जीन पियाजे की चार अवस्थाएं

  1. प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त
  2. संज्ञानात्मक विकास की कितनी अवस्थाएं हैं?
  3. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  4. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत और उनपर आधारित प्रश्न
  5. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत
  6. जीन पियाजे: संज्ञानात्मक विकास का प्रतिपादन – Studywhiz
  7. संज्ञानात्मक या ज्ञानात्मक/मानसिक विकास का सिद्धान्त
  8. जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  9. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  10. प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त


Download: जीन पियाजे की चार अवस्थाएं
Size: 24.80 MB

प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त

संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त (theory of cognitive development) विकासी अवस्था सिद्धान्त (developmental stage theory) कहलाता है। यह सिद्धान्त व्यक्ति वातावरण के तत्वों का प्रत्यक्षीकरण करता है; अर्थात् पहचानता है, प्रतीकों की सहायता से उन्हें समझने की कोशिश करता है तथा संबंधित वस्तु/व्यक्ति के संदर्भ में अमूर्त चिन्तन करता है। उक्त सभी प्रक्रियाओं से मिलकर उसके भीतर एक ज्ञान भण्डार या संज्ञानात्मक संरचना उसके व्यवहार को निर्देशित करती हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति वातावरण में उपस्थित किसी भी प्रकार के उद्दीपकों (स्टिमुलैंट्स) से प्रभावित होकर सीधे प्रतिक्रिया नहीं करता है, पहले वह उन उद्दीपकों को पहचानता है, ग्रहण करता है, उसकी व्याख्या करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संज्ञात्माक संरचना वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों और व्यवहार के बीच मध्यस्थता का कार्य करता हैं। जीन प्याजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता है। चूंकि उसके अनुसार, बालक के भीतर संज्ञान का विकास अनेक अवस्थाओ से होकर गुजरता है, इसलिये इसे अवस्था सिद्धान्त (STAGE THEORY ) भी कहा जाता है। अनुक्रम • 1 संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ • 1.1 संवेदी पेशीय अवस्था • 1.2 पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था • 1.3 मूर्त संक्रियात्मक अवस्था • 1.4 औपचारिक या अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था • 2 संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया एवं संरचना • 3 बाहरी कड़ियाँ संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ [ ] जीन पियाजे ने संज्...

संज्ञानात्मक विकास की कितनी अवस्थाएं हैं?

डॉ० जीन पियाजे (1896-1980), Jean Piaget Theory यह एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने मानव विकास के समस्त पहलुओं को क्रमबद्ध तरीके से उजागर किया जिसे हम Piaget theory एवं जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास के नाम से भी जानते हैं उन्होंने अपनी theory में बताया कि बालक का संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Devlopment) कैसे होता हैं और उसके विकास के क्या-क्या स्तर होते है। Table of Contents Show • • • • • • • संज्ञानात्मक से उनका आशय है , बौद्धिक विकास । जीन पियाजे के अनुसार बालक का बौध्दिक विकास क्रमबद्ध तरीके से होता है जैसे बच्चा भूख लगने पर रोता है,अर्थात वह अपने भावात्मक पहलुओं को विभिन्न कक्रियाओं के जरिये व्यक्त करता है ,वह अपने भावात्मक पहलुओं को अपनी इंद्रियों (आँख, कान,नाख, जीभ,हाथ आदि) के माध्यम से प्रकट करता है,तत्पश्चात वह अपने माता – पिता का अनुकरण करता है उसके बाद वह समाज मे आकर सामूहिक क्रियाओं पर बल देता है जिससे उसके संज्ञानात्मक विकास में वृद्धि होती है। तो आइए अब जानते है कि जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास क्या है? Piaget Theory यह बहुत महत्वपूर्ण है,क्योंकि C.TET / U.TET आदि Competition exams में इसमें से प्रश्न निरंतर पूछे जाते रहे हैं। जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास के समस्त पहलुओं को जानने के लिए इस पोस्ट को अंत तक देखें। • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास Cognitive Development of Jean Piaget Theory – • संज्ञानात्मक विकास के प्रत्यय Concept of Cognitive Devlopment – • Steps of cognitive devlopment theory • जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाये Cognitive Devlopment Stages According to Jean Piaget Theory – जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास Cogni...

पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

1.5 (4) औपचारिक संक्रिया की अवस्था (Stage of formal operations) पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत (Piaget’s Theory of Cognitive Development) पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत में जीन पियाजे (Jean Piaget) ने बालकों के संज्ञानात्मक विकास (cognitive development) की व्याख्या करने के लिए एक चार अवस्था (four stage) सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। इस सिद्धांत में पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या चार प्रमुख अवस्थाओं (stages) में बाँटकर की है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत चार अवस्था निम्न है 1. संवेदी-पेशीय अवस्था (Sensory-motor state) 2. प्राक्संक्रियात्मक अवस्था (Preoperational stage) 3. ठोस संक्रिया की अवस्था (Stage of concrete operation). 4. औपचारिक संक्रिया की अवस्था (Stage of formal operation) (1) संवेदी-पेशीय अवस्था (Sensory-motor stage)- यह अवस्था जन्म से दो साल तक की होती है। इस अवस्था में शिशुओं में अन्य क्रियाओं के अलावा शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर करना, वस्तुओं की पहचान करने की कोशिश करना, किसी चीज को पकड़ना और प्रायः उसे मुँह में डालकर उसका अध्ययन करना आदि प्रमुख हैं। पियाजे ने यह बताया है कि इस अवस्था में शिशुओं का बौद्धिक विकास (intellectual development) या (i) पहली अवस्था को प्रतिवर्त क्रियाओं की अवस्था (Stage of reflex activities) कहा जाता है जो जन्म से 30 दिन तक की होती है। इस अवस्था में बालक मात्र प्रतिवर्त क्रियाएँ (reflex (activities) करता है। इन प्रतिवर्त क्रियाओं में चूसने का प्रतिवर्त (sucking reflex) सबसे प्रबल होता है। (ii) दूसरी अवस्था प्रमुख वृत्तीय प्रतिक्रियाओं की अवस्था (Stage of primary circular (reactions) है जो ...

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत और उनपर आधारित प्रश्न

जीन पियाजे, स्विट्जरलैंड के निवासी थे। जीन पियाजे एक मनोवैज्ञानिक और आनुवंशिक एपिस्टेमोलॉजिस्ट थे। वह सबसे अधिक संज्ञानात्मक विकास के अपने सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है जो इस बात पर ध्यान देता है कि बचपन के दौरान बच्चे बौद्धिक रूप से कैसे विकसित होते हैं। पियाजे के सिद्धांत से पहले, बच्चों को अक्सर केवल मिनी-वयस्कों के रूप में सोचा जाता था। इसके बजाय, पियाजे ने सुझाव दिया कि जिस तरह से बच्चे सोचते हैं, वह उस तरह से अलग है, जिस तरह से वयस्क सोचते हैं। उनके सिद्धांत का मनोविज्ञान के भीतर एक विशिष्ट उपक्षेत्र के रूप में विकासात्मक मनोविज्ञान के उद्भव पर जबरदस्त प्रभाव था और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। उन्हें रचनावादी सिद्धांत के एक अग्रणी के रूप में भी श्रेय दिया जाता है, जो बताता है कि लोग अपने विचारों और अपने अनुभवों के बीच की बातचीत के आधार पर सक्रिय रूप से दुनिया के अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं। 2002 के एक सर्वेक्षण में पियाजे को बीसवीं शताब्दी के दूसरे सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था। 💖 जीन पियाजे का जन्म : 1806 💖 जीन पियाजे का मृत्यु : 1980 💖 सर्वप्रथम संज्ञानात्मक पक्ष का क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अध्ययन स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे के द्वारा किया गया। 💖 संज्ञान- प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण/ उद्दीपक जगत/ बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है। 💖 समस्या समाधान, समप्रत्ययीकरर्ण ( विचारों का निर्माण), प्रत्येकक्षण( देखकर सीखना) आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती है। यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं। 💖 जीन पियाजे का संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते हुए संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन ...

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Piaget's Cognitive Development Theory) -:- जीन पियाजे एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे। इनका जन्म 1886 ईसवी को स्विजरलैंड में हुआ था। आधुनिक युग में ज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र मैं स्विजरलैंड के मनोवैज्ञानिक जिन पियाजे ने क्रांति पैदा कर दी। आज तक ज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में शोध एवं अध्ययन किए गए उनमे सबसे विस्तृत और वैज्ञानिक रूप से आदान जीन पियाजे जी ने किया। ▶पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं (Steps of Piaget’s cognitive development) जीन प्याजे ने बालक के संज्ञानात्मक विकास का गहराई से अध्ययन किया और मानव के मानसिक विकास की व्याख्या संज्ञानात्मक विकास के रूप में की है। उसने संज्ञानात्मक विकास की चार महत्वपूर्ण अवस्थाएं बताई हैं - (1). संवेदी गतिक अवस्था (Sensory Motor Stage) :- पियाजे के अनुसार जन्म से 2 वर्ष तक की आयु के बालक अपनी इंद्रियों द्वारा प्राथमिक अनुभव प्राप्त करते हैं. पियाजे ने इस काल को संवेदी गतिक अवस्था कहा है. जन्म से 30 दिन तक की अवस्था में बालक केवल सहज क्रियाएं करता है. इन क्रियाओं में किसी भी वस्तु को मुंह से लेकर चूसने की क्रिया सबसे अधिक प्रबल होती है. 1 से 4 माह के बच्चों की सहज क्रियाएं कुछ सीमा तक उनकी अनुभूतियों द्वारा परिवर्तित होती हैं, दोहराई जाती हैं और एक दूसरे के साथ समन्वित (Co-ordinate) होती हैं. 4 माह से 6 माह की अवस्था में बच्चे वस्तुओं को स्पर्श करने और उन्हें इधर-उधर करने के अनुक्रिया करते हैं और साथ ही कुछ ऐसी अनुक्रिया करते हैं जिनसे उन्हें सुख मिलता है. 6 माह का होते होते बच्चे देखी गई वस्तु के अभाव में भी उसके होने को जानने लगते हैं. 8 माह से 12 माह तक की अवस्था में बच्चे उद्देश्य और उस...

जीन पियाजे: संज्ञानात्मक विकास का प्रतिपादन – Studywhiz

परिचय • जीन पियाजे का जन्म 1886 ई. में स्विजरलैंड में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1920 में संज्ञानात्मक विकास का प्रतिपादन किया लेकिन इस सिद्धांत को मान्यता वर्ष 1960 में मिली। • संज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है- सम् + ज्ञान। जिसका अर्थ – वह ज्ञान जो संगठित हो। • अपने बारे में तथा अपने वातावरण के बारे में व्यक्ति द्वारा प्राप्त ज्ञान, विचार, धारणा व व्याख्या ही संज्ञान है। • संक्षिप्त रूप में बाहरी जगत के बारे में जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है वहीं संज्ञान कहलाता है। • संज्ञान का उपयोग जीवन के हर क्षेत्र में होता है- निर्णय लेने में, समस्या समाधान में, भविष्यवाणी करने में, जटिल से जटिल विषय को आसानी से समझने में, तर्क करने में, चिन्तन करने में इन समस्त कार्यों में संज्ञान ही कार्य करता है। • जीन पियाजे का मानना है कि संज्ञानात्मक विकास अनुकरण की बजाय खोज पर आधारित है। इसमें व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों के प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर अपनी समझ का निर्माण करता है। उदाहरण के तौर पर कोई छोटा बच्चा जब जलते हुए दीपक को जिज्ञासावश छूता है तो उसे जलने के बाद अहसास होता है कि यह तो डरावनी चीज़ है, इससे दूर रहना चाहिए। संज्ञान की विशेषताएं- • यह एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है। • यह व्यक्तिगत होती है। • इसमें पूर्व अनुभवों का प्रयोग होता है। • इसमें अनेक मानसिक क्रियाएं एक साथ सम्मिलित होती है। • यह विशिष्ट सूझ अथवा समझ को बताती है। संज्ञान की कार्यविधि- अ. संगठन • प्राणी के द्वारा वातावरण के साथ प्रत्यक्षीकरण हो जाने के बाद समस्त सूचनाएं जिस बौद्धिक क्षेत्र में एकत्रित होती है। यह प्रक्रिया ही संगठन कहलाती है। ब. अनुकूलन वातावरण के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करना अनुकूलन कहलाता है। यह दो प्रकार ...

संज्ञानात्मक या ज्ञानात्मक/मानसिक विकास का सिद्धान्त

जीन पियाजे के अनुसार मानसिक / ज्ञानात्मक या संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त Theory of Mental or Cognitive Development According to Jean Piaget जीन पियाजे का जन्म सन् 1886 को स्विट्जरलैंड में हुआ था। प्याजे ने अपने सम्पूर्ण जीवन में मानव विकास का अध्ययन किया। आधुनिक युग में ज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक (Swiss psychologist Jean Piaget) जीन पियाजे ने क्रान्ति पैदा कर दी। आज तक ज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में जितने शोध एवं अध्ययन किये गये हैं, उनमें सबसे अधिक विस्तृत, वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित अध्ययन प्याजे ने किया। यही कारण है कि जीन प्याजे को मनोविज्ञान के क्षेत्र में तृतीय शक्ति (third force) के रूप में जाना जाता है। पियाजे के ज्ञानात्मक सिद्धान्त में ज्ञानात्मक प्रकिया (Cognition) का अर्थ ज्ञान (Knowledge) से नहीं है बल्कि इसका सम्बन्ध मानव बुद्धि से है, जो ज्ञान को व्यवस्थित एवं संगठित (Organize) करती है तथा उसका उपयोग (Utilize) करती है। पियाजे का सिद्धान्त जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास पर एक नवीन सिद्धान्त को प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार संज्ञान विकास की अवधारणा आयु (Age) न होकर बालक के द्वारा चाही गयी अनुक्रिया तक पहुँचने की निश्चित प्रगति है। बालक बाद की अवस्था की क्रिया नीतियों को प्रारम्भ के स्तर की क्रिया नीतियों की उपलब्धि और उनके अभ्यास के बिना ग्रहण नहीं कर सकता। आसुबेल के अनुसार, “ Piaget’s stage are identical sequential phases in an orderly progression of development that are qualitatively discriminable from adjacent phases generally characteristic of most members of a broadly defined age range.“ जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्...

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

अनुक्रम • • • • • • • • • जीन पियाजे का सिद्धांत जीन पियाजे का जन्म 1896 ई० को स्विट्जरलैंड में हुआ था। पियाजे को विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक माना जाता है। जीन पियाजे की पुस्तकें ☆ बाल चिंतन की भाषा ☆ The Psychology of the Child ☆ The Psychology of intelligence ☆ The Child Conception of the World ☆ The Language And Thought of the Child जीन पियाजे के अनुसार, “बच्चे संसार के बारे में अपनी समझ की रचना सक्रिय रूप से करते हैं।” जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएं हैं, इन सभी अवस्थाओं के नाम को नीचे दिए गए चार्ट में दर्शाया गया है- क्रम संख्या संज्ञानात्मक अवस्थाओं के नाम समयकाल 1. संवेदी गामक अवस्था /संवेदीपेशीय अवस्था / इंद्रिय जनित गामक अवस्था /ज्ञानात्मक क्रियात्मक अवस्था / संवेदनात्मक अवस्था / ज्ञानेंद्रिय गामक अवस्था जन्म से 2 वर्ष 2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था / प्राक् संक्रियात्मक अवस्था / प्राक् प्रचलनात्मक अवस्था 2 से 7 वर्ष 3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था / मूर्त प्रचलनात्मक अवस्था / स्थूल संक्रियात्मक अवस्था / ठोस प्रचलनात्मक अवस्था 7 से 11 वर्ष 4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था / औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था / औपचारिक प्रचलनात्मक अवस्था 11 से 15 वर्ष आइए जानते हैं विस्तार से- 1. संवेदी पेशीय अवस्था (जन्म से 2 वर्ष) • इस अवस्था में शिशु शरीर से चीजों को इधर-उधर करते हैं, वस्तुओं को पहचानने का प्रयास करते हैं। वे प्रकाश तथा आवाज के प्रति क्रिया करना आरंभ कर देते हैं। • इस अवस्था का बालक किसी भी वस्तु को देखना, पकड़ना, चूसना, दांतो से काटना आदि की स्वाभाविक क्रियाएं करता है। • बालक असहाय जीवधारी से गतिशील, अर्धभाषी तथा ...

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

प्रवर्तक – इस सिद्धांत के प्रतिपादक जीन पियाजे ,स्विट्जरलैंड के निवासी थे। जीन पियाजे एक मनोवैज्ञानिक और आनुवंशिक एपिस्टेमोलॉजिस्ट थे। वह सबसे अधिक संज्ञानात्मक विकास के अपने सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है जो इस बात पर ध्यान देता है कि बचपन के दौरान बच्चे बौद्धिक रूप से कैसे विकसित होते हैं। पियाजे के सिद्धांत से पहले, बच्चों को अक्सर केवल मिनी-वयस्कों के रूप में सोचा जाता था। इसके बजाय, पियाजे ने सुझाव दिया कि जिस तरह से बच्चे सोचते हैं, वह उस तरह से अलग है, जिस तरह से वयस्क सोचते हैं। Advertisement उनके सिद्धांत का मनोविज्ञान के भीतर एक विशिष्ट उपक्षेत्र के रूप में विकासात्मक मनोविज्ञान के उद्भव पर जबरदस्त प्रभाव था और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। उन्हें रचनावादी सिद्धांत के एक अग्रणी के रूप में भी श्रेय दिया जाता है, जो बताता है कि लोग अपने विचारों और अपने अनुभवों के बीच की बातचीत के आधार पर सक्रिय रूप से दुनिया के अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं। 2002 के एक सर्वेक्षण में पियाजे को बीसवीं शताब्दी के दूसरे सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था। Jean Piaget cognitive development theory facts: Jean Piaget • सर्वप्रथम संज्ञानात्मक पक्ष का क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अध्ययन स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजेके द्वारा किया गया। • संज्ञान- प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण/ उद्दीपक जगत/ बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है। • समस्या समाधान, समप्रत्ययीकरर्ण ( विचारों का निर्माण), प्रत्येकक्षण( देखकर सीखना) आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती है। यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं। • जीन पियाजेका संज्ञानात्मक पक्ष पर बल ...

प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त

संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त (theory of cognitive development) विकासी अवस्था सिद्धान्त (developmental stage theory) कहलाता है। यह सिद्धान्त व्यक्ति वातावरण के तत्वों का प्रत्यक्षीकरण करता है; अर्थात् पहचानता है, प्रतीकों की सहायता से उन्हें समझने की कोशिश करता है तथा संबंधित वस्तु/व्यक्ति के संदर्भ में अमूर्त चिन्तन करता है। उक्त सभी प्रक्रियाओं से मिलकर उसके भीतर एक ज्ञान भण्डार या संज्ञानात्मक संरचना उसके व्यवहार को निर्देशित करती हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति वातावरण में उपस्थित किसी भी प्रकार के उद्दीपकों (स्टिमुलैंट्स) से प्रभावित होकर सीधे प्रतिक्रिया नहीं करता है, पहले वह उन उद्दीपकों को पहचानता है, ग्रहण करता है, उसकी व्याख्या करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संज्ञात्माक संरचना वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों और व्यवहार के बीच मध्यस्थता का कार्य करता हैं। जीन प्याजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता है। चूंकि उसके अनुसार, बालक के भीतर संज्ञान का विकास अनेक अवस्थाओ से होकर गुजरता है, इसलिये इसे अवस्था सिद्धान्त (STAGE THEORY ) भी कहा जाता है। अनुक्रम • 1 संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ • 1.1 संवेदी पेशीय अवस्था • 1.2 पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था • 1.3 मूर्त संक्रियात्मक अवस्था • 1.4 औपचारिक या अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था • 2 संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया एवं संरचना • 3 बाहरी कड़ियाँ संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ [ ] जीन पियाजे ने संज्...