन का डालता..! उस सत्य के आघात से हैं झनझना उठ्ती शिराएँ प्राण की असहाय-सी, सहसा विपंचि लगे कोई अपरिचित हाथ ज्यों..! वह तिलमिला उठता, मगर, है जानता इस चोट का उत्तर न उसके पास है..! सहसा हृदय को तोड़कर कढती प्रतिध्वनि प्राणगत अनिवार सत्याघात की- नर का बहाया रक्त, हे भगवान ! मैंने क्या किया...