जीण माता की कहानी

  1. जीण माता
  2. Navratri 2021 unique story of Jeenmata Temple of sikar
  3. जीण माता मंदिर
  4. श्री जीण माता चालीसा


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जीण माता

देश सीकर जिला भाषा •आधिकारिक ३३२४०६ दूरभाष कोड ०१५७६ Rj-23- निकटतम नगर सीकर सीकर दांतारामगढ़ वेबसाइट .com जीण माता राजस्थान के मंदिर का इतिहास लोक मान्यताओं के अनुसार जीवण का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था। जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीवण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीवण और हर्ष में नाराजगी हो गयी। इसके बाद जीवण आरावली के 'काजल शिखर' पर पहुँच कर तपस्या करने लगीं। जीण माताजी मंदिर रेवसा गांव से 10 किमी पहाड़ी के पास स्थित है। यह घने जंगल से घिरा हुआ है। उसका पूर्ण और वास्तविक नाम जयंतलाल था। इसके निर्माण का वर्ष ज्ञात नहीं है, लेकिन सर्वमण्डपा और खंभे निश्चित रूप से बहुत पुरानी हैं। जीण माताजी का मंदिर शुरुआती समय से तीर्थ यात्रा का स्थान था और इसकी मरम्मत और कई बार पुनर्निर्माण किया गया था। एक लोकप्रिय मान्यता है जो सदियों से लोगों तक आती है कि चुरु के एक गांव घांघू में राजा गंगोसींघजी ने इस शर्त पर ऊर्वशी (अप्सरा) से शादी कर ली, कि वह अपने महल में पूर्व सूचना के बिना नहीं जाएंगे। राजा गंगोसींघजी को एक पुत्र मिला जिसे हर्ष कहा जाता था और एक बेटी जीवण थी। बाद में उसने फिर से कल्पना की लेकिन मौके के तौर पर यह राजा गंगोसींघजी अपने पूर्वजों को बिना बताए महल में गये और इस तरह उन्होंने अप्सरा से किए गए प्रतिज्ञा का उल्लंघन किया। तुरन्त उसने राजा को छोड़ दिया और अपने बेटे हर्ष और बेटी जीवण को भगा लिया, जिसे वह उस जगह पर छोड़ दिया जहां वर्तमान में मंदिर खड़ा है। यहां दो बच्चों ने अत्यधिक तपस्या का अभ्यास किया । बाद में एक चौहान शासक ने उस जगह पर मंदिर बनाया। इस मंदिर में अनगिनत चमत्कार देखें व महसूस किए जाते हैं। रोज...

Navratri 2021 unique story of Jeenmata Temple of sikar

Sikar: शक्ति की देवी दुर्गा मां को पूजा जाता है. नवरात्रि (Navratri 2021) के अवसर पर दुर्गा माता के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है. अखंड ज्योति और नौ दिनों तक व्रत, पूजा और भक्ति के कार्यक्रम और मेले आयोजित होते हैं. मां दुर्गा के मंदिरों में नवरात्रि में भक्ति और आस्था का ज्वार उमड़ता है. लाखों भक्त मंदिरों में नवरात्रि में इष्ट देवी माता रानी की पूजा-अर्चना कर मन्नतें मांगते हैं. ऐसी ही करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र सीकर की जीण माता है. नवरात्रि (Navratri Special) के पावन पर्व पर जीण माता (Jeenmata Temple) के मंदिर में हर साल लाखों भक्त आते हैं. अरावली (Aravali) की वादियों में रलावता के समीप बसे जीण माता के मंदिर के बारे में बताया जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब (Mughal Emperor Aurangzeb) की सेना जीण माता के मंदिर को तोड़ने पहुंची तो मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया और उनके नापाक मंसूबों को नाकाम कर दिया था. आदिकाल की माता जयन्‍ती ही आज जीणमाता के नाम से घर-घर पूजी जा रही हैं. नवरात्रि के अलावा यहां पर साल भर श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहता है. जीणमाता के इतिहास ऐसा माना जाता है कि जीण माता का जन्म चूरू (Churu) के घांघू गांव के राजपूत परिवार में हुआ था. वह अपने भाई से बहुत स्नेह करती थीं. जीण माता अपनी भाभी के साथ तालाब से पानी लेने गई और पानी लेते समय भाभी और ननद में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि भाई हर्ष किसे ज्यादा स्नेह करता है. इस बात को लेकर दोनों में यह निश्चय हुआ कि हर्ष जिसके सिर से पानी का मटका पहले उतारेगा, वही, उसकी अधिक प्रिय होगा. जीण माता ने घर जाने से मना कर दिया भाभी और ननद दोनों मटका लेकर घर पहुंची लेकिन हर्ष ने पहले अपनी पत्नी के...

जीण माता मंदिर

जीण माता को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। जीण माता मंदिर एक जाग्रत पीठ है। जीण का अर्थ है - एकान्त, शून्य, जंगल आदि। जीण माता मंदिर अरावली पहाड़ियों में राजस्थान के सीकर जिले में रलावता नामक स्थान पर स्थित है। जीण माता ब्राह्मणों, यादवों, अहीर, अग्रवाल, मीणा, जाटों, शेखावाटी राजपूतों और राजस्थान के जांगीर की कुलदेवी हैं। बहुत सारे समाज एवं कुल की कुलदेवी होने के कारण मंदिर में नवजात बालकों का झडूला, मुण्डन संस्कार अर्थात केश मुण्डाना कराया जाता है। मन्दिर में माता के सेवा हेतु अखण्डदीप जलती रहती है। जीणमाता मंदिर सालासर और खाटूश्यम जी के बीच में स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिये लगभग 300 सीढियों को चढ़ाना होता है। मंदिर के ऊपर वाली पहाड़ी की चोटी पर हर्ष भैरव नाथ का मंदिर है। जिन्हें जीण माता का भाई माना जाता है। वैसे तो जीण माता मंदिर में भक्त पूजा-अर्जना एवं दर्शन हेतु पूरे साल ही आते रहते है। परंतु नवरात्रि के शुभ अवसर पर यहाँ भक्तों का उत्साह देखते ही बनाता है। मंदिर प्रशासन द्वारा इस पर्व के लिये विशेष पूजा एवं प्रशासनिक व्यवस्था की जाती है। नवरात्रि के पवित्र पर्व पर मंदिर में मेला का आयोजन किया जाता है। जैसा कि माता के सभी भक्त जानते ही हैं कि माता रानी के मंदिर में नारियल चढ़ने की एक सुन्दर परम्परा है वैसे ही यहाँ के मंदिर परिसर में भक्तों द्वारा नारियल अत्यधिक मात्रा में चढ़ाये जाते हैं। नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर में चढ़ाये हुए लाखों नारियल देखे जा सकते हैं। धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ यह स्थान एक पिक्कनिक, टूरिस्ट एवं ऐतिहासिक स्थल भी है। इस कारण बच्चे, बूढ़े और नवयुवक सभी आयु के लोग मंदिर दर्शन में अपने रुचि बढ-चढ कर दिखते हैं। महाभारत काल के दौरान पांडव...

श्री जीण माता चालीसा

॥ दोहा ॥ श्री गुरु पद सुमरण करूं, गौरी नंदन ध्याय । वरणो माता जीण यश, चरणों शीश नवाय ॥ झाँकी की अदभुद छवि, शोभा वर्णी न जाय । जो नित सुमरे माय को, कष्ट दुर हो जाय ॥ ॥ चौपाई ॥ जय श्री जीणभक्त सुखकारी । नमो नमो भक्तन हितकारी ॥१॥ दुर्गा की तुम हो अवतारा । सकल कष्ट तु मेट हमारा ॥२॥ महाभयंकर तेज तुम्हारा । महिषासुर सा दुष्ट संहारा ॥३॥ कंचन छत्र शिष पर सोहे । देखत रूप चराचर मोहे ॥४॥ तुम क्षत्रीधर तनधर लिन्हां । भक्तों के सब कारज किन्हां ॥५॥ महाशक्ति तुम सुन्दर बाला । डरपत भूत प्रेत जम काला ॥६॥ ब्रहमा विष्णु शंकर ध्यावे । ऋषि मुनि कोई पार न पावे ॥७॥ तुम गौरी तुम शारदा काली । रमा लक्ष्मी तुम कपपाली ॥८॥ जगदम्बा भवरों की रानी । मैया मात तू महाभवानी ॥९॥ सत पर तजे जीण तुम गेहा । त्यागा सब से क्षण में नेहा ॥१०॥ महातपस्या करनी ठानी । हरष खास था भाई ज्ञानी ॥११॥ पिछे से आकर समझाई । घर वापिस चल माँ की जाई ॥१२॥ बहुत कही पर एक ना मानी । तब हरसा यूँ उचरी बानी ॥१३॥ मैं भी बाई घर नहीं जाऊँ । तेरे साथ राम गुण गाऊँ ॥१४॥ अलग अलग तप स्थल किन्हां । रैन दिवस तप मैं चितदीन्हा ॥१५॥ तुम तप कर दुर्गात्व पाया । हरषनाथ भैरू बन छाया ॥१६॥ वाहन सिंह खडक कर चमके । महातेज बिजली सा दमके ॥१७॥ चक्र गदा त्रिशूल विराजे । भागे दुष्ट जब दुर्गा जागे ॥१८॥ मुगल बादशाह चढकर आया । सेना बहुत सजाकर लाया ॥१९॥ भैरव का मंदिर तुड़वाया । फिर वो इस मंदिर पर धाया ॥२०॥ यह देख पुजारी घबराये । करी स्तुति मात जगाये ॥२१॥ तब माता तु भौरें छोडे । सेना सहित भागे घोड़े ॥२२॥ बल का तेज देख घबराया । जा चरणों में शीश नवाया ॥२३॥ क्षमा याचना किन्हीं भारी । काट जीण मेरी सब बेमारी ॥२४॥ सोने का वो छत्र चढ़ाया । तेल सवामन और बंधाया ॥२५॥ चमक रही कलयुग ...