कर निर्धारण व प्रशासकीय अधिकारी

  1. प्रशासकीय न्याय
  2. स्थानीय तह
  3. महापरीक्षेद्वारे घेण्यात आलेल्या नगरपरिषद कर निर्धारण मुख्य परीक्षेत हलगर्जीपणा
  4. प्रत्यायोजन
  5. ADMINISTRATIVE LAW (प्रशासकीय कानून) क्या हैं। परिभाषा तथा तुलनात्मक अध्ययन एवं mansukhlal vs state of gujarat AIR 1997 Case law।
  6. महापरीक्षेद्वारे घेण्यात आलेल्या नगरपरिषद कर निर्धारण मुख्य परीक्षेत हलगर्जीपणा
  7. प्रशासकीय न्याय
  8. स्थानीय तह
  9. प्रत्यायोजन
  10. ADMINISTRATIVE LAW (प्रशासकीय कानून) क्या हैं। परिभाषा तथा तुलनात्मक अध्ययन एवं mansukhlal vs state of gujarat AIR 1997 Case law।


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प्रशासकीय न्याय

प्रशासकीय न्याय (Administrative justice) की व्याख्या ऐसी व्यवस्था के रूप में की जा सकती है जिसके अंतर्गत प्रशाकीय अधिकारियों को कानून द्वारा इस बात का अधिकार मिलता है कि वे निजी मामलों का अथवा निजी एवं सरकारी अधिकारियों के बीच उठनेवाले मामलों का निपटारा कर सकें। भारत में यह व्यवस्था यद्यपि ब्रिटिश शासन की देश में शुरुआत होने के समय से ही कोई अनजानी बात नहीं रह गई थी, फिर भी 20वीं सदी में हुए प्रथम तथा द्वितीय महायुद्धों के बाद यह उत्तरोत्तर अधिक प्रचलित होती गई; विशेषत: देश की स्वाधीनता के बाद, जब कि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल ने समाजवादी समाज के ढाँचे का रूप राष्ट्रीय लक्ष्य के तौर पर अपनाया। प्रशासकीय न्याय भारत में इन दिनों एक उपयोगी कार्य कर रहा है। विधिव्यवस्था की रक्षा के लिये यह आवश्यक नहीं है कि केवल सामान्य न्यायालयों को ही मामलों के निर्णय का एकाधिकार प्राप्त हो। प्रशासकीय न्यायालयों का सहारा लिए बिना आज का राज्यतंत्र अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह भलीभाँति नहीं कर सकता। परिचय एवं इतिहास [ ] जब इन दो महायुद्धों के अतिरिक्त दुर्भिक्ष, बाढ़ तथा महामारी जैसी देवी विपत्तियों के कारण आकस्मिक अथवा संकटकालिक विधि-निर्माण का स्वरूप और उसके परिणाम जनता के सम्मुख आए जिनके अंतर्गत भी बहुधा प्रशासकीय न्याय के तत्व विद्यमान रहते थे। शासन की जनतांत्रिक प्रणाली का क्रमश: स्वीकार किया जाना और ऐसा शासन स्थापित करने के लिये सार्वभौम मताधिकार को मुख्य साधन मानना गरीब आदमी के मतदान का और इस तरह राजनीति मे उसके निर्णायक महत्व का द्योतक है। इन सब का समष्टिगत परिणाम यह हुआ कि जनता द्वारा चुने गए विधानमंडलों पर, जो अधिकारों से संपन्न किए गए थे, यह जिम्मेदारी भी आ गई कि वे उन तात्कालिक समस्या...

स्थानीय तह

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महापरीक्षेद्वारे घेण्यात आलेल्या नगरपरिषद कर निर्धारण मुख्य परीक्षेत हलगर्जीपणा

अपुऱ्या तांत्रिक सुविधा, परीक्षाकेंद्रावरील प्रशासनाचा ढिम्म कारभार आणि उद्धट वर्तन यामुळे अनेक विद्यार्थ्यांना नगरपालिकेच्या परीक्षेत त्रास सहन करावा लागला. मुंबईतील मीरारोड परिसरातील मॅक आऊटसोर्सिंग रोडजवळ असलेल्या परीक्षा केंद्रात सदर प्रकार घडून आला आहे. महापालिकेच्या नगर परिषद कर निर्धारण व प्रशासकीय अधिकारी या पदासाठी ही परिक्षा घेण्यात आली होती. वेळेनुसार १२.३० ला सुरु होणारी परिक्षा केंद्राच्या हलगर्जीपणामुळे १ वाजून ४५ मिनिटांनी सुरु झाली. विद्यार्थ्यांनी याबाबत केंद्रातील प्रशासकांशी बोलणं केलं असता, “तुम्ही विद्यार्थी आहात, त्याप्रमाणेच वागा. उगीच दंगा कराल तर सरकारी नोकरीला मुकाल” अशी धमकी देण्यात आली. मागे थेट भरतीद्वारे या पदांवर जागा भरल्या जात होत्या. यंदाच्या वर्षीपासून मात्र महापालिकेतील काही पदांसाठी परीक्षा निश्चित करण्यात आली होती. २ सप्टेंबर रोजी घेण्यात येणारी ही परीक्षा नंतर १९ सप्टेंबरला घेण्यात आली. तरीही हा हलगर्जीपणा सुरुच राहिला. याव्यतिरिक्त नागपूर केंद्रातील १९ तारखेची परीक्षा रद्द करुन ती २१ सप्टेंबर रोजी घेण्याचा निर्णय घेतला गेला आहे. या परिक्षेत विद्यार्थ्यांशी बोलण्यापासून, त्यांना योग्य सोयीसुविधा देण्यापर्यंत अनेकदा उडवाउडवीची उत्तरे देण्यात आली. महाराष्ट्रातील अनेक ठिकाणी या परिक्षेचा बोजवारा उडल्याचं दिसून आलं आहे. तांत्रिकदृष्ट्या अनेक अडचणी विद्यार्थ्यांना सहन कराव्या लागल्या आहेत. सर्व्हर उपलब्ध नसणे, प्रश्नांची उत्तरे देऊनसुद्धा स्वीकारली न जाणे, संगणक मध्येच बंद होणे अशा त्रासदायक घटना यानिमित्ताने समोर आल्या आहेत. तक्रार कुणाकडे करावी? या द्विधा मनस्थितीत परीक्षा केंद्रावरील विद्यार्थी तब्बल २ तास घुटमळत होते. ग्रामीण तसेच शहरी...

प्रत्यायोजन

किसी उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ अधिकारी को विशिष्ट सत्ता एवं अधिकार प्रदान करना प्रत्यायोजन (Delegation) कहलाता है। यह उच्चाधिकारी अधीनस्थों पर नियंत्रण, निरीक्षण और पर्यवेक्षण का प्राधिकार अपने ही पास रखता है। सत्ता हस्तान्तरित करने वाला अधिकारी अपने दायित्वों तथा जवाबदेहिता से मुक्त नहीं हो सकता। दूसरे अर्थों में प्रत्यायोजन अधीनस्थों को कार्य बांटकर उनसे सम्पन्न करवाने का एक तरीका है। प्रत्यायोजन प्रशासनिक संगठन की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। प्रत्यायोजन के अभाव में कोई भी प्रशासनिक संगठन सुगमतापूर्वक अपने निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। प्रत्यायोजन को स्थानान्तरण, प्रत्याधिकरण, प्रत्याधिकार, अथवा अधीनस्थ प्रत्यायोजन इत्यादि कई नामों से जाना जाता है। प्रत्यायोजन, अंग्रेजी शब्द Delegation (डेलिगेशन) का हिन्दीकरण है जो Delegate (डेलिगेट) से बना है। इसका अर्थ है 'प्रतिनिधि'। अनुक्रम • 1 परिचय • 2 परिभाषा • 3 प्रत्यायोजन की विशेषताएँ • 4 प्रत्यायोजन की प्रक्रिया • 5 प्रत्यायोजन की आवश्यकता और महत्व • 6 प्रत्यायोजन के प्रकार • 7 प्रत्यायोजन की प्रक्रिया में आनेवाली बाधाएँ • 8 प्रभावी प्रत्यायोजन के आवश्यक सिद्धान्त • 9 संदर्भ ग्रन्थ सूची • 10 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] वर्तमान समय बड़े संगठनों का समय है। संगठन न केवल बडे है इनकी कार्य प्रक्रियाएं भी जटिल हो गईं हैं। संगठन के प्रत्येक स्तर पर कार्यरत कर्मचारियों के पास कार्य की आधिक्यता होती जा रही है। विशेषकर सांगठनिक पदसोपान के उच्चतर स्तरों पर कार्यभार इतना अधिक होता जा रहा है कि उच्च अधिकारी संगठन की माँग के अनुसार उनके निस्तारण में असमर्थ हैं जिसके परिणामस्वरूप सांगठनिक विलम्बता की समस्या पैदा होती है। संगठन में...

ADMINISTRATIVE LAW (प्रशासकीय कानून) क्या हैं। परिभाषा तथा तुलनात्मक अध्ययन एवं mansukhlal vs state of gujarat AIR 1997 Case law।

ADMINISTRATIVE LAW (प्रशासकीय कानून) – इसका अर्थ है – लोक प्रशासको के विवेक की शक्ति के स्वरूप और सीमा का निर्धारण करने वाला कानून । अपने व्यापक अर्थ में प्रशासनिक विधि या कानून शासन, प्रशासन के सभी अंगों से संबंधित सभी कानूनों का संग्रह है| क्योकि यह कार्यपालिका द्वरा बनाया जाता है इसलिए इसको दितियक विधि भी कह सकते हैं | क्योकि यह विधायिका दावरा कानून को प्राथमिक विधान भी कह सकते हैं | यह विस्तार मे बनाया जाता हैं और यह शक्ति प्रदान की जाती हैं की वह अपने अनुसार विधान बना सके या नियम बना सके |इस प्रकार कार्य पालिका अपने विधान बनाती हैं | इस विधि मे संशोधन विधायिका द्वरा ही किया जा सकता हैं | प्रशासनिक अधिकारी ही कार्यपालिका का संचालन करेंगे| वह अपने राज्य और इलाके के अनुसार कुछ नियम बना सकते हैं और उसको लागू कर सकते हैं | इसको प्रतयोजित विधान भी कहा जा सकता हैं | यह परिभाषित छेत्र मे नियम बनाना , अधिकार प्रदान करना और निर्णय की शक्ति प्रदान करना होता हैं | जब कार्य विधि निर्धारित नही होती तो उसका निर्धारन करना होता हैं | कोई भी अपनी सम्पूर्ण शक्ति का प्र्तियोजन नही करता हैं | कोई भी उच्च अधिकारी इन कार्यो को प्र्तिवादित नही कर सकता | नियंत्रण का अधिकार कूटनीति उच्च अधिकारी की नियुक्ति नियम बनाना विशेष निर्णय लेने का अधिकार किसी विशिस्ट उदेश्य की पूर्ति के लिए इसका निर्माण किया जाता हैं क्योकि वर्तमान मे सभी के कार्य मुश्किल होता जा रहा हैं कार्य बढ़ता जा रहा हैं उच्च अधिकारी संगठन के अनुसार कार्य नही कर प रहे हैं | इससे समस्या बढ़ जाती हैं और उसका हल नही निकल पाता हैं जिससे अधिकारी अपने पावर को दूसरे को दे देता हैं जिससे समस्या का हल निकाला जाता हैं | प्रशासनिक अधिकारी केवल...

महापरीक्षेद्वारे घेण्यात आलेल्या नगरपरिषद कर निर्धारण मुख्य परीक्षेत हलगर्जीपणा

अपुऱ्या तांत्रिक सुविधा, परीक्षाकेंद्रावरील प्रशासनाचा ढिम्म कारभार आणि उद्धट वर्तन यामुळे अनेक विद्यार्थ्यांना नगरपालिकेच्या परीक्षेत त्रास सहन करावा लागला. मुंबईतील मीरारोड परिसरातील मॅक आऊटसोर्सिंग रोडजवळ असलेल्या परीक्षा केंद्रात सदर प्रकार घडून आला आहे. महापालिकेच्या नगर परिषद कर निर्धारण व प्रशासकीय अधिकारी या पदासाठी ही परिक्षा घेण्यात आली होती. वेळेनुसार १२.३० ला सुरु होणारी परिक्षा केंद्राच्या हलगर्जीपणामुळे १ वाजून ४५ मिनिटांनी सुरु झाली. विद्यार्थ्यांनी याबाबत केंद्रातील प्रशासकांशी बोलणं केलं असता, “तुम्ही विद्यार्थी आहात, त्याप्रमाणेच वागा. उगीच दंगा कराल तर सरकारी नोकरीला मुकाल” अशी धमकी देण्यात आली. मागे थेट भरतीद्वारे या पदांवर जागा भरल्या जात होत्या. यंदाच्या वर्षीपासून मात्र महापालिकेतील काही पदांसाठी परीक्षा निश्चित करण्यात आली होती. २ सप्टेंबर रोजी घेण्यात येणारी ही परीक्षा नंतर १९ सप्टेंबरला घेण्यात आली. तरीही हा हलगर्जीपणा सुरुच राहिला. याव्यतिरिक्त नागपूर केंद्रातील १९ तारखेची परीक्षा रद्द करुन ती २१ सप्टेंबर रोजी घेण्याचा निर्णय घेतला गेला आहे. या परिक्षेत विद्यार्थ्यांशी बोलण्यापासून, त्यांना योग्य सोयीसुविधा देण्यापर्यंत अनेकदा उडवाउडवीची उत्तरे देण्यात आली. महाराष्ट्रातील अनेक ठिकाणी या परिक्षेचा बोजवारा उडल्याचं दिसून आलं आहे. तांत्रिकदृष्ट्या अनेक अडचणी विद्यार्थ्यांना सहन कराव्या लागल्या आहेत. सर्व्हर उपलब्ध नसणे, प्रश्नांची उत्तरे देऊनसुद्धा स्वीकारली न जाणे, संगणक मध्येच बंद होणे अशा त्रासदायक घटना यानिमित्ताने समोर आल्या आहेत. तक्रार कुणाकडे करावी? या द्विधा मनस्थितीत परीक्षा केंद्रावरील विद्यार्थी तब्बल २ तास घुटमळत होते. ग्रामीण तसेच शहरी...

प्रशासकीय न्याय

प्रशासकीय न्याय (Administrative justice) की व्याख्या ऐसी व्यवस्था के रूप में की जा सकती है जिसके अंतर्गत प्रशाकीय अधिकारियों को कानून द्वारा इस बात का अधिकार मिलता है कि वे निजी मामलों का अथवा निजी एवं सरकारी अधिकारियों के बीच उठनेवाले मामलों का निपटारा कर सकें। भारत में यह व्यवस्था यद्यपि ब्रिटिश शासन की देश में शुरुआत होने के समय से ही कोई अनजानी बात नहीं रह गई थी, फिर भी 20वीं सदी में हुए प्रथम तथा द्वितीय महायुद्धों के बाद यह उत्तरोत्तर अधिक प्रचलित होती गई; विशेषत: देश की स्वाधीनता के बाद, जब कि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल ने समाजवादी समाज के ढाँचे का रूप राष्ट्रीय लक्ष्य के तौर पर अपनाया। प्रशासकीय न्याय भारत में इन दिनों एक उपयोगी कार्य कर रहा है। विधिव्यवस्था की रक्षा के लिये यह आवश्यक नहीं है कि केवल सामान्य न्यायालयों को ही मामलों के निर्णय का एकाधिकार प्राप्त हो। प्रशासकीय न्यायालयों का सहारा लिए बिना आज का राज्यतंत्र अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह भलीभाँति नहीं कर सकता। परिचय एवं इतिहास [ ] जब इन दो महायुद्धों के अतिरिक्त दुर्भिक्ष, बाढ़ तथा महामारी जैसी देवी विपत्तियों के कारण आकस्मिक अथवा संकटकालिक विधि-निर्माण का स्वरूप और उसके परिणाम जनता के सम्मुख आए जिनके अंतर्गत भी बहुधा प्रशासकीय न्याय के तत्व विद्यमान रहते थे। शासन की जनतांत्रिक प्रणाली का क्रमश: स्वीकार किया जाना और ऐसा शासन स्थापित करने के लिये सार्वभौम मताधिकार को मुख्य साधन मानना गरीब आदमी के मतदान का और इस तरह राजनीति मे उसके निर्णायक महत्व का द्योतक है। इन सब का समष्टिगत परिणाम यह हुआ कि जनता द्वारा चुने गए विधानमंडलों पर, जो अधिकारों से संपन्न किए गए थे, यह जिम्मेदारी भी आ गई कि वे उन तात्कालिक समस्या...

स्थानीय तह

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प्रत्यायोजन

किसी उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ अधिकारी को विशिष्ट सत्ता एवं अधिकार प्रदान करना प्रत्यायोजन (Delegation) कहलाता है। यह उच्चाधिकारी अधीनस्थों पर नियंत्रण, निरीक्षण और पर्यवेक्षण का प्राधिकार अपने ही पास रखता है। सत्ता हस्तान्तरित करने वाला अधिकारी अपने दायित्वों तथा जवाबदेहिता से मुक्त नहीं हो सकता। दूसरे अर्थों में प्रत्यायोजन अधीनस्थों को कार्य बांटकर उनसे सम्पन्न करवाने का एक तरीका है। प्रत्यायोजन प्रशासनिक संगठन की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। प्रत्यायोजन के अभाव में कोई भी प्रशासनिक संगठन सुगमतापूर्वक अपने निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। प्रत्यायोजन को स्थानान्तरण, प्रत्याधिकरण, प्रत्याधिकार, अथवा अधीनस्थ प्रत्यायोजन इत्यादि कई नामों से जाना जाता है। प्रत्यायोजन, अंग्रेजी शब्द Delegation (डेलिगेशन) का हिन्दीकरण है जो Delegate (डेलिगेट) से बना है। इसका अर्थ है 'प्रतिनिधि'। अनुक्रम • 1 परिचय • 2 परिभाषा • 3 प्रत्यायोजन की विशेषताएँ • 4 प्रत्यायोजन की प्रक्रिया • 5 प्रत्यायोजन की आवश्यकता और महत्व • 6 प्रत्यायोजन के प्रकार • 7 प्रत्यायोजन की प्रक्रिया में आनेवाली बाधाएँ • 8 प्रभावी प्रत्यायोजन के आवश्यक सिद्धान्त • 9 संदर्भ ग्रन्थ सूची • 10 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] वर्तमान समय बड़े संगठनों का समय है। संगठन न केवल बडे है इनकी कार्य प्रक्रियाएं भी जटिल हो गईं हैं। संगठन के प्रत्येक स्तर पर कार्यरत कर्मचारियों के पास कार्य की आधिक्यता होती जा रही है। विशेषकर सांगठनिक पदसोपान के उच्चतर स्तरों पर कार्यभार इतना अधिक होता जा रहा है कि उच्च अधिकारी संगठन की माँग के अनुसार उनके निस्तारण में असमर्थ हैं जिसके परिणामस्वरूप सांगठनिक विलम्बता की समस्या पैदा होती है। संगठन में...

ADMINISTRATIVE LAW (प्रशासकीय कानून) क्या हैं। परिभाषा तथा तुलनात्मक अध्ययन एवं mansukhlal vs state of gujarat AIR 1997 Case law।

ADMINISTRATIVE LAW (प्रशासकीय कानून) – इसका अर्थ है – लोक प्रशासको के विवेक की शक्ति के स्वरूप और सीमा का निर्धारण करने वाला कानून । अपने व्यापक अर्थ में प्रशासनिक विधि या कानून शासन, प्रशासन के सभी अंगों से संबंधित सभी कानूनों का संग्रह है| क्योकि यह कार्यपालिका द्वरा बनाया जाता है इसलिए इसको दितियक विधि भी कह सकते हैं | क्योकि यह विधायिका दावरा कानून को प्राथमिक विधान भी कह सकते हैं | यह विस्तार मे बनाया जाता हैं और यह शक्ति प्रदान की जाती हैं की वह अपने अनुसार विधान बना सके या नियम बना सके |इस प्रकार कार्य पालिका अपने विधान बनाती हैं | इस विधि मे संशोधन विधायिका द्वरा ही किया जा सकता हैं | प्रशासनिक अधिकारी ही कार्यपालिका का संचालन करेंगे| वह अपने राज्य और इलाके के अनुसार कुछ नियम बना सकते हैं और उसको लागू कर सकते हैं | इसको प्रतयोजित विधान भी कहा जा सकता हैं | यह परिभाषित छेत्र मे नियम बनाना , अधिकार प्रदान करना और निर्णय की शक्ति प्रदान करना होता हैं | जब कार्य विधि निर्धारित नही होती तो उसका निर्धारन करना होता हैं | कोई भी अपनी सम्पूर्ण शक्ति का प्र्तियोजन नही करता हैं | कोई भी उच्च अधिकारी इन कार्यो को प्र्तिवादित नही कर सकता | नियंत्रण का अधिकार कूटनीति उच्च अधिकारी की नियुक्ति नियम बनाना विशेष निर्णय लेने का अधिकार किसी विशिस्ट उदेश्य की पूर्ति के लिए इसका निर्माण किया जाता हैं क्योकि वर्तमान मे सभी के कार्य मुश्किल होता जा रहा हैं कार्य बढ़ता जा रहा हैं उच्च अधिकारी संगठन के अनुसार कार्य नही कर प रहे हैं | इससे समस्या बढ़ जाती हैं और उसका हल नही निकल पाता हैं जिससे अधिकारी अपने पावर को दूसरे को दे देता हैं जिससे समस्या का हल निकाला जाता हैं | प्रशासनिक अधिकारी केवल...