जीएम सरसों

  1. GM सरसों की खरपतवारनाशी टॉलरेंट नेचर पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रही सरकार, किसानों को अपराधी बनाने की कोशिश
  2. जीएम सरसों को मंजूरी देने की सिफारिश, केंद्र करेगा फैसला
  3. जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की चिंता, कहा
  4. Know More About GM Crops
  5. किसानों को दो साल में मिल सकती है जीएम सरसों
  6. hindustan opinion column 25 November 2022
  7. मधुमक्खी पालन उद्योग ने जीएम सरसों पर उठाए सवाल, कहा
  8. GM Mustard: जीएम सरसों पर क्या है विवाद? क्यों विरोध होता रहा है जेनेटिकली मोडिफाइड बीजों का?
  9. जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की चिंता, कहा
  10. मधुमक्खी पालन उद्योग ने जीएम सरसों पर उठाए सवाल, कहा


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GM सरसों की खरपतवारनाशी टॉलरेंट नेचर पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रही सरकार, किसानों को अपराधी बनाने की कोशिश

पत्र में कहा गया, भारत सरकार भारत के सुप्रीम कोर्ट को इस आश्वासन के साथ गुमराह कर रही है कि जीएम सरसों (GM Mustard) एचटी फसल नहीं है. बार-बार यह आश्वासन देकर कि जीएम सरसों एक हर्बिसाइड-टॉलरेंट क्रॉप नहीं है, भारत सरकार भारत में एचटी फसलों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अदालत द्वारा नियुक्त टीईसी द्वारा स्पष्ट सिफारिश को दरकिनार करने की कोशिश कर रही है. जीएम सरसों पर हर्बिसाइड का इस्तेमाल करना अपराध इसमें कहा गया है कि इसके बजाय सरकार जीएम सरसों (GM Mustard) पर हर्बिसाइड का इस्तेमाल करने वाले किसानों को ‘अपराधी’ बनाने की कोशिश कर रही है. हर्बिसाइड खरपतवारों का नष्ट करने या नियंत्रित करने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले रसायन हैं. चयनित हर्बिसाइड खेत में लक्षित खरपतवारों को नष्ट कर देते हैं जबकि वांछित फसल के पौधों को अपेक्षाकृत कोई नुकसान नहीं होता है. खरतपतवार वे अनावश्यक पौधे होते हैं जो फसल के साथ उगते हैं और फसलों का पोषण स्वयं ले लेते हैं. इसलिए इन्हें हटाना जरूरी होता है. ये भी पढ़ें- पत्र में कहा गया है कि अक्टूबर 2022 में जीएम सरसों (GM Mustard) के पर्यावरणीय रिलीज के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमिटी (GEAC) द्वारा जारी अनुमोदन पत्र में एक शर्त थी जो किसानों को किसी भी स्थिति में अपने खेतों में खेती के लिए हर्बिसाइड के किसी भी फॉर्मूलेशन का उपयोग करने से रोकती है. हालांकि, इसमें कहा गया है कि किसानों का अपराधीकरण या दंड कानूनी रूप से संभव नहीं है क्योंकि उन्हें कीटनाशक अधिनियम 1968 के तहत विनियमन से छूट प्राप्त है. कृषि और पर्यावरण पर जीएम फसलों के प्रभावों पर बहस भारत सहित कई देशों में एक विवादास्पद मुद्दा है. जीएम फसलों (GM Crops) के समर्थकों का तर्क है कि वे खाद्य सु...

जीएम सरसों को मंजूरी देने की सिफारिश, केंद्र करेगा फैसला

बीस साल बाद जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएस) सरसों की खेती को मंजूरी मिलने की संभावना बन गई है। जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) की 18 अक्तूबर, 2022 को हुई 147वीं बैठक में देश में जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देने की सिफारिश की गई। 26 अक्टूबर 2022 को बैठक की मिनिट्स जारी की गई। जिसमें जीईएसी की सिफारिशों की जानकारी सामने आई। इन सिफारिशों को सरकार की मंजूरी मिल जाती है तो इसे चालू सीजन में उगाना संभव हो पाएगा। जीईएसी ने सरसों की जिस डीएमएच-11 हाइब्रिड किस्म के इनवायरमेंटल रिलीज की सिफारिश की है उसे दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ दिल्ली कैंपस स्थित सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) ने विकसित किया है। इस टीम का नेतृत्व दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रह चुके प्रोफेसर दीपक पेंटल ने किया। पेंटल एक प्रसिद्ध शोधकर्ता और आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) के प्रोफेसर हैं। भारत में जीएम सरसों पर नीतिगत बहस वर्षों से चल रही है। एक ओर जहां केंद्र सरकार जीएम फसलों को अनुमति देकर खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना चाहती है, वहीं इसका व्यापक विरोध भी किया जा रहा है। विशेषज्ञों ने एक समूह ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है, “भारत में जीएम फसल की खेती के किसी भी अनुमोदन का देश के नागरिकों द्वारा कड़ा विरोध किया जाएगा। जीईएसी दूसरी बार जीएम सरसों को मंजूरी देने की सिफारिश की जा रही है, जो पूरी तरह अवैज्ञानिक और गैर जिम्मेदारना है। इस निर्णय का कोई आधार भी नहीं है। इस समूह में कृषि विशेषज्ञों के अलावा किसान संगठनों और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि शामिल हैं। इससे पहले मई 2017 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई)...

जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की चिंता, कहा

भारत के बायो-टेक रेग्युलेटर से जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों के बीज उत्पादन और परीक्षण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी मिल चुकी है. वहीं मंजूरी मिलने के बाद से ही इसको लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. कई किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ 'जीन कैंपेन' द्वारा जीएम सरसों को लेकर दाखिल की गई अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिस पर कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जोखिम कारक परेशान करने वाले हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जीएम सरसों की पर्यावरणीय रिलीज से पहले जोखिम कारकों के बारे में चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जब जीएम सरसों को पर्यावरणीय रूप से जारी करने के लिए केंद्र द्वारा दी गई सशर्त मंजूरी की बात आती है, तो वह किसी भी अन्य चीज की तुलना में जोखिम कारकों के बारे में अधिक चिंतित है. इसे भी पढ़ें: सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ ‘जीन कैंपेन की अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. याचिकाओं में किसी भी आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों या फसलों पर रोक लगाने की मांग की गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसी फसलें पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है. वहीं केंद्र सरकार की तरफ से जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बीवी नागरथना की बेंच के समक्ष पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जीएम सरसों डीएमएच-11 को पर्यावरण के लिए जारी करने की सशर्त मंजूरी की समयसीमा का जिक्र करते हुए कहा कि सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार किया गया है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 25 अक्टूबर 2022 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने डी...

Know More About GM Crops

नई दिल्ली: संभावना है कि जीएम सरसों को खेतों में उगाने की अनुमति जल्दी ही सरकार दे देगी. इसके लिए ज़रूरी फील्ड ट्रायल किए जा चुके हैं. सरकार की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी से इसे हरी झंडी मिल चुकी है. अगर जीएम सरसों के खेतों में उगाई गई तो यह भारत में पहली जीएम खाद्य फसल होगी. हम आपको समझाते हैं कि जीएम फसल क्या होती है और क्यों इस पर बहसचल रही है. ( क्या है ‘जीएम’? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक जीएम ऑर्गेनिज्म (पौंधे, जानवर, माइक्रोऑर्गेनिज्म) में डीएनए को इस तरह बदला जाता है जैसे प्राकृतिक तरीके से होने वाली प्रजनन प्रक्रिया में नहीं होता. जीएम टेक्नोलॉजी को इन नामों से भी जाना जाता है. 1.जीन टेक्नोलॉजी 2.रिकॉम्बिनेंट डीएनए टेक्नोलॉजी 3.जैनेटिक इंजीनियरिंग कैसे बनता है जीएम? सरल भाषा में जीएम टेक्नोलॉजी के तहत एक प्राणी या वनस्पति के जीन को निकालकर दूसरे असंबंधित प्राणी/वनस्पति में डाला जाता है. इसके तहत हाइब्रिड बनाने के लिए किसी माइक्रोऑर्गेनिज्म में नपुंसकता पैदा की जाती है. जैसे जीएम सरसों को प्रवर्धित करने के लिए सरसों के फूल में होने वाले स्व-परागण (सेल्फ पॉलिनेशन) को रोकने के लिए नर नपुंसकता पैदा की जाती है. फिर हवा, तितलियों, मधुमक्खियों और कीड़ों के ज़रिये परागण होने से एक हाइब्रिड तैयार होता है. इसी तरह बीटी बैंगन में प्रतिरोधकता के लिए ज़हरीला जीन डाला जाता है ताकि बैंगन पर हमला करने वाला कीड़ा मर सके. क्या मकसद है? वैज्ञानिकों का दावा है कि जीएम फसलों की उत्पादकता और प्रतिरोधकता अधिक होती है. इन तकनीक के ज़रिये सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने वाली नस्लें तैयार की जा सकती हैं. बीटी बैंगन के मामले में कीड़े से अप्रभावित रहने वाली फसल और जीएम ...

किसानों को दो साल में मिल सकती है जीएम सरसों

सरकार करेगी व्यावसायिक अनुमति देने पर फैसला • (विशेष प्रतिनिधि) 3 नवम्बर 2022, नई दिल्ली । किसानों को दो साल में मिल सकती है जीएम सरसों– सब कुछ ठीक रहा तो अगले दो सालों में किसान जीएम सरसों की खेती करने लगेंगे। बी.टी. कपास के बीस साल बाद जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों की खेती को मंजूरी मिलने की संभावना बन गई है। जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) ने गत 18 अक्टूबर, 2022 को हुई 147वीं बैठक में देश में जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देने की सिफारिश की थी। इन सिफारिशों को सरकार की मंजूरी मिल जाती है तो इसे व्यावसायिक तरीके से उगाना संभव हो पाएगा। व्यावसायिक अनुमति मिलने पर खाद्य तेलों की आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी तथा देश में सरसों का उत्पादन बढ़ेगा। जीईएसी ने सरसों की जिस डीएमएच-11 हाइब्रिड किस्म के इनवायरमेंटल रिलीज की सिफारिश की है उसे दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ दिल्ली कैंपस स्थित सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) ने विकसित किया है। इस टीम का नेतृत्व दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रह चुके प्रो. दीपक पेंटल ने किया। जीईएसी ने कहा है कि मंजूरी पत्र जारी होने की तिथि से 4 वर्षों के लिए जीएम सरसों को जारी करने की सिफारिश की गई है। जीईएसी ने कहा कि डीएमएच-11 संकर किस्म का वाणिज्य उपयोग बीज अधिनियम 1966 और संबंधित नियमों एवं विनियमों पर निर्भर करेगा। डीएमएच-11 किस्म में अहम भूमिका निभाने वाले प्रो. पेंटल ने कहा है कि यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो दो वर्षों में जीएम सरसों का बीज किसानों को मिल जाएगा। विशेषज्ञों के एक समूह ने कहा है, ‘भारत में जीएम फसल की खेती के किसी भी अनुमोदन का देश के नागरिकों द्वारा कड़ा विरोध किया जाएगा। जीईएसी दू...

hindustan opinion column 25 November 2022

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधीन काम करने वाली आनुवांशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों की एक किस्म धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (डीएमएच)-11 को पर्यावरणीय मंजूरी दी है। दावा किया गया है कि इससे सरसों की पैदावार बढ़ेगी और खाद्यान्न तेल का आयात कम होगा। तर्क है कि इसमें प्रति हेक्टेयर करीब 2,600 किलो सरसों का उत्पादन होगा, यानी करीब 30 फीसदी अधिक। मगर दिलचस्प है कि जिस किस्म को मंजूर किया गया है, वह ‘जंक वैरायेटी’ है, यानी विज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। फिर, इसकी तुलना वरुणा नामक भारतीय किस्म से की गई है, जिसकी पैदावार पहले ही कम है। इसके बनिस्बत डीएमएच-4 से इसकी तुलना की जाती, जिसमें प्रति हेक्टेयर 3,050 किलो उपज प्राप्त होती है, तो डीएमएच-11 स्वाभाविक तौर पर गैर-जरूरी किस्म जान पड़ती है। ऐसे में, भला यह कैसे कहा जा सकता है कि कम पैदावार वाली किस्म से देश में सरसों का उत्पादन बढ़ा लिया जाएगा? क्या यह ‘न्यू साइंस’ है, यानी ऐसी तकनीक या किस्मों को मंजूर करना, जो औद्योगिक घरानों के लिए मुफीद है? दिलचस्प है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) में इसकी पैदावार को लेकर परीक्षण नहीं हुए हैं, तो फिर इसको किस आधार पर मंजूर किया गया है? आखिर इस जल्दबाजी की जरूरत क्यों थी? नई किस्म को मंजूर करने के लिए अपने यहां एक खास तरीका अपनाने का चलन रहा है। उसी किस्म को मंजूर किया जाता है, जो मौजूदा किस्म से कम से कम 10 फीसदी अधिक पैदावार करे। मगर डीएमएच-11 की पैदावार की अब तक आईसीएआर ने पुष्टि ही नहीं की है। यहां मुझे 2001 की वह बैठक याद आ रही है, जो देश में पहली बार जीएम फसल को अनुमति देने के लिए बुलाई गई थी। उसमें मैं भी मौजूद था। बैठक में बीटी कपास ...

मधुमक्खी पालन उद्योग ने जीएम सरसों पर उठाए सवाल, कहा

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी यानी जीईएसी द्वारा जीएम सरसों के व्यावसायिक रिलीज से पहले इसके बीज उत्पादन को मंजूरी देने के बाद इस मसले पर बहस जारी है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही है तो दूसरी ओर वैज्ञान‍िक समुदाय और सिव‍िल सोसायटी भी जीएम सरसों को लेकर दो धड़े में बंट गए हैं. इस विवाद के बीच मधुमक्खी पालन उद्योग की अगुवाई करने वाले ‘कंफेडेरशन ऑफ ऐपीकल्चर इंडस्ट्री (CAI) ने इस फैसले को ‘स्वीट रेवोल्युशन’ (मधु क्रांति) के लिए बेहद घातक बताया है. संगठन ने जीएम मस्टर्ड से मधुमक्खियों के कम होने का अंदेशा जताया है. ज‍िससे मीठी क्रांति प्रभाव‍ित होगी. ऐसे में जीएम सरसों के ट्रॉयल को रुकवाने के ल‍िए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाई है. सीएआई के अध्यक्ष देवव्रत शर्मा ने क‍िसान तक से बातचीत में कहा क‍ि मधुमक्खियों की संख्या कम हुई तो सृष्ट‍ि पर संकट आ जाएगा. क्योंक‍ि फसल उत्पादन बुरी तरह से प्रभाव‍ित होगा. वो देश भर में मधुमक्खी पालन की ट्रेन‍िंग देते हैं. उन्होंने कहा कि सरसों बीज के बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा हो जाने का भी खतरा है. जो बाद में क‍िसानों के साथ मनमानी कर सकती हैं. ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री से जेनेट‍िकली मोड‍िफाइड सरसों के ट्रायल को रोकने की मांग की है. ताक‍ि लाखों किसानों और मधुमक्खी पालकों की रोजी रोटी न छ‍िने. मधुमक्खियां कम हुईं तो पैदा होगा बड़ा संकट मधुमक्खी पालन उद्योग संगठन के अध्यक्ष ने कहा क‍ि ठंड के मौसम में होने वाली सरसों की फसल के लिए कोई कीटनाशक इत्यादि का छिड़काव की आवश्यकता नहीं होती. मधुमक्खियों के परागण के गुण के कारण शहद के साथ-साथ सरसों का उत्पादन खुद ब खुद बढ़ेगा. ऐसे में जीएम सरसों की कोई भूमिका नहीं रह ज...

GM Mustard: जीएम सरसों पर क्या है विवाद? क्यों विरोध होता रहा है जेनेटिकली मोडिफाइड बीजों का?

क्या है जीएम सरसों? जैनेटिक्ली मोडिफाइड (आनुवंशिक रूप से संशोधित) किस्म को दो अलग-अलग किस्मों से मिलाकर बनाया जाता है। ऐसी प्रथम पीढ़ी (जेनरेशन) संकर किस्म की उपज मूल किस्मों से ज्यादा होने का संयोग रहता है। लेकिन सरसों के साथ ऐसा करना आसान नहीं होता। इसकी वजह यह है कि इसके फूलों में नर और मादा, दोनों प्रजनन अंग (रीप्रोडक्टिव ऑर्गन) होते हैं और सरसों का पौधा काफी हद तक खुद ही परागण कर लेता है। किसी दूसरे पौधे से कीट-पतंगे पराग ले आएं, इसकी जरूरत नहीं होती। ऐसे में कपास, मक्का या टमाटर की तरह सरसों की संकर (हाइब्रिड) किस्म तैयार करने का संयोग काफी कम हो जाता है। लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स के वैज्ञानिक प्रो. दीपक पेंटल व अन्य वैज्ञानिकों ने सरसों की भारतीय किस्म 'वरुणा' की क्रॉसिंग पूर्वी यूरोप की किस्म 'अर्ली हीरा-2' से कराकर यह किस्म तैयार की है। जीएम सरसों में थर्ड 'बार' जीन की मौजूदगी इसके विरोध की पहली वजह है। जिसके चलते जीएम सरसों के पौधों पर खरपतवार नाशक ग्लूफोसिनेट अमोनियम का असर नहीं होता। जीएम बीज विरोधियों का कहना है कि इस केमिकल का इस्तेमाल होगा तो खरपतवार हटाने में इंसानों की जरूरत घट जाएगी, केमिकल हर्बिसाइड्स का इस्तेमाल बढ़ेगा और मजदूरों के लिए काम के मौके घट जाएंगे। इसके विपरित इस किस्म को तैयार करने वालों का कहना है कि बड़े पैमाने पर बीज तैयार करने के लिए जीएम मस्टर्ड में थर्ड 'बार' जीन डालना जरूरी था क्योंकि इसके जरिए यह पहचान होती है कि कौन से पौधे जेनेटिकली मॉडिफाइड हैं। जो जीएम पौधे नहीं होंगे, वे खरपतवार नाशक केमिकल को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। बताया यह भी जा रहा है कि जीईएसी ने हाइब्रिड बीज तैयार करने में हर...

जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की चिंता, कहा

भारत के बायो-टेक रेग्युलेटर से जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों के बीज उत्पादन और परीक्षण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी मिल चुकी है. वहीं मंजूरी मिलने के बाद से ही इसको लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. कई किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ 'जीन कैंपेन' द्वारा जीएम सरसों को लेकर दाखिल की गई अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिस पर कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जोखिम कारक परेशान करने वाले हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जीएम सरसों की पर्यावरणीय रिलीज से पहले जोखिम कारकों के बारे में चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जब जीएम सरसों को पर्यावरणीय रूप से जारी करने के लिए केंद्र द्वारा दी गई सशर्त मंजूरी की बात आती है, तो वह किसी भी अन्य चीज की तुलना में जोखिम कारकों के बारे में अधिक चिंतित है. इसे भी पढ़ें: सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ ‘जीन कैंपेन की अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. याचिकाओं में किसी भी आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों या फसलों पर रोक लगाने की मांग की गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसी फसलें पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है. वहीं केंद्र सरकार की तरफ से जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बीवी नागरथना की बेंच के समक्ष पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जीएम सरसों डीएमएच-11 को पर्यावरण के लिए जारी करने की सशर्त मंजूरी की समयसीमा का जिक्र करते हुए कहा कि सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार किया गया है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 25 अक्टूबर 2022 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने डी...

मधुमक्खी पालन उद्योग ने जीएम सरसों पर उठाए सवाल, कहा

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी यानी जीईएसी द्वारा जीएम सरसों के व्यावसायिक रिलीज से पहले इसके बीज उत्पादन को मंजूरी देने के बाद इस मसले पर बहस जारी है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही है तो दूसरी ओर वैज्ञान‍िक समुदाय और सिव‍िल सोसायटी भी जीएम सरसों को लेकर दो धड़े में बंट गए हैं. इस विवाद के बीच मधुमक्खी पालन उद्योग की अगुवाई करने वाले ‘कंफेडेरशन ऑफ ऐपीकल्चर इंडस्ट्री (CAI) ने इस फैसले को ‘स्वीट रेवोल्युशन’ (मधु क्रांति) के लिए बेहद घातक बताया है. संगठन ने जीएम मस्टर्ड से मधुमक्खियों के कम होने का अंदेशा जताया है. ज‍िससे मीठी क्रांति प्रभाव‍ित होगी. ऐसे में जीएम सरसों के ट्रॉयल को रुकवाने के ल‍िए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाई है. सीएआई के अध्यक्ष देवव्रत शर्मा ने क‍िसान तक से बातचीत में कहा क‍ि मधुमक्खियों की संख्या कम हुई तो सृष्ट‍ि पर संकट आ जाएगा. क्योंक‍ि फसल उत्पादन बुरी तरह से प्रभाव‍ित होगा. वो देश भर में मधुमक्खी पालन की ट्रेन‍िंग देते हैं. उन्होंने कहा कि सरसों बीज के बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा हो जाने का भी खतरा है. जो बाद में क‍िसानों के साथ मनमानी कर सकती हैं. ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री से जेनेट‍िकली मोड‍िफाइड सरसों के ट्रायल को रोकने की मांग की है. ताक‍ि लाखों किसानों और मधुमक्खी पालकों की रोजी रोटी न छ‍िने. मधुमक्खियां कम हुईं तो पैदा होगा बड़ा संकट मधुमक्खी पालन उद्योग संगठन के अध्यक्ष ने कहा क‍ि ठंड के मौसम में होने वाली सरसों की फसल के लिए कोई कीटनाशक इत्यादि का छिड़काव की आवश्यकता नहीं होती. मधुमक्खियों के परागण के गुण के कारण शहद के साथ-साथ सरसों का उत्पादन खुद ब खुद बढ़ेगा. ऐसे में जीएम सरसों की कोई भूमिका नहीं रह ज...