करुण रस के 10 उदाहरण

  1. Karun Ras ki Paribhasha
  2. करुण रस की परिभाषा, अवयव, भेद और उदाहरण
  3. करुण रस की परिभाषा और करुण रस के 20 उदाहरण
  4. वीर रस की परिभाषा, अवयव, प्रकार और उदाहरण
  5. करुण रस
  6. करुण रस की परिभाषा और उदाहरण
  7. करुण रस की परिभाषा और उदाहरण
  8. (Ras In Hindi) रस क्या हैं
  9. Karun Ras ki Paribhasha
  10. करुण रस की परिभाषा, अवयव, भेद और उदाहरण


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Karun Ras ki Paribhasha

karun ras ki paribhasha –करुण रस के बारे में और करुण रस किसे कहते हैं इसके बारे में जानने से पहले हम जानेंगे कि रस क्या है तो रस का शाब्दिक अर्थ होता है – आनन्द, काव्य में जो आनन्द आता है, वह ही काव्य का रस कहलाता है काव्य में आने वाला आनन्द या रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है संस्कृत में कहा गया है कि “ रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य होता है रस को अन्त:करण की वह शक्ति माना जाता है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं तथा मन कल्पना करता है, रस ही आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है तथा यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है आदमी अपनी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है परंतु उन विषयों के प्रति उसका लगाव नहीं छूटता, रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक तथा सुश्रुत में देखने को मिलता है दूसरे अर्थ में यह अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय परन्तु जो भाव तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है वह भाव ही होता है, परन्तु जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता केवल रस ही रहता है उसकी भावता अपना रूपांतरण कर लेती है रस अपूर्व की उत्पत्ति है नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से ही दिया रहता है, ज्ञात रहता है या फिर सुना या देखा हुआ होता है इसके बावजूद हमें कुछ नया अनुभव प्राप्त होता है वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है तथा व्यक्ति को अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय होता है आज हम पढेंगे karun ras ki paribhasha इसके अलावा हम इसके उदाहरणों और अवयव को भी आगे वि...

करुण रस की परिभाषा, अवयव, भेद और उदाहरण

नमस्कार दोस्तो, यदि आप हिंदी विषय के अंतर्गत रुचि रखते हैं, या फिर आप हिंदी साहित्य के अंतर्गत रुचि रखते हैं, तो आपने करुण रस के बारे में तो जरूर सुना होगा जो कि हिंदी साहित्य के अंतर्गत एक काफी महत्वपूर्ण टॉपिक होता है। दोस्तों क्या आप जानते हैं कि करुण रस की परिभाषा क्या होती है, यदि आपको इस विषय के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तथा इसके बारे में जानना चाहते हैं, तो इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। हम आपको इस पोस्ट के अंतर्गत हम आपको बताने वाले हैं कि करुण रस की परिभाषा क्या होती है (karun ras ka sthayi bhav rahti kya hai), इन के कितने प्रकार होते हैं, इसके अलावा हम आपको इस विषय से जुड़ी हर एक जानकारी इस पोस्ट में देने वाले हैं। करुण रस की परिभाषा क्या होती है? जहां पर हमें फिर से मिलने की आशा समाप्त हो जाती है या फिर पुनः मिलने की आशा समाप्त हो जाती है वहां कांग्रेस होता है। यहां पर हमें छाती पीट ना, रोना, भूमि पर गिरना आदि भाव देखने को मिलते हैं। • करुण रस के अंतर्गत हमें स्थाई रूप या फिर स्थाई भाव के अंतर्गत शोक देखने को मिलता है। • इस रस के अंतर्गत आलंबन के तौर पर विनिस्ट व्यक्ति या वस्तु देखने को मिलती है। • करुण रस के अंतर्गत हमें उद्दीपन के तौर पर आलंबन का दहक्रम, ईस्ट के गुण तथा उससे संबंधित वस्तुएं एवं ईस्ट के चित्र का वर्णन मिलता है। • दोस्तों करुण रस के अंतर्गत हमें अनुभव के तौर पर भूमि पर गिरना, निस्वास, छाती पीटना, रुदन, रोना आदि देखने को मिलता है। • इसके अलावा इस करुण रस में हमें संचारी भाव के रूप में निर्वेद, मोह, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, निषाद जड़ता आदि देखने को मिलता है। करुण रस के उदाहरण हुआ न यह भी भाग्य अ...

करुण रस की परिभाषा और करुण रस के 20 उदाहरण

करुण रस की परिभाषा करुण रस का स्थायी भाव शोक है.इसका प्रयोग किसी के लिए सहानुभूति एवं दया मिश्रित दुःख के भाव को प्रकट करने के लिये होता है. इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के मेल से स्थायी भाव शोक का जन्म होता है.” दूसरे शब्दों में समझें तो-जब प्रिय वस्तु या इष्ट वस्तु के नाश से जो क्षोभ होता है, उसे शोक कहते हैं. यही शोक नामक स्थायी भाव ज़बविभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस रूप में परिणत होता है, उसे करुण रस कहा जाता है. करुण रस के उदाहरण अर्ध राति गयी कपि नहिंआवा. राम उठाइ अनुज उर लावा ॥ सकइ न दृखितदेखिमोहिकाऊ. बन्धु सदा तवमृदृलस्वभाऊ ॥ जो जनतेऊँ वन बन्धुविछोहु. पिता वचन मनतेऊँनहिंओहु॥ करुण रस के अवयव स्थाई भाव- शोक आलंबन – प्रिय व्यक्ति की मृत्यु अथवा प्रिय वस्तु का नाश उद्दीपन – दाहकर्म,मृतशरीर, इष्ट के गुण तथा उससे सम्बंधितवस्तुए एवं इष्ट के चित्र का वर्णन अनुभाव- भूमि पर गिरना, नि: श्वास, छाती पीटना, रुदन, प्रलाप, मूर्च्छा, आदि संचारी भाव- निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, दैन्य, उन्माद आदि करुण रस के उदाहरण उदाहरण 1- ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग,कंटक जाल लगे पुनि जोये. हाय! महादुख पायो सका तुम,ऐये इतै न किते दिन खोये.. देखि सुदामा की दीन दसा,करुना करिके करुनानिधि रोये. पानी परात का हाथ छुयो नहिं,नैनन के जल सौं पग धोये उदाहरण 2- ” हा! वृद्धा के अतुल धन हा! वृद्धता के सहारे! हा! प्राणों के परम प्रिय हा! एक मेरे दुलारे! ” उदाहरण 3- अभी तो मुकुट बंधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ, खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल. हाय रुक गया यहीं संसार, बिना सिंदूर अनल अंगार बातहत लतिका वट सुकुमार पड़ी है छिन्नाधार.. करुण र...

वीर रस की परिभाषा, अवयव, प्रकार और उदाहरण

इस पेज पर आप वीर रस की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए। पिछले पेज पर हमने करुण रस जानकारी शेयर की हैं तो उस पोस्ट को भी जरूर पढ़े। चलिए वीर रस की परिभाषा, अवयव, प्रकार और उदाहरण को पढ़ते और समझते हैं। वीर रस की परिभाषा जब काव्य में उमंग, उत्साह और पराक्रम से संबंधित भाव का उल्लेख होता हैं तब वहां वीर रस की उत्पत्ति होती हैं। जिस प्रसंग अथवा काव्य में वीरता युक्त भाव प्रकट हो, जिसके माध्यम से उत्साह का प्रदर्शन किया गया हो वहां वीर रस होता हैं। सौमित्री से घननाद का रव अल्प भी न सहा गया। निज शत्रु को देखे विना, उनसे तनिक न रहा गया। रघुवीर से आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे। रणवाद्य भी निर्घाष करके धूम से बजने लगे। उदाहरण 3. सिवाजी जंग जीतन चलत है साजि चतुरंग सैन अंग उमंग धारि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है। भूषन भनत नाद बिहद नगारन के नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं॥ उदाहरण 4. वीर तुम बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे, ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो। उदाहरण 5. सुकुमार मत जानों मुझे सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानों मुझे, यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे। है और कि तो बात क्या, गर्व मैं करता नही, मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं॥ उदाहरण 6. पैदल के संग पैदल भिरिगे बातन बातन बतबढ़ होइगै, औ बातन माँ बाढ़ी रार, दुनहू दल मा हल्ला होइगा दुनहू खैंच लई तलवार। पैदल के संग पैदल भिरिगे औ असवारन ते असवार, खट-खट खट-खट टेगा बोलै, बोलै छपक-छपक तरवार॥ उदाहरण 7. रजकण कर देने...

करुण रस

Karun Ras करुण रस: इसका स्थायी भाव शोक होता है इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं। यधपि वियोग श्रंगार रस में भी दुःख का अनुभव होता है लेकिन वहाँ पर दूर जाने वाले से पुनः मिलन कि आशा बंधी रहती है। Karun Ras करुण रस की परिभाषा (Definition of Karun Ras) जहाँ पर पुनः मिलने कि आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है इसमें निःश्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है। or किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह या मरण से जो शोक उत्पन्न होता है उसे करुण रस कहते है। धनंजय, विश्वनाथ आदि संस्कृत आचार्यों ने करुण रस के उत्पादक विविध कारणों को संक्षिप्त करके ‘दृष्ट-नाश’ और ‘अनिष्ट-आप्ति’ इन दो संज्ञाओं में निबद्ध कर दिया है, जिनका आधार उक्त ‘नाट्यशास्त्र’ में ही मिल जाता है। • धनंजय के अनुसार करुण रस:- ‘इष्टनाशादनिष्टाप्तौ शोकात्मा करुणोऽनुतम्’। • विश्वनाथ के अनुसार करुण रस:- ‘इष्टनाशादनिष्टाप्ते: करुणाख्यो रसो भवेत’। हिन्दी के अधिकांश काव्याचार्यों ने इन्हीं को स्वीकार करते हुए करुण रस का लक्षण रूढ़िगत रूप में प्रस्तुत किया है। • चिन्तामणि के अनुसार – ‘इष्टनाश कि अनिष्ट की, आगम ते जो होइ। दु:ख सोक थाई जहाँ, भाव करुन सोइ’ । • देव के अनुसार – ‘विनठे ईठ अनीठ सुनि, मन में उपजत सोग। आसा छूटे चार विधि, करुण बखानत लोग’। • कुलपति मिश्र ने ‘रसरहस्य’ में भरतमुनि के नाट्य के अनुरूप विभावों का उल्लेख किया है । • केशवदास ने ‘रसिकप्रिया’ में ‘प्रिय के बिप्रिय करन’ को ही करुण की उत्पत्ति का कारण माना है। करुण रस के उद्दीपन-विभाव का निरूपण प्राय: ‘साहित्यदर्पण’ के...

करुण रस की परिभाषा और उदाहरण

ये भी पढ़ें- बोली एवं उसके प्रकार | उपभाषा एवं बोली | boli in hindi स्थायी भाव – शोक आश्रय– राम उद्दीपन– लक्ष्मण का मूर्चछित शरीर ,रात का सुनसान समय। आलम्बन– लक्ष्मण अनुभाव– लक्ष्मण को उठाकर गले लगाना, अश्रु, स्वर भंग आदि। व्यभिचारी-भाव– आवेग, चिन्ता, विषाद आदि। रस– करुण आप अन्य रस भी पढ़िये » रस – परिभाषा,अंग,प्रकार » श्रृंगार रस » वीर रस » हास्य रस » करुण रस » शांत रस » रौद्र रस » भयानक रस » वीभत्स रस » अद्भुत रस » शांत रस » भक्ति रस » वात्सल्य रस करुण रस के अन्य उदाहरण | करुण रस के आसान उदाहरण (1) तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे, नीले वितान के तले दीप बहु जागे । (2) हे आर्य, रहा क्या भरत-अभीप्सित अब भी? मिल गया अकण्टक राज्य उसे जब, तब भी? (3) हा ! इसी अयश के हेतु जनन था मेरा, निज जननी ही के हाथ हनन था मेरा । (4) अब कौन अभीप्सित और आर्य, वह किसका? संसार नष्ट है भ्रष्ट हुआ घर जिसका । (5) उसके आशय की थाह मिलेगी किसको? जनकर जननी ही जान न पायी जिसको? (6) यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को । चौंके सब सुनकर अटल केकयी-स्वर को (7) विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी कल थी मिट आज चली ! करुण रस के परीक्षा उपयोगी प्रश्न (1) चिर सजग ऑँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना ! जाग तुझको दूर जाना ! ये भी पढ़ें- बालक के विकास को प्रभावित करने वाले कारक (2) टकटकी लगाये नयन सुरों के थे वे, परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे। (3) उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह-रहकर, करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह-महकर । (4) वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी, प्रभु बोले गिरा गँभीर नीरनिधि जैसी । (5) हे भरतभद्र, अब कहो अभीप्सित अपना”, सब सजग हो गये, भंग हुआ ज्यों सपना। (6) मुझसे मैंने ही आज स्व...

करुण रस की परिभाषा और उदाहरण

करुण रस की परिभाषा और उदाहरण|Karun ras Kise Kahate Hain करुण रस की परिभाषा और उदाहरण|Karun ras Kise Kahate Hain करुण रस (Karun ras) - करुण शब्द का प्रयोग सहानुभूति एवं दया मिश्रित दुख के भाव को प्रकट करने के लिए किया जाता है, अतः जब स्थाई भाव शोक विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर आस्वाद रूप धारण करता है तब इसकी परिणीति करुण रस कहलाती है। करुण रस का स्थाई भाव शोक है। करुण रस की परिभाषा - प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब ' करुण रस ' की निष्पत्ति होती है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के संयोग से शोक स्थाई भाव का संचार होता है। अगर कोई आपसे करुण रस की परिभाषा पूछे तो आप यह भी बता सकते हैं- " जब किसी प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब ' करुण रस ' जागृत होता है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के मेल से स्थाई भाव शोक का जन्म होता है। करुण रस के अवयव - स्थाई भाव - शोक आलंबन (विभाव) - विनष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु उद्दीपन (विभाव) - आलंबन का दाहकर्म, इष्ट के गुण तथा उससे संबंधित वस्तुएं एवं इस्ट के चित्र का वर्णन अनुभाव - भूमि पर गिरना, नि:श्वास, छाती पीटना,रूदन, प्रलाप, मूर्छा, दैवनिंदा, कम्प आदि। संचारी भाव - निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, दैन्य, उन्माद आदि। परिभाषा - करुण रस का स्थाई भाव शोक है। शोक नामक स्थाई भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है, तब ' करुण रस ' की निष्पत्ति होती है। उदाहरण- मणि खोए भुजंग सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश। अंधी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश।। श्र...

(Ras In Hindi) रस क्या हैं

रस क्या हैं ? (Ras Kya Hain) सम्पूर्ण रस की व्याख्या रस की परिभाषा– संस्कृत में रस शब्द की व्युत्पत्ति “ रसस्यते असौ इति रसाः“ के रूप में की गई है अर्थात् जिसका रसास्वाद किया जाए, वही रस है; परन्तु साहित्य में कविता, कहानी, उपन्यास आदि को पढ़ने या सुनने से एवं नाटक को देखने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं। सर्वप्रथम भरतमुनि ने अपने ‘ नाट्यशास्त्र‘ में रस के स्वरूप को स्पष्ट किया था। रस की निष्पत्ति के सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है- “विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति” अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। आचार्य विश्वनाथ ने ‘ साहित्य-दर्पण‘ में काव्य की परिभाषा देते हुए लिखा है-“ वाक्यं रसात्मकं काव्यम्” अर्थात् रसात्मक वाक्य काव्य है, रस काव्य की आत्मा है, काव्य में रस का वही स्थान है, जो शरीर में आत्मा का है। रस के भेद (प्रकार) रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं— स्थायी भाव और संचारी भाव, इन्हीं को काव्य के अंग कहते हैं। स्थायी भाव क्या हैं ? स्थायी भाव प्रत्येक सहृदय व्यक्ति के हृदय में हमेशा विद्यमान रहते हैं। यद्यपि वे सुप्त अवस्था में रहते हैं, तथापि उचित अवसर पर जाग्रत एवं पुष्ट होकर ये रस के रूप में परिणत हो जाते हैं। एक स्थायी भाव का सम्बन्ध एक रस से होता है। इनकी संख्या नौ है, किन्तु कुछ आचार्यों ने इनकी संख्या दस निर्धारित की है- स्थायी भाव रस रति श्रृंगार हास हास्य शोक करुण क्रोध रौद्र उत्साह वीर भय भयानक आश्चर्य अद्भुत ग्लानि (जुगुप्सा) बीभत्स निर्वेद शान्त वत्सलता वात्सल्य इनमें वत्सलता को श्रृंगार के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। प्रत्येक स्थायी भाव का संक्षि...

Karun Ras ki Paribhasha

karun ras ki paribhasha –करुण रस के बारे में और करुण रस किसे कहते हैं इसके बारे में जानने से पहले हम जानेंगे कि रस क्या है तो रस का शाब्दिक अर्थ होता है – आनन्द, काव्य में जो आनन्द आता है, वह ही काव्य का रस कहलाता है काव्य में आने वाला आनन्द या रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है संस्कृत में कहा गया है कि “ रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य होता है रस को अन्त:करण की वह शक्ति माना जाता है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं तथा मन कल्पना करता है, रस ही आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है तथा यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है आदमी अपनी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है परंतु उन विषयों के प्रति उसका लगाव नहीं छूटता, रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक तथा सुश्रुत में देखने को मिलता है दूसरे अर्थ में यह अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय परन्तु जो भाव तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है वह भाव ही होता है, परन्तु जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता केवल रस ही रहता है उसकी भावता अपना रूपांतरण कर लेती है रस अपूर्व की उत्पत्ति है नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से ही दिया रहता है, ज्ञात रहता है या फिर सुना या देखा हुआ होता है इसके बावजूद हमें कुछ नया अनुभव प्राप्त होता है वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है तथा व्यक्ति को अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय होता है आज हम पढेंगे karun ras ki paribhasha इसके अलावा हम इसके उदाहरणों और अवयव को भी आगे वि...

करुण रस की परिभाषा, अवयव, भेद और उदाहरण

नमस्कार दोस्तो, यदि आप हिंदी विषय के अंतर्गत रुचि रखते हैं, या फिर आप हिंदी साहित्य के अंतर्गत रुचि रखते हैं, तो आपने करुण रस के बारे में तो जरूर सुना होगा जो कि हिंदी साहित्य के अंतर्गत एक काफी महत्वपूर्ण टॉपिक होता है। दोस्तों क्या आप जानते हैं कि करुण रस की परिभाषा क्या होती है, यदि आपको इस विषय के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तथा इसके बारे में जानना चाहते हैं, तो इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। हम आपको इस पोस्ट के अंतर्गत हम आपको बताने वाले हैं कि करुण रस की परिभाषा क्या होती है (karun ras ka sthayi bhav rahti kya hai), इन के कितने प्रकार होते हैं, इसके अलावा हम आपको इस विषय से जुड़ी हर एक जानकारी इस पोस्ट में देने वाले हैं। करुण रस की परिभाषा क्या होती है? जहां पर हमें फिर से मिलने की आशा समाप्त हो जाती है या फिर पुनः मिलने की आशा समाप्त हो जाती है वहां कांग्रेस होता है। यहां पर हमें छाती पीट ना, रोना, भूमि पर गिरना आदि भाव देखने को मिलते हैं। • करुण रस के अंतर्गत हमें स्थाई रूप या फिर स्थाई भाव के अंतर्गत शोक देखने को मिलता है। • इस रस के अंतर्गत आलंबन के तौर पर विनिस्ट व्यक्ति या वस्तु देखने को मिलती है। • करुण रस के अंतर्गत हमें उद्दीपन के तौर पर आलंबन का दहक्रम, ईस्ट के गुण तथा उससे संबंधित वस्तुएं एवं ईस्ट के चित्र का वर्णन मिलता है। • दोस्तों करुण रस के अंतर्गत हमें अनुभव के तौर पर भूमि पर गिरना, निस्वास, छाती पीटना, रुदन, रोना आदि देखने को मिलता है। • इसके अलावा इस करुण रस में हमें संचारी भाव के रूप में निर्वेद, मोह, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, निषाद जड़ता आदि देखने को मिलता है। करुण रस के उदाहरण हुआ न यह भी भाग्य अ...