Japji sahib path in hindi

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Japji Sahib

Not to be confused with Japji Sahib by Original title ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ or ਜਪੁ ਜੀ ਸਾਹਿਬ Written 16th century First published in Language Gurmukhi Subject(s) Spirituality Genre(s) Religion Lines 38 Stanzas Followed by So Dar Aasa (ਸੋ ਦਰੁ ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧) Part of a series on the Guru Granth Sahib ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ Popular compositions • v • t • e Japji Sahib ( ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ, pronunciation: paudis (stanzas) and completed with a final Japji Sahib is the first composition of Guru Nanak, and is considered the comprehensive essence of Japji Sahib is the entire Related to Japji Sahib is the Jaap Sahib ( ਜਾਪੁ ਸਾਹਿਬ), the latter is found at the start of Etymology [ ] Japa ( japa is derived from the root jap-, meaning "to utter in a low voice, repeat internally, mutter". Following are some accepted meanings of Jap: • A conventional meaning for Jap(u) is to recite, to repeat, or to chant. • Jap also means to understand. Gurbani cites Aisa Giaan Japo Man Mere, Hovo Chakar Sache Kere, where the word Jap means to understand wisdom. Content [ ] The Japji Sahib’s first stanza or pauri states that one cannot be cleaned or stay clean by repeatedly taking bath at holy sites as the thoughts are not clean, by silence alone one cannot find peace as the thoughts come one after another in our mind, by food and all material gains alone one cannot satisfy one's hunger, to be purified one must abide in love of the divine. With good mukti (liberation); in him is everything, states verse 4. shabda (word) is the...

Japji Sahib Hindi PDF

Book Japji Sahib Hindi PDF Writer Guru Nanak Dev Ji Editor Guru Arjan Dev Ji Pages 30 Language Hindi Script Devnagari Size 227 KB Format PDF Publisher Sikhizm.com [Public Domain] Japji Sahib Hindi PDF is specially written for Hindi Knowing people usually pronouncing Gurbani with the wrong M aatraas. We have re-written the A sample of the text is given below: धरम खंड का एहो धरम ॥ ज्ञान खंड का आखहो करम ॥ केते पवण पाणी वैसंतर केते कान्ह महेस ॥ केते बरमे घाड़त घड़ीअह रूप रंग के वेस ॥ केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥ केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥ केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥ केते देव दानव मुन केते केते रतन समुंद ॥ केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥ केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंत न अंत ॥३५॥ Japji Sahib, Pauri 35th Jap Ji Sahib Hindi PDF Text Sample 2 सो दर केहा सो घर केहा जित बह सरब समाले ॥ वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥ केते राग परी सिओ कहीअन केते गावणहारे ॥ गावह तुहनो पौण पाणी बैसंतर गावै राजा धरम दुआरे ॥ गावह चित गुपत लिख जाणह लिख लिख धरम वीचारे ॥ गावह ईसर बरमा देवी सोहन सदा सवारे ॥ गावह इंद इदासण बैठे देवतेआ दर नाले ॥ गावह सिध समाधी अंदर गावन साध विचारे ॥ गावन जती सती संतोखी गावह वीर करारे ॥ गावन पंडित पड़न रखीसर जुग जुग वेदा नाले ॥ गावह मोहणीआ मन मोहन सुरगा मछ पयाले ॥ गावन रतन उपाए तेरे अठसठ तीरथ नाले ॥ गावह जोध महाबल सूरा गावह खाणी चारे ॥ गावहे खंड मंडल वरभंडा कर कर रखे धारे ॥ सेई तुधनो गावह जो तु भावन रते तेरे भगत रसाले ॥ होर केते गावन से मै चित न आवन नानक क्या वीचारे ॥ सोई सोई सदा सच साहिब साचा साची नाई ॥ है भी होसी जाए न जासी रचना जिन रचाई ...

Jaap Sahib Path

Jaap Sahib In Hindi स्री वाहिगुरू जी की फ़तह ॥ जापु ॥ स्री मुखवाक पातिसाही १० ॥ छपै छंद ॥ त्वप्रसादि ॥ च्क्र चिहन अरु बरन जाति अरु पाति नहिन जिह ॥ रूप रंग अरु रेख भेख कोऊ कहि न सकति किह ॥ अचल मूरति अनभउ प्रकास अमितोजि कहिजै ॥ कोटि इंद्र इंद्राणि साहु साहाणि गणिजै ॥ त्रिभवण महीप सुर नर असुर नेति नेति बन त्रिण कहत ॥ त्व सरब नाम कथै कवन करम नाम बरणत सुमति ॥१॥ भुजंग प्रयात छंद ॥ नमसत्वं अकाले ॥ नमसत्वं क्रिपाले ॥ नमसत्वं अरूपे ॥ नमसत्वं अनूपे ॥२॥ नमसतं अभेखे ॥ नमसतं अलेखे ॥ नमसतं अकाए ॥ नमसतं अजाए ॥३॥ नमसतं अगंजे ॥ नमसतं अभंजे ॥ नमसतं अनामे ॥ नमसतं अठामे ॥४॥ नमसतं अकरमं ॥ नमसतं अधरमं ॥ नमसतं अनामं ॥ नमसतं अधामं ॥५॥ नमसतं अजीते ॥ नमसतं अभीते ॥ नमसतं अबाहे ॥ नमसतं अढाहे ॥६॥ नमसतं अनीले ॥ नमसतं अनादे ॥ नमसतं अछेदे ॥ नमसतं अगाधे ॥७॥ नमसतं अगंजे ॥ नमसतं अभंजे ॥ नमसतं उदारे ॥ नमसतं अपारे ॥८॥ नमसतं सु एकै ॥ नमसतं अनेकै ॥ नमसतं अभूते ॥ नमसतं अजूपे ॥९॥ नमसतं न्रिकरमे ॥ नमसतं न्रिभरमे ॥ नमसतं न्रिदेसे ॥ नमसतं न्रिभेसे ॥१०॥ नमसतं न्रिनामे ॥ नमसतं न्रिकामे ॥ नमसतं न्रिधाते ॥ नमसतं न्रिघाते ॥११॥ नमसतं न्रिधूते ॥ नमसतं अभूते ॥ नमसतं अलोके ॥ नमसतं असोके ॥१२॥ नमसतं न्रितापे ॥ नमसतं अथापे ॥ नमसतं त्रिमाने ॥ नमसतं निधाने ॥१३॥ नमसतं अगाहे ॥ नमसतं अबाहे ॥ नमसतं त्रिबरगे ॥ नमसतं असरगे ॥१४॥ नमसतं प्रभोगे ॥ नमसतं सुजोगे ॥ नमसतं अरंगे ॥ नमसतं अभंगे ॥१५॥ नमसतं अगमे ॥ नमसतसतु रमे ॥ नमसतं जलासरे ॥ नमसतं निरासरे ॥१६॥ नमसतं अजाते ॥ नमसतं अपाते ॥ नमसतं अमजबे ॥ नमसतसतु अजबे ॥१७॥ नमसतं अभेसे ॥ नमसतं न्रिधामे ॥ नमसतं न्रिबामे ॥१८॥ नमो सरब काले ॥ नमो सरब दिआले ॥ नमो सरब रूपे ॥ नमो सरब भूपे ॥१९॥ नमो सरब खापे ॥ न...