वात्सायन के सूत्र

  1. कामसूत्र भाग
  2. वात्स्यायन
  3. गणित के सूत्र (Mathematics Formula in Hindi)
  4. सहवास के ये नियम अपनाकर रहेंगे सुखी, समृद्ध व निरोगी, होगा आत्मकल्याण
  5. माहेश्वर सूत्र । Maaheshwara Sutra, पाणिनि माहेश्वर सूत्र। paanini maaheshwara sutra
  6. रासायनिक सूत्र
  7. [ Most Important ] गणित के सभी सूत्र (Mathematical Formula in Hindi )
  8. पतंजलि योगसूत्र का परिचय एवं पतंजलि योग सूत्र के चार अध्याय


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कामसूत्र भाग

सभी Hindi Pdf Book यहाँ देखें सभी Audiobooks in Hindi यहाँ सुनें कामसूत्र पुस्तक का संक्षिप्त विवरण : वात्सायन के कामसूत्र में कुल सात भाग हैं | प्रत्येक भाग कई अध्यायों में बंटे हैं| प्रत्येक अध्याय में कई श्लोक हैं | साहित्य प्रेमियों की सुविधा के लिए पहले संस्कृत और उसके नीचे उसका हिंदी अनुवाद दिया गया | महर्षि वात्सायन का जन्म बिहार राज्य में हुआ था और प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण साहित्यकारों में से एक हैं | महर्षि वात्सायन ने कामसूत्र में न केवल दांपत्य जीवन का श्रंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी सम्पादित किया है | अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कोटिल्य का है, काम इके क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्सायन का है | महर्षि वात्सायन का कामसूत्र विश्व की प्रथम यौन संहिता है जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है | अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया है…… Short Description of Kamasutra Hindi PDF Book : A total of seven parts of the Kama Sutra Vatsayayan. Each part is divided into several chapters. There are many verses in each chapter. Sanskrit literature lovers and the first to feature was a Hindi translation. Vatsayayan Maharishi was born in Bihar and one of ancient India’s most important writers. Maharishi Vatsayayan adornments of the Kama Sutra is not only marriage but arts, crafts and literature has also edited. The location is in the sense of Kotilya work in Economy, is the location of Maharishi Vatsayayan. The Kama Sutra of Vatsayayan Maharishi is the world’s first sex Code...

वात्स्यायन

वात्स्यायन विश्वविख्यात 'कामसूत्र' ग्रन्थ के रचयिता थे जिनका समय तीसरी शताब्दी ई.पू. माना जाता है। इनका नाम 'मल्लनाग' था, किन्तु ये अपने गोत्रनाम ‘वात्स्यायन’ के रूप में ही विख्यात हुए। कामसूत्र में जिन प्रदेशों के रीति-रिवाजों का विशेष उल्लेख किया गया है, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि, वात्स्यायन पश्चिम अथवा दक्षिण जीवन परिचय वात्स्यायन, न्यायभाष्य विद्वानों ने यह स्पष्ट किया है कि वात्स्यायन का योगदान जिस प्रकार प्रथम योगदान वात्स्यायन के अनुसार इस विवेचन में पूर्वपक्षी कोई वेदांती जैसा है, जो ईश्वर को उपादान कारण मानता है। पूर्वपक्षी मानता है कि मनुष्य के कर्मों का फल उसे हमेशा मिलता ही हो, ऐसी बात नहीं है, इसलिए उसका फल पराधीन मानना चाहिए। वह फल जिसके अधीन है, वही ईश्वर है। लेकिन वात्स्यायन उत्तरपक्ष में कहता है कि अगर फल प्राप्ति ईश्वर के अधीन है, तो मनुष्य के प्रयत्न के बिना ही फल मिल सकता है। इसलिए फल प्राप्ति के लिए सिर्फ़ ईश्वर को ही ज़िम्मेदार ठहराना ग़लत है। वस्तुत: मनुष्य अगर प्रयत्न करेगा, तभी ईश्वर उसे फल प्रदान करेगा। इस प्रकार फल देने वाला ईश्वर तो मानना ही चाहिए, लेकिन उसे उपादान कारण जैसा समझना ग़लत है। ईश्वर जीवत्माओं से अलग एक विशेष प्रकार की आत्मा है। वह आप्त है, तथा हम सब लोगों का पिता है। वह द्रष्टा, बोद्धा, सर्वज्ञ है। दूसरा योगदान वात्स्यायन का दूसरा योगदान यह है कि वात्स्यायन ने न्यायदर्शन में वैशेषिक पदार्थों का अंतर्भाव करने का प्रयास किया। वात्स्यायन के बाद वैशेषिकों का सत्ताशास्त्र स्वीकृत करने की यह परम्परा भी न्यायदर्शन में चल पड़ी। धीरे धीरे 'न्याय-वैशेषिक' एक अभिन्न दर्शन ही बन गया। गौतम के न्यायसूत्र में हम देखते हैं कि वैशेषिक दर्शन का...

गणित के सूत्र (Mathematics Formula in Hindi)

1. संख्या पद्धति के सूत्र (i). प्राकृत संख्याएँ (Natural Number) :- जैसे :- 1, 2, 3, 4, 5,……… (ii). सम संख्याएँ (Even Number) :- ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः विभाजित होती हैं, उन्हें जैसे :- 2, 4, 6, 8, 10,……… (iii). विषम संख्याएँ (Odd Numbers) :- ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः से विभाजित न हो उन्हें जैसे :- 1, 3, 5, 7, 9,……… (iv). पूर्णांक संख्याएँ :- धनात्मक ऋणात्मक और जीरों से मिलकर बनी हुई संख्याएँ जैसे :- -3, -2, -1, 0, 1, 2,……… पूर्णांक संख्याएँ तीन प्रकार की होती हैं। • धनात्मक संख्याएँ :- एक से लेकर अनंत तक की सभी धनात्मक संख्याएँ धनात्मक पूर्णांक हैं। जैसे :- +1, +2, +3, +4, +5,……… • ऋणात्मक संख्याएँ :- 1 से लेकर अनंत तक कि सभी ऋणात्मक संख्याएँ ऋणात्मक पूर्णांक हैं। जैसे :- -1, -2, -3, -4, -5,……… • उदासीन पूर्णांक :- ऐसा पूर्णांक जिस पर धनात्मक और ऋणात्मक चिन्ह का कोई प्रवाह ना पड़े। और यह जीरो होता हैं। जैसे :- -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3,……… (v). पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) :- प्राकृतिक संख्याएँ में 0 से सामिल कर लेने से जैसे :- 0, 1, 2, 3, ……… (vi). भाज्य संख्या (Composite Numbers) :- ऐसी प्राकृत संख्या जो स्वंय और 1 से विभाजित होने के अतिरिक्त कम से कम किसी एक अन्य संख्या से विभाजित हो उन्हें जैसे :- 4, 6, 8, 9, 10, 12, ……… (vii). अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) :- ऐसी प्राकृतिक संख्याएँ जो सिर्फ स्वंय से और 1 से विभाजित हो और किसी भी अन्य संख्या से विभाजित न हो उन्हें जैसे :- 2, 3, 5, 11, 13, 17, ……… (viii). सह अभाज्य संख्या (Co-Prime Numbers) :- कम से कम 2 अभाज्य संख्याओ का ऐसा समूह जिसका (HCF) 1 हो उसे जैसे :- (5, 7) , (2, 3) (ix). परिमेय संख्या...

सहवास के ये नियम अपनाकर रहेंगे सुखी, समृद्ध व निरोगी, होगा आत्मकल्याण

आमतौर पर भारत में सेक्स विषय पर चर्चा नहीं होती है। अभिभावक इससे बचते हैं, लेकिन इसका मूल कारण क्या है?, शायद कुछ धर्म-शास्त्रों का पठन-पाठन करने वाले लोग जानते भी होंगे। नि: संदेह जानते होंगे। जहां भारत को छोड़कर दुनिया के अधिकांश देशों में भौतिक संसार का महत्व मानकर जीवन का भोग ही संसार में जीवन का आधार है, लेकिन भारतीय संस्कृति का आधार त्याग है। इस लोक को छोड़ अन्य लोक की स्वीकार्यता भी है, जबकि अन्य अधिकांश संस्कृतियों व देशों में पुनर्जन्म की स्वीकार्यता नहीं है। कोई मानता है कि कयामत के दिन उनके कर्मों का हिसाब-किताब होगा तो कोई कुछ और स्वीकार करता है। इस बहस में हमें नहीं जाना है, हमें बात करनी है कि भारतीय संस्कृति का आधार क्या है?, जी, हां, भारतीय संस्कृति का आधार है, त्याग। वह कैसे, वह हम आपको समझाते हैं। त्याग है, काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह व मत्सर से। जिनते भी विकार उत्पन्न होंते है, वह उत्पन्न होते है, इन्हीं इंद्रीय दोषों के कारण। इन विकारों का निदान आखिर क्यों करे, यह जानता भी आवश्यक है। अगर भौतिक जीवन के परिपेक्ष्य में इन विकारों पर गौर करें तो हमें एहसास होगा कि इन्हीं विकारों के कारण संसार में अनाचार उत्पन्न हो रहे है। आम जन के जीवन में संयम नहीं है, उन्होंने इन विकारों का त्याग नहीं किया है, लिहाजा इन्हीं विकारों के चक्रव्यूह में फंस कर जीवन गंवा देते हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति या सनातन संस्कृति या सनातन धर्म में इन इंद्रीय दोषों पर विजय प्राप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है, मोक्ष यानी जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर ईश्वरीय सत्ता में विलीन हो जाना। पूर्ण रूप से उसी ईश्वर में ही स्वयं को समर्पित करना। जो भी व्यक्ति भारतीय संस्कृति या सनातन धर्म के पथ चलेगा, उसे स...

माहेश्वर सूत्र । Maaheshwara Sutra, पाणिनि माहेश्वर सूत्र। paanini maaheshwara sutra

”महेश्वराद् आगतानि सूत्राणि” अर्थात् महेश्वर (शिव) से आए हुए सूत्रों को माहेश्वर सूत्र कहते हैं। माहेश्वर सूत्र संस्कृत व्याकरण के आधार हैं। इन सूत्रों का प्रयोग पाणिनि जी के ग्रन्थ अष्टाध्यायी में दिखाई देता है।” अष्टाध्यायी” पाणिनि रचित संस्कृत व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसमें आठ अध्याय हैं। इसका भारतीय भाषाओं के साथ विश्व की अनेक भाषाओं पर बहुत बड़ा प्रभाव है। साथ ही इसमें यथेष्ट इतिहास विषयक सामग्री भी उपलब्ध है । अष्टाध्यायी (अष्टाध्यायी = आठ अध्यायों वाली) महर्षि पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का एक अत्यंत प्राचीन ग्रंथ (५०० ई पू) है। इसमें आठ अध्याय हैं; प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं; प्रत्येक पाद में 38 से 220 तक सूत्र हैं। इस प्रकार अष्टाध्यायी में आठ अध्याय, बत्तीस पाद और सब मिलाकर लगभग 3993 सूत्र हैं। अष्टाध्यायी पर महामुनि कात ्यायन का विस्तृत वार्तिक ग्रन्थ है और सूत्र तथा वार्तिकों पर भगवान पतञ्जलि का विशद विवरणात्मक ग्रन्थ महाभाष्य है। संक्षेप में सूत्र, वार्तिक एवं महाभाष्य तीनों सम्मिलित रूप में 'पाणिनीय व्याकरण' कहलाता है और सूत्रकार पाणिनि, वार्तिककार कात्यायन एवं भाष्यकार पतञ्जलि - तीनों व्याकरण के 'त्रिमुनि' कहलाते हैं। अष्टाध्यायी में आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं। पहले-दूसरे अध्यायों में संज्ञा और परिभाषा संबंधी सूत्र हैं एवं वाक्य में आए हुए क्रिया और संज्ञा शब्दों के पारस्परिक संबंध के नियामक प्रकरण भी हैं, जैसे क्रिया के लिए आत्मनेपद-परस्मैपद-प्रकरण, एवं संज्ञाओं के लिए विभक्ति, समास आदि। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्यायों में सब प्रकार के प्रत्ययों का विधान है। तीसरे अध्याय में धातुओं में प्रत्यय लगाकर कृदंत शब्दों का निर्...

रासायनिक सूत्र

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (मई 2016) स्रोत खोजें: · · · · रासायनिक सूत्र (chemical formula) किसी अणुसूत्र (molecular formula) के लिये भी 'रासायनिक सूत्र' का ही प्रयोग कर दिया जाता है। उदाहरण: 4) है जो इंगित करता है कि मिथेन का कई प्रकार के रासायनिक सूत्र उपयोग किये जाते हैं जिनकी अलग-अलग उपयोगिता है और अलग-अलग जटिलता भी। बढ़ते हुए जटिलता के क्रम में ये हैं - आनुभविक सूत्र, अणुसूत्र, संरचना सूत्र। उदाहरण [ ] • 2 • 2O • 2H 6O • 3) 2 • अन्य निरूपण ढांचा सूत्र अस्तित्व नहीं CH 4 CH 4 CH 4 CH 3–CH 2–CH 3 C 3H 8 C 3H 8 CH 3–COOH C 2H 4O 2 CH 2O अस्तित्व नहीं अस्तित्व नहीं H 2O H 2O इन्हें भी देखें [ ] • • • • रासायनिक प्रतीक (chemical symbols) • • • बाहरी कड़ियाँ [ ] • • • • Afrikaans • العربية • الدارجة • Asturianu • Azərbaycanca • Беларуская • Български • ပအိုဝ်ႏဘာႏသာႏ • বাংলা • Brezhoneg • Bosanski • Català • Čeština • Чӑвашла • Dansk • Deutsch • Ελληνικά • English • Esperanto • Español • Eesti • Euskara • فارسی • Suomi • Français • Gaeilge • 贛語 • Galego • עברית • Hrvatski • Kreyòl ayisyen • Magyar • Հայերեն • Interlingua • Bahasa Indonesia • Ido • Íslenska • Italiano • 日本語 • Jawa • ქართული • Taqbaylit • Қазақша • ភាសាខ្មែរ • 한국어 • Кыргызча • Latina • Lëtzebuergesch • Lombard • Lietuvių • Latviešu • Македонски • മലയാളം • मराठी • Bahasa Melayu • မြန်မာဘာသာ • Plattdüütsch • नेपाली • Nederlands • Norsk nynorsk • Norsk bokmål • Occitan • ਪੰਜਾਬੀ • Polski • Português • Română • Русский • Scots • Srpskohrvatski / српскохрват...

[ Most Important ] गणित के सभी सूत्र (Mathematical Formula in Hindi )

Ganit ke Sabhi Sutra in Hindi, (गणित के सभी सूत्र ) अगर आप सभी विद्यार्थी किसी भी परीक्षा की तैयारी करते हैं तो आपको मैथमेटिक विषय से अवश्य प्रश्न पूछे जाते हैं इसलिए आप सभी विद्यार्थियों के लिए आज हम Ganit ke Sabhi Sutra in Hindi :- Ganit ke Sabhi Sutra PDF में लेकर आए है :- गणित के सभी सूत्र :- आयत (Rectangle) :-वह चतुर्भुज जिसकी आमने-सामने की भुजाएं समान हो तथा प्रत्येक कोण समकोण (90º) के साथ विकर्ण भी समान होते हैं। • आयत का क्षेत्रफल = लम्बाई (l) × चौड़ाई (b) • आयत का परिमाप = 2 (लम्बाई + चौड़ाई) • कमरे की चार दीवारों का क्षेत्रफल = 2 (लम्बाई + चौड़ाई) × ऊंचाई वर्ग (Square) :- उस चतुर्भुज को वर्ग कहते हैं, जिनकी सभी भुजाएं समान व प्रत्येक कोण समकोण है। • वर्ग का क्षेत्रफल = (भुजा)2 (विकर्ण)2 • Square का विकर्ण = भुजा • वर्ग का परिमाप = 4 × (भुजा)2 ( नोटः यदि किसी वर्ग का क्षेत्रफल = आयत का क्षेत्रफल हो, तो आयत का परिमाप सदैव वर्ग के परिमाप से बड़ा होगा।) समानांतर चतुर्भुज (Parallelogram) :-जिस चतुर्भुज की सम्मुख भुजाएं समानांतर व समान हो वह समानांतर चतुर्भुज कहलाता है। समानांतर चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं। एक विकर्ण समानांतर चतुर्भुज को दो समान त्रिभुजों में बांटता है। • समानांतर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊंचाई • समानांतर चतुर्भुज का परिमाप = 2 × आसन्न भुजाओं का योग समचतुर्भुज (Rhombus) :-उस समानान्तर चतुर्भुज को समचतुर्भुज कहते हैं जिसकी सभी भुजाएं समान हो तथा विकर्ण परस्पर समकोण पर समद्विभाजित करते हों, पर कोई कोण समकोण न हो। • समचतुर्भुज का क्षेत्रफल = विकर्णों का गुणनफल • समचतुर्भुज का परिमाप = 4 × एक भुजा समलम्ब चतुर्भुज (Trape...

पतंजलि योगसूत्र का परिचय एवं पतंजलि योग सूत्र के चार अध्याय

योगसूत्र ग्रंथ महर्षि पतंजलि द्वारा रचित है। यह ग्रंथ सूत्रों के रूप में लिखा गया है। सूत्र-शैली भारत की प्राचीन दुर्लभ शैली है जिसमें विषय को बहुत संक्षिप्त शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है।यह चार पादो में विभाजित है जिसमें 196 सूत्र निबद्ध है।इस ग्रंथ में महर्षि पतंजलि ने यथार्थ रूप में योग के आवश्यक आदर्शों और सिद्धांतों को प्रस्तुत किया है। पतंजलि का“योगसूत्र“, योग विषय पर एकमात्र सबसे प्रामाणिक पुस्तक के रूप में स्थापित है। योगसूत्र ग्रंथ के चार पाद हैंः समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद, और कैवल्य पाद। आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इन आठ घटको के पहल े पांच घटक बहिरगं योग या बाह्य प्रकृति के योग रूप कहे गए है।इन पांच घटको को आरंभिक तैयारी के घटकों के रूप में जाना जा सकता है।बाद के तीन घटको ( धारणा, ध्यान, समाधि) को अंतरंग योग का घटक कहा गया है क्योंकि वे अंतर्मन को साधने का कार्य करते हैं। इनका अभ्यास हमें अंतरगं योग की ओर उन्मुख करता है जिसमें समाधि की स्थिति सन्निहित है। यह अध्याय हमें योग के धरातल पर मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और नैतिक रूप से तैयार करता है। कैवल्य पाद इस ग्रंथ का अंतिम अध्याय है। यह योगाभ्यास से संबंधित दार्शनिक समस्याओं की गहरी छानबीन करता है। यह अध्याय मन की आवश्यक प्रकृति, लौकिक अवधारणा, मानव की ऐच्छिक प्रकृति और कैसे इच्छाएँ अनुकूलन और बंधन का कारण हैं; के बारे में भी चर्चा करता है। मुक्ति (कैवल्य) की स्थिति को किस प्रकार अनुभव किया जा सकता है और इस प्रकार की शुद्ध चेतना द्वारा किस तत्त्व की व्युत्पत्ति होती है, को स्पष्ट करता है। पतंजलि योग सूत्र के चार अध्यायपतंजलि योगसूत्र को चार अध्यायों के अन्तर्गत रखा गया है जिन्हें‘पाद...