केदारनाथ अग्रवाल किस काव्य धारा के कवि हैं

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  4. जन्मदिन विशेष:केदारनाथ अग्रवाल की 5 श्रेष्ठ कविताएं...
  5. वह सारा समय केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में धड़कता है, जिसे उन्होंने देखा और रचा
  6. कविता : जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
  7. पुण्‍यतिथि विशेषः मांझी न बजाओ वंशी, केदारनाथ अग्रवाल की कविता का स्थापत्य
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  9. केदारनाथ अग्रवाल मूलतः कवि हैं या लेखक?


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केदारनाथ अग्रवाल / परिचय

केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ साँचा:KKParichay केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्मुख कवि हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदार की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण भारत की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है। केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं का अनुवाद रूसी, जर्मन, चेक और अंग्रेज़ी में हुआ है। उनके कविता-संग्रह 'फूल नहीं, रंग बोलते हैं', सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है : केदारनाथ अग्रवाल के प्रमुख कविता संग्रह है : (1) युग की गंगा, (2) फूल नहीं, रंग बोलते हैं, (3) गुलमेंहदी, (4) हे मेरी तुम!, (5) बोलेबोल अबोल, (6) जमुन जल तुम, (7) कहें केदार खरी खरी, (8) मार प्यार की थापें आदि।

Kedarnath Agarwal Biography Hindi

1.7 मृत्यु केदारनाथ अग्रवाल की जीवनी – Kedarnath Agarwal Biography Hindi Kedarnath Agarwal Biography Hindi संक्षिप्त विवरण नाम केदारनाथ पूरा नाम केदारनाथ अग्रवाल जन्म 1 अप्रैल 1911 जन्म स्थान कमासिन, बाँदा नगर, उत्तर प्रदेश पिता का नाम हनुमान प्रसाद अग्रवाल माता का नाम घसिट्टो देवी राष्ट्रीयता भारतीय धर्म हिन्दू जाति अग्रवाल जन्म Kedarnath Agarwal का जन्म उनके पिता का नाम हनुमान प्रसाद अग्रवाल तथा उनकी माता का नाम घसिट्टो देवी थी। उनके पिताजी स्वयं कवि थे और उनका एक काव्य संकलन ‘मधुरिम’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ था। शिक्षा केदार जी का आरंभिक जीवन कमासिन के ग्रामीण माहौल में बीता और शिक्षा दीक्षा की शुरूआत भी वहीं हुई। तत्पश्चात् अपने चाचा मुकुंदलाल अग्रवाल के संरक्षण में उन्होंने शिक्षा पाई। उन्होने रायबरेली, कटनी, जबलपुर, इलाहाबाद में उनकी पढ़ाई हुई। इलाहाबाद में बी.ए. की उपाधि हासिल करने के बाद क़ानूनी शिक्षा उन्होंने कानपुर में हासिल की। इसके बाद वे बाँदा पहुँचकर वहीं वकालत करने लगे थे। करियर Kedarnath Agarwal ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही कविताएँ लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई। उनकी प्रकाशित ढ़ाई दर्जन कृतियों में 23 कविता संग्रह, एक अनूदित कविताओं का संकलन, तीन निबंध संग्रह, एक उपन्यास, एक यात्रावृत्तांत, एक साक्षात्कार संकलन और एक पत्र-संकलन भी शामिल हैं। प्रकाशित साहित्य • काव्य संकलन युग की गंगा – 1947 • नींद के बादल – 1947 • लोक और आलोक – 1957 • फू...

जन्मदिन विशेष:केदारनाथ अग्रवाल की 5 श्रेष्ठ कविताएं...

केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। 1 अप्रैल 1911 को उत्तर-प्रदेश के बांदा जनपद के कमासिन गाँव में जन्मे केदारनाथ का इलाहबाद से गहरा रिश्ता था। इलाहबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुईं। जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है जो रवि के रथ का घोड़ा है वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा जो जीवन की आग जला कर आग बना है फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है जो युग के रथ का घोड़ा है वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी - अनोखी हवा हूँ। बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला। नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ। जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ, मुसाफिर अजब हूँ। न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, न इच्छा किसी की, न आशा किसी की, न प्रेमी न दुश्मन, जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ। हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ! जहाँ से चली मैं जहाँ को गई मैं - शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर, झुलाती चली मैं। झुमाती चली मैं! हवा हूँ, हवा मै बसंती हवा हूँ। चढ़ी पेड़ महुआ, थपाथप मचाया; गिरी धम्म से फिर, चढ़ी आम ऊपर, उसे भी झकोरा, किया कान में 'कू', उ...

वह सारा समय केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में धड़कता है, जिसे उन्होंने देखा और रचा

केदारनाथ अग्रवाल मुलत: प्रेम भाव के कवि हैं, लेकिन उनकी कविताओं में शोषितों और वंचितों की आवाजें भी सम्मिलित हैं और यह आवाज प्रगतिशील आंदोलन के पहले से भी उनकी काव्यधारा में भावबोध के स्तर पर दिखाई देने लगती है। केदार नाथ अग्रवाल की कविताओं में प्रकृति का सौंदर्य कूट- कूटकर भरा है लेकिन उसमें सिर्फ पहाड़, नदी, झरने और जंगल की सुंदरता नहीं है, उसमें खेत है किसान हैं, लोगों की बस्ती है जहां ठिगना चना भी किसी किसान के गबरू जवान की तरह मुरैठा बांधे लगता है, हठीली अलसी और पीली सरसों किसान की सयानी बेटियां हो जाती हैं- एक बीते के बराबर यह हरा ठिंगना चना बांधे मुरैठा शीश पर छोटे गुलाबी फूल का सजकर खड़ा है पास ही मिलकर उगी है बीच में अलसी हठीली देह की पतली, कमर की है लचीली नीले फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर कह रही है जो छुए यह दूं हृदय का दान उसको और सरसों की न पूछो हो गई सबसे सयानी, हाथ पीले कर लिए हैं ब्याह मण्डप में पधारी फाग गाता मास फागुन आ गया है आज जैसे देखता हूं मैं स्वयंवर हो रहा है प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है इस विजन में दूर व्यापारिक नगर में प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है... केदार की ही एक और कविता है- हम न रहेंगे तब भी तो यह खेत रहेंगे इन खेतों पर घन घहराते शेष रहेंगे जीवन देते, प्यास बुझाते माटी को मदमस्त बनाते श्याम बदरिया के लहराते केश रहेंगे.... राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर भी उनकी पैनी दृष्टि रहती थी और जब कोई हलचल होती तो वे उसे अपनी कविताओं में ढालते जरूर थे। 1965 में जब वेलेन्टीना तेरेस्कोआ चांद पर गयीं तो केदार जी ने कविता लिखी- इकला चांद असंख्य तारे, नील गगन के खुले किवाड़े; कोई हमको कहीं पुकारे हम आएंगे बाँह पसारे ! उनकी कविताओं में समाया हुआ प्रे...

कविता : जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है जो रवि के रथ का घोड़ा है वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा जो जीवन की आग जला कर आग बना है फ़ौलादी पंजे फैलाए नाग बना है जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है जो युग के रथ का घोड़ा है वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा केदारनाथ अग्रवाल (1911 - 2000) प्रगतिशील काव्य-धारा के प्रमुख कवि थे। 'युग की गंगा', 'नींद के बादल', 'लोक और आलोक', 'फूल नहीं रंग बोलते हैं', 'आग का आईना', 'गुलमेहँदी', 'पंख और पतवार', 'हे मेरी तुम' और 'अपूर्वा' इनके मुख्य काव्य-संग्रह हैं। इनके कई निबंध-संग्रह भी प्रकाशित हैं। आप साहित्य अकादमी तथा 'सोवियत लैंड नेहरू' पुरस्कार से सम्मानित भी हुए।

पुण्‍यतिथि विशेषः मांझी न बजाओ वंशी, केदारनाथ अग्रवाल की कविता का स्थापत्य

मेहनतकश और किसानों को अपनी कविता के केंद्र में रखने वाले केदारनाथ अग्रवाल पेशे से वकील थे पर सच्‍चे अर्थों में कवि. ऐसा कवि जिसने औपनिवेशिक दौर में गुलामी के खिलाफ अपनी कविताओं के जरिए जोरदार आवाज उठाई. परकीया प्रेम के बदले कविता में दाम्‍पत्‍य प्रेम को प्रतिष्‍ठा दी. उनकी पुण्‍य तिथि पर उन्‍हें और उनकी कविता के विशेषत्‍व को साहित्य आजतक में उद्घाटित कर रहे हैं हिंदी के सुधी समालोचक डॉ ओम निश्‍चल. *** केदारनाथ अग्रवाल के कविता संसार पर निगाह जाती है तो बरबस उनके गीतों की याद हो आती है. वे ऐसे कवियों में हैं जिनकी कविताओं में छायावादी रूमान की कोई जगह नहीं है जबकि वे छायावाद के गढ़ इलाहाबाद से ज्यादा दूर न थे. बांदा में रहते हुए उन्होंने अपनी कविता और गीतों को भी बांदा की धरती की तरह ही जुझारू और क्रांतिधर्मी बनाया. केन किनारे रहने वाले इस कवि का स्वाभिमान किसी गांगेय पृष्ठभूमि में पलने बढ़ने वाले कवि से कम न था. मार्क्सवादी प्रगतिवादी विचारधारा को उन्होंने केवल सैद्धांतिकी पढ़ कर नहीं, बल्कि जीवन-संघर्ष के बीचोंबीच रह कर जाना था और उसे अपने जीवन में उतारा था. वे न परिमलियों के प्रभाव में आए, न छायावादियों के और न ही अज्ञेय जैसे प्रयोगवादियों के. उन्होंने वक्त की जरूरत के अनुसार अपने अनुभवों की प्रतिमा रची और जीवन भर इसका उन्हें मलाल न रहा. सहृदय आलोचक रामविलास शर्मा के रहते उन्हें और किसी आलोचक की परवाह न थी. एक तरफ कचहरी में जनता की पैरवी, दूसरी तरफ साहित्य में लोक की हिमायत- उनके जीवन और कवि-कर्म में कितनी अद्भुत समानता थी. उनका जीवन कविता में व्यक्त जीवन से अलग न था. अपने दाम्पत्य प्रेम तक को भी उन्होंने स्पृहणीय और सार्वजनिक बनाते हुए मानवीय प्रेम और सुगंध में बदल दिया. क...

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 12 केदारनाथ अग्रवाल (काव्य

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 12 केदारनाथ अग्रवाल (काव्य-खण्ड) These Solutions are part of विस्तृत उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए : (अच्छा होता) 1. अच्छा होता ……………………………………………………………………… कच्चा होता। सन्दर्भ –प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अच्छा होता’ नामक कविता से उधृत की गयी हैं। प्रसंग –प्रस्तुत पंक्तियों में कवि आदमी को एक अच्छा इन्सान बनाने की इच्छा करता है जो स्वार्थ रहित और सदचरित्र हो। क्योंकि आज व्यक्ति का चारित्रिक पतन हो चुका है। वह पूर्णतया स्वार्थी बन गया है। कवि एक स्वस्थ समाज की कल्पना करता है। व्याख्या –कवि कहता है कि यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता जब एक आदमी दूसरे आदमी के हित में काम करता। वह स्वार्थी न होकर परोपकारी होता । उसकी नियति स्वच्छ और साफ होती तो यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता। वह स्वार्थी और दागी न होकर नि:स्वार्थी (UPBoardSolutions.com) और निष्कलंक होता तो बहुत बेहतर होता। आगे वह यह भी कहता है कि व्यक्ति को सचरित्र का होना चाहिए। कहीं भी व्यक्ति के चरित्र में खोट नहीं होना चाहिए। क्योंकि एक सद्चरित्रवान व्यक्ति ही अच्छे आचरण का व्यवहार करने में सक्षम है। कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है जिसमें जन-साधारण को भी कष्ट न हो। काव्यगत सौन्दर्य • इन पंक्तियों में कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है, जो परोपकार एवं नि:स्वार्थपूर्ण हो। • भाषा-सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य। 2. अच्छा होता ……………………………………………………………………… बराती होता। सन्दर्भ –प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अच्छा होता’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। ...

केदारनाथ अग्रवाल मूलतः कवि हैं या लेखक?

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