जयशंकर प्रसाद का नाटक नहीं है

  1. जयशंकर प्रसाद के नाटक pdf
  2. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएं
  3. प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र जयशंकर प्रसाद मोहन राकेश पूरी जानकारी
  4. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, शिक्षा, प्रमुख रचनाएं, साहित्यिक परिचय
  5. जयशंकर प्रसाद
  6. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
  7. जन्मेजय का नाग
  8. चन्द्रगुप्त नाटक: जयशंकर प्रसाद


Download: जयशंकर प्रसाद का नाटक नहीं है
Size: 6.72 MB

जयशंकर प्रसाद के नाटक pdf

jaishankar prasad Natak Pustak ka vivaran: premchand aur jayshankar- prasad ko samanyatah hindi kahaniyon ki do dharaon ke pravartak ke roop me maana jaata hai. Yaani munshi premchand yatharthvadi aur jaishankar prasad aadharshwadi. Tags: jaishankar prasad, jaishankar prasad ka jivan parichay, jaishankar prasad ki rachna, jaishankar prasad jivan parichay, about jaishankar prasad in hindi, jaishankar prasad ka janm kis pradesh mein hua tha, jaishankar prasad ki jivani, jaishankar prasad biography in hindi, jaishankar prasad ki kavita Description about ebooks: premchand and jaishankar prasad was generally recognised as the originator of two different kinds of hindi story writing. Premchand, the originator of social and jayashankar . jaishankar prasad ka jivan parichay जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय jaishankar prasad ka jivan parichay जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) जी का जन्म 30 जनवरी 1889 ई० (माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 वि.) को सप्ताह के गुरुवार के दिन काशी के सरायगोवर्धन में हुआ था।जयशंकर प्रसाद अनेक प्रतिभाओ के धनी साहित्यकार थे। उनका जन्म 1890 ईसवी काल में काशी के ‘सुंघनी साहू’ नामक सु प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके यहां तंबाकू का बहुत व्यापार होता था। उनके पिता का नाम देवी प्रसाद और दादा का नाम शिवरत्न साहू था। इनके दादा जी परम शिवभक्त और दयालु थे। उनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य प्रेमी वयक्ति थे। प्रसाद जी का बचपन अत्यंत ही सुखमय था। अपने बचपन के समय में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि अनेक तीर्थों की यात्राए...

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएं

जयशंकर प्रसाद (सन् 1890-1937 ई.) का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 वि. को वाराणसी के प्रसिद्ध तंबाकू के भारी व्यापारी सुंघनी साहू के पुत्र रूप में हुआ। जयशंकर प्रसाद के पिता शिवरतन साहू काशी के अति प्रतिष्ठित नागरिक थे। अवधि में सुंघनी सूंघने वाली तंबाकू को कहते हैं। यह परिवार अति उत्तम कोटि की तम्बाकू का निर्माण करता था इसीलिए नाम ही सुंघनी साहू पड़ गया। भरा-पूरा परिवार था। कोई भी धार्मिक अथवा विद्वान काशी में आता तो साहू जी उसकी अत्यधिक सेवा करते थे। दानी परिवार था। कवियों, गायकों तथा कलाकारों की गोष्ठियां उनके घर पर चलती रहती थीं। महादेव नाम से प्रसिद्ध थे। शैशवावस्था में ही खेलने की अनेक वस्तुओं में से लेखनी का चयन किया था। नौ वर्ष की अवस्था में कलाधर उपनाम से कविता रचकर अपने गुरू रसमय सिद्ध को दिखलाई। इनका परिवार शैव था। घर पर ही संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी तथा फारसी आदि भाषाओं के पढ़ने की व्यवस्था थी। बारह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। अग्रज शंभुरतन का ध्यान व्यवसाय की ओर अधिक न था। देवी प्रसाद की मृत्यु के बाद गृहकलह ने जन्म लिया। मकान बिक गया। कॉलेज की पढ़ाई छूट गई। आठवीं कक्षा तक ही पढ़ सके। उपनिषद्, पुराण, वेद एवं भारतीय दर्शन का अध्ययन घर पर चलता रहा। जयशंकर प्रसाद जी कसरत किया करते थे। दुकान बही पर बैठे-बैठे कविता लिखा करते थे। जयशंकरप्रसाद जी ने तीन विवाह किए थे। प्रथम पत्नी का क्षय रोग से तथा द्वितीय का प्रसूति के समय देहावसान हो गया था। तीसरी पत्नी से इन्हें रत्न शंकर नामक पुत्रा की प्राप्ति हुई। जीवन के अन्तिम दिनों में जयशंकर प्रसाद जी उदर रोग से ग्रस्त हो गए थे तथा इसी रोग ने कार्तिक शुक्ला देवोत्थान एकादशी, विक्रम संवत् 1994 को इस बहुमु...

प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र जयशंकर प्रसाद मोहन राकेश पूरी जानकारी

Table of Contents • • • • • • 1 नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतेंदु ने पारसी नाटकों के विपरीत जनसामान्य को जागृत करने एवं उनमें आत्मविश्वास जगाने के उद्देश्य से नाटक लिखे हैं। इसलिए उनके नाटकों में देशप्रेम, न्याय, त्याग, उदारता जैसे मानवीय मूल्यों नाटकों की मूल संवेदना बनकर आए हैं प्राचीन संस्कृति के प्रति प्रेम एवं ऐतिहासिक पात्रों से प्रेरणा लेने का प्रयास भी इन नाटकों में हुआ है। भारतेंदु के लेखन की एक मुख्य विशेषता यह है कि वह अक्सर व्यंग्य का प्रयोग यथार्थ को तीखा बनाने में करते हैं। हालांकि उसका एक कारण यह भी है कि तत्कालीन पराधीनता के परिवेश में अपनी बात को सीधे तौर पर कह पाना संभव नहीं था। इसलिए जहां भी राजनीतिक, सामाजिक चेतना, के बिंदु आए हैं वहां भाषा व्यंग्यात्मक हो चली है।इसलिए भारतेंदु ने कई प्रहसन भी लिखे हैं। यह भी पढ़ें- भारतेंदु ने मौलिक व अनुदित दोनों मिलाकर 17 नाटकों का सृजन किया भारतेंदु के प्रमुख नाटक का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है- वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति मांस भक्षण पर व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया नाटक है । प्रेमयोगिनी में काशी के धर्मआडंबर का वही की बोली और परिवेश में व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है। विषस्य विषमौषधम् में अंग्रेजों की शोषण नीति और भारतीयों की महाशक्ति मानसिकता पर चुटीला व्यंग है। चंद्रावली वैष्णव भक्ति पर लिखा गया नाटक है। अंधेर नगरी में राज व्यवस्था की स्वार्थपरखता, भ्रष्टाचार, विवेकहीनता एवं मनुष्य की लोभवृति पर तीखा कटाक्ष है जो आज भी प्रासंगिक है। नीलदेवी में नारी व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा है। यह दुखांत नाटक की परंपरा के नजदीक है। भारत दुर्दशा में पराधीन भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति एवं सामाजिक-सांस्कृतिक अधः पतन का चित्रण है ।...

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, शिक्षा, प्रमुख रचनाएं, साहित्यिक परिचय

Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay: जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार हैं, जिन्हें छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। इन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न कविता, नाटक, कहानी उपन्यास में अपनी लेखन कला को दिखाया है। इन्होंने आंशु, प्रेम पथिक, झरना, लहर कानन कुसुम जैसे एक से बढ़कर एक कहानी, नाटक और उपन्यास लिखे हैं, जो आज भी पाठकों के बीच लोकप्रिय है। Image: Jaishankar Prasad Biography in Hindi इनके अंतिम रचना ‘कामायनी’ के लिए इन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है। भारतेंदु के बाद इनकी नाटक रचना की अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इन्होंने अपनी कहानी और उपन्यास में कई यादगार कृतियां को वर्णित किया है। इन्होंने अपनी रचना के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन किया है। आज के इस लेख में हम हिंदी साहित्य के इसी महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद के जीवन के बारे में जानने वाले हैं। इस लेख के जरिए हम जयशंकर प्रसाद का प्रारंभिक जीवन, उनकी शिक्षा, उनकी रचना और उनकी साहित्यिक विशेषताओं के बारे में जानने वाले हैं, इसलिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। विषय सूची • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay) नाम जयशंकर प्रसाद जन्म और जन्मस्थान 30 जनवरी 1889, गोवर्धनसराय, काशी (उत्तर प्रदेश) पिता का नाम बाबू शिवरतन साहू शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, संस्कृत व हिंदी का स्वाध्याय पेशा नाटककार, उपन्यासकार, हिन्दी कवि, कहानीकार और निबन्ध लेखक देहांत 15 नवम्बर 1937, काशी (उत्तर प्रदेश) जयशंकर प्रसाद का प्रारंभिक जीवन जयशंकर प्रसा...

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद जी आधुनिक काल के छायावादी कवि थे| इन्होंने पन्द्रह वर्ष की अवस्था से ही लिखना आरम्भ कर दिया था| ये बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न महान साहित्यकार थे| इन्हें काव्य, नाटक, कहानी, निबन्ध तथा उपन्यास सभी प्रकार की साहित्यिक रचनाएँ कीं थी, किन्तु मूलतः ये कवि थे| पहले ‘कलाधर’ नाम से ब्रजभाषा में कविता लिखा करते थे, इनकी प्रारम्भिक कविताएँ ब्रजभाषा में ही पाया जाता है| जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठ प्रतिभा संपन्न कवि थे| द्विवेदी-युग की स्थूल और इतिवृत्तात्मक कविता-धारा को सूक्ष्म भाव-सौन्दर्य, रमणीयता एवं माधुर्य से परिपूर्ण कर प्रसादजी ने नवयुग का गठबंधन किया| ये छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने साथ ही नाटककार एवं कहानीकार भी रहे हैं| जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय​जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी, 1889 ई० में भारत के उत्तर प्रदेश में काशी के सुँघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था| जयशंकर प्रसाद के माता का नाम मुन्नी देवी तथा पिता का नाम देवी प्रसाद था| छोटी अवस्था में ही पिता तथा बड़े भाई के मृत्यु हो जाने के कारण इनकी शिक्षा पूरी ना हो सकी | घर के व्यापार को सँभालते हुए भी इन्होंने स्वाध्याय पर विशेष ध्यान रखा| घर पर ही इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया| परिवारजनों की मृत्यु, अर्थ-संकट, पत्नी की मृत्यु का वियोग आदि संघर्षों को अत्यन्त समस्याओं को झेलते हुए| यह अलौकिक प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार हिन्दी के मन्दिर में अमूल्य रचना-सुमन अर्पित करता रहा| जयशंकर प्रसाद 14 जनवरी, 1937 ई. को क्षय रोग से ग्रसित होने के कारण साहित्य के इस महान कवि का मृत्यु हो गया| जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय​‘कानन-कुसुम’, ‘...

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

स्वागत है दोस्तों, आज हम पढ़ने जा रहे हैं छायावाद युग के मुख्य प्रवक्ता में प्रमुख जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय के बारे में. जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के आज तक के महानतम लेखकों और कवियों में से एक माने जाते हैं। तो चलिए दोस्तों जानते हैं हिंदी साहित्य के द्वारा कहे जाने वाले जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय के बारे में विस्तार से। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • जयशंकर प्रसाद कौन थे? जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध महानतम लेखकों और कवियों में से एक है। जयशंकर अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य में क्रांति ला दी। उन्हें छायावाद युग के जनक कहा जाता है। जयशंकर प्रसाद एक प्रसिद्द नाटककार, हिन्दी कवि, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। जयशंकर प्रसाद साहू छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों (जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला,एवंसुमित्रानंदन पन्त) में से एक थे। जयशंकर प्रसाद – एक ऐसे साहित्यकार जिन्होंने हिंदी साहित्य के दिशा और दशा को बदलने का कार्य किया. दोस्तों आज एक प्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर जी हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं, निर्बंध, नाटक केवल भारत में ही नहीं विश्व भर के साहित्य प्रेमी के हृदय में हमेशा जीवित है। जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय – (jaishankar prasad ka jivan parichay) छायावाद युग के जनक जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 ईस्वी को गुरुवार के दिन काशी (वर्तमान वाराणसी) के सरायगोवर्धन में हुआ था. जयशंकर प्रसाद जी के पिता देवी प्रसाद साहू के यहां कलाकारों, विद्वानों का बड़ा सम्मान होता था। उनके दादा बाबू शिवरतन साहू दान देने के लिए काशी में काफी प्रसिद्ध है। उनके पिता बाबू देवी प्रसाद कलाकारों का बड़ा ही आदर करते थे। उनका तंबाकू और...

जन्मेजय का नाग

प्राक्कथन इस नाटक की कथा का सम्बन्ध एक बहुत प्राचीन स्मरणीय घटना से है। भारत- वर्ष में यह एक प्राचीन परम्परा थी कि किसी क्षत्रिय राजा के द्वारा कोई ब्रह्महत्या या भयानक जनक्षय होने पर उसे अश्वमेध यज्ञ करके पवित्र होना पड़ता था। रावण को मारने पर श्री रामचन्द्र ने तथा और भी कई बड़े-बड़े सम्राटों ने इस यज्ञ का अनुष्ठान करके पुण्य लाभ किया था । कलियुग के प्रारम्भ में पाण्डवों के बाद परीक्षित के पुत्र जन्मेजय एक स्मरणीय शासक हो गये हैं। भारत के शान्ति पर्व अध्याय १५० में लिखा हुआ मिलता है कि सम्राट् जन्मेजय से अकस्मात् एक ब्रह्महत्या हो गई, जिसपर उन्हें प्रायश्चित्त स्वरूप अश्वमेध यज्ञ करना पड़ा । शतपथब्राह्मण (१३-५-४-१) से पता चलता है कि इन्द्रोत देवाप शौनक उस अश्वमेध में आचार्य थे और जन्मेजय का अश्वमेध यज्ञ इन्हीं ने कराया था। महाभारत में भी इन्हीं आचार्य का उल्लेख है । इस अश्वमेध यज्ञ में कुछ ऐसे विघ्न उपस्थित हुए, जिनके कारण जन्मेजय को शौनक से कहना पड़ा- अद्य प्रभृति देवेन्द्रमजितेन्द्रियमस्थिरम् । क्षत्रिया वाजिमेधेन न यक्ष्यन्तीति शौनकः ॥ दौर्बल्यं भवतामेतत् यदयंधर्षितः क्रतुः । विषयेमेन वस्तव्यं गच्छध्वं सहबान्धवैः ॥ ( हरिवंश, भविष्य पर्व, अ०५ ) कौटिल्य के अर्थ - शास्त्र के तीसरे प्रकरण में लिखा है- कोपाज्जन्मेजय ब्राह्मणेषु विक्रान्तः क्षत्रिय सम्राट् जन्मेजय ने अपने राज-दण्ड के बल से एक प्राचीन प्रथा बहुत दिनों के लिए बन्द कर दी । इसमें कश्यप पुरोहित का भी बहुत कुछ हाथ था । इसका प्रमाण भी मिलता है । आस्तीक पर्व के पचासवें अध्याय से इस घटना का एक सूत्र मिलता है कि काश्यप यदि चाहते, तो परीक्षित को तक्षक न मार सकता; और जन्मेजय को एक लकड़हारे की साक्षी से इसका प्रमाण दिलाय...

चन्द्रगुप्त नाटक: जयशंकर प्रसाद

प्रकाशन-1931 • यह 4 अंको में विभाजित है। • नाटक के प्रथम अंक में- 11 दृश्य है। • (शुरुआत-तक्षशिला के गुरुकुल का मठ।चाणक्य और सिंहरण) • दूसरे अंक में- 10 दृश्य है। • (इसकी शुरुआत-उद्भाण्ड में सिंधु-तट पर ग्रीक-शिविर के पास वृक्ष के नीचे कार्नेलिया) • तीसरे अंक में- 9 दृश्य है। • (इसकी शुरुआत-विपाशा-तट के शिविर में राक्षस टहलता हुआ) • चौथे अंक में- 14 दृश्य है। • (इसकी शुरुआत-मगध में राजकीय उपवन में कल्याणी) • इसमें में 13 गीत है • चाणक्य का ही नाम- (विष्णुगुप्त है) • प्रसाद का उद्देश्य-पराधीनता से मुक्ति के लिए प्रदेशों,क्षेत्रों,जातियों, धर्मों,आदि की निजताओं ,स्वातंत्र्य कामनाओं और अहन्ताओं को भुलाकर विशाल आर्यवर्त को स्वाधीन और अजेय बनाना है। पुरुष-पात्र चाणक्य (विष्णुगुप्त) : मौर्य साम्राज्य का निर्माता चन्द्रगुप्त : मौर्य सम्राट नन्द : मगध-सम्राट राक्षस : मगध का अमात्य वररुचि (कात्यायन) : मगध का अमात्य शकटार : मगध का मंत्री आम्भीक : तक्षशिला का राजकुमार सिंहरण : मालव गणमुख्य का कुमार पर्वतेश्वर : पंजाब का राजा (पोरस) सिकन्दर : ग्रीक विजेता फिलिप्स : सिकन्दर का क्षत्रप मौर्य्य-सेनापति : चन्द्रगुप्त का पिता एनीसाक्रीटीज : सिकन्दर का सहचर देवबल, नागदत्त, गणमुख्य : मालव गणतंत्र के पदाधिकारी साइबर्टियस, मेगास्थनीज : यवन दूत गान्धार-नरेश : आम्भीक का पिता सिल्यूकस : सिकन्दर का सेनापति दाण्ड्यायन : एक तपस्वी नारी-पात्र अलका : तक्षशिला की राजकुमारी सुवासिनी : शकटार की कन्या कल्याणी : मगध राजकुमारी नीला, लीला : कल्याणी की सहेलियाँ मालविका : सिन्धु देश की राजक्मारी कार्नेलिया : सिल्यूकस की कन्या मौर्य्य-पत्नी : चन्द्रगुप्त की माता एलिस : कार्नेलिया की सहेली • यह एक ऐतिहासिक नाटक ...