काका हाथरसी की कविताएं

  1. काका हाथरसी का 'झूठ माहात्म्य' और 'घूस माहात्म्य', पढ़कर मज़ा आ जाएगा kaka hathrasi famous poems on bribery and lying
  2. Hindi Kavita:गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता 'मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ'
  3. काका की फुलझड़ियां: पढ़ें, काका हाथरसी की हास्य कविताएं
  4. काका हाथरसी जयंती विशेष: मन मैला तन ऊजरा भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है भीतर भष्टाचार, birth and death anniversary special of padm shri kaka hathrasi
  5. काका हाथरसी की हास्य कविता
  6. 'बच्चन ने पीकर दो प्याला दो घंटे में लिख डाली पूरी मधुशाला', पढ़ें काका हाथरसी की हास्य कविता
  7. काका हाथरसी की हास्य कविता


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काका हाथरसी का 'झूठ माहात्म्य' और 'घूस माहात्म्य', पढ़कर मज़ा आ जाएगा kaka hathrasi famous poems on bribery and lying

आज हिंदी हास्य-काव्य के मशहूर कवि काका हाथरसी का जन्मदिवस और पुण्यतिथि दोनों है। 18 सितंबर 1906 को हाथरस के अत्यंत साधारण परिवार में जन्मे काका हाथरसी का निधन भी 18 सितंबर के दिन ही हुआ था। हिंदी हास्य-व्यंग्य के सबसे माहिर कवि काका हाथरसी (Kaka Hathrasi) ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया में भी हिंदी कविता का ध्वज लहराया और हास्य सम्राट के रूप में प्रसिद्धि पाई। उनकी विशिष्ट शैली की छाप आज के कई कवियों पर स्पष्ट देखी जा सकती है। अनगिनत लेखक और व्यंग्यकार काका (Kaka Hathrasi) की शैली अपनाकर व्यवस्था पर चोट और श्रोताओं-पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। काका हाथरसी की व्यंग्य से भरपूर कविताओं का मूल उद्देश्य दर्शकों और पाठकों का मनोरंजन करना नहीं, बल्कि सामाजिक दोष, कुरीतियां, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन पर चोट करना रहा है। उन्होंने आम जनजीवन से सरोकार रखने वाले कई विषयों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। ऐसी ही दो चीजें हैं – घूस और झूठ, जो न चाहते हुए भी हमारे समाज और व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। इन दोनों ही विषयों पर काका की कलम बहुत ही कम शब्दों में बहुत कुछ कह गयी है। आइये पढ़ते हैं काका हाथरसी की लिखी गई ये दो लघु कविताएं – घूस माहात्म्य और झूठ माहात्म्य। यंग इंडिया का उभरता हुआ हिंदी न्यूज़ प्लेटफॉर्म। यहाँ आपको मिलेंगी देश, दुनिया, खेल, सिनेमा, सियासत, स्वास्थ्य, शिक्षा, करियर और मनोरंजन जगत की सबसे ताज़ातरीन, निष्पक्ष, रोचक और उपयोगी खबरें। खबरें जिनमें सब्सटांस हो, सेंसेशन नहीं। खबरें जो जेंडर, कास्ट और सोशल जस्टिस को लेकर प्रोग्रेसिव हों। खबरें जो आपको अवेयर करे, इंस्पायर करे, एंटरटेन करे। खबरें...

Hindi Kavita:गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता 'मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ'

तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है, अकेले में साहचर्य का हाथ है, उनका जो तुम्हारे द्वारा गर्हित हैं किन्तु वे मेरी व्याकुल आत्मा में बिंबित हैं, पुरस्कृत हैं इसीलिए, तुम्हारा मुझ पर सतत आघात है। सबके सामने और अकेले में। (मेरे रक्त-भरे महाकाव्यों के पन्ने उड़ते हैं तुम्हारे-हमारे इस सारे झमेले में) असफलता का धूल-कचरा ओढ़े हूँ इसलिए कि वह चक्करदार ज़ीनों पर मिलती है छल-छद्म धन की किन्तु मैं सीधी-सादी पटरी-पटरी दौड़ा हूँ जीवन की। फिर भी मैं अपनी सार्थकता से खिन्न हूँ विष से अप्रसन्न हूँ इसलिए कि जो है उससे बेहतर चाहिए पूरी दुनिया साफ़ करने के लिए मेहतर चाहिए वह मेहतर मैं हो नहीं पाता पर, रोज़ कोई भीतर चिल्लाता है कि कोई काम बुरा नहीं बशर्ते कि आदमी खरा हो फिर भी मैं उस ओर अपने को ढो नहीं पाता। रेफ़्रीजरेटरों, विटैमिनों, रेडियोग्रेमों के बाहर की गतियों की दुनिया में मेरी वह भूखी बच्ची मुनिया है शून्यों में पेटों की आँतों में न्यूनों की पीड़ा है छाती के कोषों में रहितों की व्रीड़ा है शून्यों से घिरी हुई पीड़ा ही सत्य है शेष सब अवास्तव अयथार्थ मिथ्या है भ्रम है सत्य केवल एक जो कि दुःखों का क्रम है। मैं कनफटा हूँ हेठा हूँ शेव्रलेट-डॉज के नीचे मैं लेटा हूँ तेलिया लिबास में पुरज़े सुधारता हूँ तुम्हारी आज्ञाएँ ढोता हूँ।

काका की फुलझड़ियां: पढ़ें, काका हाथरसी की हास्य कविताएं

Kaka ki fuljhadiya by Kaka Hatharasi: शायद ही कोई होगा जो काका हाथरसी (Kaka Hathrasi) को नहीं जानता होगा. हास्य कवियों में अपनी अलग पहचान बनाने वाले काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 में हुआ था. इस बारे में काका ने लिखा ‘दिन अट्ठारह सितंबर, अग्रवाल परिवार. उन्निस सौ छ: में लिया, काका ने अवतार.’ आपको बता दें कि काका हाथरसी के पूर्वज दोकुल महावन से हाथरस (Hathras) में आ कर बस गए थे. उन्होंने अपने जीवन में ‘प्लेग महामारी’ का दौर भी देखा है. कई तरह की परेशानियां जिंदगी में आने पर भी काका ने हास्य व्यंग का दामन थामे रखा. साल 1946 में उनकी पहली किताब ‘काका की कचहरी’ प्रकाशित हुई. वे धीरे-धीरे मशहूर होने लगे. न सिर्फ काका की हास्य कविताएं, बल्कि उनकी दाढ़ी (Beard) के भी कई प्रशंसक बन गए. अपनी दाढ़ी के संदर्भ में काका ने खुद लिखा, ‘काका दाढ़ी साखिए, बिन दाढ़ी मुख सून. ज्यों मसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून. आज पढ़ें, हाथरसी के काव्य संग्रह ‘काका की फुलझड़ियां’ की 2 चुनिंदा कविताएं- ‘नाम बड़े, दर्शन छोटे’ और ‘महंगाई’ काका की फुलझड़ियाँ (Kaka Ki Fuljhadiya) नाम बड़े, दर्शन छोटे / काका हाथरसी नाम-रूप के भेद पर कभी किया है गौर ? नाम मिला कुछ और तो, शक्ल-अक्ल कुछ और शक्ल-अक्ल कुछ और, नैनसुख देखे काने बाबू सुंदरलाल बनाए ऐंचकताने कहँ ‘काका’ कवि, दयाराम जी मारें मच्छर विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर मुंशी चंदालाल का तारकोल-सा रूप श्यामलाल का रंग है जैसे खिलती धूप जैसे खिलती धूप, सजे बुश्शर्ट पैंट में- ज्ञानचंद छै बार फेल हो गए टैंथ में कहँ ‘काका’ ज्वालाप्रसाद जी बिल्कुल ठंडे पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे देख, अशर्फीलाल के घर में टूटी खाट सेठ भिखारीदास के मील चल रहे आठ मील चल रहे आठ, ...

काका हाथरसी जयंती विशेष: मन मैला तन ऊजरा भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है भीतर भष्टाचार, birth and death anniversary special of padm shri kaka hathrasi

काका हाथरसी ऐसे शख्स थे, उन्होंने जहां हंसी की संभावना न के बराबर हो, वहां भी ठहाके लगवाए. ताउम्र हंसने-हंसाने वाला कोई शख्स खुद की मौत पर भी लोगों को हंसने के लिए कह जाए, ऐसा शायद ही कभी हुआ हो. यह संयोग ही है कि जिस तारीख को काका का जन्म हुआ, उसी दिन उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था. आज हम उसी महान शख्सियत को याद करते हुए उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं. हाथरस: व्यंगात्मक और हास्यात्मक लेख का मुख्य उद्देश्य सिर्फ लोगों का मनोरंजन नहीं बल्कि समाज में फैली कुरीतियों और भ्रांतियों के बारे में लोगों को बताना उनको जागरुक करना होता है. जिससे कि पाठक का इसकी ओर ध्यान जाए और वह इन कुरीतियों को समाज में फैलने से रोके. काका हाथरसी इस विधा में निपुण थे. वह समाज में फैली किसी भी कुरीति को ऐसे कटाक्ष के साथ प्रस्तुत करते थे कि पढ़ने वाले का मनोरंजन हो साथ ही गंभीर संदेश भी जाए. पढ़िए भ्रष्टाचार पर काका का व्यंग- काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर सन् 1906 को हाथरस में हुआ था. काका हाथरसी का असली नाम प्रभूलाल गर्ग था. काका हाथरसी के पिताजी का नाम शिवलाल गर्ग और माता का नाम बर्फी देवी था. काका हाथरसी का जन्म गरीब परिवार में हुआ, लेकिन काका ने गरीब होते हुए भी जिंदगी से अपना संघर्ष जारी रखा और छोटी-मोटी नौकरी के साथ कविता रचना और संगीत शिक्षा का समन्वयक बनाए रखा. बहुमुखी प्रतिभा के धनी काका हाथरसी कवि के अलावा चित्रकार और फिल्मकार भी थे. उन्होंने तमाम संगीतकारों की रंगीन तैलीय चित्र बनाने के साथ ही अन्य चित्र भी बनाए थे. उन्होंने संगीत पर एक मासिक पत्रिका संगीत का संपादन भी किया था. काका हाथरसी ने 1932 में हाथरस में संगीत की उन्नति के लिए गर्ग एंड कंपनी की स्थापन...

काका हाथरसी की हास्य कविता

काका हाथरसी का असली नाम प्रभुलाल गर्ग था| उनका जन्म 18 सितम्बर 1906 को भारत के उत्तर बरदेश राज्य के हाथरस शहर में हुआ था| वे उस समय के सबसे प्रसिद्ध हास्य कवियों में से एक थे| उन्होंने अपनी कविताओं से लोगो को लगभग 50 साल तक हसाया| उनकी कविताए इतनी मनोगंजक होती थी की हर कविताओं को बार बार पढ़ने का मन करता था| उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन जैसे बड़े मुद्दों को उठाया| आज के इस पोस्ट में हम आपको काका हाथरसी हिंदी कविता, प्रभुलाल गर्ग हास्य कविताए इन हिंदी, कविता ऑफ़ काका हाथरसी, आदि की जानकारी देंगे| काका हाथरसी की हास्य कविताएं अब हम आपको kaka hathrasi ki hasya kavita mp3, kaka hathrasi ki hasya kavita in hindi free download, काका हाथरसी हास्य कविता, kaka hathrasi hasya kavita, kaka hathrasi ki hasya kavita in hindi mp3, आदि की जानकारी देंगे|साथ ही आप नाम-रूप के भेद पर कभी किया है गौर ? नाम मिला कुछ और तो, शक्ल-अक्ल कुछ और शक्ल-अक्ल कुछ और, नैनसुख देखे काने बाबू सुंदरलाल बनाए ऐंचकताने कहँ ‘काका’ कवि, दयाराम जी मारें मच्छर विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर मुंशी चंदालाल का तारकोल-सा रूप श्यामलाल का रंग है जैसे खिलती धूप जैसे खिलती धूप, सजे बुश्शर्ट पैंट में- ज्ञानचंद छै बार फेल हो गए टैंथ में कहँ ‘काका’ ज्वालाप्रसाद जी बिल्कुल ठंडे पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे देख, अशर्फीलाल के घर में टूटी खाट सेठ भिखारीदास के मील चल रहे आठ मील चल रहे आठ, कर्म के मिटें न लेखे धनीराम जी हमने प्राय: निर्धन देखे कहँ ‘काका’ कवि, दूल्हेराम मर गए क्वाँरे बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बिचारे दीन श्रमिक भड़का दिए, करवा दी हड़ताल मिल-मालिक से खा गए रिश्...

'बच्चन ने पीकर दो प्याला दो घंटे में लिख डाली पूरी मधुशाला', पढ़ें काका हाथरसी की हास्य कविता

Hasya Kavita: काका हाथरसी ने हास्य कविता को एक नई पहचान और नया मुकाम दी है. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल खुद को देश-दुनिया में स्थापित किया बल्कि हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य का भी खूब प्रचार-प्रसार किया. काका हाथरसी अपनी रचनाओं के से सिस्टम और सत्ता पर खूब तंज किया है. सुरा यानी शराब को महिमा मंडित करते हुए बहुत ही शानदार कविता रची है. प्रस्तुत है उनकी कविता- सुरा समर्थन. भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं ‘कायर’ कहं ‘काका’, कवि ‘बच्चन’ ने पीकर दो प्याला दो घंटे में लिख डाली, पूरी ‘मधुशाला’ भेदभाव से मुक्त यह, क्या ऊंचा क्या नीच अहिरावण पीता इसे, पीता था मारीच पीता था मारीच, स्वर्ण- मृग रूप बनाया पीकर के रावण सीता जी को हर लाया कहं ‘काका’ कविराय, सुरा की करो न निंदा मधु पीकर के मेघनाद पहुंचा किष्किंधा ठेला हो या जीप हो, अथवा मोटरकार ठर्रा पीकर छोड़ दो, अस्सी की रफ़्तार अस्सी की रफ़्तार, नशे में पुण्य कमाओ जो आगे आ जाये, स्वर्ग उसको पहुंचाओ पकड़ें यदि सार्जेंट, सिपाही ड्यूटी वाले लुढ़का दो उनके भी मुंह में, दो चार पियाले पूरी बोतल गटकिये, होय ब्रह्म का ज्ञान नाली की बू, इत्र की खुशबू एक समान खुशबू एक समान, लड़खड़ाती जब जिह्वा ‘डिब्बा’ कहना चाहें, निकले मुंह से ‘दिब्बा’ कहं ‘काका’ कविराय, अर्ध-उन्मीलित अंखियां मुंह से बहती लार, भिनभिनाती हैं मखियां प्रेम-वासना रोग में, सुरा रहे अनुकूल सैंडिल-चप्पल-जूतियां, लगतीं जैसे फूल लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये सिर की बुद्धि शुद्ध हो जाये, खुले अक्कल की खिड़की प्रजातंत्र में बिता रहे क्यों जीवन फीका बनो ‘पियक्कड़चंद’, स्वाद ल...

काका हाथरसी की हास्य कविता

प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल, टेप-रिकॉर्डर में भरे, चमगादड़ के बोल। नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की, जय बोल बेईमान की! महंगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेल पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल। ‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की, जय बोल बेईमान की! डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम, कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम। धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की, जय बोलो बेईमान की! दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले धन का जोर, डार-डार सरकार है, पात-पात पर चोर। नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की, जय बोलो बेईमान की! चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार, आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार। बांकी झांकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की, जय बोलो बेईमान की! वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश, छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस। मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की, जय बोलो बेईमान की! खड़े ट्रेन में चल रहे, कक्का धक्का खायं, दस रुपए की भेंट में, थ्री टायर मिल जायं। हर स्टेशन पर हो पूजा श्री टी.टी. भगवान की, जय बोलो बेईमान की! बेकारी औ’ भुखमरी, महंगाई घनघोर, घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर। अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की, जय बोलो बेईमान की! मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल, मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल। पत्र-पुष्प से पॉकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की, जय बोलो बेईमान की! न्याय और अन्याय का, नोट करो डिफरेंस, जिसकी लाठी बलवती, हांक ले गया भैंस। निर्बल धक्के खाएं, तूती होल रही बलवान की, जय बोलो बेईमान की! पर-उपकारी भावना, पेशकार से सीख, दस रुपए के नोट में बदल गई तारीख। खाल खिंच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की, जय बोलो बेईमान की! नेता जी की का...