जब नाश मनुज पर छाता है

  1. आज का शब्द:मैत्री और रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'कृष्ण की चेतावनी'
  2. जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है
  3. रामधारी सिंह 'दिनकर'
  4. Krishna ki Chetavani भगवान कृष्ण की चेतावनी Ramdhari Singh Dinkar Poem
  5. वर्षों तक वन में घूम


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आज का शब्द:मैत्री और रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'कृष्ण की चेतावनी'

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। ‘दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- ‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं। दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर, सब हैं मेरे मुख के अन्दर। दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख, मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख, चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर, नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर। शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र, शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र। ‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश, शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश, शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल, शत कोटि दण्डधर लोकपाल। जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें, हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें। ‘भूलोक, अतल, पाताल देख, गत और अनागत काल देख, यह देख जगत का आदि-सृजन, यह देख, महाभारत का रण, मृतकों से पटी हुई भू है, ...

जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है

उगता भारत ब्यूरो ‘रश्मिरथी’ रामधारी सिंह दिनकर का प्रसिद्ध खण्डकाव्य है. इसमें 7 सर्ग हैं और यह 1952 में प्रकाशित हुआ था। ‘रश्मिरथी’ रामधारी सिंह दिनकर का प्रसिद्ध खण्डकाव्य है I इसमें 7 सर्ग हैं और यह 1952 में प्रकाशित हुआ था। जब भगवान कृष्ण पाण्डवों का दूत बनकर कौरवों के पास जाते हैं और प्रस्ताव रखते हैं कि उन्हें आधा राज्य दे दिया जाए।अगर आधा राज्य न भी दें तो कम से कम पांच गांव ही दे दें ताकि पाण्डव सुख-शांति से अपना जीवन काट सकें । लेकिन यहां दुर्योधन कृष्ण की बात पर विचार-विमर्श करने के बजाय उल्टा उन्हें बंदी बनाने को कहता है। इस पर कृष्ण क्रोधित हो जाते हैं और अपना रौद्र रूप दिखाते हैं I इस घटना को रामधारी सिंह दिनकर ने ‘रश्मिरथी’ में बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। रश्मिरथी के तृतीय सर्ग के भाग-3 में कृष्ण कि चेतावनी के रूप में यह कविता आज भी बहुत लोकप्रिय है। वर्षों तक वन में घूम घूम, बाधा विघ्नों को चूम चूमसह धूप घाम पानी पत्थर, पांडव आये कुछ और निखरसौभाग्य न सब दिन होता है, देखें आगे क्या होता है मैत्री की राह दिखाने को, सब को सुमार्ग पर लाने कोदुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने कोभगवान हस्तिनापुर आए, पांडव का संदेशा लाये दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की न ले सकाउलटे हरि को बांधने चला, जो था असाध्य साधने चलाजब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप विस्तार कियाडगमग डगमग दिग्गज डोले, भगवान कुपित हो कर बोलेजंजीर बढ़ा अब साध मुझे, हां हां दुर्योधन बांध मुझे ये देख गगन मुझमें लय है, ये देख पवन मुझमें लय हैमुझमें विलीन झनकार सकल, मुझमें लय है संसार सकलअमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें भूतल ...

रामधारी सिंह 'दिनकर'

रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल शृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। अनुक्रम • 1 जीवनी • 2 प्रमुख कृतियाँ • 2.1 काव्य • 2.2 गद्य • 2.3 निबंध संग्रह • 2.4 अन्य लेखकों के विचार • 2.5 रचनाओं के कुछ अंश • 3 सम्मान • 3.1 मरणोपरान्त सम्मान • 4 सन्दर्भ • 5 इन्हें भी देखें • 6 बाहरी कड़ियाँ जीवनी 'दिनकर' जी का जन्म भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने उन्हें संस्कृति के चार अध्याय उर्वशी के लिये 1947 में देश स्वाधीन हुआ और वह रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे, लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से कतराते नहीं थे। रामधारी सिंह दिनकर ने ये तीन पंक्तियाँ पंडित जवाहरलाल नेहरू के विरुद्ध संसद में सुनायी थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था। दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य के तौर पर दिनकर का चुनाव पणृडित नेहरु ने ही किया था, इसके बावजूद नेहरू की नीतियों का विरोध करने से वे नहीं चूके। देखने में देवता सदृश्य लगता है बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है। जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा हो समझो उसी ने हमें मारा है॥ 1962 में चीन से हार के बाद संसद में दिनकर ने इस कविता का पाठ किया जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू का सिर झुक गया था. यह घटना आज भी भारतीय राजनीती के इतिहास...

Krishna ki Chetavani भगवान कृष्ण की चेतावनी Ramdhari Singh Dinkar Poem

राष्ट्रकविश्रीरामधारीसिंहदिनकरजीकीप्रसिद्धरचना“रश्मिरथी” (जिसकारथरश्मिकाहोअथार्थसूर्यकीकिरणोंकाहो) से“वर्षोंतकवनमेंघूम-घूम”हिन्दीकविताकोजबभीपढ़तेहैं, तोदृश्यकैसाहोरहाहोगा, सबसामनेचित्रितसाहोनेलगताहैं, विचारोत्तेजनाकाआभाससहजहीहोनेलगताहैं। इसमेंसबसेबड़ीबातजीदिनकरजीनेबताईहैंकि जबनाशमनुजपरछाताहै, पहलेविवेकमरजाताहै, दुर्योधनकाभगवान्कोबाँधनेकाप्रयासविवेकशून्यताहीहैं। Ramdhari Singh Dinkar कीकालजयीरचना वर्षोंतकवनमेंघूम-घूम, बाधा-विघ्नोंकोचूम-चूम, सहधूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडवआयेकुछऔरनिखर। सौभाग्यनसबदिनसोताहै, देखें, आगेक्याहोताहै। मैत्रीकीराहबतानेको, सबकोसुमार्गपरलानेको, दुर्योधनकोसमझानेको, भीषणविध्वंसबचानेको, भगवान्हस्तिनापुरआये, पांडवकासंदेशालाये। दोन्यायअगरतोआधादो, परइसमेंभीयदिबाधाहो, तोदेदोकेवलपाँचग्राम, रखोअपनीधरतीतमाम। हमवहींखुशीसेखायेंगे, परिजनपरअसिनउठायेंगे! यहदेख, गगनमुझमेंलयहै, यहदेख, पवनमुझमेंलयहै, मुझमेंविलीनझंकारसकल, मुझमेंलयहैसंसारसकल। अमरत्वफूलताहैमुझमें, संहारझूलताहैमुझमें। उदयाचलमेरादीप्तभाल, भूमंडलवक्षस्थलविशाल, भुजपरिधि-बन्धकोघेरेहैं, मैनाक-मेरुपगमेरेहैं। दिपतेजोग्रहनक्षत्रनिकर, सबहैंमेरेमुखकेअन्दर। दृगहोंतोदृश्यअकाण्डदेख, मुझमेंसाराब्रह्माण्डदेख, चर-अचरजीव, जग, क्षर-अक्षर, नश्वरमनुष्यसुरजातिअमर। शतकोटिसूर्य, शतकोटिचन्द्र, शतकोटिसरित, सर, सिन्धुमन्द्र। शतकोटिविष्णु, ब्रह्मा, महेश, शतकोटिविष्णुजलपति, धनेश, शतकोटिरुद्र, शतकोटिकाल, शतकोटिदण्डधरलोकपाल। जञ्जीरबढ़ाकरसाधइन्हें, हाँ-हाँदुर्योधन! बाँधइन्हें। भूलोक, अतल, पातालदेख, गतऔरअनागतकालदेख, यहदेखजगतकाआदि-सृजन, यहदेख, महाभारतकारण, मृतकोंसेपटीहुईभूहै, पहचान, इसमेंकहाँतूहै। अम्बरमेंकुन्तल-जालदेख, पदकेनीचेपातालदेख, मुट्ठ...

वर्षों तक वन में घूम

प्रिय दोस्तों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!