कबीर के दोहे साखी

  1. "साखी" Saakhi Class 10 Hindi Chapter 1, Explanation, Notes, Question Answers
  2. Hindi Chapter 1. कबीर : साखी Class
  3. कबीर के दोहे : गुरु कौ अंग
  4. कबीर की साखी अर्थ सहित /Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9
  5. साखी कबीरदास
  6. कबीर की साखियाँ अर्थ सहित


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"साखी" Saakhi Class 10 Hindi Chapter 1, Explanation, Notes, Question Answers

बोर्ड परीक्षा में हाई स्कोर करें: हमारे SuccessCDs कक्षा 10 हिंदी कोर्स के साथ! Click here CBSE Class 10 Hindi Chapter 1 Saakhi Summary, Explanation ( Sparsh 2 Book) साखी CBSE Class 10 Hindi Chapter 1 summary with detailed explanation of the lesson 'Saakhi' along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson साखी पाठ प्रवेश 'साखी ' शब्द ' साक्षी ' शब्द का ही (तद्भव ) बदला हुआ रूप है। साक्षी शब्द साक्ष्य से बना है। जिसका अर्थ होता है -प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात जो ज्ञान सबको स्पष्ट दिखाई दे। यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान किया जाता है। संत ( सज्जन ) सम्प्रदाय (समाज ) मैं अनुभव ज्ञान (व्यवाहरिक ज्ञान ) का ही महत्व है -शास्त्रीय ज्ञान अर्थात वेद , पुराण इत्यादि का नहीं। कबीर का अनुभव क्षेत्र बहुत अधिक फैला हुआ था अर्थात कबीर जगह -जगह घूम कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे। इसलिए उनके द्वारा रचित साखियों मे अवधि , राजस्थानी , भोजपुरी और पंजाबी भाषाओँ के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। इसी कारण उनकी भाषा को 'पचमेल खिंचड़ी ' अर्थात अनेक भाषाओँ का मिश्रण कहा जाता है। कबीर की भाषा को सधुक्क्ड़ी भी कहा जाता है। ' साखी ' वस्तुतः (एक तरह का ) दोहा छंद ही है जिसका लक्षण है 13 और 11 के विश्राम से 24 मात्रा अर्थात पहले व तीसरे चरण में 13 वर्ण व दूसरे व चौथे चरण में 11 वर्ण के मेल से 24 मात्राएँ। प्रस्तुत पाठ की साखियाँ प्रमाण हैं की सत्य को सामने रख कर ही गुरु शिष्य को जीवन के व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा देता है। यह शिक्षा जितनी अधिक ...

Hindi Chapter 1. कबीर : साखी Class

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कबीर के दोहे : गुरु कौ अंग

कबीर के दोहे प्रस्तावना भारतीय संत परंपरा में और विशेषकर निर्गुण संतों की परंपरा में गुरु को अत्यंत महत्त्व दिया गया है। गुरु की महिमा अनंत है और उसे वही समझ सकता है जिसके ज्ञान चक्षु खुल गए हैं। गुरु ने जो राम नाम का अमूल्य मंत्र दिया है उसके सामने संसार की समस्त वस्तुएँ तुच्छ और हेय हैं। जिस प्रकार रणभूमि में शूर अपने विरोधी पक्ष को वाण - वर्षा से परास्त कर देता है उसी प्रकार सद्गुरु अपने उपदेश से अपने शिष्य के अहं को नष्टकर आत्मज्ञान से साक्षात्कार कराते हैं। अपनी इस महत्ता के कारण गुरु का स्थान भगवान के स्थान के समान है अर्थात् गुरु एवं गोविन्द दोनों एक ही हैं। इसलिए गुरु की महिमा अनन्त और अवर्णनीय है। सद्गुरु प्रेमरूपी तेल से परिपूर्ण एवं सर्वदा रहनेवाली ज्ञानवर्तिका से युक्त दीपक अपने शिष्य को प्रदानकर इस प्रकाश से ज्ञान ज्योति जलाकर अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ निकालने का अवसर प्रदान करते हैं। साखी - भाग - गुरुदेव कौ अंग अंग-परिचय- भारतीय सन्त परम्परा में और विशेषत: निर्गुण सन्तों की परम्परा में गुरु को अत्यन्त महत्त्व दिया गया है। इस अंग में कबीर ने भी गुरु की महत्ता का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि इस संसार में गुरु के समान कोई हितैषी और अपना सगा नहीं है , इसलिए मैं अपना तन-मन और सर्वस्व गुरु के प्रति समर्पण करता हूँ जो क्षणभर में ही अपनी कृपा से मनुष्य को देवता बनाने में समर्थ है। गुरु की महिमा अनंत है और इसे वही समझ सकता है जिसके ज्ञान चक्षु खुल गये हों। गुरु की कृपा जिस व्यक्ति पर होती है , कलियुग का प्रभाव भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता ; अर्थात् उस पर पापों और दुष्कर्मों का कोई प्रभाव नहीं हो सकता। गुरु ही अपने शिष्य के अन्तर की ज्योति को प्रज्वलित करने में ...

कबीर की साखी अर्थ सहित /Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9

Kabir Das ki Sakhi Summary in Hindi – संक्षिप्त में: संत कबीर दास जी ने यहाँ संकलित साखियों में जहाँ एक ओर प्रेम का गुण-गान किया है , वहीँ दूसरी तरफ उन्होंने आदर्श संत के लक्षणों के बारे में बताया है। उनके अनुसार एक आदर्श संत वही है , जो धर्म-जाति , ऊँच-नीच , छुआ-छूत आदि पर विश्वास नहीं करता। उन्होंने ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ माना है और उनके अनुसार ज्ञान से बढ़ कर और कुछ भी नहीं है। उन्होंने अपनी रचनाओं में ये कहा है कि कोई भी अपनी जाति या काम से छोटा-बड़ा नहीं होता , बल्कि अपने ज्ञान से होता है। उन्होंने अपनी साखियों में उस समय समाज में फैले अन्धविश्वास तथा अन्य त्रुटियों का खुल कर विरोध किया है। Kabir Das ke Sabad Summary in Hindi – संत कबीर दास जी ने अपने पहले सबद की सहायता से एक ओर उस समय समाज में चल रहे विभिन्न आडम्बरों का विरोध किया है , वहीँ दूसरी ओर हमें ईश्वर को खोजने का सही रास्ता दिखाया है। उनका मानना है कि ईश्वर मंदिर-मस्जिद में नहीं , बल्कि खुद हमारे अंदर बसते हैं। उनके अनुसार ईश्वर जीव मात्र में उपस्थित है , ना कि मंदिर एवं मस्जिद में। अपने दूसरे सबद में कबीर ने ज्ञान की आँधी से होने वाले बदलावों के बारे में बताया है। कवि का कहना है कि जब ज्ञान की आँधी आती है , तो भ्रम की दीवारें टूट जाती हैं और मोहमाया के बंधन खुल जाते हैं। जब ऐसा होता है , तो मनुष्य को सत्य-असत्य का ज्ञान हो जाता है। कबीर की साखी अर्थ सहित:- कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में हमें यह बताया है कि मुक्ति का मार्ग हमें केवल प्रभु-भक्ति में ही मिल सकता है और उसी से हमें परम-आनंद की प्राप्ति होगी। इसी कारण से उन्होंने उपर्युक्त दोहे में हंसों का उदाहरण प्रस्तुत किया है , जो मानसरोवर के जल में क्रीड़ा करते...

साखी कबीरदास

साखी कबीरदास Sakhi by Kabir Das साखी summary साखी के दोहे का अर्थ साखी कविता का सारांश साखी सबदी दोहरा साखी शब्द का अर्थ साखी कविता का अर्थ साखी class 10 कबीर साखी अर्थ सहित class 11 साखी summary साखी के दोहे का अर्थ साखी कविता का सारांश साखी सबदी दोहरा साखी class 10 साखी कविता का अर्थ साखी शब्द का अर्थ साखी का भावार्थ class 9 व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कहते हैं कि मनुष्य सांसारिक भाव भाधाओं में उलझा रहता है .उसे सुख की तलाश हमेशा रहती है . वह दिन -रात सुख की तालाश करता रहता है .लेकिन फिर में उसे सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती है , वह सपने में भी सुख - शान्ति की तलाश करता रहता है .वास्तव में मनुष्य की आत्मा ,राम रूपी परमात्मा से जब बिछुड़ती है ,तो तभी से उसे दुःख प्राप्त हो जाता है . उसके दुःख दूर करने का व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि मृत्यु के बाद परम्तामा की प्राप्ति किसी काम की नहीं है .यदि हमें जीवित रहते ही भगवत प्राप्ति हो जाए तो जीवन सफल हो जाएगा .इसीलिए हमें चाहिए कि इसी जीवन में परमात्मा प्राप्ति का उपाय करें. जब तक लोहा पारस को नहीं प्राप्त करता ,तब टक वह लोहा ही रहता है .पारस से स्पर्श के बाद ही वह सोना बन पाटा है . व्याख्या - कबीरदास जी प्रस्तुत दोहें में कहते हैं कि मनुष्य की आत्मा अपने प्रेमी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए दिन रात बाट जोहते -जोहते उसकी आखें थक जाति है .मुँह से अपने प्रेमी रूपी परमात्मा का नाम लेते लेते उसके जीभ में छाले पड़ जाते हैं .इस प्रकार वह अपने परमात्मा रूपी प्रेमी राम को पुकारता रहता है . कबीर के सम्बन्ध जाता है कि वह स्वभाव से संत ,परिस्थितियोंसे समाज सुधारक और विवशता से कवी थे। निश्चय ही तत्कालीन ...

कबीर की साखियाँ अर्थ सहित

वसंत भाग 3 कक्षा 8 पाठ 9 – H indi Vasant Class 8 Chapter 9 Solutions कबीर की साखियाँ अर्थ सहित – Kabir Ki Sakhiyan class 8 Summary कबीर दास का जीवन परिचय – Kabir Das Ka Jivan Parichay : संत कबीर दास का जन्म सन् 1400 के आसपास वाराणसी में हुआ। ज्ञानी और संतों के साथ रहकर कबीर ने दीक्षा और ज्ञान प्राप्त किया। वह धार्मिक कर्मकांडों से परे थे। उनका मानना था कि परमात्मा एक है, इसलिए वे हर धर्म की आलोचना और प्रशंसा करते थे। उन्होने अपने अतिंम क्षण मगहर में व्यतीत किएं। कबीर दास की रचनाएँ कबीर ग्रंथावली में संग्रहीत है। आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक। कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक।।2।। माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।।3।। कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।।4।। जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय। या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।5।। कबीर की साखियाँ सारांश – kabir ki sakhiyan class 8 meaning: संत कबीर के दोहे हमें जीने की सही राह दिखाते हैं। पहले दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि हमें मनुष्य की जाति से ज्यादा उसके गुणों को सम्मान करना चाहिए। दूसरे दोहे में कबीर जी ने कहा है कि कभी भी अपशब्द के बदले में किसी को अपशब्द मत कहो। तीसरे दोहे में कबीरदास जी ने मन की चंचलता का वर्णन किया है। उनके अनुसार इंसान जीभ और माला से भले ही प्रभु का नाम जपता रहता है, लेकिन उसका मन अपनी चंचलता त्याग नहीं पाता है। चौथे दोहे में कबीर जी कहते हैं कि कभी भी किसी को उसके छोटे या बड़े होने का घमंड नहीं करना चाहिए, कभी-कभी छोटे लोग भी बड़ों पर बहुत भारी पड़ जाते हैं, जैसे हाथी पर चींटी भारी पड़ जाती है। पाँचवें दोहे...