जयशंकर प्रसाद

  1. जयशंकर प्रसाद
  2. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
  3. जयशंकर प्रसाद हिन्दी कविता
  4. जयशंकर प्रसाद के काव्य की विशेषताएं
  5. जयशंकर प्रसाद जीवनी
  6. जयशंकर प्रसाद
  7. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
  8. Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay
  9. जयशंकर प्रसाद जीवनी
  10. जयशंकर प्रसाद हिन्दी कविता


Download: जयशंकर प्रसाद
Size: 15.5 MB

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद जन्म 30 जनवरी 1889 मृत्यु नवम्बर 15, 1937 ( 1937-11-15) (उम्र48) व्यवसाय जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890- 14 नवंबर 1937) जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत्‌ १९४६ वि॰ तदनुसार 30 जनवरी 1890 ई॰ दिन-गुरुवार) प्रसाद जी की प्रारंभिक घर के वातावरण के कारण ‘सावक पंचक’ सन १९०६ में भारतेंदु पत्रिका में कलाधर नाम से ही प्रकाशित हुई थी। वे नियमित रूप से गीता-पाठ करते थे, परंतु वे संस्कृत में गीता के पाठ मात्र को पर्याप्त न मानकर गीता के आशय को जीवन में धारण करना आवश्यक मानते थे। प्रसाद जी का पहला अनुक्रम • 1 लेखन-कार्य • 1.1 कविता • 1.2 कहानी • 1.3 उपन्यास • 1.4 नाटक • 1.4.1 रंगमंचीय अध्ययन • 2 प्रकाशित कृतियाँ • 2.1 काव्य • 2.2 कहानी-संग्रह एवं उपन्यास • 2.3 नाटक-एकांकी एवं निबन्ध • 2.4 रचना-समग्र • 3 सम्मान • 4 इन्हें भी देखें • 5 सन्दर्भ • 6 बाहरी कड़ियाँजयशंकर प्रसाद: एक परिचय ('महाकवि प्रसाद फाउंडेशन' द्वारा प्रस्तुत वीडियो) लेखन-कार्य [ ] कविता [ ] प्रसाद ने प्रसाद जी ने जब लिखना शुरू किया उस समय भारतेन्दुयुगीन और द्विवेदीयुगीन काव्य-परंपराओं के अलावा श्रीधर पाठक की 'नयी चाल की कविताएँ भी थीं। उनके द्वारा किये गये अनुवादों 'एकान्तवासी योगी' और 'ऊजड़ग्राम' का नवशिक्षितों और पढ़े-लिखे प्रभु वर्ग में काफी मान था। प्रसाद के 'चित्राधार' में संकलित रचनाओं में इसके प्रभाव खोजे भी गये हैं और प्रमाणित भी किये जा सकते हैं। 1909 ई॰ में 'इन्दु' में उनका कविता संग्रह 'प्रेम-पथिक' प्रकाशित हुआ था। 'प्रेम-पथिक' पहले ब्रजभाषा में प्रकाशित हुआ था। बाद में इसका परिमार्जित और परिवर्धित संस्करण खड़ी बोली में नवंबर 1914 में 'प्रेम-पथ' नाम से और उसका अवशिष्ट अंश दिसंबर 1914 में 'च...

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

छायावाद के आधार स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 को काशी में हुआ था। वह संपन्न व्यापारिक घराने के थे और उनका परिवार संपन्नता में केवल काशी नरेश से ही पीछे था। पिता और बड़े भाई की असामयिक मृत्यु के कारण उन्हें आठवीं कक्षा में ही विद्यालय छोड़कर व्यवसाय में उतरना पड़ा। उनकी ज्ञान वृद्धि फिर स्वाध्याय से हुई। उन्होंने घर पर रहकर ही हिंदी, संस्कृत एवं फ़ारसी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया, साथ ही वैदिक वांग्मय और भारतीय दर्शन का भी ज्ञान अर्जित किया। वह बचपन से ही प्रतिभा-संपन्न थे। आठ-नौ वर्ष की आयु में अमरकोश और लघु कौमुदी कंठस्थ कर लिया था जबकि ‘कलाधर’ उपनाम से कवित्त और सवैये भी लिखने लगे थे। जयशंकर प्रसाद की कविताओं में छायावादी काव्य का वैभव अपनी क्लासिक पूर्णता के साथ प्रकट होता है और उनका सौंदर्य-बोध इस बात की पुष्टि करता नज़र आता है कि छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। सौंदर्य दर्शन और शृंगारिकता, स्वानुभूति, जड़ चेतन संबंध और आध्यात्मिक दर्शन, नारी की महत्ता, मानवीयता, प्राकृतिक अवयव, चित्रात्मकता आदि उनकी प्रमुख काव्य-प्रवृत्तियाँ हैं। उनकी भाषा तत्समपरक और संस्कृतनिष्ठ है। वैयक्तिकता, भावात्मकता, संगीतात्मकता, कोमलता, ध्वन्यात्मकता, नाद-सौंदर्य जैसे गीति शैली के सभी तत्त्व उनके काव्य में मौजूद हैं। उन्होंने प्रबंध और मुक्तक दोनों शैलियों का प्रयोग किया है जबकि शब्दों का अधिकाधिक मात्रा में लाक्षणिक प्रयोग, सूक्ष्म प्रतीक योजना, ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग, सतर्क शब्द चयन, वर्णप्रियता, प्रकृति का सूक्ष्मातिसूक्ष्म निरीक्षण, अमूर्त उपमान योजना उनके द्वारा किए गए नए प्रयोग थे। ‘उर्वशी’, ‘झरना’, ‘चित्राधार’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कानन-कुसुम’, ‘कर...

जयशंकर प्रसाद हिन्दी कविता

जयशंकर प्रसाद जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी १८८९ - १४ जनवरी १९३७) कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं । उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं की। उनकी काव्य रचनाएँ हैं: कानन-कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना, आंसू, लहर, कामायनी और प्रेम पथिक । इसके इलावा उनके नाटकों में बहुत से मीठे गीत मिलते हैं ।

जयशंकर प्रसाद के काव्य की विशेषताएं

प्रश्न; जय शंकर प्रसाद के काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए। अथवा", जयशंकर प्रसाद की काव्यगत विशेषताएं बताइए। अथवा", जय शंकर प्रसाद के कला-पक्ष एवं भाव-पक्ष की विशेषताओं का विवेचन कीजिए। अथवा", प्रसाद की काव्यगत विशेषताएं लिखिए। अथवा", प्रसाद जी के काव्य में भाव-पक्ष और कला-पक्ष का सुन्दर समन्वय हुआ है। कथन की विवेचना कीजिए। उत्तर-- जय शंकर प्रसाद का काव्य सौष्ठव प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र में हिन्दी को कुछ न कुछ दिया-- कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना। कविता के क्षेत्र में उन्हें अत्यधिक प्रसिद्ध मिली। इस प्रसिद्धि का आधार दो ग्रंथ बने-- आँसू और कामायनी। इनमें भी कामायनी की महत्ता सर्वाधिक है। इसे पृथ्वीराज रासो तथा पद्मावत की कोटि की रचना माना जाता है। आधुनिक-काल के संबंधों में वही ऐसा गंथ्र है, जो सच्चे अर्थों में गिना जाता है। 'कामायनी' की इस सफलता का रहस्य है, उसके भाव तथा कला पक्ष का उच्चकोटि का होना। कामायनी ही क्या, प्रसाद की बाद की लगभग सभी रचनाओं का भाव तथा कला-पक्ष इसी स्तर का हैं। जयशंकर प्रसाद के काव्य की भाव-पक्ष की विशेषताएं प्रसाद जी के भाव-पक्ष की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-- 1. भावयमता भाव तो प्रसाद जी के काव्य का प्राण है। उनकी कविताओं में कोमल भावनाओं का ऐसा भण्डार है, जो कभी रिक्त नहीं हो सकता। कामायनी, आँसू, झरना आदि के गीतों में भावों का सागर लहरा रहा है। करूणा, हर्ष, विषाद, आशा-निराशा आदि अमूर्त भावों के बड़े ही मर्मस्पर्शी शब्द-चित्र उतारना प्रसाद जी की काव्य-प्रतिभा की सबसे बड़ी विशेषता हैं। 'चिन्ता' का यह मूर्त रूप देखिये-- 'हे अभाव की चपल बालिके, री ललाट की खल रेखा। हरी-भरी दौड़-धूप हो, जलमाया की चल-रेखा।।' 2. कल्पना की प्...

जयशंकर प्रसाद जीवनी

जयशंकर प्रसाद हिन्दी कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरव करने लायक कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए है; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक चाव से पढते हैं। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करूणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं की। प्रारंभिक जीवन : जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिन्दी साहित्य किशोरावस्था में पदार्पण कर रहे थे उस समय जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई. (माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 वि.) वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कवि के पितामह शिव रत्न साहु वाराणसी के अत्यन्त प्रतिष्ठित नागरिक थे और एक विशेष प्रकार की सुरती (तम्बाकू) बनाने के कारण 'सुँघनी साहु' के नाम से विख्यात थे। उनकी दानशीलता सर्वविदित थी और उनके यहाँ विद्वानों कलाकारों का समादर होता था। जयशंकर प्रसाद के पिता देवीप्रसाद साहु ने भी अपने पूर्वजों की परम्परा ...

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद जन्म 30 जनवरी 1889 मृत्यु नवम्बर 15, 1937 ( 1937-11-15) (उम्र48) व्यवसाय जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890- 14 नवंबर 1937) जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत्‌ १९४६ वि॰ तदनुसार 30 जनवरी 1890 ई॰ दिन-गुरुवार) प्रसाद जी की प्रारंभिक घर के वातावरण के कारण ‘सावक पंचक’ सन १९०६ में भारतेंदु पत्रिका में कलाधर नाम से ही प्रकाशित हुई थी। वे नियमित रूप से गीता-पाठ करते थे, परंतु वे संस्कृत में गीता के पाठ मात्र को पर्याप्त न मानकर गीता के आशय को जीवन में धारण करना आवश्यक मानते थे। प्रसाद जी का पहला अनुक्रम • 1 लेखन-कार्य • 1.1 कविता • 1.2 कहानी • 1.3 उपन्यास • 1.4 नाटक • 1.4.1 रंगमंचीय अध्ययन • 2 प्रकाशित कृतियाँ • 2.1 काव्य • 2.2 कहानी-संग्रह एवं उपन्यास • 2.3 नाटक-एकांकी एवं निबन्ध • 2.4 रचना-समग्र • 3 सम्मान • 4 इन्हें भी देखें • 5 सन्दर्भ • 6 बाहरी कड़ियाँजयशंकर प्रसाद: एक परिचय ('महाकवि प्रसाद फाउंडेशन' द्वारा प्रस्तुत वीडियो) लेखन-कार्य [ ] कविता [ ] प्रसाद ने प्रसाद जी ने जब लिखना शुरू किया उस समय भारतेन्दुयुगीन और द्विवेदीयुगीन काव्य-परंपराओं के अलावा श्रीधर पाठक की 'नयी चाल की कविताएँ भी थीं। उनके द्वारा किये गये अनुवादों 'एकान्तवासी योगी' और 'ऊजड़ग्राम' का नवशिक्षितों और पढ़े-लिखे प्रभु वर्ग में काफी मान था। प्रसाद के 'चित्राधार' में संकलित रचनाओं में इसके प्रभाव खोजे भी गये हैं और प्रमाणित भी किये जा सकते हैं। 1909 ई॰ में 'इन्दु' में उनका कविता संग्रह 'प्रेम-पथिक' प्रकाशित हुआ था। 'प्रेम-पथिक' पहले ब्रजभाषा में प्रकाशित हुआ था। बाद में इसका परिमार्जित और परिवर्धित संस्करण खड़ी बोली में नवंबर 1914 में 'प्रेम-पथ' नाम से और उसका अवशिष्ट अंश दिसंबर 1914 में 'च...

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

छायावाद के आधार स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 को काशी में हुआ था। वह संपन्न व्यापारिक घराने के थे और उनका परिवार संपन्नता में केवल काशी नरेश से ही पीछे था। पिता और बड़े भाई की असामयिक मृत्यु के कारण उन्हें आठवीं कक्षा में ही विद्यालय छोड़कर व्यवसाय में उतरना पड़ा। उनकी ज्ञान वृद्धि फिर स्वाध्याय से हुई। उन्होंने घर पर रहकर ही हिंदी, संस्कृत एवं फ़ारसी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया, साथ ही वैदिक वांग्मय और भारतीय दर्शन का भी ज्ञान अर्जित किया। वह बचपन से ही प्रतिभा-संपन्न थे। आठ-नौ वर्ष की आयु में अमरकोश और लघु कौमुदी कंठस्थ कर लिया था जबकि ‘कलाधर’ उपनाम से कवित्त और सवैये भी लिखने लगे थे। जयशंकर प्रसाद की कविताओं में छायावादी काव्य का वैभव अपनी क्लासिक पूर्णता के साथ प्रकट होता है और उनका सौंदर्य-बोध इस बात की पुष्टि करता नज़र आता है कि छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। सौंदर्य दर्शन और शृंगारिकता, स्वानुभूति, जड़ चेतन संबंध और आध्यात्मिक दर्शन, नारी की महत्ता, मानवीयता, प्राकृतिक अवयव, चित्रात्मकता आदि उनकी प्रमुख काव्य-प्रवृत्तियाँ हैं। उनकी भाषा तत्समपरक और संस्कृतनिष्ठ है। वैयक्तिकता, भावात्मकता, संगीतात्मकता, कोमलता, ध्वन्यात्मकता, नाद-सौंदर्य जैसे गीति शैली के सभी तत्त्व उनके काव्य में मौजूद हैं। उन्होंने प्रबंध और मुक्तक दोनों शैलियों का प्रयोग किया है जबकि शब्दों का अधिकाधिक मात्रा में लाक्षणिक प्रयोग, सूक्ष्म प्रतीक योजना, ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग, सतर्क शब्द चयन, वर्णप्रियता, प्रकृति का सूक्ष्मातिसूक्ष्म निरीक्षण, अमूर्त उपमान योजना उनके द्वारा किए गए नए प्रयोग थे। ‘उर्वशी’, ‘झरना’, ‘चित्राधार’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कानन-कुसुम’, ‘कर...

Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay

Jaishankar Prasad Biography In Hindi :- जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890- 15 नवंबर 1937) आधुनिक हिंदी साहित्य के साथ-साथ हिंदी रंगमंच के सबसे प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक हैं। कवि-आलोचक महादेवी वर्मा ने जय शंकर प्रसाद को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि में कहा: “जब भी मैं अपने महान कवि प्रसाद को याद करता हूं तो मेरे दिमाग में एक विशेष छवि आती है। एक देवदार का पेड़ हिमालय की ढलान पर खड़ा है, सीधे और ऊंचे पर्वत के रूप में गर्वित पर्वत खुद को। इसका ऊंचा सिर बर्फ के हमलों, बारिश और सूरज की तेज गर्मी का सामना करता है। हिंसक तूफान इसकी फैली शाखाओं को हिलाते हैं, जबकि पानी की एक पतली धारा इसकी जड़ के बीच लुका-छिपी खेलती है। भारी हिमपात, प्रचंड गर्मी और मूसलाधार बारिश में भी देवदार का पेड़ अपना सिर ऊंचा रखता है। तेज आंधी और बर्फानी तूफान के बीच भी, यह स्थिर और स्थिर रहता है। (Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay) – ”प्रसाद के एक युवा समकालीन की यह तारीफ हिंदी साहित्य में छायावाद आंदोलन के अग्रणी प्रकाशमानों में से एक की साहित्यिक प्रतिभा को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करती है। यह अपने साथियों के बीच प्रसाद के स्थान के साथ-साथ आधुनिकता के लिए उनकी प्रासंगिकता को पहचानता है। मानव मानस के एक क्लासिक महाकाव्य के लेखक के रूप में, उनकी महान कृति कामायनी, प्रसाद ने प्रारंभिक प्रतिष्ठा हासिल कर ली थी। लेकिन बाद में व्यक्तिगत त्रासदियों और राष्ट्रीय सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के अनगिनत तूफानों के बावजूद साहित्य के विविध क्षेत्रों में उनके योगदान में उनका बहुमुखी व्यक्तित्व बढ़ गया। Jaishankar Prasad ka Jeevan Parichay – जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय Jaishankar Prasad ka Jeevan Parichay:- चूंकि एक तंब...

जयशंकर प्रसाद जीवनी

जयशंकर प्रसाद हिन्दी कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरव करने लायक कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए है; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक चाव से पढते हैं। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करूणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं की। प्रारंभिक जीवन : जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिन्दी साहित्य किशोरावस्था में पदार्पण कर रहे थे उस समय जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई. (माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 वि.) वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कवि के पितामह शिव रत्न साहु वाराणसी के अत्यन्त प्रतिष्ठित नागरिक थे और एक विशेष प्रकार की सुरती (तम्बाकू) बनाने के कारण 'सुँघनी साहु' के नाम से विख्यात थे। उनकी दानशीलता सर्वविदित थी और उनके यहाँ विद्वानों कलाकारों का समादर होता था। जयशंकर प्रसाद के पिता देवीप्रसाद साहु ने भी अपने पूर्वजों की परम्परा ...

जयशंकर प्रसाद हिन्दी कविता

जयशंकर प्रसाद जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी १८८९ - १४ जनवरी १९३७) कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं । उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं की। उनकी काव्य रचनाएँ हैं: कानन-कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना, आंसू, लहर, कामायनी और प्रेम पथिक । इसके इलावा उनके नाटकों में बहुत से मीठे गीत मिलते हैं ।