केदारनाथ मंदिर की कहानी

  1. केदारनाथ मन्दिर
  2. देव भूमि उत्तराखंड केदारनाथ का इतिहास
  3. केदारनाथ बाढ़ की कहानी (हिंदी में): 2013 की Flood आपदा कैसे हुई?
  4. केदारनाथ का इतिहास
  5. केदारनाथ मंदिर का इतिहास व कहानी, Kedarnath Temple Story In Hindi
  6. केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Temple):सनातन धर्म का छोटा धाम
  7. केदारनाथ मंदिर की कहानी


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केदारनाथ मन्दिर

श्री केदारनाथ मन्दिर धर्म संबंधी जानकारी सम्बद्धता भगवान अवस्थिति जानकारी अवस्थिति वास्तु विवरण शैली कत्यूरी शैली निर्माता पाण्डव वंश के जनमेजय केदारनाथ मन्दिर जून २०१३ के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है। केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं। यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर एक कलाकृति है I कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नही जा सकते I फिर इस मन्दिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया? ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है? 1200 साल बाद, भी जहां उस क्षेत्र में सब कुछ हेलिकॉप्टर से ले जाया जाता है I JCB के बिना आज भी वहां एक भी ढांचा खड़ा नहीं होता है। यह मंदिर वहीं खड़ा है और न सिर्फ खड़ा है, बल्कि बहुत मजबूत है। हम सभी को कम से कम एक बार यह सोचना चाहिए। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि यदि मंदिर 10वीं शताब्द...

देव भूमि उत्तराखंड केदारनाथ का इतिहास

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार. शिव भगवान ने प्रकृति के कल्याण हेतु भारत वर्ष में 12 जगहों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए उन 12 जगहों पर. स्थित शिव लिंगो को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है. जिनमे से एक ज्योतिर्लिंग देव भूमि उत्तराखंड केदारनाथ का इतिहास भी है. kedarnath history in hindi.यह चार धाम एवं पञ्च केदार में से एक है. पञ्च केदार में केदार नाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, मध्येश्वर, और तुंगनाथ इनमे शामिल है. केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है.kedarnath history in hindi. उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट श्रधालुओ के लिए छ माह के लिए खुलता है. और बाद में सर्दियों में भरी वर्फ वारी के बाद यहाँ आने का रास्ता बंद हो जाता है. केदारनाथ धाम में हर साल लाखो के संख्या में श्रद्धालु आते है इस धाम के प्रति लोगो की अटूट श्रदा और विश्वास है. kedarnath history in hindi. Table of Contents • • • • • • • • • केदारनाथ मंदिर का इतिहास.kedarnath history in hindi बारह जोतिर्लिंग मे से एक है केदार नाथ धाम जो की उत्तराखंड राज्य के रुद्र प्रयाग जिले मे स्थित है. भगवान शिव की नगरी केदारनाथ धाम चार धामो मे से एक है. केदारनाथ को केदारेश्वर भी कहा जाता है. क्योकि ये केदार नामक पर्वत पर विराजमान है. ऐसा माना जाता है की सतयुग मे उपमन्यु ने इसी स्थान पर भगवान शंकर की आराधना की थी. और द्वापर मे पांडवो ने इसी स्थान पर तपस्या की थी. केदार पर्वत हमेसा वर्फ़ो से ढला रहता है. जिससे मंदिर के कपाट कुछ महीनो के लिए ही खुलता है. केदारनाथ धाम हिन्दुवों की पवित्र स्थली रही है यह पंच केदार मे से एक है. केदार नाथ मंदिर के कपाट अप्रैल से नवं...

केदारनाथ बाढ़ की कहानी (हिंदी में): 2013 की Flood आपदा कैसे हुई?

अगर केदारनाथ बाढ़ (flood) की कहानी की बात करें तो सबसे पहले जो बात दिमाग में आती है वह है आपदा और त्रासदी। क्योंकि उत्तराखंड में केदारनाथ शहर उत्तर भारत में 2013 की बाढ़ के दौरान सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र था। केदारनाथ मंदिर परिसर, आसपास के क्षेत्रों और केदारनाथ शहर को भारी नुकसान हुआ। लेकिन मंदिर के ढांचे को कोई “बड़ी” क्षति नहीं हुई। चार दीवारों के एक तरफ कुछ दरारों के अलावा जो ऊंचे पहाड़ों से बहते मलबे के कारण हुई थी। आपदा के दौरान बाढ़ के बीच एक विशाल चट्टान, कीचड़, मलबा अवरोधक का काम करता था। और इसने मंदिर को व्यापक क्षति से बचाया। उदाहरण के लिए केदारनाथ मंदिर के आसपास के भवन, होटल और बाजार क्षेत्र बाढ़ में गायब हो गए और भारी क्षति हुई। केदारनाथ बाढ़ की कहानी (स्थानियों लोगो के अनुसार) “पुजारियों द्वारा दिए गए कारणों में से एक धारी देवी मंदिर का उत्थान था”। यहाँ तक कि स्थानीय लोग भी कहानी के इस पक्ष में विश्वास करते थे। पुजारियों का मानना है कि केदारनाथ में स्थापित कोई भी देवता अपने सबसे शुद्ध रूप में माना जाता है। और इसे विस्थापित नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन सरकार ने जंगलों को नष्ट कर दिया और पवित्र धारी देवी मंदिर के स्थान को स्थानांतरित कर दिया। धारी देवी को प्रकृति के क्रोध पर नियंत्रण रखना था। इस कदम का पुजारियों और स्थानीय लोगों ने विरोध किया। लेकिन अधिकारियों ने अंततः धारी देवी मंदिर के स्थान को स्थानांतरित कर दिया और उस स्थान पर एक बांध का निर्माण किया। केदारनाथ बाढ़ की कहानी (2013 की आपदा) जून 2013 के महीने में, इस क्षेत्र को व्यापक विनाश के साथ अपनी जीवित स्मृति में सबसे खराब आपदा का सामना करना पड़ा। संयोग से यह हादसा छोटा चार धाम यात्रा में पर्यटन और तीर्था...

केदारनाथ का इतिहास

केदारनाथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। इसके निर्माण के पीछे कई कहानियां हैं और यह प्राचीन काल से हिन्दू धर्मं का एक तीर्थस्थल रहा है। हालांकि यह निश्चित नहीं है कि मूल केदारनाथ मंदिर किसने और कब बनवाया था। लेकिन इसके निर्माण की कई मान्यता प्रचलित है। एक पौराणिक कहानी पौराणिक भाइयों पांडवों द्वारा मंदिर के निर्माण का वर्णन करती है। लेकिन पवित्र महाभारत में केदारनाथ नामक किसी स्थान का उल्लेख नहीं है। केदारनाथ का सबसे पहला उल्लेख स्कंद पुराण (7वीं और 8वीं शताब्दी) में मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार, केदार वह स्थान है जहां शिव अपने उलझे बालों से पवित्र गंगा को मुक्त करते हैं (जिसे हिंदी में “जटा” कहा जाता है)। केदारनाथ मंदिर का इतिहास (History in Hindi) कहा जाता है कि पवित्र केदारनाथ मंदिर 8वीं शताब्दी ईस्वी में हिंदू गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था। शंकराचार्य ने उस स्थान का पुनर्निर्माण किया जहां माना जाता है कि महाभारत के पांडवों ने एक शिव मंदिर का निर्माण किया था। केदारनाथ का इतिहास (पांडवों की मंदिर बनाने की कहानी) पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के बाद पांडवों ने केदारनाथ मंदिर का निर्माण किया था। ऐसा कहा जाता है कि पांडव अपने कौरव भाइयों को मारने के बाद अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव के पास क्षमा के लिए जाना चाहते थे। लेकिन भगवान शिव उनसे मिलना नहीं चाहते थे। इसलिए भगवान शिव गुप्तकाशी में जा छिपे। पांडवों और द्रौपदी ने गुप्त काशी में एक बैल को देखा जो अन्य बैलों से बहुत ही अनोखा था। पांडव के भाई भीम ने पहचान लिया कि बैल कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं। भगवान शिव जो उनसे छिप रहे थे, बैल के रूप में नंदी के रूप में थे। भीम ने बैल को ...

केदारनाथ मंदिर का इतिहास व कहानी, Kedarnath Temple Story In Hindi

केदारनाथ धाम 2013 में आई प्राकृतिक आपदा के बाद से सैलानियों के बीच अत्यधिक प्रसिद्ध हो चुका (Kedarnath Temple Story In Hindi) है। हालाँकि धार्मिक रूप से इसकी मान्यता पहले जैसी ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में एक ज्योतिर्लिंग, पंच केदार में एक केदार एवं उत्तराखंड के चार छोटे धामों में से एक धाम (Kedarnath Mandir Ki Kahani In Hindi) है। अब बात करते है केदारनाथ के इतिहास की (Kedarnath Mandir History In Hindi)। बहुत से भक्तों के मन में यह प्रश्न होता हैं कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया या केदारनाथ की कहानी क्या हैं? इसलिए आज हम आपको केदारनाथ मंदिर का संपूर्ण इतिहास बताएँगे। केदारनाथ मंदिर का इतिहास (Kedarnath Temple History In Hindi) महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों का पश्चाताप (Kedarnath Pandav Story In Hindi) कुरुक्षेत्र की भूमि पर 18 दिनों तक लड़े गए महाभारत के भीषण युद्ध के बारे में भला कौन नही जानता। इस युद्ध में सभी रिश्तों की बलि चढ़ गयी थी फिर चाहे वह गुरु-शिष्य का रिश्ता हो या भाई-भाई का या चाचा-भतीजे का। 18 दिनों तक निरंतर कुरुक्षेत्र की भूमि कौरव व पांडवों की सेना के रक्त से लाल हो गयी थी। महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात विजय तो अवश्य ही पांडवों की हुई थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि उन्होंने भी बहुत कुछ खो दिया था। युद्ध समाप्ति के कुछ समय बाद, जब सभी पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठकर युद्ध के परिणामों व प्रभावों के बारे में चर्चा कर रहे थे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें पश्चाताप करने को कहा। श्रीकृष्ण के अनुसार पांडवों के ऊपर ब्रह्महत्या, गौत्रहत्या, कुलहत्या, गुरुहत्या इत्यादि कई पाप चढ़ चुके थे। इसके लिए उनका प्रायश्चित करना...

केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Temple):सनातन धर्म का छोटा धाम

केदारनाथ मंदिर को सनातन धर्म का छोटा धाम से जाना जाता है जोकि उत्तरी भारत के उत्तराखंड राज्य में मंदाकिनी नदी के किनारे पर स्थित है, यह समुंद्र तट से 3584 मीटर ऊंचाई पर है, इस area का पुराणो में नाम केदार खंड मिलता है.भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हर साल यहाँ हज़ारों शरद्धालु बाबा शिव का आशिर्वाद लेने आते हैं. केदारनाथ मन्दिर के निर्माण के पीछे कई कहानियाँ हैं, जिसमे से प्रसिद्ध यह है कि केदारनाथ का मंदिर पांडवों ने महाभारत के समय बनाया था, ऐसा कहा जाता है कि पांडव अपने भाई कौरव को मारने के बाद अपने पापों का प्रश्चित् करना चाहते थे, और भगवान शिव से माफी मांगना चाहते थे, मगर शिवजी पाण्डवों से मिलने के ईच्छुक नहीं थे,इसलिए उन्होंने अपने स्वरूप को नंदी में बदलकर गुप्तकाशी में छुप गये. मगर द्रौपदी और पाण्डवों ने नंदी के अनोखेपन को भांप लिया, और भीम ने पहचान लिया कि यही शिवजी हैं, भीम ने शिवजी को पकड़ने की कोशिश भी करी लेकिन वह सफ़ल ना हुए. शिव जमीन में चले गए और जब वे ऊपर आए, तो शरीर के विभिन्न अंग अलग-अलग जगहों पर ऊपर आ गए। नेपाल में माथा पशुपतिनाथ है, जिसे सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. बैल का कूबड़ केदारनाथ में है, दो अग्र पैर तुंगनाथ में हैं, जो केदार के रास्ते में है. नाभि हिमालय के भारतीय भाग में मध्य-महेश्वर नामक एक स्थान पर प्रकट हुई जो एक बहुत शक्तिशाली मणिपुरक लिंग है, और शिव के उलझे हुए ताले कल्पनानाथ कहलाते हैं. ऐसी मान्यता है कि नर और नारायण भरत खंड के बद्रीकाश्रम की तपस्या करने गए थे, भगवान शिव उनकी तपस्या से खुश हुए और उन्हें अपने दर्शन दिये, और नर नारायण की इच्छा पुरी करने का वचन दिया, तो नर नारायण ने इच्छा में माँगा कि आप ज्योतिर्लिंग के...

केदारनाथ मंदिर की कहानी

केदारनाथ का आसमान पहले धुला हुआ चटख नीला हुआ करता था लेकिन आजकल ये आसमान मटमैला या घूसर नजर आ रहा है। जैसे नीचे जमीन का अक्स आसमान पर पड़ने लगा है। जमीन पर चारों तरफ मटमैला रंग है, स्लेटी रंग की चट्टानें हैं- मिट्टी है और मौत। एक हजार साल पुराना ये मंदिर न जाने कितने बदलाव देख चुका है। मंदिर की 150 साल पुरानी तस्वीरें बताती हैं कि किस तरह इंसान ने कुदरत को मुंह चिढ़ाया, कैसे भक्ति के नाम पर, आस्था के नाम पर केदारनाथ में लालच की गंगा बहा दी, ऐसी अति की कि विनाश हो गया। (फोटो साभार- badarikedar.org) केदारनाथ धाम के मुख्य पुरोहित वागीशलिंग स्वामी कहते हैं कि केदारनाथ में इतने सारे लोग आते हैं लेकिन ज्यादातर आस्था और भक्ति के चलते नहीं बल्कि मौज-मस्ती के लिए आते हैं। शिव तो बैरागी हैं उन्हें सांसारिक सुख के साधनों और इच्छाओं से कोई लेनादेना नहीं है लेकिन उनके नाम पर यहां आने वाले तो उल्टी राह अपनाते हैं। हादसे से कुछ वक्त पहले तक इस मंदिर के आसपास की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी थी। मंदिर से सटकर दुकानें खुल चुकी थीं। उन दुकानों में रातदिन प्रसाद, पूजा सामग्री और खाने पीने का सामान बिक रहा था, कमाई की जा रही थी। किसी ने नहीं सोचा कि ये मंदिर सदियों पुराना है, इसे बनाने वालों ने खास विधि से इसे तैयार किया ताकि ये बर्फ और पानी दोनों झेल ले लेकिन उसके आसपास व्यापार की चाहत में खड़ी दुकानों को आखिर कौन बचाएगा।