कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत को समझाइए

  1. मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धान्त – Gyaan Uday
  2. मार्क्स की वर्ग चेतना और झूठी चेतना को परिभाषित करना
  3. कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत की विवेचना
  4. [PDF] कार्ल मार्क्स का सिद्धांत
  5. कार्ल मार्क्स का वर्ग
  6. कार्ल मार्क्स के आर्थिक विकास सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए
  7. मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  8. कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त
  9. कार्ल मार्क्स : जिन्होंने मज़दूर वर्ग की मुक्ति की राह दिखाई


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मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धान्त – Gyaan Uday

Conflicts Theory of Marx Hello दोस्तो Gyaanuday में आपका स्वागत है, आज हम जानेंगे राजनीति विज्ञान में कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष सिद्धांत के बारे में । (Conflicts Theory of Karl Marx in Hindi). यह Topic B.A. Political Science के विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । इस Post में हम जानेंगे वर्ग संघर्ष का अर्थ, उसकी विशेषताएं और वर्ग संघर्ष की प्रमुख आलोचनाओं के बारे में । तो शुरू करते हैं आसान भाषा में । मार्क्स के अनुसार राजनीति वर्ग संघर्ष को रोकती है और वर्ग संघर्ष की वजह से ही राजनीति पैदा हुई है । मार्क्स की विचारधारा में वर्ग संघर्ष की धारणा को विशेष महत्व दिया गया है । साम्यवादी घोषणा पत्र ( Communist Manifesto) के अनुसार- “आज तक के संपूर्ण समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है ।” मार्क्स ने राजनीति को आर्थिक और भौतिक दोनों ही संदर्भों में स्पष्ट किया है । मार्क्स ने इतिहास की आर्थिक व्याख्या या आर्थिक नियतिवाद के सिद्धांत में वर्ग संघर्ष की धारणा का प्रतिपादन किया था । समाज में हमेशा ही विरोधी वर्गों का अस्तित्व रहा है । मार्क्स के अनुसार एक वर्ग वह है, जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है और दूसरा वह जो केवल शारीरिक श्रम करता है । स्वामित्व वर्ग सदैव दूसरे वर्ग का शोषण करता रहता है और यह समाज के शोषक और शोषित वर्ग सदा ही आपस में संघर्ष करते रहते हैं । वर्ग संघर्ष क्या है ? What is Class Conflicts ? वर्ग व्यक्तियों के उस समूह को कहते हैं, जो उत्पादन (Production) की किसी विशेष प्रक्रिया में लगा हुआ हो और जिसके उद्देश्य और साधारण हित एक हो । मार्क्स के इस सिद्धांत के अनुसार समाज में दो वर्ग बताये गए हैं । पहला उत्पादन (Production) वर्ग तथा दूसरा वित...

मार्क्स की वर्ग चेतना और झूठी चेतना को परिभाषित करना

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कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत की विवेचना

मार्क्सवादी विचार के अनुसार मनुष्य साधारणतया एक सामाजिक प्राणी है, परन्तु अधिक स्पष्ट और आर्थिक रूप में वह एक ‘वर्ग-प्राणी’ है। कार्लमार्क्स का कहना है कि किसी भी युग में, जीविका उपार्जन की प्राप्ति के विभिन्न साधनों के कारण पृथक-पृथक वर्गों में विभाजित हो जाते हैं और प्रत्येक वर्ग में एक विशेष वर्ग-चेतना उत्पन्न हो जाती है। दूसरे शब्दों में, वर्ग का जन्म उत्पादन के नवीन तरीकों के आधार पर होता है। जैसे ही भौतिक उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन होता है वैसे ही नये वर्ग का उद्भव भी होता है। इस प्रकार एक समय की उत्पादन प्रणाली ही उस समय के वर्गों की प्रकृति को निश्चित करती है। आदिम समुदायों में कोई भी वर्ग नहीं होता था और मनुष्य प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयोग करते थे। जीवित रहने के लिए आवश्यक वस्तुओं का वितरण बहुत कुछ समान था क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं से कर लेता था। दूसरे शब्दों में, प्रकृति द्वारा जीवित रहने के साधनों का वितरण समान होने के कारण वर्ग का जन्म उस समय नहीं हुआ था पर शीघ्र ही वितरण में भेद या अन्तर आने लगा और उसी के साथ-साथ समाज वर्गों में विभाजित हो गया। कार्लमार्क्स के अनुसार समाज स्वयं अपने को वर्गों में विभाजित हो गया। कार्लमार्क्स के अनुसार समाज स्वयं अपने को वर्गों में विभाजित कर लेता है- यह विभाजन धनी और निर्धन, शोषक और शोषित तथा शासक और शासित वर्गों में होता है। आधुनिक समाज में आय के साधन के आधार पर तीन महान् वर्गों का उल्लेख किया जा सकता है। इनमें प्रथम वे हैं जो श्रम शक्ति के अधिकारी हैं, दूसरे वे हैं जो पूंजी के अधिकारी हैं और तीसरे वे जो मजींदार हैं। इन तीन ...

[PDF] कार्ल मार्क्स का सिद्धांत

‘कार्ल मार्क्स के सिद्धांत : वर्ग संघर्ष, ऐतिहासिक भौतिकवा’ PDF Quick download linkis given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Karl Marx’s Theories: Class Struggle, Historical Materialism’ using the download button. शीर्षककार्ल मार्क्स सिद्धांत की प्रस्तावना (Introduction To Karl Marx Theory) कार्ल मार्क्स का जन्म 1818 में ट्रायर में हुआ । उन्होंने बोन विश्वविद्यालय तथा बर्लिन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया तथा जेना से डाकरेक्ट की उपाधि प्राप्त की 1843 में वह पेरिस चले गये जहाँ उनकी मित्रता फेड्रिक एनजल्स से हुई जिसने उन्हें राजनीतिक अर्थशास्त्र के अध्ययन की प्रेरणा दी 1848 में उनका एंजल्स के साथ मिलकर लिखा ग्रंथ The Communist Manifesto प्रकाशित हुआ। 1859 में उनका ग्रंथ The Critique of Political Economy व 1845 में Das Kapital प्रकाशित हुआ । मार्क्स की मृत्यु 1883 में हुई । Das Kapital के अन्य अध्याय उनकी मृत्यु के उपरांत 1885 व 1894 में छपे प्रतिष्ठित विश्लेषण में ठीक उस समय, जबकि जे.एस. मिल का लेखन आशावादी दृष्टिकोण से समन्वित सिद्धान्त का प्रसार कर रहा था, द्वंद एवं विरोधाभास को रेखांकित करता वदात्मक भौतिकवाद का विश्लेषण इसके लिए चुनौती बना । यह नवीन विश्लेषण एडम स्मिथ एवं डेविड रिकार्डों के मूल्य के श्रम सिद्धान्त द्वारा विकसित था जिसे इतिहास के भौतिक विश्लेषण एवं निर्वचन से संबंधित किया गया। इसके जनक कार्ल मार्क्स थे जिन्हें आधुनिक वैज्ञानिक समाजवाद का जन्मदाता माना गया। उन्होंने पूँजीवाद के पतन एवं समाजवाद के विकास का मौलिक विश्लेषण प्रस्तुत किया । एडमंड विल्सन ने मार्...

कार्ल मार्क्स का वर्ग

B. A. II, Political Science I प्रश्न 14. कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्ग संघर्ष और सर्वहारा के अधिनायकत्व के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। अथवा '' कार्ल मार्क्स के साम्यवादी सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए। अथवा '' कार्ल मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। अथवा "अब तक के सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है। इस कथन की पुष्टि कीजिए। उत्तर - कार्ल मार्क्स ने अपना वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त अपनी प्रसिद्ध कृतियों 'Das Capital' तथा' Communist Manifesto' में प्रस्तुत किया। मार्क्स का विचार है कि मनुष्य यद्यपि एक सामाजिक प्राणी है, किन्तु वह एक वर्ग प्राणी भी है। कार्ल मार्क्स का विचार है कि यदि ऐतिहासिक आधार पर समाज का विश्लेषण किया जाए तो यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि समाज सदैव दो वर्गों में विभक्त रहा है। प्रारम्भ में समाज स्त्री और पुरुष दो वर्गों में विभक्त था, उसके उपरान्त समाज के कुछ वर्गों ने प्रकृति पर अधिकार कर लिया तथा दूसरा वर्ग इससे वंचित रह गया अर्थात् समाज दो वर्गों में विभक्त हो गया। मार्क्स का विचार है कि समय व परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ-साथ नये-नये वर्गों का उदय होता रहा है। इनके अनुसार वर्गों का निर्माण भौतिक विभाजन के आधार पर होता है। वर्ग वास्तव में आर्थिक वर्ग हैं, जो उत्पादन की प्रणाली या आधार पर विकसित होते हैं। वस्तुओं के वितरण का अन्तर ही वर्ग-भेद का कारण है। कार्ल मार्क्स का वर्ग-संघर्ष सिद्धान्त मार्क्स के वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्त को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है वर्ग- संघर्ष का अर्थ और प्रकृति मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धान्त का यह अर्थ है कि प्रत्येक वस्त का विकास उस वस्तु म...

कार्ल मार्क्स के आर्थिक विकास सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए

आर्थिक विकास सिद्धांत मार्क्स की विचारधारा के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की भाँति ही 'इतिहास की आर्थिक व्याख्या' या 'आर्थिक नियतिवाद' का सिद्धान्त भी महत्त्वपूर्ण है। वास्तव में द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त को सामयिक विकास के सम्बन्ध में प्रयुक्त करना इतिहास की आर्थिक व्याख्या है। मार्क्स उन इतिहासकारों से सहमत नहीं है जिन्होंने इतिहास को कुछ विशेष और महान् व्यक्तियों के कार्यों का परिणाम मात्र समझा है। मार्क्स के विचार में इतिहास की सभी घटनाएँ आर्थिक अवस्था में होने वाले परिवर्तनों का परिणाम मात्र हैं और किसी भी राजनीतिक संगठन अथवा उसकी न्याय व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसके आर्थिक ढाँचे का ज्ञान नितान्त आवश्यक है। मानवीय क्रियाएँ नैतिकता, धर्म या राष्ट्रीयता से नहीं, वरन् केवल आर्थिक तत्वों से प्रभावित होती हैं। स्वयं मार्क्स के शब्दों में, "सभी सामाजिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक सम्बन्ध, सभी धार्मिक तथा कानूनी पद्धतियाँ, सभी बौद्धिक दृष्टिकोण जो इतिहास के विकास क्रम में जन्म लेते हैं, वे सब जीवन की भौतिक अवस्थाओं से उत्पन्न होते हैं। " - अपने विचार - क्रम को स्पष्ट करते हुए मार्क्स कहता है कि उत्पत्ति के सिद्धान्त का निरन्तर विकास होता रहता है। वे गतिमान और परिवर्तनशील हैं और उनकी परिवर्तनशीलता का ही यह परिणाम होता है कि हमारे जीवनयापन के ढंग में परिवर्तन होता रहता है। मार्क्स ने अपनी इस आर्थिक व्याख्या के आधार पर अब तक की और भावी मानवीय इतिहास की 6 अवस्थाएँ बतायी हैं। इनमें से प्रथम चार अवस्थाओं से समाज गुजर चुका है और शेष दो अवस्थाएँ अब आनी हैं। मानवीय इतिहास की ये 6 अवस्थाएँ निम्न प्रकार हैं - आदिम साम्यवादी अवस्था- सामाजिक विकास की इस पहली अवस्था में उत्पादन...

मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

कार्ल मार्क्स का मत है कि समाज में वर्ग संघर्ष सदैव से ही होते चले आए हैं। ‘साम्यवादी घोषणा-पत्रमें कहा गया है-“अब तक के समस्त विद्यमाने समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का ही इतिहास है।” वर्ग संघर्ष से आशय है कि समाज में दो वर्गों का अस्तित्व है तथा इन वर्गों के हित एक-दूसरे के विपरीत हैं। इस कारण इनमें संघर्ष चलता रहा है। उसका कथन है कि वर्ग संघर्ष आधुनिक युग में पूंजीपतियों और श्रमिकों के बीच मुख्य रूप से पाया जाता है और इस संघर्ष के परिणामस्वरूप ही समाज मानवीय आशाओं के अनुरूप उन्नति नहीं कर पाता है। इसलिए वर्ग संघर्ष ही राज्य तथा समाज की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। यह वर्ग संघर्ष अनेक प्रकार की राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं को जन्म देता है। मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत मार्क्स अपने वर्ग संघर्ष के सिद्धांत को ऐतिहासिक आधार पर सत्य मानता है। उसका मत है कि इतिहास में आदिम साम्यवादी व्यवस्था के अतिरिक्त कोई भी ऐसा युग नहीं रहा जबकि दो वर्गों के बीच संघर्ष की स्थिति न रही हो। इस संबंध में मार्क्स का मत है कि वर्तमान समाज धनवानों और निर्धनों में विभाजित है। ये धनवान वर्ग और निर्धन वर्ग; पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग कहलाते हैं। इन दोनों वर्गों में कभी कोई संयोग नहीं हो सकता। इसलिए सभी समाजवादियों को एक साथ मिलकर ऐसी प्रयास करना चाहिए कि वर्ग संघर्ष की समाप्ति हो जाए और वर्गहीन समाज की स्थापना हो जाए। माक्र्स अपने वर्ग संघर्ष के इस सिद्धांत को निम्नलिखित आधारों पर सत्य मानता है – ⦁मार्क्स इस बात में विश्वास करता है कि आदिम साम्यवादी व्यवस्था के अतिरिक्त प्राचीनकाल से ही इतिहास में विरोधी वर्गों का अस्तित्व देखने को मिलता है। ⦁व्यक्तियों के विभिन्न स्वार्थ होते हैं, इसलिए उनमे...

कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त

अनुक्रम (Contents) • • • कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त- कार्ल मार्क्स की विचारधारा में वर्ग संघर्ष को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। इस सम्बन्ध में, साम्यवादी घोषणा-पत्र में कहा गया है कि “अब तक के समस्त सामाजिक जीवन का इतिहास वर्ग संघर्ष का ही इतिहास है।” मार्क्स के द्वारा वर्ग संघर्ष की यह धारणा ऑगस्टाइन चोरे से ली गयी थी, किन्तु इसकी पूर्ण विवेचना मार्क्स के द्वारा ही की गयी है। वर्ग व्यक्तियों के उस समूह को कहते हैं जो उत्पादन की किसी विशेष क्रिया से सम्बन्धित हॉ और जिनके साधारण हित एक हो। मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त समाज में उत्पादन तथा वितरण पर आधारित दो वर्गों को मानकर चलता है जो अपने विरोधी हितों के कारण संघर्षरत रहते हैं। वर्गों के स्वरूप में भले ही अन्तर आता रहे, किन्तु समाज में वर्ग का उत्पादन के साधनों भूमि और पूँजी पर अधिकार रहता है, इसे जमींदार या पूँजीपति वर्ग कहते हैं। दूसरा इन पर आश्रित रहने वाला तथा घोर परिश्रम करके जीने वाला कृषक या परिश्रमजीवी वर्ग है। पहला वर्ग बिना कुछ परिश्रम किये हुए दूसरे वर्ग के शोषण से लाभ उठाता है तथा परिश्रमजीवी वर्ग पर्याप्त परिश्रम करने पर भी जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी करने के साधन नहीं जुटा पाता और निरन्तर शोषित होता रहता है। इस दृष्टि से पहले को शोषक वर्ग और दूसरे को शोषित वर्ग कहा जाता है। मार्क्स और एंजिल्स‘साम्यवादी घोषणा पत्र’ में लिखते हैं, “स्वतन्त्र व्यक्ति तथा दास, अमीर तथा सामान्य जन, भूस्वामी तथा भूदास, श्रेणीपति तथा दस्तकार, संक्षेप में उत्पीड़ित, निरन्तर एक दूसरे का विरोध करते तथा अनवरत कभी लुक-छिपकर तथा कभी खुलकर संघर्ष चलाते रहे हैं। इस संघर्...

कार्ल मार्क्स : जिन्होंने मज़दूर वर्ग की मुक्ति की राह दिखाई

मज़दूरवर्ग के महान शिक्षक व दोस्त कार्ल मार्क्स की 202वीं जयन्ती (5 मई) के अवसर पर कार्ल मार्क्स मजदूरवर्ग के महान शिक्षक, नेता व दोस्त थे। उन्होंने समाज का वैज्ञानिक परीक्षण किया और मेहनतकशों की मुक्ति की राह बताई। वे दार्शनिक थे, अर्थशास्त्री थे और वैज्ञानिक समाजवाद के महान प्रणेता थे। उन्होंने मेहनतकश-मज़दूरों के शोषण व ज़िल्लत भरी ज़िदगी के कारणों को वैज्ञानिक तथ्यों और जमीनी संघर्षों की रौशनी में बताया। उन्होंने मुक्ति की वह राह दिखाई, जिसमें मुनाफे व लूट पर टिके इस समाज को बदलकर मेहनतकश वर्ग अपने सच्चे राज को लाकर मानव द्वारा मानव के शोषण का खात्मा करेगा। यह स्थापित किया कि सर्वहारा ही पूँजीवाद के खात्मे के साथ शोषण पर टिके पूरे वर्गीय समाज को खत्म करके पूरी मानवता को मुक्त करेगा। शुरुआती जीवन यात्रा मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को त्रोवेस (जर्मनीद्) के एक यहूदी परिवार में हुआ था। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। उन्होंने कानून की पढ़ाई से लेकर साहित्य, इतिहास, दर्शन व राजनीतिक अर्थशास्त्र का गहन अध्ययन किया। साथ ही व्यक्तिगत जीवन को भी उसी शिद्दत के साथ जीते हुए जेनी को अपना जीवन संगनी बनाया। व्यवहार से सिद्धांत तक शिक्षा समाप्त करने के पश्चात मार्क्स समाज का व्यवहारिक अध्ययन करते हुए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े। क्रान्तिकारी विचारों के कारण एक के बाद एक प्रतिबन्ध व देश निकाला झेलते हुए मार्क्स लगातार मज़दूर वर्ग के संघर्ष व विचारों को आगे बढ़ते रहे। उन्होंने जर्मनी के मज़दूर सगंठन और कम्युनिस्ट लीग के निर्माण में सक्रिय योगदान दिया। 1847 में मज़दूरवर्ग के एक और नेता और अनन्य मित्रा फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ मज़दूर वर्ग का पहला घोषणापत्र – ‘कम्युनिस...