केदारनाथ अग्रवाल

  1. केदारनाथ अग्रवाल जीवनी
  2. धूप
  3. हिंदी कविताएँ : केदारनाथ अग्रवाल (हिन्दी कविता)
  4. हमारी ज़िन्दगी
  5. केदारनाथ अग्रवाल
  6. केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, रचनाएँ, तथा भाषा


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केदारनाथ अग्रवाल जीवनी

केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदार की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण भारत की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है। १ अप्रैल १९११ को उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद के कमासिन गाँव में जन्मे केदारनाथ का इलाहाबाद से गहरा रिश्ता था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई। प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और 'बाबूजी' कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध ज़ल्दी देखने को नहीं मिलता। यही कारण रहा कि केदारनाथ ने दिल्ली के प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकरा कर परिमल से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाईं। उनका पहला कविता संग्रह फूल नहीं रंग बोलते हैं परिमल से ही प्रकाशित हुआ था। जब तक शिवकुमार जीवित थे, वह प्रत्येक जयंती को उनके निवास स्थान पर गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन करते थे। केदार जी की लेखनी से जिस समय काव्य सर्जना होने लगी थी तब आजादी-आंदोलन ज़ोरों पर था । यह वही दौर था जिस समय सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों ने एक नए मध्य वर्ग को जन्म दिया था । ...

धूप

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हिंदी कविताएँ : केदारनाथ अग्रवाल (हिन्दी कविता)

यह धरती है उस किसान की जो बैलों के कंधों पर बरसात घाम में, जुआ भाग्य का रख देता है, खून चाटती हुई वायु में, पैनी कुसी खेत के भीतर, दूर कलेजे तक ले जा कर, जोत डालता है मिट्टी को, पांस डाल कर, और बीज फिर बो देता है नये वर्ष में नयी फसल के ढेर अन्न का लग जाता है। यह धरती है उस किसान की। नहीं कृष्ण की, नहीं राम की, नहीं भीम की, सहदेव, नकुल की नहीं पार्थ की, नहीं राव की, नहीं रंक की, नहीं तेग, तलवार, धर्म की नहीं किसी की, नहीं किसी की धरती है केवल किसान की। सूर्योदय, सूर्यास्त असंख्यों सोना ही सोना बरसा कर मोल नहीं ले पाए इसको; भीषण बादल आसमान में गरज गरज कर धरती को न कभी हर पाये, प्रलय सिंधु में डूब-डूब कर उभर-उभर आयी है ऊपर। भूचालों-भूकम्पों से यह मिट न सकी है। यह धरती है उस किसान की, जो मिट्टी का पूर्ण पारखी, जो मिट्टी के संग साथ ही, तप कर, गल कर, मर कर, खपा रहा है जीवन अपना, देख रहा है मिट्टी में सोने का सपना, मिट्टी की महिमा गाता है, मिट्टी के ही अंतस्तल में, अपने तन की खाद मिला कर, मिट्टी को जीवित रखता है; खुद जीता है। यह धरती है उस किसान की! वह चिड़िया जो- चोंच मार कर दूध-भरे जुंडी के दाने रुचि से, रस से खा लेती है वह छोटी संतोषी चिड़िया नीले पंखों वाली मैं हूँ मुझे अन्‍न से बहुत प्‍यार है। वह चिड़िया जो- कंठ खोल कर बूढ़े वन-बाबा के खातिर रस उँडेल कर गा लेती है वह छोटी मुँह बोली चिड़िया नीले पंखों वाली मैं हूँ मुझे विजन से बहुत प्‍यार है। वह चिड़िया जो- चोंच मार कर चढ़ी नदी का दिल टटोल कर जल का मोती ले जाती है वह छोटी गरबीली चिड़िया नीले पंखों वाली मैं हूँ मुझे नदी से बहुत प्‍यार है। राजनीति नंगी औरत है कई साल से जो यूरुप में आलिंगन के अंधे भूखे कई शक्तिशाली गुंडों को दे...

हमारी ज़िन्दगी

हमारी ज़िन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं। हमेशा काम करते हैं, मगर कम दाम मिलते हैं। प्रतिक्षण हम बुरे शासन, बुरे शोषण से पिसते हैं। अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से वंचित हम कलपते हैं। सड़क पर ख़ूब चलते पैर के जूते-से घिसते हैं। हमारी ज़िन्दगी के दिन, हमारी ग्लानि के दिन हैं। हमारी ज़िन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं। न दाना एक मिलता है, खलाये पेट फिरते हैं। मुनाफ़ाख़ोर की गोदाम के ताले न खुलते हैं। विकल, बेहाल, भूखे हम तड़पते औ’ तरसते हैं। हमारे पेट के दाने हमें इंकार करते हैं। हमारी ज़िन्दगी के दिन, हमारी भूख के दिन हैं। हमारी ज़िन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं। नहीं मिलता कहीं कपड़ा, लँगोटी हम पहनते हैं। हमारी औरतों के तन उघारे ही झलकते हैं। हज़ारों आदमी के शव कफ़न तक को तरसते हैं। बिना ओढ़े हुए चदरा, खुले मरघट को चलते हैं। हमारी ज़िन्दगी के दिन, हमारी लाज के दिन हैं। हमारी ज़िन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं। हमारे देश में अब भी, विदेशी घात करते हैं। बड़े राजे, महाराजे, हमें मोहताज करते हैं। हमें इंसान के बदले, अधम सूकर समझते हैं। गले में डालकर रस्सी कुटिल क़ानून कसते हैं। हमारी ज़िन्दगी के दिन, हमारी क़ैद के दिन हैं।

केदारनाथ अग्रवाल

1 Shares Kedarnath Agrawal Biography//Kedarnath Agrawal Jeevan Parichay जन्म – 1 अप्रैल 1911 ई० जन्म स्थान – कमासिन गाँव ( बाँदा,ऊ०प्र०) पिता – श्री हनुमान प्रसाद मृत्यु – 22जून 2000 ई० लोक जीवन और सशक्त वाणी के माध्यम से लोगों के दिलों पर छा जाने वाले कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म बाँदा जिले के कमासिन गाँव में 1 अप्रैल 1911 ई० को हुआ ! इनके पिता का नाम हनुमान प्रसाद था, जो बहुत ही रसिक और मिलनसार प्रवृति के व्यक्ति थे, केदारनाथ जी ने काव्य के संस्कार अपने पिता से ही ग्रहण किये थे ! इन्होने अपनी शिक्षा अपने गाँव कमासिन में ही पूरा किया ! कक्षा तीन की पढाई के बाद ये रायबरेली से छठी कक्षा तक की, सातवीं-आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कटनी एवं जबलपुर भेजे गये यह सातवीं में पढ़ रहे थे तभी नैनी (इलाहाबाद) में एक धनी परिवार की लड़की पार्वती से विवाह हो गया, विवाह के बाद इनकी शिक्षा इलाहाबाद में हुई ! इन्टर की पढाई पूरी करने के बाद केदारनाथ ने बी०ए० की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया ! इसके बाद कुछ समय के लिए उनके चाचा बाबू मुकुन्द लाल के साथ रहकर वकालत करने लगे सन 1963 ई० से 1970ई० तक सरकारी वकील रहें ! 1972 ई० में बाँदा में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मलेन का आयोजन किया सन 1973 ई० में इनके काव्य संकलन “फूलन ही रंग बोलते है” के लिए इन्हें “सोवियत लैण्ड नेहरु” सम्मान दिया गया ! 1981 ई० में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया ! 1987 ई० में “साहित्य अकादमी” ने इन्हें उनके (अपूर्ण) काव्य संकलन के लिए अकादमी सम्मान से सम्मानित किया, वर्ष 1986 ई० में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा “तुलसी सम्मान” से सम्मानित किया गया ! वर्ष 1990-...

केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, रचनाएँ, तथा भाषा

अनुक्रम (Contents) • • • • • • केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, रचनाएँ, तथा भाषा-शैली in Hindi केदारनाथ अग्रवाल हिंदी काव्य की प्रगतिवादी काव्यधारा के अनन्य कवि हैं। इन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों से हिंदी- साहित्य में अप्रतिम योगदान दिया। काव्य रचनाओं में ही नहीं, बल्कि गद्य साहित्य में भी इन्होंने साहित्य सृजन किया। अत: साहित्य के प्रति उनकी अनुपम उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें समय-समय पर विभिन्न हिंदी संस्थानों द्वारा पुरस्कृत किया गया। जीवन परिचय- केदारनाथ अग्रवाल जी का जन्म 1 अप्रैल 1911 ई. को उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद के कमासिन गाँव में हुआ था। केदार जी की माता का नाम घसिट्टो तथा पिता का नाम हनुमान प्रसाद था। इनकी आरंभिक शिक्षा कमासिन गाँव में हुई। कक्षा तीन तक पढ़ने के बाद रायबरेली से कक्षा छ: उत्तीर्ण की। कक्षा सात व आठ कटनी के जबलपुर से उत्तीर्ण की। इसी समय पार्वती नामक कन्या से इनका विवाह हो गया। इसके पश्चात् केदार जी इलाहाबाद गए। इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से इंटर पास करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक तथा डी.ए.वी. कॉलेज कानपुर से एल. एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। 22 जून सन् 2000 को साहित्य के इस महान उपासक का देहांत हो गया। केदारनाथ अग्रवाल का इलाहाबाद से गहरा रिश्ता था। इलाहाबाद वि* विद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने लिखने की शुरूआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुईं। प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और ‘बाबूजी’ कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा ...