काव्य की दृष्टि से रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया है

  1. रीतिसिद्ध काव्य परम्परा
  2. Ritikaal Objective Questions
  3. 1. सही विकल्प का चयनकर लिखिए
  4. रीतिकाल : समय
  5. भक्ति काव्य को कितने भागों में बांटा जाता है? – ElegantAnswer.com
  6. रीतिकालीन काव्य की प्रमुख प्रवृतियाँ


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रीतिसिद्ध काव्य परम्परा

रीतिसिद्ध काव्य परंपरा ( Reetisiddh Kavya Parampara ) रीतिसिद्ध कवि वे कवि हैं जिन्हें काव्य का शास्त्रीय ज्ञान तो था लेकिन वे शास्त्रीय नियमों के चक्कर में नहीं पड़े | इनके काव्य में काव्य शास्त्रीय छाप स्पष्ट दिखाई देती है | यह भी कहा जा सकता है कि इन कवियों ने लक्षण ग्रंथ तो नहीं लिखे लेकिन काव्य- रचना करते समय इनकी दृष्टि काव्य लक्षणों की तरफ अवश्य रही | बिहारी, रसनिधि, कृष्ण Advertisement बिहारी ( Bihari )रीतिसिद्ध कवियों में सर्वश्रेष्ठ कहे जा सकते हैं | इनका जन्म 1595 ईo में ग्वालियर में हुआ | नरहरि दास इनके गुरु थे | ये राजा जयसिंह ( Raja Jai Singh ) के दरबारी कवि थे | ‘बिहारी सतसई'( Bihari Satsai ) इनकी एकमात्र रचना है | यह रचना श्रृंगार, अलंकार, रस, नायिका-भेद आदि सभी दृष्टियों से रीतिकाल की सर्वश्रेष्ठ रचना कहीं जा सकती है | रस निधि ( Rasnidhi ) की प्रमुख रचनाएं हैं- रस निधि सागर, हिंडोला, रत्नहजारा, बारहमासा | ‘रत्न-हजारा’ ( Ratna Hajara )इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है | वृंद ( Vrind )की प्रमुख रचनाएं हैं – बारहमासा, भाव पंचाशिका, यमक सतसईआदि | कृष्ण कविने बिहारी सतसई के प्रत्येक दोहे पर नए सवयै की रचना की | इनकी प्रमुख रचना ‘बिहारी सतसई की टीका’ है | रीति सिद्ध काव्य की विशेषताएं ( Reetisiddh Kavya Ki Visheshtayen ) बिहारी रिद्धि-सिद्धि काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि हैं | उनकी रचना ‘बिहारी सतसई’ ( Bihari Satsai )रीतिसिद्ध काव्यधारा की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें रिद्धिसिद्धि काव्य की सभी प्रवृतियां मिलती हैं | रीतिसिद्ध काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन इस प्रकार है : (1) श्रृंगार निरूपण – श्रृंगार वर्णन रीति-काव्य की प्रमुख प्रवृत्ति है | इस काल में भक्तिकाल के...

Ritikaal Objective Questions

• • • • 1. ’रीतिरात्मा काव्यस्थ’ पद है? (अ) आचार्य कुुंतक (ब) आचार्य वामन ✔️ (स) आचार्य विश्वनाथ (द) आचार्य भामह 2. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रीतिकाल की समय सीमा कब से कब तक मानी है? (अ) 1375-1700 वि. (ब) 1700-1900 वि. ✔️ (स) 1700 ई. से 1900 ई. (द) कोई नहीं 3. ’’डाॅ. नगेन्द्र ने प्रवृत्ति के आधार पर रीतिकाल को पांच भागों में बांटा है’’ असंगत छांटिए? (अ) रीतिकाव्य (ब) रीतिमुक्त काव्य (स) रीतिबद्ध काव्य ✔️ (द) भक्ति काव्य 4. इनमें से कौन-सा नाम रीतिकाल का नहीं है? (अ) उत्तर मध्यकाल (ब) पूर्व मध्यकाल ✔️ (स) शृंगारकाल (द) अलंकृत काल 5. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रीतिकाल के कवियों का विभाजन कितने भागों में किया है? (अ) एक (ब) दो ✔️ (स) तीन (द) चार 6. हिन्दी के किस काल में लक्षण ग्रन्थों का निर्माण हुआ है? (अ) आधुनिक काल (ब) भक्तिकाल (स) रीतिकाल ✔️ (द) आदिकाल हिंदी साहित्य QUIZ के लिए हमारे टेलीग्राम ग्रुप से जुड़ें … 7. रीतिकाल में ’राजभाषा’ व ’काव्य भाषा’ क्रमशः थी? (अ) ब्रज व फारसी (ब) अवधी व फारसी (स) फारसी व ब्रज ✔️ (द) केवल ब्रज 8. रीतिकाल को आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने क्या नाम दिया है? (अ) अलंकृत काल (ब) रीतिबद्ध काल (स) मध्यकाल (द) शृंगार काल ✔️ 9. ’ब्रज भाषा हेत, ब्रज वास ही न अनुमानो, ऐसे-ऐसे कविन की बानि हू सो जानिए’ पंक्तियां है ? (अ) भिखारीदास ✔️ (ब) मतिराम (स) सुदन (द) लाल हिंदी साहित्य रीतिकाल (QUIZ-1) 10. बिहारी सतसई इनमें से किस वर्ग में आता है? (अ) प्रबन्ध काव्य (ब) मुक्त काव्य ✔️ (स) चरित काव्य (द) चम्पू 11. ’जीवन की अतिशय रसिकता से जब ये लोग घबरा उठे होगे तो राधा कृष्ण का यही अनुराग उनके धर्म भीरू मन को आश्वासन देता होगा’ उपर्युक्त कथन किस साहित्येतिहासकार ...

1. सही विकल्प का चयनकर लिखिए

1. सही विकल्प का चयनकर लिखिए - ( 1 × 6 = 6 ) i. रीतिकाल को काव्य की दृष्टि से बाँटा गया है - (अ) दो भागों में (ब) तीन भागों में (स) चार भागों में (द) सात भागों में ii. सूर के पदों में 'तेल की गागरी कहा गया है - (अ) श्रीकृष्ण को (ब) उद्धव को (स) गोपियों को (द) सूर को iii. चरणों में निहित मात्राओं के आधार पर दोहा है - ( अ ) सममात्रिक छंद ​ ( ब ) विषममात्रिक छंद ( स ) अर्द्ध मात्रिक छंद ( द ) अर्द्धसममात्रिक छंद ​ iv. 'नेताजी का चश्मा' कहानी का मूलभाव है - (अ) शिक्षा का विकास (ब) समाज सुधार (स) मूर्ति कला का विकास (द) देशभक्ति की भावना v. 'वह धीरे -धीरे रोने लगा' वाक्य में क्रियाविशेषण का भेद है - (अ) कालवाचक क्रियाविशेषण (ब) स्थानवाचक क्रियाविशेषण (स) रीतिवाचक क्रियाविशेषण (द) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण vi. भोलानाथ और उनके हम उम्र चबूतरे के एक कोने को बना देते थे - (अ) सिनेमाघर (ब) टिकटघर (स) रसोईघर (द) नाटकघर 2. रिक्त स्थान में सही शब्द का चयन कर लिखिए - ( 1 × 6 = 6 ) i. परशुराम अपना गुरु, भगवान ..........-को मानते थे | (शिव / श्रीकृष्ण /विष्णु ) ii. आश्रय की बाह्य शारीरिक चेष्टाओं को कहते हैं। (विभाव/अनुभाव/आलम्बन) iii. विस्तृत कलेवर वाले काव्य को कहते हैं। (दश्य काव्य/खण्डकाव्य /महाकाव्य) iv. 'बालगोबिन भगत' की प्रभातियाँ तक चलती थी। (कार्तिक मास/फागुन मास/चैत्र मास) v. वाक्य से किसी क्रिया के करने या होने की सामान्य सूचना मिलती है। (विधानवाचक/निषेधवाचक/इच्छावाचक) • The most common expression of communalism is in everyday beliefs Stereo type religious communities and belief in the superiority of one's religioc over other religions are so common that we often fail to notice th...

रीतिकाल : समय

हिंदी साहित्य के इतिहास को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है : आदिकाल , मध्यकाल व आधुनिक काल । आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से स० 1375 तक माना जाता है । मध्यकाल को दो भागों में बाँटा गया है ; पूर्ववर्ती काल को भक्तिकाल तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल कहा जाता है । भक्तिकाल की समय सीमा स० 1375 से स० 1700 तक तथा रीतिकाल की समय सीमा स० 1700 से स०1900 तक मानी जाती है । रीतिकाल: अतः स्पष्ट है कि संवत 1700 से संवत 1900 तक के काल को हिंदी साहित्य में रीतिकाल में के नाम से अभिहित किया जाता है । रीतिकाल में तीन प्रकार के कवि हुए : रीति’ शब्द का अर्थ एवं स्वरूप ( ‘Reeti’ Shabd Ka Arth Evam Swaroop ) ‘रीति’ शब्द ‘रींङ’ धातु में ‘क्तिन’ प्रत्यय के जुड़ने से बना है | इसका अर्थ है-मार्ग | काव्यशास्त्र में इसे विधि, पद्धति आदि के अर्थ में प्रयोग किया जाता है | आज ‘रीति’ शब्द का अर्थ शैली के रूप में लिया जाता है | रीतिकाव्य के संदर्भ में ‘रीति’ का अर्थ है-विशिष्ट पद रचना | डॉक्टर बलदेव उपाध्याय के अनुसार पदों की विशिष्ट रचना का नाम की रीति है| संस्कृत काव्यशास्त्र में रीति का अर्थ काव्यांग विशेष के लिए रूढ हो गया है | हिंदी के रीतिकालीन कवियों ने रीति का अर्थ ‘काव्य-रचना पद्धति’ से लिया है | रीतिकाल की सीमा निर्धारण ( Ritikal Ki Samay Seema ) हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है-आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | मध्य काल के दो भाग किए गए हैं – पूर्व मध्यकाल व उत्तर मध्यकाल | आज पूर्व मध्यकाल को भक्तिकाल व उत्तर मध्यकाल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है | रीतिकाल की समय सीमा को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं | इसका कारण यह है कि भक्तिकाल के अनेक ग्रंथों में भी रीतिग्रंथों के ल...

भक्ति काव्य को कितने भागों में बांटा जाता है? – ElegantAnswer.com

भक्ति काव्य को कितने भागों में बांटा जाता है? इसे सुनेंरोकेंभक्ति काव्य के प्रधानतः दो भेद हैं निर्गुण और सगुण भक्ति काव्य। निर्गुण भक्ति काव्य की दो शाखाएं हैं ज्ञानमार्गी जिसके प्रतिनिधि कवि कबीर हैं और प्रेम मार्गी जिसके प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं। सगुण भक्ति काव्य की भी दो शाखाएं हैं। कृष्ण भक्ति शाखा और राम भक्ति शाखा। भक्ति काल के कितने नाम है? निर्गुण भक्ति • ज्ञानाश्रयी शाखा • प्रेमाश्रयी शाखा भक्ति का मूल नाम क्या था? इसे सुनेंरोकेंभक्ति शब्द की व्युत्पत्ति ‘भज्’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ ‘सेवा करना’ या ‘भजना’ है, अर्थात् श्रद्धा और प्रेमपूर्वक इष्ट देवता के प्रति आसक्ति। नारदभक्तिसूत्र में भक्ति को परम प्रेमरूप और अमृतस्वरूप कहा गया है। इसको प्राप्त कर मनुष्य कृतकृत्य, संतृप्त और अमर हो जाता है। भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां क्या है? इसे सुनेंरोकें(2) भक्ति की प्रधानता- इस काव्य की चारों काव्यधाराओं अर्थात् सन्त, प्रेम, राम तथा कृष्ण साहित्य में ईश्वराधन के लिए भक्ति पर समान बल दिया गया है। यद्यपि कबीर के ईश्वर निराकार हैं और वे ज्ञान गम्य हैं किन्तु भक्ति के बिना उसकी प्राप्ति नहीं होती। भक्ति ज्ञान का प्रमुख साधन है- “हरि भरक्ति जाने बिना बूड़ि मुआ संसार”। भक्ति काल को कितने धाराओं में विभाजित किया गया है? इसे सुनेंरोकेंभक्ति काल का विभाजन भक्ति काव्य दो धाराओं में विभक्त हुआ, एक निर्गुण धारा और दूसरी सगुण धारा। रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया? इसे सुनेंरोकेंआचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल को ‘श्रृंगारकाल’ नाम देते हुए उसे तीन वर्गां में विभाजित किया- 1. रीतिबद्ध 2. रीति सिद्ध 3. रीतिमुक्त। भक्ति काल के कौन कौन से 4 शाखाएं हैं चारों के...

रीतिकालीन काव्य की प्रमुख प्रवृतियाँ

रीतिकालीन काव्य की प्रमुख प्रवृतियाँ रीतिकालीन काव्य की रचना सामंती परिवेश और छत्रछाया में हुई है इसलिए इसमें वे सारी विशेषताएँ पाई जाती हैं जो किसी भी सामंती और दरबारी साहित्य में हो सकती हैं। इस प्रकार रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ (ritikal ki pramukh pravritiyan)निम्नलिखित हैं- 1.रीति निरूपण/लक्षण ग्रंथों की प्रधानता, 2.श्रृंगारिकता, 3.आलंकारिकता, 4.आश्रयदाताओं की प्रशंसा/राजप्रशस्ति, 5.चमत्कार प्रदर्शन एवं बहुज्ञता, 6.उद्दीपन रूप में प्रकृति का चित्रण, 7.ब्रज भाषा की प्रधानता, 8.भक्ति और नीति, 9.मुक्तक शैली की प्रधानता, 10.संकुचित जीवन दृष्टि, 11.नारी के प्रति कामुक दृष्टिकोण, 12.स्थूल एवं मांसल सौंदर्य का अंकन 1.लक्षण ग्रंथों की प्रधानता रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्ति रीति निरूपण या लक्षण-ग्रंथों का निर्माण है। इन कवियों ने संस्कृत के आचार्यों का अनुकरण पर लक्षण-ग्रंथों अथवा रीति ग्रंथों का निर्माण किया है। फिर भी इन्हें रीति निरूपण में विशेष सफलता नहीं मिली है। इनके ग्रंथ एक तरह से संस्कृत-ग्रंथों में दिए गए नियमों और तत्वों का हिंदी पद्य में अनुवाद हैं। जिसमें मौलिकता और स्पष्टता का अभाव है।इन कवियों ने कवि कर्म की अपेक्षा कवि शिक्षक की भूमिका में नजर आते है। रीति निरूपण करने वाले आचार्यों के 2 भेद हैं- सर्वांग और विशिष्टांग निरूपक।काव्यांग परिचायक कवियों का उद्देश्य काव्यांगों का परिचय देना है 2.श्रृंगारिकता रीतिकाल की दूसरी बड़ी विशेषता श्रृंगार रस की प्रधानता है। इस काल की कविता में नखशिख और राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाओं का चित्रण व्यापक स्तर पर हुआ है।दरबारी परिवेश के फलस्वरूप नारी केवल पुरुष के रतिभाव का आलम्बन बनकर रह गई। श्रृंगार के दोनों पक्षों का वर्णन इस युग की...