खजुराहो 64 काम कलाएं

  1. खजुराहो, जहां कामदेव भी आकर कह दें, वाह ये तो कमाल हो गया!
  2. खजुराहो मंदिर मध्य प्रदेश का इतिहास Khajuraho temple history »
  3. latestकामसूत्र की 64 कलाएं क्या हैं, जिन्हें जानने वाला कभी कहीं नाकाम नहीं रहेगा & update
  4. खजुराहो
  5. चौसठ कलाएँ
  6. कामसूत्र की वो 64 कलाएं, जिन्हें जानने वाला कभी मात नहीं खाएगा
  7. खजुराहो महोत्‍सव कला वार्ता: संवाद में खुलते कलाओं के अर्थ
  8. latestकामसूत्र की 64 कलाएं क्या हैं, जिन्हें जानने वाला कभी कहीं नाकाम नहीं रहेगा & update
  9. कामसूत्र की वो 64 कलाएं, जिन्हें जानने वाला कभी मात नहीं खाएगा
  10. खजुराहो महोत्‍सव कला वार्ता: संवाद में खुलते कलाओं के अर्थ


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खजुराहो, जहां कामदेव भी आकर कह दें, वाह ये तो कमाल हो गया!

चित्रगुप्त मंदिर सूर्यदेव को समर्पित चित्रगुप्त मंदिर एक बहुत पुराना तीर्थस्थल है। यह मंदिर 11वीं सदी में बनाया गया था। सात घोड़ों वाले रथ पर खड़े हुए सूर्यदेव की शानदार मूर्ति इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर की दीवारों पर बारीक नक्काशी की गई है। इस मंदिर के अन्य आकर्षण हैं- पत्थर की नक्काशियों में सुरसुंदरियों की पूरी आकृतियाँ, ग्यारह सिर वाला भगवान विष्णु का स्वरूप तथा कामुक प्रेम दर्शाते प्रेमी जोड़े। इस मंदिर के प्रवेशद्वार सूर्यदेव की छोटी मूर्तियों से सजे हुए हैं। यहाँ आने वाले यात्री अकसर मंदिर की खूबसूरती देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। देवी जगदंबा मंदिर देवी जगदंबा मंदिर खजुराहो का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। मंतिदर का गर्भगृह ब्रह्मांड की देवी जगदंबा को समर्पित है। मंदिर की दीवारों पर कुशलता से सुंदर चित्र खुदे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर मूलरूप से भगवान विष्णु को और बाद में देवी पार्वती और उसके बाद देवी काली को समर्पित किया गया था। यह मंदिर तीन भाग वाले डिज़ाइन को शानदार तरीके से प्रस्तुत करता है। इसका डिज़ाइन चित्रगुप्त मंदिर के जैसा है। इस मंदिर की विशेषता हे कि यह एक पवित्र स्थान पर है जहाँ चलने के लिए कोई जगह नहीं है।मंदिर में आने वाले यात्री इसकी दीवारों पर बनी सुंदर नक्काशियाँ देखते ही रह जाते हैं। नक्काशियों में इस्तेमाल किया गया हर पत्थर एक कहानी कहता है। खजुराहो की यात्रा इस मंदिर में आए बिना पूरी नहीं हो सकती। जावड़ी मंदिर जावड़ी मंदिर खजुराहो पर्यटन की एक अनूठी प्रस्तुति है। यह ब्रह्म मंदिर के पास स्थित है और खजुराहो मंदिरों के पूर्वी समूह के अंतर्गत आता है। बाकी मंदिरों की तुलना में यह मंदिर आकार में छोटा है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर...

खजुराहो मंदिर मध्य प्रदेश का इतिहास Khajuraho temple history »

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का इतिहास बहुत पुराना है । खजुराहो का नाम इसलिए खजुराहो इसलिए पड़ा क्योकि वहा खजूर का बहुत बड़ा बगीचा है। लोगो का मानना था की इस समय नगर द्वार पर लगे दो खजूर वृक्षों के कारण यह नाम पड़ा होगा। जो कालांतर में खजुराहो कहलाने लगा। खजुराहो में सभी मैथुनी मुर्तिया निर्मित की गयी है । जो प्राचीन काल का मानव उन्मुक्त होकर करता था। जिसे न इश्वर न धर्मो के नैतिकता का डर था ।Khajuraho temple history हालाँकि भारत में ऐसे मंदिर और भी है। जहा कामुक मुर्तियो का चित्रण किया गया है। खजुराहो में एक अलग ही आकर्षण के साथ चित्रित की गयी ये मुर्तिया अपने में एक सबसे अलग रचना है। आप जब भी मध्य प्रदेश की यात्रा के लिए जाये तो इस यूनेस्को धरोहर का दर्शन करना न भूले। इनके अलावा यहाँ कई ऐसी मुर्तिया उकेरी गई है जो हमारे रोजाना की जिंदगी की कहानियों को उल्लेखित करती है। विद्वानों के अनुसार इन मूर्तियों को यह चित्रित करने का एक मुख्या दुद्देश्य यह है की । जो भी मंदिर के अन्दर प्रवेश करे वो अपने विलासितावो मन को बाहर कर साफ़ मन से अंदर प्रवेश करे। इन विलासिताओ से छुटकारा पाने की लिए जरुरी है इनका अनुशरण करना। खजुराहो मंदिर का निर्माण किसने करवाया पर्यटन की दृष्टि से खजुराहो न केवल भारत में बल्कि अंतररास्ट्रीय नक़्शे पर अपनी अनूठी पहचान रखता है । यु तो यह केवल पाषण मंदिर ही है। पर इन पाषण मंदिरों का इतिहास सिर्फ कामवासना और विलास प्रतिमावो का नमूना भर नहीं है- यह चंदेल बंशिय शाशको द्वारा 10 वी से 11 वी सदी तक बनाये गए शिल्प में शारीरिक, अध्यात्मिक और कलात्मक के मेल का अद्भुत स्थापत्य है। ये मंदिर जीवन के तमाम सवेंगो को समेटे है, जिनमे इतना सौन्दर्य है की उनके पत्थ...

latestकामसूत्र की 64 कलाएं क्या हैं, जिन्हें जानने वाला कभी कहीं नाकाम नहीं रहेगा & update

हाइलाइट्स कामसूत्र ग्रंथ का अधिकांश हिस्सा स्त्री और पुरुषों के आचार-व्यवहार और काम के प्रति दर्शन को लेकर अर्थ क्षेत्र में जो स्थान चाणक्य का है, वही काम के क्षेत्र में कामसूत्र का है जिसमें उन्होंने जीवन जीने का सलीका बताया है ये 64 कलाएं ऐसी भी हैं जो तमाम क्षेत्रों में आपको पारंगत बनाती हैं और पैसा कमाना भी सिखाती हैं महर्षि वात्स्यायन ऋषि ने जब चौथी शताब्दी के आसपास दुनियाभर में सबसे ज्यादा बिकने वाला ग्रंथ काम सूत्र लिखा. तो तहलका मच गया. जब पहली बार करीब 200 साल पहले सर रिचर्ड एफ बर्टन ने इसका अनुवाद किया तो ये इसे खरीदने की होड़ लग गई. इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी. वात्सायायन ने अपने इस ग्रंथ में 64 कलाओं का जिक्र किया है. जिन्हें जानने वाला जीवन के किसी क्षेत्र में मात नहीं खा सकता. दरअसल जब भी काम सूत्र की बात होती है तो आमतौर पर लगता है कि ये ऐसी किताब है, जो केवल यौन आसनों और सेक्स पर आधारित है, लेकिन ऐसा है नहीं. कामसूत्र के साथ हिस्से हैं, जिसमें यौन-मिलन से सम्बन्धित भाग ‘संप्रयोगिकम्’ भी एक अध्याय है, जो संपूर्ण ग्रंथ का 20 फीसदी ही है. इस ग्रंथ का अधिकांश हिस्सा स्त्री और पुरुषों के आचार-व्यवहार और काम के प्रति दर्शन को लेकर है. माना जाता है कि अर्थ क्षेत्र में जो स्थान चाणक्य का है, वही काम के क्षेत्र में कामसूत्र का है. क्या हैं 64 कलाएं वात्स्यायन ने कामसूत्न में जिन 64 कलाओं का जिक्र किया है, वो दरअसल जीवन में काम आने वाली विधाएं हैं. वो आज भी प्रासंगिक हैं. हां कुछ कलाएं ऐसी जरूर हैं, जो समय के साथ अप्रासंगिक हो चुकी हैं तो कुछ अब भी बहुत उपयोगी हैं. हालांकि माना जाता है कि वात्स्यायन ये कलाएं स्त्रियों को ध्यान में रखकर लिखीं, लेकिन य...

खजुराहो

खजुराहो देश 19,282 (2001 के अनुसार • • 283मीटर (928फी॰) 24°51′N 79°56′E / 24.85°N 79.93°E / 24.85; 79.93 खजुराहो(पूर्व में खजूरपुरा) चंदेल वंश द्वारा 950 - 1050 CE के बीच निर्मित, खजुराहो मंदिर भारतीय कला के सबसे महत्वपूर्ण नमूनों में से एक हैं। हिंदू और जैन मंदिरों के इन सेटों को आकार लेने में लगभग सौ साल लगे। मूल रूप से 85 मंदिरों का एक संग्रह, संख्या 25 तक नीचे आ गई है। एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल, मंदिर परिसर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी। पश्चिमी समूह में अधिकांश मंदिर हैं, पूर्वी में नक्काशीदार जैन मंदिर हैं, जबकि दक्षिणी समूह में केवल कुछ मंदिर हैं। पूर्वी समूह के मंदिरों में जैन मंदिर चंदेल शासन के दौरान क्षेत्र में फलते-फूलते जैन धर्म के लिए बनाए गए थे। पश्चिमी और दक्षिणी भाग के मंदिर विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इनमें से आठ मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, छह शिव को, और एक गणेश और सूर्य को जबकि तीन जैन तीर्थंकरों को हैं। कंदरिया महादेव मंदिर उन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है, जो बने हुए हैं। अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 दर्शनीय स्थल • 2.1 पश्चिमी समूह • 2.1.1 लक्ष्मी मंदिर • 2.1.2 वराह मंदिर • 2.1.3 लक्ष्मण मंदिर • 2.1.4 कंदरिया महादेव मंदिर • 2.1.5 सिंह मंदिर • 2.1.6 देवी जगदम्बा मंदिर • 2.1.7 सूर्य (चित्रगुप्त) मंदिर • 2.1.8 विश्वनाथ मन्दिर • 2.1.9 नन्दी मंदिर • 2.1.10 पार्वती मंदिर • 2.2 प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम • 3 पूर्वी समूह • 3.1 वामन मंदिर • 3.2 जावरी मंदिर • 3.3 जैन मंदिर • 4 दक्षिणी समूह • 4.1 चतुर्भुज मंदिर • 4.2 दुल्हादेव मन्दिर • 5 संग्रहालय • 6 निकटवर्ती दर्शनीय स्थल • 6.1 कालिंजर और अजयगढ़ का दुर्ग • 7 ख...

चौसठ कलाएँ

नृत्यगीतप्रभृतयः कलाः कामार्थसंश्रयाः। भारतीय साहित्य में गीतं (१), वाद्यं (२), नृत्यं (३), आलेख्यं (४), विशेषकच्छेद्यं (५), तण्डुलकुसुमवलि विकाराः (६), पुष्पास्तरणं (७), दशनवसनागरागः (८), मणिभूमिकाकर्म (९), शयनरचनं (१०), उदकवाद्यं (११), उदकाघातः (१२), चित्राश्च योगाः (१३), माल्यग्रथन विकल्पाः (१४), शेखरकापीडयोजनं (१५), नेपथ्यप्रयोगाः (१६), कर्णपत्त्र भङ्गाः (१७), गन्धयुक्तिः (१८), भूषणयोजनं (१९), ऐन्द्रजालाः (२०), कौचुमाराश्च (२१), हस्तलाघवं (२२), विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया (२३),.पानकरसरागासवयोजनं (२४), सूचीवानकर्माणि (२५), सूत्रक्रीडा (२६), वीणाडमरुकवाद्यानि (२७), प्रहेलिका (२८), प्रतिमाला (२९), दुर्वाचकयोगाः (३०), पुस्तकवाचनं (३१), नाटकाख्यायिकादर्शनं (३२), काव्यसमस्यापूरणं (३३), पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः (३४),तक्षकर्माणि (३५), तक्षणं (३६), वास्तुविद्या (३७), रूप्यपरीक्षा (३८), धातुवादः (३९), मणिरागाकरज्ञानं (४०), वृक्षायुर्वेदयोगाः (४१), मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः (४२), शुकसारिकाप्रलापनं (४३), उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलं (४४),अक्षरमुष्तिकाकथनम् (४५), 1- 2- 3- 4- 5- चित्रकारी 6- बेल-बूटे बनाना 7- चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना 8- फूलों की सेज बनान 9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना 10- मणियों की फर्श बनाना 11- शय्या-रचना (बिस्तर की सज्जा) 12- जल को बांध देना 13- विचित्र 14- हार-माला आदि बनाना 15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना 16- कपड़े और गहने बनाना 17- फूलों के आभूषणों से शृंगार करना 18- कानों के पत्तों की रचना करना 19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना 20- इंद्रजाल-जादूगरी 21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना 22- हाथ की फुती के काम 23- तरह-तरह खान...

कामसूत्र की वो 64 कलाएं, जिन्हें जानने वाला कभी मात नहीं खाएगा

महर्षि वात्स्यायन ऋषि ने जब चौथी शताब्दी के आसपास दुनियाभर में सबसे ज्यादा बिकने वाला ग्रंथ काम सूत्र लिखा. तो तहलका मच गया. जब पहली बार करीब 200 साल पहले सर रिचर्ड एफ बर्टन ने इसका अनुवाद किया तो ये इसे खरीदने की होड़ लग गई. इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी. वात्स्यायनने अपने इस ग्रंथ में 64 कलाओं का जिक्र किया है. जिन्हें जानने वाला जीवन के किसी क्षेत्र में मात नहीं खा सकता. दरअसल जब भी काम सूत्र की बात होती है तो आमतौर पर लगता है कि ये ऐसी किताब है, जो केवल यौन आसनों और सेक्स पर आधारित है, लेकिन ऐसा है नहीं. कामसूत्र के सात हिस्से हैं, जिसमें यौन-मिलन से सम्बन्धित भाग ‘संप्रयोगिकम्’ भी एक अध्याय है, जो संपूर्ण ग्रंथ का 20 फीसदी ही है. इस ग्रंथ का अधिकांश हिस्सा स्त्री और पुरुषों के आचार-व्यवहार और काम के प्रति दर्शन को लेकर है. माना जाता है कि अर्थ क्षेत्र में जो स्थान चाणक्य का है, वही काम के क्षेत्र में कामसूत्र का है. क्या हैं 64 कलाएं वात्स्यायन ने कामसूत्र में जिन 64 कलाओं का जिक्र किया है, वो दरअसल जीवन में काम आने वाली विधाएं हैं. वो आज भी प्रासंगिक हैं. हां कुछ कलाएं ऐसी जरूर हैं, जो समय के साथ अप्रासंगिक हो चुकी हैं तो कुछ अब भी बहुत उपयोगी हैं. हालांकि माना जाता है कि वात्स्यायन ये कलाएं स्त्रियों को ध्यान में रखकर लिखीं, लेकिन ये पुरुषों के लिए उतनी ही जरूरी हैं. प्रमुख कलाएं 1. गानविद्या- आपको गाने में प्रवीण होना चाहिए. आप जब गाएं तो सुनने वाला बस उसी में खो जाए. 2. वाद्य – तरह तरह के बाजे बजाना आना चाहिए. 3. नृत्य – बेहतर डांस करने वाला अपनी आकर्षक भाव भंगिमाओं और अदाओं से किसी को भी सम्मोहित कर सकता है. 4. नाट्य – जीवन में अभिनय की बहुत जरूरत ...

खजुराहो महोत्‍सव कला वार्ता: संवाद में खुलते कलाओं के अर्थ

खजुराहो नृत्य समारोह में 'कलावार्ता' का कारवां एक दशक पहले शुरू हुआ था. इस बार 'भारतीय ज्ञान परंपरा और कला दृष्टि’ विषय पर साहित्य और संस्कृति के प्रकांड अध्येताओं ने संभाषण किया. उल्‍लेखनीय तथ्‍य यह है कि भारतीय ज्ञान परंपरा की महिमा को जब भारत की नई शिक्षा नीति ने अपने नए प्रकल्पों में स्वीकार किया है तब एसे संवाद के माध्‍यम से जीवन और कलाओं में इसके निहितार्थों को देखना जरूरी प्रतीत होता है. परिकल्पना, संयोजन और विस्तार के ताने-बाने के साथ अमूमन समारोह अपनी निरंतरता और समृद्धि का गौरवशाली इतिहास रचते हैं. देखने की बात यह है कि अपनी यात्रा में बरसों की दूरी तय करते हुए ये समारोह कितने सार्थक और उपयोगी साबित हुए. खजुराहो में हाल ही सम्पन्न हुए नृत्य समारोह का जो विन्यास सामने आया उसे देखकर यह भरोसा जागा कि निर्धारित विषय वस्तु के आसपास विवेकशील ढंग से गतिविधियां रची जा सकती हैं. जरूरी है कलात्मक बोध, सामूहिक इच्छाशक्ति और इनके आगे खड़ा सक्षम रचनात्मक नेतृत्व. विश्व धरोहर के गौरव से मंडित खजुराहो के मंदिरों के आश्रय में होने वाले नृत्य समारोह का यह 49 वां आयोजन था. 20 से 26 फरवरी की दरमियानी चहल-पहल में वासंती शामें ही लय-ताल से गुलजार नहीं रही, सुबहें भी देश-विदेश के नृत्यों की थिरकनों के रोमांच से तारी रहीं. दीवारों पर चस्पा चित्रों के खिलखिलाते रंग आंखों में उतरते और पारंपरिक शिल्पों की रौनक से परिसर आबाद रहता. इस बीच एक महत्वपूर्ण गतिविधि ‘कलावार्ता’ की भी हुई. यह संवाद का अनोखा मंच था. अपने मकसद में यह बातचीत कलाओं से गर्भ से उभरती उन आवाजों को सुनने-गुनने का संयोग थी जिनसे गुज़रते हुए अतीत, आज और भविष्य के बीच एक लय की तलाश पूरी होती है. परंपरा, संस्कृति, दर्शन, अध्य...

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हाइलाइट्स कामसूत्र ग्रंथ का अधिकांश हिस्सा स्त्री और पुरुषों के आचार-व्यवहार और काम के प्रति दर्शन को लेकर अर्थ क्षेत्र में जो स्थान चाणक्य का है, वही काम के क्षेत्र में कामसूत्र का है जिसमें उन्होंने जीवन जीने का सलीका बताया है ये 64 कलाएं ऐसी भी हैं जो तमाम क्षेत्रों में आपको पारंगत बनाती हैं और पैसा कमाना भी सिखाती हैं महर्षि वात्स्यायन ऋषि ने जब चौथी शताब्दी के आसपास दुनियाभर में सबसे ज्यादा बिकने वाला ग्रंथ काम सूत्र लिखा. तो तहलका मच गया. जब पहली बार करीब 200 साल पहले सर रिचर्ड एफ बर्टन ने इसका अनुवाद किया तो ये इसे खरीदने की होड़ लग गई. इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी. वात्सायायन ने अपने इस ग्रंथ में 64 कलाओं का जिक्र किया है. जिन्हें जानने वाला जीवन के किसी क्षेत्र में मात नहीं खा सकता. दरअसल जब भी काम सूत्र की बात होती है तो आमतौर पर लगता है कि ये ऐसी किताब है, जो केवल यौन आसनों और सेक्स पर आधारित है, लेकिन ऐसा है नहीं. कामसूत्र के साथ हिस्से हैं, जिसमें यौन-मिलन से सम्बन्धित भाग ‘संप्रयोगिकम्’ भी एक अध्याय है, जो संपूर्ण ग्रंथ का 20 फीसदी ही है. इस ग्रंथ का अधिकांश हिस्सा स्त्री और पुरुषों के आचार-व्यवहार और काम के प्रति दर्शन को लेकर है. माना जाता है कि अर्थ क्षेत्र में जो स्थान चाणक्य का है, वही काम के क्षेत्र में कामसूत्र का है. क्या हैं 64 कलाएं वात्स्यायन ने कामसूत्न में जिन 64 कलाओं का जिक्र किया है, वो दरअसल जीवन में काम आने वाली विधाएं हैं. वो आज भी प्रासंगिक हैं. हां कुछ कलाएं ऐसी जरूर हैं, जो समय के साथ अप्रासंगिक हो चुकी हैं तो कुछ अब भी बहुत उपयोगी हैं. हालांकि माना जाता है कि वात्स्यायन ये कलाएं स्त्रियों को ध्यान में रखकर लिखीं, लेकिन य...

कामसूत्र की वो 64 कलाएं, जिन्हें जानने वाला कभी मात नहीं खाएगा

महर्षि वात्स्यायन ऋषि ने जब चौथी शताब्दी के आसपास दुनियाभर में सबसे ज्यादा बिकने वाला ग्रंथ काम सूत्र लिखा. तो तहलका मच गया. जब पहली बार करीब 200 साल पहले सर रिचर्ड एफ बर्टन ने इसका अनुवाद किया तो ये इसे खरीदने की होड़ लग गई. इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी. वात्स्यायनने अपने इस ग्रंथ में 64 कलाओं का जिक्र किया है. जिन्हें जानने वाला जीवन के किसी क्षेत्र में मात नहीं खा सकता. दरअसल जब भी काम सूत्र की बात होती है तो आमतौर पर लगता है कि ये ऐसी किताब है, जो केवल यौन आसनों और सेक्स पर आधारित है, लेकिन ऐसा है नहीं. कामसूत्र के सात हिस्से हैं, जिसमें यौन-मिलन से सम्बन्धित भाग ‘संप्रयोगिकम्’ भी एक अध्याय है, जो संपूर्ण ग्रंथ का 20 फीसदी ही है. इस ग्रंथ का अधिकांश हिस्सा स्त्री और पुरुषों के आचार-व्यवहार और काम के प्रति दर्शन को लेकर है. माना जाता है कि अर्थ क्षेत्र में जो स्थान चाणक्य का है, वही काम के क्षेत्र में कामसूत्र का है. क्या हैं 64 कलाएं वात्स्यायन ने कामसूत्र में जिन 64 कलाओं का जिक्र किया है, वो दरअसल जीवन में काम आने वाली विधाएं हैं. वो आज भी प्रासंगिक हैं. हां कुछ कलाएं ऐसी जरूर हैं, जो समय के साथ अप्रासंगिक हो चुकी हैं तो कुछ अब भी बहुत उपयोगी हैं. हालांकि माना जाता है कि वात्स्यायन ये कलाएं स्त्रियों को ध्यान में रखकर लिखीं, लेकिन ये पुरुषों के लिए उतनी ही जरूरी हैं. प्रमुख कलाएं 1. गानविद्या- आपको गाने में प्रवीण होना चाहिए. आप जब गाएं तो सुनने वाला बस उसी में खो जाए. 2. वाद्य – तरह तरह के बाजे बजाना आना चाहिए. 3. नृत्य – बेहतर डांस करने वाला अपनी आकर्षक भाव भंगिमाओं और अदाओं से किसी को भी सम्मोहित कर सकता है. 4. नाट्य – जीवन में अभिनय की बहुत जरूरत ...

खजुराहो महोत्‍सव कला वार्ता: संवाद में खुलते कलाओं के अर्थ

खजुराहो नृत्य समारोह में 'कलावार्ता' का कारवां एक दशक पहले शुरू हुआ था. इस बार 'भारतीय ज्ञान परंपरा और कला दृष्टि’ विषय पर साहित्य और संस्कृति के प्रकांड अध्येताओं ने संभाषण किया. उल्‍लेखनीय तथ्‍य यह है कि भारतीय ज्ञान परंपरा की महिमा को जब भारत की नई शिक्षा नीति ने अपने नए प्रकल्पों में स्वीकार किया है तब एसे संवाद के माध्‍यम से जीवन और कलाओं में इसके निहितार्थों को देखना जरूरी प्रतीत होता है. परिकल्पना, संयोजन और विस्तार के ताने-बाने के साथ अमूमन समारोह अपनी निरंतरता और समृद्धि का गौरवशाली इतिहास रचते हैं. देखने की बात यह है कि अपनी यात्रा में बरसों की दूरी तय करते हुए ये समारोह कितने सार्थक और उपयोगी साबित हुए. खजुराहो में हाल ही सम्पन्न हुए नृत्य समारोह का जो विन्यास सामने आया उसे देखकर यह भरोसा जागा कि निर्धारित विषय वस्तु के आसपास विवेकशील ढंग से गतिविधियां रची जा सकती हैं. जरूरी है कलात्मक बोध, सामूहिक इच्छाशक्ति और इनके आगे खड़ा सक्षम रचनात्मक नेतृत्व. विश्व धरोहर के गौरव से मंडित खजुराहो के मंदिरों के आश्रय में होने वाले नृत्य समारोह का यह 49 वां आयोजन था. 20 से 26 फरवरी की दरमियानी चहल-पहल में वासंती शामें ही लय-ताल से गुलजार नहीं रही, सुबहें भी देश-विदेश के नृत्यों की थिरकनों के रोमांच से तारी रहीं. दीवारों पर चस्पा चित्रों के खिलखिलाते रंग आंखों में उतरते और पारंपरिक शिल्पों की रौनक से परिसर आबाद रहता. इस बीच एक महत्वपूर्ण गतिविधि ‘कलावार्ता’ की भी हुई. यह संवाद का अनोखा मंच था. अपने मकसद में यह बातचीत कलाओं से गर्भ से उभरती उन आवाजों को सुनने-गुनने का संयोग थी जिनसे गुज़रते हुए अतीत, आज और भविष्य के बीच एक लय की तलाश पूरी होती है. परंपरा, संस्कृति, दर्शन, अध्य...