झांसी की रानी जयंती

  1. Jhansi ki Rani in Hindi
  2. रानी लक्ष्मीबाई जयंतीः और मणिकर्णिका से बन गई झांसी की रानी
  3. जयंती: 18 वर्ष की उम्र में झांसी की रानी बनी थीं लक्ष्मीबाई, जो कभी नहीं आईं अंग्रेजों के हाथ
  4. झांसी की रानी की जयंती पर पढ़ें ओजस्वी कविता ‘ख़ूब लड़ी मर्दानी’
  5. झाँसी
  6. Rani Laxmibai Jayanti


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Jhansi ki Rani in Hindi

रानी लक्ष्मीबाई | Jhansi Ki Rani in Hindi Jhansi Ki Rani in Hindi: देश की आजादी की लड़ाई में कई वीर एवं वीरांगनाओं अपने प्राणों की आहुति तक देने से भी नही हिचके. इन्होंने न सिर्फ देश की आजादी की लड़ाई लड़ी, बल्कि खुद के स्वाभिमान को भी प्राथमिकता दिया. इन्ही कुछ वीरांगनाओ में से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई है. इसके शौर्य और पराक्रम से प्रभावित होकर एक कवि ने कहा है कि चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाली एक प्रमुख वीरांगना थी महारानी लक्ष्मी बाई. रानी लक्ष्मी बाई का जीवन अनेक लोगो के लिए प्रेरणादायक रहा. महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन से जुड़े कुछ तथ्य . • नाम – लक्ष्मीबाई उर्फ मणिकर्णिका • जन्म – 19 नवंबर 1828 • जन्म स्थल – वाराणसी, उत्तरप्रदेश • मृत्यु – 18 जून 1858 • पिता – श्री मोरोपंत • माता – भागीरथी सापरे • पति – राजा गंगाधर राव प्रारंभिक जीवन | Rani Laxmibai Early Life Jhansi Ki Rani in Hindi: रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी जिले के भदैनी गाँव मे हुआ था. इन्हें बचपन मे मनु नाम से पुकारा जाता था, लेकिन इसके बचपन का नाम मणिकर्णिका था. इनके पिता मोरोपंत तांबे थे, जो पिता एक मराठी परिवार से थे. ये मराठा बाजीराव के सेवा में भी कार्यरत रहते थे. इनकी माँ का देहांत इनके जन्म के 4 साल बाद ही हो गया था. इसलिए माँ का सुख ज्यादा नही मिला. इनकी माँ के देहांत के बाद इनकी देखरेख करने वाला कोई नही था, इसलिए इनके पिता ने यह निर्धारित किया कि वो लक्ष्मीबाई को भी बाजीराव के दरबार मे ले जाएंगे, और फिर उन्होंने ऐसा ही किया. मणिकर्णिका बचपन मे बहुत चंचल और मनकोहक छवि वाली थी. इसी वजह वो बह...

रानी लक्ष्मीबाई जयंतीः और मणिकर्णिका से बन गई झांसी की रानी

नई दिल्ली [जेएनएन]। 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी' ये कविता आज भी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथा बयां करती है। ऐसे वक्त में जब एक-एक कर राजा अंग्रेजों केसामने घुटने टेक रहे थे तब ये रानी लक्ष्मीबाई हीं थी जिन्होंने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। उन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। आइए जानते हैं उनकेजीवन के बारे में। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 को काशी (वाराणसी) में महाराष्ट्रीयन कराड़े ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम मोरोपन्त ताम्बेऔर माता का नाम भागीरथी बाई था। माता-पिता ने उनका नाम मणिकर्णिका रखा। सभी उन्हें प्यार से ‘मनु’कहकर पुकारते थे। मोरोपन्त मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा करते थे। मनु जब मात्र 4 वर्ष की थीं, तभी उनकी माता की मृत्यु हो गयी। नहीं सह पाए पुत्र वियोग वर्ष 1851 में लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, पर 4 माह पश्चात ही उसकी मृत्यु हो गयी। पुत्र वियोग का सदमा राजा को इस कदर लगा कि वे अस्वस्थ रहनेलगे। उन्होंने 20 नवम्बर 1853 को एक बालक को गोद लिया। इस दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव का निधनहो गया। ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ झांसी को शोक में डूबा देखकर अंग्रे़जों ने कुटिल चाल चली और झांसी पर चढ़ाई कर दी। रानी ने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया और उन्हें वर्ष 1854 में अंग्रेजों को सा़फ कह दिया ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’। सदर बा़जार स्थित स्टार फोर्ट पर 5 जून 1857 को विद्रोहियों ने 3 बजे कब़्जा कर लिया, जिसके चलते झांसी में मौजूद सभी अंग्रे़जों ने किले में शरण ली। 61 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा यह संघर्ष 6 जून से 8 जून 1857 तक चला, जिसमें कैप्टन डनलप, लेफ्टिनेण्ट ...

जयंती: 18 वर्ष की उम्र में झांसी की रानी बनी थीं लक्ष्मीबाई, जो कभी नहीं आईं अंग्रेजों के हाथ

नई दिल्ली, 19 नवंबर: झांसी की रानी, ​​रानी लक्ष्मीबाई की 19 नवंबर को देशभर में जयंती मनाई जाती है। हालांकि लक्ष्मीबाई के जन्म की सही तारीख अभी भी बहस का विषय है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था। 1857 के विद्रोह में खोए लोगों के सम्मान के लिए झांसी में इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाई जाती है। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका नाम मणिकर्णिका रखा गया था। उन्हें मणिकर्णिका से मनु उपनाम दिया गया था। रानी लक्ष्मीबाई 1857 के विद्रोह की प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं। देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम 10 मई 1857 को शुरू हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई पूरे भारतीय के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने वाली एक प्रतीक बन गई हैं। Rani Laxmibai Jayanti: Manikarnika से कैसे बन गई झांसी की Rani Laxmibai? जानें | वनइंडिया हिंदी जानिए रानी लक्ष्मीबाई के बारे में रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही अपने उम्र की लड़कियों के मुकाबले काफी तेज थीं। रानी लक्ष्मीबाई अपनी उम्र की अन्य लड़कियों की तुलना में अधिक स्वतंत्र थी और उस समय आमतौर पर बेटों के जैसे उनका पालन-पोषण किया गया था। मणिकर्णिका ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था और पेशवा के दरबार में सलाहकार के रूप में काम करने वाले उनके पिता ने उनका पालन-पोषण एक अपरंपरागत तरीके से किया था। उनके पिता ने घुड़सवारी, तीरंदाजी, आत्मरक्षा और निशानेबाजी सीखने में उनका साथ दिया था। मणिकर्णिका कब बनीं रानी लक्ष्मीबाई मणिकर्णिका यानी लक्ष्मीबाई ने 1842 में महाराजा गंगाधर राव नेवालकर से शादी की थी। जिसके बाद उन्हें रानी लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा। शादी के क...

झांसी की रानी की जयंती पर पढ़ें ओजस्वी कविता ‘ख़ूब लड़ी मर्दानी’

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़। महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में, राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में, सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में। चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई, किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई, तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई, रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई। निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया, राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया, फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया। अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी...

झाँसी

उत्तर प्रदेश में स्थिति निर्देशांक: 25°26′N 78°34′E / 25.44°N 78.56°E / 25.44; 78.56 25°26′N 78°34′E / 25.44°N 78.56°E / 25.44; 78.56 देश शासन •महापौर राम तीर्थ सिंघल ( ऊँचाई 285मी (935फीट) जनसंख्या (2011) •शहर 5,05,693 • 5,47,638 भाषाएँ •प्रचलित 284122-2-3-4 दूरभाष कोड 0510 UP-93 83.0% औसत ग्रीष्मकालीन तापमान 48°से. (118°फ़ै) औसत शीतकालीन तापमान 4.0°से. (39.2°फ़ै) वेबसाइट .jhansi .nic .in अनुक्रम • 1 विवरण • 2 इतिहास • 3 रानी झाँसी राज्याभिषेक • 4 रानी झाँसी का मन्त्रीमण्डल • 5 शिक्षा • 5.1 प्रमुख शिक्षा संस्थान • 5.2 अभियान्त्रिकी संस्थान • 6 पयर्टन • 6.1 दर्शनिय स्थल • 6.2 झाँसी किला • 6.3 रानी महल • 6.4 झाँसी संग्रहालय • 6.5 महालक्ष्मी मन्दिर • 6.6 गंगाधर राव की छतरी • 6.7 गणेश मन्दिर • 6.8 निकटतम दर्शनीय स्थल • 7 आवागमन • 8 झाँसी से संबद्ध कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तित्व • 9 इन्हें भी देखें • 10 बाहरी कड़ियाँ • 11 सन्दर्भ विवरण [ ] यह शहर बुन्देलों हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी इतिहास [ ] यह नगर 17वीं शताब्दी बुन्देला राजा छ्त्रसाल ने सन् 1732 में सन् 1806 मे मराठा शक्ति कमजोर पडने के बाद ब्रितानी राज और रानी झाँसी राज्याभिषेक [ ] ४ जून १८५७ को भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाडी युद्ध किया। ९ जून को रानी लक्ष्मीबाई को झांसी सौंपी। १० जून १८५७ को दत्तक पुत्र दामोदरराव नेवालकर के नाम पर महारानी लक्ष्मीबाई का राज्याभिषेक हुआ और वह समुचे बुन्देलखण्ड की साम्राज्ञी बनी। राजमाता बनते ही उन्होंने प्रजा के हीत के निर्णय तथा आदेश पारीत किये। बुन्देलखण्ड के किसानों का लगान माफ किया था। महारानी लक्ष्मीबाई का यह स्वर्ण राजकाल पहिला चरण (२...

Rani Laxmibai Jayanti

4. पति की मृत्यु : इसके बाद में जब उनके पति का स्वास्थ्य बिगड़ गया तो सबने उत्तराधिकारी के रूप में एक पुत्र गोद लेने की सलाह दी। इसके बाद दामोदर राव को गोद लिया गया। 21 नवंबर 1853 को महाराजा गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गई। इस समय लक्ष्मीबाई 18 साल की थीं और अब वे अकेली रह गईं, लेकिन रानी ने हिम्मत नहीं हारी व अपने कर्तव्य को समझा। 5. अंग्रेजों की आपत्ति : जब दामोदर को गोद लिया गया उस समय वहां अंग्रेजों का राज था। ब्रिटिश सरकार ने बालक दामोदर को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और वे झांसी को ब्रितानी राज्य में मिलाने का षड्यंत्र रचने लगे। उस वक्त भारत में डलहौजी नामक वायसराय‍ ब्रितानी सरकार का नुमाइंदा था। जब रानी को पता लगा तो उन्होंने एक वकील की मदद से लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया, लेकिन ब्रितानियों ने रानी की याचिका खारिज कर दी। 8. अंग्रेजों का हमला : 1858 में ब्रिटिश सरकार ने झांसी पर हमला कर उसको घेर लिया व उस पर कब्जा कर लिया, लेकिन रानी ने साहस नहीं छोड़ा। उन्होंने पुरुषों की पोशाक धारण की, अपने पुत्र को पीठ पर बांधा। दोनों हाथों में तलवारें लीं व घोडे़ पर सवार हो गईं व घोड़े की लगाम अपने मुंह में रखी व युद्ध करते हुए वे अंत में अपने दत्तक पुत्र व कुछ सहयोगियों के साथ वहां से निकल गई। 10. देश के गद्दार : तात्या से मिलने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के लिए कूच किया। देश के गद्दारों के कारण रानी को रास्ते में फिर से शत्रुओं का सामना करना पड़ा। वीरता और साहस के साथ रानी ने युद्ध किया और युद्ध के दूसरे ही दिन (18 जून 1858) को 30 साल की महानायिका लक्ष्मीबाई लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गईं।