Jain dharm ke panch siddhant kaun se the

  1. जैन धर्म के संस्थापक कौन थे
  2. जैन धर्म के त्रिरत्न कौन से हैं?
  3. ExamsIAS IAS Coaching in Delhi & Online Website & Study Material in Hindi
  4. जैन धर्म के सिद्धांत
  5. जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत कौन सा है? » Jain Dharam Ka Pramukh Siddhant Kaun Sa Hai
  6. जैन धर्म के सिद्धांत क्या है? » Jain Dharam Ke Siddhant Kya Hai
  7. जैन धर्म
  8. जैन धर्म के कोई दो सिद्धांत समझाइए? » Jain Dharam Ke Koi Do Siddhant Samjhaiye
  9. जैन धर्म के संस्थापक थे?


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जैन धर्म के संस्थापक कौन थे

अनुक्रम • • • • • • • • • जैन धर्म के संस्थापक कौन थे | jain dharm ke sansthapak kaun the जैन धर्म मे अहिंसा को परम धर्म माना जाता है. वैसे तो जैन धर्म मे 24 तिर्थकर थें. जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तिर्थकर ॠषभदेव थें. इन्हे जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है. और भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थकर थे. भगवान महावीर स्वामी को वर्धमान के नाम से भी माना जाता है. जैन धर्म क्या है जैन धर्म भारत के प्राचीनतम धर्मो में से एक है. जैन शब्द का शाब्दिक अर्थ “ जिन से प्रवर्तित धर्म” है. जो “जिन” के अनुयायी हो उन्हें “जैन” कहा जाता है. “ज़ि” धातु से “जिन” शब्द बना है. जिसका अर्थ होता है ‘ज़ि‘ मतलब जीतना और ‘जिन’ मतलब जीतने वाला. जिन्होंने अपने मन, वाणी और काया को जित लिया वो “जिन” होता है. जैन धर्म की स्थापना का श्रेय ॠषभदेव को जाता है. और इस धर्म को विकसित और संगठित करने का श्रेय वर्धमान महावीर स्वामी को जाता है. जैन धर्म कि शिक्षाएं, सिद्धांत, महाव्रत, और जैन अनुयायो ने जैन धर्म को बहुत ही बल से सिंचा है. यह शिक्षाए, सिध्दांत और महाव्रत भगवान वर्धमान युगों पहले दे कर गए थे जिनका पालन करना प्रत्येक जैनी का कतर्व्य है. सिक्किम की भाषा क्या है | सिक्किम के बारे में जानकारी | सिक्किम का संक्षिप्त इतिहास जैन धर्म का इतिहास जैन धर्म की उत्पति मगध मे हुई थी. लेकिन यह धर्म समस्त भारत में कम ही समय में फैल गया था. जैन धर्म कि स्थापना का श्रेय ॠषभदेव को जाता है. जिन्हें आदिनाथ भी माना जाता है. जो चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे. और इस धर्म को विकसित और संगठित करने का श्रेय वर्धमान महावीर स्वामी को जाता है. ॠषभदेव का प्रतीक चिन्ह ‘सांड या बैल’ है और वर्धमान महावीर स...

जैन धर्म के त्रिरत्न कौन से हैं?

Explanation : जैन धर्म के त्रिरत्न हैं– सही विश्वास (सम्यक दर्शन), सही ज्ञान (सम्यक ज्ञान), सही आचरण (सम्यक चरित्र। इस प्रकार मोक्ष की प्रक्रिया इन तीनों तत्त्वों के समन्वय पर टिकी हुई है। वहीं जैन पंच-महावतों का पालन करना आवश्यक होता है जो कि सही आचरण के तत्त्व हैं। अहिंसा - इसका अर्थ है- मन, वचन, कर्म से किसी को भी कष्ट न पहुँचाना। सत्य-असत्य से संयम अर्थात मन, वचन, कर्म से असत्य का त्याग कर देना। अस्तेय-चोरी करने से संयम। ब्रह्मचर्य - कामुक और आकस्मिक सुखों से संयम। अपरिग्रह - इसका अर्थ है किसी भी प्रकार के साधनों का संग्रह न करना। Explanation : कालिदास चंद्रगुप्त II के शासनकाल में थे। चंद्रगुप्त द्वितीय अथवा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का शासनकाल 380-412 ईसवी तक रहा। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपना साम्राज्य विस्तार वैवाहिक सम्बन्ध व विजय दोनों से किया जिसमें नाग राजकुमारी कुबेर • मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र कौन था? Explanation : मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र बयाना था। 18वीं शताब्द की प्रमुख फसलों में धान, गेहूं, ज्वार-बाजरा इत्यादि थे। धान हिंदुस्तान के अधिकांश क्षेत्रों में उगाया जाता था जिसमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गो • मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सबसे प्रसिद्ध क्षेत्र कौन था? Explanation : गुरु ग्रंथ साहिब में सूफी संत शेख फरीद की रचनाएं संकलित है। पंजाब के सूफी संतों में भक्त शेख फरीद जी का नाम प्रमुखता से आता है। भक्त शेख फरीद जी, बाबा फरीद जी, शेख फरीद जी, बाबा फरीद जी शकरगंज इत्यादि नामों से पहचाने जाने वाले शे • किस सूफी संत के विचारों को सिखों के धर्म ग्रंथ ‘आदि ग्रंथ’ में संकलित किया गया?

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Table of Contents • • • • • • • • • • • प्राचीन भारत में धार्मिक आंदोलन Jain Dharm in Hindi jain dharm ke siddhant jain dharm ke niyam -जीवन के प्रारंभिक दौर में मानव जब आगे बढ़ने लगा तो के दिमाग में ख्याल उठने लगे कि हम जन्म क्यों लेते हैं? या फिर दुनिया को किसने बनाया इन सारे सवालों को ढूंढते हुए छठी ईस्वी पूर्व की शताब्दी में अनेक धार्मिक संप्रदायों का उदय हुआ इस तरह के धर्म मानव सभ्यता को मूलभूत सवालों के जवाब देते थे और इससे मानवी जीवन शैली बदली मुख्यता वैदिक धर्म में जीवन में काफी बदलाव कर दिए | • शुरुआत में • वैदिक धर्म की जटिलता एवं यज्ञों की परंपरा शुरुआत में वैदिक धर्म अत्यधिक सरल था परंतु बाद में यह क्लिष्ट होता गया • जाति प्रथा की जटिलता • वैदिक ग्रंथों की कठिन भाषा वैदिक धर्म की भाषा जनसामान्य की भाषा ना होकर विद्वानों की भाषा बन गई इसी वजह से नए सरल धर्मों का उदय हुआ। • वैश्य धर्म के महत्व में वृद्धि लोहे के उपकरणों के प्रयोग से व्यापार वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला जिससे वैश्य वर्ग ने अपनी स्थिति संभाली और ब्राह्मणवाद का विरोध किया और अपनी नई जगह ढूंढी। जैन धर्म • jain dharm ke sansthapak kaun the -जैन धर्म की स्थापना का श्रेय प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथको जाना जाता है जिन्होंने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जैन आंदोलन का प्रवर्तन किया। • प्रथम तीर्थंकर तथा 22वें तीर्थंकर अरिष्तनेमी का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है • जैन अनुसूचियों के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर थे परंतु इनमें से 22 तीर्थंकरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर संदिग्धता है • 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे इनके अनुयायियों को निरग्रंथ कहा जाता है। पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रत इस प्रकार है सत्य ...

जैन धर्म के सिद्धांत

• ईश्वर सम्बन्धी विचार • आत्मवाद • कर्म की प्रधानता • आत्मा की मुक्ति • पांच महाव्रत • तपस्या जैन धर्म के सिद्धांतों का वर्णन कीजिए ईश्वर सम्बन्धी विचार • जैनियों का ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास था या नहीं इस विषय में विद्वानों में भारी मतभेद था। लेकिन अब यह निश्चित हो चुका है कि जैन धर्मावलम्बी ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। महावीर स्वयं ईश्वर को सृष्टि का कर्ताधर्ता नहीं मानते थे। उनका विचार था कि "मनुष्य की आत्मा में जो कुछ महान् है और जो शक्ति तथा नैतिकता है , वही भगवान है।" जैनियों का कहना है कि सृष्टि अथवा विश्व का संचालन करने के लिए ईश्वर जैसी किसी अलौकिक सत्ता की आवश्यकता नहीं है। इस धर्म में तीर्थकरों को ही ईश्वर माना गया है तथा मन्दिरों में देवी-देवताओं के बजाय तीर्थंकरों की ही पूजा की जाती है। जैन धर्म में ईश्वर को निराकार माना जाता है। उनका कहना है कि निर्माणकर्ता के हाथ-पैर होते हैं और वह अपने हाथों से काम करके किसी वस्तु का निर्माण करता है। ईश्वर को सभी व्यक्ति निराकार नहीं मानते हैं। अत: ईश्वर जिसका कोई रूप नहीं है वह विश्वकर्ता कदापि नहीं हो सकता। उनके विचार में यह संसार शाश्वत् अनन्त , अनादि और स्वाधारित है। वे ईश्वर को सर्वज्ञ और वीतराग मानते हैं। आत्मवाद • अनीश्वरवादी होते हुए भी महावीर अनात्मवादी नहीं थे।उनका कहना था कि विश्व में दो बुनियादी पदार्थ हैं , जीव और अजीव दोनों ही अनादि हैं , उन्हें किसी ने रचा नहीं और दोनों ही स्वतंत्र हैं। जीव का अर्थ आत्मा ही है। महावीर का विश्वास था कि जीव केवल मनुष्य , पशु और वनस्पति में ही नहीं , बल्कि विश्व के कण-कण में पाया जाता है। पत्थरों और चटटानों , जल तथा अन्य प्राकृतिक वस्तुओं में भी जीव हैं। संसार मे...

जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत कौन सा है? » Jain Dharam Ka Pramukh Siddhant Kaun Sa Hai

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। क्या है जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत क्या है जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार से है अहिंसा सत्य अपरिग्रह और असत्य ना बोले ब्रह्मचारी रहे महावीर को पीर अंतर भी और संस्कृति भी कहा जाता है kya hai jain dharm ka pramukh siddhant kya hai jain dharm ke pramukh siddhant is prakar se hai ahinsa satya aparigrah aur asatya na bole brahmachari rahe mahavir ko pir antar bhi aur sanskriti bhi kaha jata hai क्या है जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत क्या है जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार से है अह

जैन धर्म के सिद्धांत क्या है? » Jain Dharam Ke Siddhant Kya Hai

जैन धर्म और साहित्य के अनुसार कुल 24 तीर्थंकर हुए है। जैन अनुश्रुति के अनुसार जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे। महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थकर थे। महावीर का जन्म 599 ई.पू. वैशाली के समीप कुण्डग्राम में हुआ था। तीस वर्ष की कठोर तप के उपरान्त उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई । भारत में जैन अनुयायिओं की संख्या करीब 34 लाख है जो सम्पूर्ण जनसंख्या का 0.41 प्रतिशत है। जैन धर्म भी दो सम्प्रदाय में बट गये - श्वेताम्बर और दिगम्बर । श्वेताम्बर श्वेत वस्त्र धरण करने वाले हुए और दिगम्बर वस्त्रों को साधना में बाधक मानते हैं। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिये केवल चार व्रतों का विधान किया था - अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना) तथा अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)। महावीर स्वामी ने पाँचवां व्रत ब्रह्मचर्य जोड़ दिया। साथ ही महावीर ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति नहीं दी। जैन दर्शन में मुनियों के लिए अट्ठाईस मूल गुणों का वर्णन किया गया है इनमें से यदि एक भी मूलगुण का पालन नहीं किया जा सकता तो इसे मुनि नहीं कहा जा सकता है। ये अट्ठाईस मूलगुण निम्न हैं- पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रिय निरोध, छः आवश्यक, सात शेष गुण ( अदन्त धावन, अस्नान, भू-शयन, स्थिति भोजन, एकभुक्ति, केशलोंच और नग्नता। 2.सत्य महाव्रत:-राग द्वेष और मोह के कारण असत्य तथा दूसरों को सन्ताप (कष्ट) पहुँचाने वाले सत्य वचन का त्याग करना सत्य महाव्रत है। परिस्थिति के अनुसार कभी-कभी सत्य वचन का त्याग भी महाव्रत के अन्तर्गत आता है। उदाहरण के लिए यदि कोई शिकारी अपना शिकार खोजता हुआ आ रहा है और आप को ज्ञात होते हुए भी पूछने पर मना कर देना भी सत्य महाव्रत है। इसे कई अवस्थाओं में बाँटा गया है— आचार को धर्म ...

जैन धर्म

जैन धर्म | जैन धर्म का इतिहास| जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान Click Here To Join Telegram Group जैन धर्म | जैन धर्म का इतिहास | जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान हेलो दोस्‍तों , Study fundaaa द्वारा आप सभी को प्रतिदिन प्रतियोगी परीक्षाओं से सम्बंधित जानकारीShare की जाती है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्‍येक Competitive Exams में सामान्‍य ज्ञान से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. आज इस पोस्ट में हम आपके समक्ष जो जानकारीshare कर रहे हैं वह जैन धर्म | जैन धर्म का इतिहास | जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान की है. यह पोस्ट विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जैन धर्म का परिचय (Jain Dharm ka Introduction) जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है।' जैन' उन्हें कहते हैं, जो' जिन' के अनुयायी हों।' जिन' शब्द बना है' जि' धातु से।' जि' यानी जीतना।' जिन' अर्थात् जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं' जिन' । जैन धर्म अर्थात्' जिन' भगवान का धर्म। वस्त्र-हीन बदन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी एक जैन-अनुयायी की पहली पहचान है। यहाँ तक कि जैन धर्म (Jain dharm in hindi) के अन्य लोग भी शुद्ध शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करते हैं तथा अपने धर्म के प्रति बड़े सचेत रहते हैं। (jain dharm ka parichay) अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसे बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे विशेष रुप से देखा जा सकता है‌। जैन दर्शन में कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है। सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है। जैन दर्शन में भगवान न कर्ता और न ही भोक्ता माने जाते ह...

जैन धर्म के कोई दो सिद्धांत समझाइए? » Jain Dharam Ke Koi Do Siddhant Samjhaiye

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। जैन धर्म से कोई दोस्त अंकित जैन धर्म के जो एक बहुत ही सुंदर सिद्धांतों है सजीव के प्रति हिंसा का कोई भी जीव हो उसके पति को अहिंसा परमो उसने बिलिंग बिलीव करते हैं और वह जैन साधु साध्वी जी कोई भी अपने पैर में कुछ भी पैर में जूते बनाने का सपना जैन साधु साध्वी जी गुजरी ले कर जाने की जो जैन परिवार आस-पास रहते हैं देरासर के पास वहां जाकर गोचरी लेते हैं और वही चालू होती है बस तू लकड़ी के पात्र में इतना रहता है उसी को मिलाकर वह खा लेते हैं और संतृप्त दूसरा भूति का सिद्धांत है कि सुबह नवकर्षी करते हैं और अतिक्रमण करके जो शाम को सूर्यास्त के पहले वह खाना खा लेना सूर्यास्त के पहले वह बहुत ही अच्छा है क्योंकि सूर्यास्त के बाद खाने से उनके कहने के अनुसार जीव जंतु का प्रमाण बढ़ जाने से खाना उसमें देखते ही आ जाता है इसलिए वह भी दांत जो है शाम को सो जाते हैं दिखाने का मुझे बहुत ही अच्छा लगता है और एकदम शाकाहारी लोग शाकाहारी को अपनाते हैं और लहसुन प्याज जो जमीन के अंदर जो भी चीज रहती है उसे हो वह तान शी हास लहसुन और प्याज को के अनुसार होता है प्यार तो है और बहुत सी बातें जैन धर्म में अच्छी-अच्छी है बरसात फिल्म चलो चौमासा होता है उसमें वही जो सब्जी होती है यानी कि उसका वह क्या करते थे तमाशे में और वह जो भी छोड़ते हैं अनाज के बिजली उसी को तिलहन दलहन उसका सेवन करते हैं जैसे कि मूंग हुआ और कठोर से कठोर का सेवन करते हैं उसी की सब्जी बनाएं बहुत सारे अच्छे अच्छे से जानते जैन धर्म त्याग और बलिदान और तपस्या दो 8 दिन की तपस्या करते माफ करना एक महीने की उपवास होता है इस तरह से जैन धर...

जैन धर्म के संस्थापक थे?

जैन धर्म के संस्थापक ऋषभ देव थे। जैन पंरपरा के अनुसार इस धर्म में 24 तीर्थंकर हुए जिसमें ऋषभ देवव प्रथम तीर्थंकर थे। ऋषभ देव को आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है तथा इन्हें बाद की परंपरा में स्वयं भगवान शंकर का अवतार भी कहा जाता है। वैदिक मंत्रों में केवल दो ​तीर्थंकरों ऋषभदेव तथा अरिष्टनेम का उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण तथा भागवत पुराण में ऋषभ देव को नारायण के अवतार के रूप में चित्रित किया गया है। Tags : Explanation : बुलंदीबाग पाटलिपुत्र का प्राचीन स्थान था। बुलंदीबाग नामक प्राचीन स्थल मगध के समीप स्थित पाटलिपुत्र के लिए किया जाता है। यहां पर हुए उत्खनन में कुम्हार एवं बुलंदीाग से पाटलिपुत्र से संबंधित अभिलेखीय साक्ष्य मिले हैं। यहाँ की खुदाई • अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सेना का कमांडर कौन था?