कार्तिक माह की कथा

  1. Kartik Month festivals: ये हैं कार्तिक माह 2020 के प्रमुख व्रत और त्योहार
  2. सम्पूर्ण कार्तिक पुराण कथा और महात्मय
  3. कार्तिक मास की पौराणिक कथा
  4. कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 9
  5. कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 1
  6. Kartik Snan Ke Niyam: जानिए क्या है कार्तिक स्नान के नियम और महत्व?
  7. कार्तिक माह माहात्म्य
  8. कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 1
  9. कार्तिक मास की पौराणिक कथा
  10. कार्तिक माह माहात्म्य


Download: कार्तिक माह की कथा
Size: 68.28 MB

Kartik Month festivals: ये हैं कार्तिक माह 2020 के प्रमुख व्रत और त्योहार

नई दिल्ली। हिंदू धर्म की खूबसूरती और महत्व ही इसके व्रत-त्योहार हैं। ऐसा कोई माह नहीं है जिसमें कोई व्रत-त्योहार ना आता हो। लेकिन इनमें सबसे अधिक व्रत त्योहारों वाला महीना है कार्तिक माह। इसलिए इस माह का सर्वाधिक महत्व है। इस माह की शुरुआत शरद पूर्णिमा के स्नान से शुरू हो जाती है और कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दीवाली तक जारी रहता है। इस वर्ष कार्तिक माह 1 नवंबर से प्रारंभ होकर 30 नवंबर तक जारी रहेगा। शरद पूर्णिमा के बाद कार्तिक माह का पहला व्रत है करवाचौथ। यह व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन होता है। पति की दीर्घ आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ यह व्रत विवाहित महिलाएं करती हैं। इस दिन निराहार, निर्जला रहते हुए स्ति्रयां व्रत करती हैं। भगवान गणेश की पूजा करती हैं और रात्रि में चंद्रदर्शन के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं। अहोई अष्टमी, रवि पुष्य : 8 नवंबर यह व्रत कार्तिक मास की अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान के दीर्घ और स्वस्थ जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत को संतान आठे के नाम से भी जाना जाता है। नि:संतान स्ति्रयां भी संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। इस व्रत में गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाकर उनकी पूजा की जाती है। यह व्रत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इस दिन रविवार और पुष्य नक्षत्र के संयोग से रवि-पुष्य का शुभ संयोग भी बना है, जो समस्त प्रकार की खरीददारी के लिए शुभ है। रमा एकादशी : 11 नवंबर कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत समस्त प्रकार के सुख, भोग, भौतिक सुख-सुविधाएं देने वाला कहा गया है। व्रत के प्रभाव से जीवन के संकटों, परेशानि...

सम्पूर्ण कार्तिक पुराण कथा और महात्मय

सम्पूर्ण कार्तिक पुराण कथा और महात्मय Click Here For Download Now एक बार ब्रह्मा जी ने नारद जी को कार्तिक माह के विषय में बताते हुए कहा कि कार्तिक माह (Kartik Maas) भगवान विष्णु जी को सदैव ही प्रिय है। इस मास में भगवान विष्णु जी का ध्यान करते हुए कोई भी पुण्य कार्य किया जाये उसका फल अवश्य मिलता है। सभी योनियों में से मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ तथा दुर्लभ कहा गया है, अत: प्रत्येक मनुष्य को कार्तिक माह (Kartik Maas) में पुण्य कर्म करने चाहिए क्योंकि इस माह में सभी देवतागण मनुष्य के समीप हो जाते हैं। इस माह में देवता मनुष्य द्वारा किये हुए स्नान, व्रत, वस्त्र, भोजन, चांदी, स्वर्ण, भूमि आदि दिये गये दान को विधिपूर्वक ग्रहण करते हैं। इन सभी में से अन्न दान, जो कि सभी पापों का नाश करता है, का अधिक महत्व है। कार्तिक माह (Kartik Maas) में मनुष्य जिस किसी मनोकामना से दान अधिक करता है उसे वह अक्षय रूप में प्राप्त होता है। यदि कोई मनुष्य दान देने में असमर्थ हो तो उसे कार्तिक मास में प्रतिदिन भगवान के नामों का स्मरण करना चाहिए तथा गंगा जी में स्नान करते हुए कार्तिक माह (Kartik Maas) की कथा पढ़नी चाहिए, ऐसा करने से भी मनुष्य पुण्य का भागी बनता है। इस माह में भगवान को प्रसन्न करने के लिए किसी भी मन्दिर में भजन-कीर्तन करना चाहिए। स्वयं दीपदान करना चाहिए अथवा दूसरे के दीपक की रक्षा करनी चाहिए। भगवान का सारूप्य तथा मोक्षपद प्राप्त करने के लिए तुलसी तथा आँवले के वृक्ष को भगवद स्वरुप मानकर उसका पूजन करना चाहिए। जो मनुष्य कार्तिक माह में जमीन पर सोता है उसके सभी पाप युगों-युगों के लिए नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य अरुणोदय काल में जागरण कर गंगा में स्नान कर के करोड़ो जन्मों के कल्मषों को धो डालता ह...

कार्तिक मास की पौराणिक कथा

21 अक्टूबर 2021 से कार्तिक का महीना प्रारंभ हो चुका है। इस माह को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस माह में ही भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जाग जाते हैं और तब सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इसी कार्तिक मास में दीपावली का महापर्व आता है। पुराणों में कार्तिक मास की महीमा का वर्णन मिलता है। इस माह में दीपदान, स्नान, विष्णु पूजा और तुलसी पूजा के साथ ही पौराणिक कथा सुनने का बहुत ही खास बहुत होता है। आओ पढ़ते हैं कार्तिक मास की कथा। कार्तिक मास की कथा ( kartik maas ki katha )– एक नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन 7 कोस दूर गंगा और यमुना नदी में स्नान करने जाते थे। इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मण की पत्नी थक जाती थी। एक दिन उसने अपने पति से कहा कि हमारा एक पुत्र होता तो कितना अच्छा रहता। पुत्र के बहू आती तो हमें घर वापस जाने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती। जब वह लड़की जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे-पीछे उसके घर तक चला गया। वहां जाकर ब्राह्मण ने उस लडूकी से कहा- बेटी, कार्तिक मास चल रहा है इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता। मैं अपने साथ आटा लेकर आया हूं। तुम अपनी माता से पूछो कि क्या वह मेरे लिए आटा छानकर चार रोटी बना देगी? यदि वह मेरा आटा छानकर रोटी बनाएगी तो ही मैं रोटी खा लूंगा। लड़की ने जाकर अपनी मां को ये सारी बात बताई। मां ने कहा– उचित है। जाकर ब्राह्मणदेव से कह दो कि वह अपना आटा दे देल मैं रोटी बना दूंगी। जब वह आटा छानने लगी तो आटे में से मोहरे निकली। वह सोचने लगी कि जिस के आटे में इतनी मोहरे हैं। उसके घर में कितनी मोहरे होंगी। जब ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की मां ने उस ब्राह्मण से पूछा– क्या आपका कोई लड़का है औ...

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 9

Read in English राजा पृथु ने कहा: हे मुनिश्रेष्ठ नारद जी! आपने कार्तिक माह के व्रत में जो तुलसी की जड़ में भगवान विष्णु का निवास बताकर उस स्थान की मिट्टी की पूजा करना बतलाया है, अत: मैं श्री तुलसी जी के माहात्म्य को सुनना चाहता हूँ। तुलसी जी कहाँ और किस प्रकार उत्पन्न हुई, यह बताने की कृपा करें। नारद जी बोले: राजन! अब आप तुलसी जी की महत्ता तथा उनके जन्म का प्राचीन इतिहास ध्यानपूर्वक सुनिए.. एक बार देवगुरु बृहस्पति और देवराज इन्द्र भगवान शंकर का दर्शन करने कैलाश पर्वत की ओर चले तब भगवान शंकर ने अपने भक्तों की परीक्षा लेने के लिए जटाधारी दिगम्बर का रुप धारण कर उन दोनों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न किया यद्यपि वह तेजस्वी, शान्त, लम्बी भुजा और चौड़ी छाती वाले, गौर वर्ण, अपने विशाल नेत्रों से युक्त तथा सिर पर जटा धारण किये वैसे ही बैठे थे तथापि उन भगवान शंकर को न पहचान कर इन्द्र ने उनसे उनका नाम व धाम आदि पूछते हुए कहा कि क्या भगवान शंकर अपने स्थान पर हैं या कहीं गये हुए हैं? इस पर तपस्वी रूप भगवान शिव कुछ नहीं बोले। इन्द्र को अपने त्रिलोकीनाथ होने का गर्व था, उसी अहंकार के प्रभाव से वह चुप किस प्रकार रह सकता था, उसने क्रोधित होते हुए उस तपस्वी को धुड़ककर कहा: अरे! मैंने तुझसे कुछ पूछा है और तू उसका उत्तर भी नहीं देता, मैं अभी तुझ पर वज्र का प्रहार करता हूँ फिर देखता हूँ कि कौन तुझ दुर्मति की रक्षा करता है। इस प्रकार कहकर जैसे ही इन्द्र ने उस जटाधारी दिगम्बर को मारने के लिए हाथ में वज्र लिया वैसे ही भगवान शिव ने वज्र सहित इन्द्र का हाथ स्तम्भित कर दिया और विकराल नेत्र कर उसे देखा। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह दिगम्बर प्रज्वलित हो उठा है और वह अपने तेज से जला देगा। भुजाएँ स्त...

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 1

मैं सिमरूँ माता शारदा, बैठे जिह्वा आये । कार्तिक मास की कथा, लिखे ‘कमल’ हर्षाये ॥ नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार सनकादि ऋषियों से कहा: अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ, जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। सूतजी ने कहा: श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात। सत्यभामा प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण से बोली: हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ, मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं, जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी। मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधिपूर्वक दान में दिया, परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है। यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है। हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ। आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तारपूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों। सूतजी आगे बोले: सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं रुकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले: हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो। तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था। हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो। एक दिन मैंने(श्रीकृष्ण) तुम्हारी(सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष मांगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्र...

Kartik Snan Ke Niyam: जानिए क्या है कार्तिक स्नान के नियम और महत्व?

Kartik Snan ki Vidhi aur Mahatava: आज से भगवान विष्णु के प्रिय महीने कार्तिक की शुरुआत हुई है। इस माह में लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, कहते हैं कि ऐसा करने से इंसान के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उसके सारे पाप भी धुल जाते हैं और भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा इंसान पर बरसती है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस महीने में जप, तप, दान का भी काफी महत्व है। कहते हैं कि कार्तिक माह में स्नान के भी नियम है, चलिए जानते हैं उसके बारे में विस्तार से। पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है सतयुग के बाद अगर कोई माह का नाम आता है तो वो है कार्तिक मास। माना जाता है कि इस माह की पूर्णिमा वाले दिन तो भगवान भी धरती पर उतर आते हैं। इस माह में पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है इसलिए इस दौरान काशी, प्रयाग राज जैसे तीर्थ स्थलों पर जमकर भक्तों की भीड़ देखी जाती है। लेकिन अगर आप किसी कारणवश पवित्र नदियों तक नहीं पहुंच पाते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप अपने नहाने वाले जल में गंगाजल की कुछ बूंदें मिला सकते हैं। सूर्योदय से पहले किया गया स्नान घर में स्नान करने के बाद आप तुलसी के पौधे ओर आप अपने घर के मंदिर में घी-तेल का दीपक सुबह-शाम जला सकते हैं और कार्तिक मास की कथा सुन सकते हैं। कार्तिक माह में प्रतिदिन सूर्योदय से पहले किया गया स्नान एक हजार गंगा स्नान के बराबर माना गया है। कार्तिक मास में ही तुलसी माता और शालिग्राम का विवाह किया जाता है औऱ कहते हैं कि सुबह-शाम तुलसी के पास दीपक जलाने से मां लक्ष्मी और प्रभु विष्णु की कृपा इंसान के ऊपर बरसती है और उसके घर में धन-वैभव की प्राप्ति होती है। भक्तों का सीधे साक्षात्कार श्रीहरि से होता है कार्तिक माह में अन्न...

कार्तिक माह माहात्म्य

श्रीकृष्ण भगवान के चरणों में शीश झुकाओ। श्रद्धा भाव से पूजो हरि, मनवांछित फल पाओ।। सत्यभामा ने कहा – हे प्रभो! आप तो सभी काल में व्यापक हैं और सभी काल आपके आगे एक समान हैं फिर यह कार्तिक मास ही सभी मासों में श्रेष्ठ क्यों है? आप सब तिथियों में एकादशी और सभी मासों में कार्तिक मास को ही अपना प्रिय क्यों कहते हैं? इसका कारण बताइए. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – हे भामिनी! तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है. मैं तुम्हें इसका उत्तर देता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो. इसी प्रकार एक बार महाराज बेन के पुत्र राजा पृथु ने प्रश्न के उत्तर में देवर्षि नारद से प्रश्न किया था और जिसका उत्तर देते हुए नारद जी ने उसे कार्तिक मास की महिमा बताते हुए कहा – हे राजन! एक समय शंख नाम का एक राक्षस बहुत बलवान एवं अत्याचारी हो गया था. उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई. उस शंखासुर ने स्वर्ग में निवास करने वाले देवताओं पर विजय प्राप्त कर इन्द्रादि देवताओं एवं लोकपालों के अधिकारों को छीन लिया. उससे भयभीत होकर समस्त देवता अपने परिवार के सदस्यों के साथ सुमेरु पर्वत की गुफाओं में बहुत दिनो तक छिपे रहे. तत्पश्चात वे निश्चिंत होकर सुमेरु पर्वत की गुफाओं में ही रहने लगे. उधर जब शंखासुर को इस बात का पता चला कि देवता आनन्दपूर्वक सुमेरु पर्वत की गुफाओं में निवास कर रहे हैं तो उसने सोचा कि ऎसी कोई दिव्य शक्ति अवश्य है जिसके प्रभाव से अधिकारहीन यह देवता अभी भी बलवान हैं. सोचते-सोचते वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वेदमन्त्रों के बल के कारण ही देवता बलवान हो रहे हैं. यदि इनसे वेद छीन लिये जाएँ तो वे बलहीन हो जाएंगे. ऎसा विचारकर शंखासुर ब्रह्माजी के सत्यलोक से शीघ्र ही वेदों को हर लाया. उसके द्वारा ले जाये जाते हुए भ...

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 1

मैं सिमरूँ माता शारदा, बैठे जिह्वा आये । कार्तिक मास की कथा, लिखे ‘कमल’ हर्षाये ॥ नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार सनकादि ऋषियों से कहा: अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ, जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। सूतजी ने कहा: श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात। सत्यभामा प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण से बोली: हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ, मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं, जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी। मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधिपूर्वक दान में दिया, परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है। यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है। हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ। आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तारपूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों। सूतजी आगे बोले: सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं रुकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले: हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो। तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था। हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो। एक दिन मैंने(श्रीकृष्ण) तुम्हारी(सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष मांगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्र...

कार्तिक मास की पौराणिक कथा

21 अक्टूबर 2021 से कार्तिक का महीना प्रारंभ हो चुका है। इस माह को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस माह में ही भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जाग जाते हैं और तब सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इसी कार्तिक मास में दीपावली का महापर्व आता है। पुराणों में कार्तिक मास की महीमा का वर्णन मिलता है। इस माह में दीपदान, स्नान, विष्णु पूजा और तुलसी पूजा के साथ ही पौराणिक कथा सुनने का बहुत ही खास बहुत होता है। आओ पढ़ते हैं कार्तिक मास की कथा। कार्तिक मास की कथा ( kartik maas ki katha )– एक नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन 7 कोस दूर गंगा और यमुना नदी में स्नान करने जाते थे। इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मण की पत्नी थक जाती थी। एक दिन उसने अपने पति से कहा कि हमारा एक पुत्र होता तो कितना अच्छा रहता। पुत्र के बहू आती तो हमें घर वापस जाने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती। जब वह लड़की जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे-पीछे उसके घर तक चला गया। वहां जाकर ब्राह्मण ने उस लडूकी से कहा- बेटी, कार्तिक मास चल रहा है इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता। मैं अपने साथ आटा लेकर आया हूं। तुम अपनी माता से पूछो कि क्या वह मेरे लिए आटा छानकर चार रोटी बना देगी? यदि वह मेरा आटा छानकर रोटी बनाएगी तो ही मैं रोटी खा लूंगा। लड़की ने जाकर अपनी मां को ये सारी बात बताई। मां ने कहा– उचित है। जाकर ब्राह्मणदेव से कह दो कि वह अपना आटा दे देल मैं रोटी बना दूंगी। जब वह आटा छानने लगी तो आटे में से मोहरे निकली। वह सोचने लगी कि जिस के आटे में इतनी मोहरे हैं। उसके घर में कितनी मोहरे होंगी। जब ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की मां ने उस ब्राह्मण से पूछा– क्या आपका कोई लड़का है औ...

कार्तिक माह माहात्म्य

श्रीकृष्ण भगवान के चरणों में शीश झुकाओ। श्रद्धा भाव से पूजो हरि, मनवांछित फल पाओ।। सत्यभामा ने कहा – हे प्रभो! आप तो सभी काल में व्यापक हैं और सभी काल आपके आगे एक समान हैं फिर यह कार्तिक मास ही सभी मासों में श्रेष्ठ क्यों है? आप सब तिथियों में एकादशी और सभी मासों में कार्तिक मास को ही अपना प्रिय क्यों कहते हैं? इसका कारण बताइए. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – हे भामिनी! तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है. मैं तुम्हें इसका उत्तर देता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो. इसी प्रकार एक बार महाराज बेन के पुत्र राजा पृथु ने प्रश्न के उत्तर में देवर्षि नारद से प्रश्न किया था और जिसका उत्तर देते हुए नारद जी ने उसे कार्तिक मास की महिमा बताते हुए कहा – हे राजन! एक समय शंख नाम का एक राक्षस बहुत बलवान एवं अत्याचारी हो गया था. उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई. उस शंखासुर ने स्वर्ग में निवास करने वाले देवताओं पर विजय प्राप्त कर इन्द्रादि देवताओं एवं लोकपालों के अधिकारों को छीन लिया. उससे भयभीत होकर समस्त देवता अपने परिवार के सदस्यों के साथ सुमेरु पर्वत की गुफाओं में बहुत दिनो तक छिपे रहे. तत्पश्चात वे निश्चिंत होकर सुमेरु पर्वत की गुफाओं में ही रहने लगे. उधर जब शंखासुर को इस बात का पता चला कि देवता आनन्दपूर्वक सुमेरु पर्वत की गुफाओं में निवास कर रहे हैं तो उसने सोचा कि ऎसी कोई दिव्य शक्ति अवश्य है जिसके प्रभाव से अधिकारहीन यह देवता अभी भी बलवान हैं. सोचते-सोचते वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वेदमन्त्रों के बल के कारण ही देवता बलवान हो रहे हैं. यदि इनसे वेद छीन लिये जाएँ तो वे बलहीन हो जाएंगे. ऎसा विचारकर शंखासुर ब्रह्माजी के सत्यलोक से शीघ्र ही वेदों को हर लाया. उसके द्वारा ले जाये जाते हुए भ...