कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएं

  1. कबीरदास जी का जीवन परिचय
  2. कबीर दास जी की रचनाएं
  3. Kabir Das Ji Ka Jivan Parichay {कबीर की जीवनी }


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कबीरदास जी का जीवन परिचय

विषय सूची • • • • • • जीवन-परिचय – महान कवि एवं समाज-सुधारक महात्मा कबीर का जन्म काशी में 1398 ई0 (संवत 1455 वि0) में हुआ था।’ कबीर पंत’ में भी इनका आविर्भाव-काल संवत 1455 में जेष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा सोमवार के दिन माना जाता है। इनके जन्म स्थान के संबंध में तीन मत है_काशी , मगहर और आजमगढ़। अनेक परमड़ो के आधार पर इनका जन्म स्थान का कांसी मानना ही उचित है। इस प्रकार कबीर पर बचपन से ही हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के संस्कार पड़े। इनका विवाह ‘लोई’ नामक इस्री से हुआ , जिससे कमाल और कामली नाम के दो संतान उत्पन्न हुई। महात्मा कबीर के गुरु स्वामी रामानंद जी थे , जिनसे गुरु-मंत्र का पाकर ये संत महात्मा बन गये। भक्त-परंपरा से प्रसिद्ध हैं कि किसी विधवा ब्राह्मणी को स्वामी रामानंद के आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न होने पर उसने समाज के भय से काशी के समीप लहरतारा (लहर तालाब) के पास फेक दिया था जहां से नूरी(नीरू) और नीमा नामक जुलाहा दम्पति ने उसे ले जाकर पाला-पोसा और उसका नाम कबीर रखा। जीवन के अंतिम दिनों में ये मगहर चले गए थे। उस समय यह धराडा प्रचलित थी कि काशी में मरने से व्यक्ति को स्वर्ग प्राप्त होता है तथा मजहर में मरने से नरक। समाज में प्रचलित इस अंधविश्वास को दूर करने के लिए कबीर अंतिम समय में मगहर चले गये थे। संवाद 1455 से 1575 तक 120 वर्ष ही होते हैं। ‘कबीर पंथ’ के अनुसार उनका मृत्यु-काल संवत् 1573 माघ शुक्ल एकादशी बुधवार को माना जाता है। शव का संस्कार किस विधि से हो, इस बात को लेकर हिंदू-मुसलमानों में विवाद भी हुआ। हिंदू इनका दाह-संस्कार करना चाहते थे और मुसलमान दफनाना। कबीर की मृत्यु के संबंध में अनेक मत हैं , लेकिन कबीर पर्चाई में लिखा हुआ मत सत्य प्रतीत होता है कि 20 वर्ष में ...

कबीर दास जी की रचनाएं

Kabir Das Ki Rachnaye in Hindi कबीर दास जी की रचनाएं – Kabir Das Ki Rachnaye in Hindi कबीरदास जी ने अपनी अनूठी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया, साथ ही अपने दोहों से समाज में फैली तमाम तरह की कुरोतियों को भी दूर करने की कोशिश की है। कबीरदास जी कर्मकांड, पाखंड, मूर्ति पूजा आदि के घोर विरोधी थे, जिन्हें कई अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान था। वे अक्सर ही अपने अनुभवों को व्यक्त करने के लिए लोकल भाषा का इस्तेमाल करते थे। हिन्दी साहित्य के महाज्ञानी कबीरदास जी की वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीन अलग-अलग रुपों में लिखा गया है, जो कि बीजक नाम से मशहूर है। वहीं कबीर ग्रंथावली में उनकी रचनाओं का संग्रह देखने को मिलता है। यह राजस्थानी, पंजाबी, पूरबी, अवधी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली समेत कई अलग-अलग भाषाओं का मिश्रण है। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में कबीर बीजक, सुखनिधन, होली अगम, शब्द, वसंत, साखी और रक्त शामिल हैं। हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं को बेहद सरल और आसान भाषा में लिखा है, उन्होंने अपनी कृतियों में बेबाकी से धर्म, संस्कृति एवं जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी है। उनकी रचनाओं में उनकी सहजता का भाव स्पाष्ट दिखाई देता है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से भी लोगों को संसार का नियम एवं जीवन जीने का तरीके के बारे में बताया है जो कि अतुलनीय और अद्भुत है। कबीर दास जी की मुख्य रचनाएं – Kabir Poems in Hindi कबीर की साखियाँ ( Kabir ki Sakhiyan) – इसमें ज्यादातर कबीर दास जी की शिक्षाओं और सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है। सबद -कबीर दास जी की यह सर्वोत्तम रचनाओं में से एक है, इसमें उन्होंने अपने प्रेम ...

Kabir Das Ji Ka Jivan Parichay {कबीर की जीवनी }

विषय सूची • • • • • • • कबीर दास जी का जीवन परिचय (Kabir Das Ji Ka Jivan Parichay) कबीर दास की हिंदी साहित्य के भक्ति काल काल के एक महत्वपूर्ण कवि थे | उनका जन्म लगभग सन 1398 ईसवी में उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था | विधवा ब्राह्मणी ने लोक-लाज के कारण उन्हें लहरतारा नामक स्थान तालाब के किनारे छोड़ आयी थी | जंहा से नीरू और नीमा नाम के जुलहा दंपत्ति ने उन्हें उठा लाया और कबीर दास का पालन-पोषण किया | कबीर दास जी जब बड़े हुए तब वे कपडे बुनने का काम करने लगे | कबीर दास जी जब कपडा बुनते थे तब वे आपने मन में दोहों को गुनगुनाया करते थे | कुछ समय बाद इनका विवाह लोई नामक स्त्री से हो गया | जिससे इनकी दो बच्चे एक पुत्री और एक पुत्र हुई | जिनका नाम कमाल और कमाली था | कबीर दास जी व्वैष्णो मत के संत आचार्य रामानंद को अपना गुरु बनाना चाहते थे | लेकिन उन्होंने कबीर का गुरु बनने से मना कर दिया | कबीर दास जी अपने मन में संत रामानंद को अपना गुरु बनाने के लिए ठान लिया | कबीर दास जी के मन में एक विचार आया कि स्वामी रामानंद रोज सुबह 4:00 बजे गंगा स्नान के लिए जाते हैं | एक दिन में गंगा किनारे सीढ़ियों पर जाकर लेट जाऊंगा और कबीर दास जी ने ठीक वैसा ही किया | वह गंगा किनारे बनी सीढ़ियों पर जाकर लेट गए और स्वामी रामानंद जी स्नान करने आए और उनका पैर कबीरदास के ऊपर पड़ गया | जिससे स्वामी रामानंद जी के मुंह से राम-राम निकला और उन्होंने शब्द को दीक्षा मन्त्र मानकर ग्रहण कर लिया और स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया | Kabir Das Ji Ka Jivan Parichay एक नजर में :- नाम कबीर दास जन्म 1398 ईस्वी जन्म स्थान काशी (उत्तर प्रदेश ) पत्नी का नाम लोई पुत्र का न...