क्षमा

  1. क्षमा
  2. क्षमा वीरस्य भूषणम्
  3. क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात
  4. धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् । ।


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क्षमा

सिद्धांतकोष से • उत्तम क्षमा का व्यवहार लक्षण बारस अणुवेक्खा/71 कोहुप्पत्तिस्स पुणो बहिरंगं जदि हवेदि सक्खादं। ण कुणदि किंचिवि कोहं तस्स खमा होदि धम्मोत्ति।71।= क्रोध के उत्पन्न होने के साक्षात् बाहिरी कारण मिलने पर भी जो थोड़ा भी क्रोध नहीं करता है, उसके (व्यवहार) उत्तम क्षमा धर्म होता है। ( भावपाहुड़/ मूल/107). ( कार्तिकेयानुप्रेक्षा/मूल/394); ( चारित्रसार/59/2 ) नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/115 अकारणादप्रियवादिनी मिथ्यादृष्टेरकारणेन मां त्रासयितुमुद्योगो विद्यते, अयमपगतो मत्पुण्येनेति प्रथमा क्षमा। अकारणेन संत्रासकरस्य ताडनबधादिपरिणामोऽस्ति, अयं चापगतो मत्सुकृतेनेति द्वितीया क्षमा।= बिना कारण अप्रिय बोलनेवाले मिथ्यादृष्टि को बिना कारण मुझे त्रास देने का उद्योग वर्तता है, वह मेरे पुण्य से दूर हुआ—ऐसा विचारकर क्षमा करना वह प्रथम क्षमा है। मुझे बिना कारण त्रास देने वाले को ताड़न और वध का परिणाम वर्तता है, वह मेरे सुकृत से दूर हुआ, ऐसा विचारकर क्षमा करना वह द्वितीय क्षमा है। • उत्तम क्षमा का निश्चय लक्षण सर्वार्थसिद्धि/9/6/412/4 शरीरस्थितिहेतुमार्गणार्थ परकुलान्युपगच्छतो भिक्षोर्दुष्टजनाक्रोशप्रहसनावज्ञाताडनशरीरव्यापादनादीनां संनिधाने कालुष्यानुत्पत्ति: क्षमा।= शरीर की स्थिति के कारण की खोज करने के लिए परकुलों में जाते हुए भिक्षु को दुष्टजन गाली-गलौज करते हैं, उपहास करते हैं, तिरस्कार करते हैं, मारते-पीटते हैं और शरीर को तोड़ते-मरोड़ते हैं तो भी उनके कलुषता का उत्पन्न न होना क्षमा है। ( राजवार्तिक/9/6/2/595/21 ); ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/46/154/12 ); ( चारित्रसार/59/1 ); ( पद्मनन्दि पंचविंशतिका/1/82) नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/115 वधे सत्यमूर्तस्य परमब्रह्मरूपिणो ममापकारहान...

क्षमा वीरस्य भूषणम्

"क्षमा वीरस्य भूषणम्" समय के चलते हर चीज़ में परिवर्तन पाया जाता है, आजकल इंसान के स्वभाव में भी घोर परिवर्तन की असर दिखती है। रजोगुण कहीं दिखता ही नहीं, वाणी में ॠजुता दम तोड़ रही है। हर किसीके दिमाग तामसी होते जा रहे है, हर छोटी बात पर लोगों को गुस्सा आ जाता है। बदले की भावना पनपती है और मरने मारने पर उतारू हो जाते है। तुच्छ बात पर खून खराबा हो जाता है, लाठियां चलती है और बात अदालत तक पहुँच जाती है। भाई, भाई का दुश्मन बन जाता है बाप बेटे के रिश्ते बिगड़ जाते है। मानवीय गुणों में एक गुण है "क्षमा" कहा जाता है कि "क्षमा वीरस्य भूषणं, क्षमा वाणीस्य भूषणं" क्षमा साहसी लोगों का आभूषण है और क्षमा वाणी का भी गहना है। किसी के उपर गुस्सा करना,दंडित करना या डाँटना आपके बल को नहीं दर्शाता बल्कि आपके स्वभाव का प्रदर्शन होता है। शास्त्र कहता है कि बलवान वो नहीं जो किसी को दण्ड देने का सामर्थ्य रखता हो बलवान वो है जो किसी को क्षमा करने का साहस रखता हो। अगर आप किसी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तो सच मानिये कि आप एक शक्तिशाली शख़्सीयत के मालिक है। आसान नहीं क्षमा करना, सामने वाले की गलती को भूलना पड़ता है और खुद के अंदर भरे ज्वालामुखी पर पानी डालना पड़ता है, तब क्षमा का भाव उद्भव होता है। माफ़ करने से या माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं बन जाता बल्कि माफ़ी मांगने वाला और माफ़ करने वाला सामने वाले की नज़र में सम्मानिय बन जाता है। अहं के टकराव में दोस्ती, रिश्तेदारी और परिवार टूटते देखे जा रहे है। आजकल परिवारों में अशांति और क्लेश का एक प्रमुख कारण यह भी है कि हमारे ज़ुबान से क्षमा नाम का गुण लगभग गायब सा हो गया है। किसीको अपनी गलती का अहसास होता ही नहीं। कमियां सब में होती है, अगर हर रिश्...

क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात

क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात – kshama badan ko chahiye – KSHAMA BADAN KO CHAHIYE, CHHOTAN KO UTPAAT- KAH PRABHU KA GHAT GAYO JO BHRIGU MAARI LAAT . क्षमा वीरस्य भूषणम यानि क्षमा वीरों का आभूषण है। कमज़ोर व्यक्ति कभी किसी को माफ नहीं कर सकते. माफ करने वाला व्यक्ति अपने मन से शक्तिशाली होता है. मुझे माफ कर दो, गलती का अहसास है मुझे, हां हो गई गलती , क्षमा वीरस्य भूषणम ….. क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात कई बार life में ऐसा होता है कि किसी से गलती हो गई तो हम तने हुए रहते हैं और गुस्से में लबालब कि तुझे तो जिंदगी भर माफ नही करेगें … पर इसका परिणाम क्या निकलता है … जन्म जन्म के दुश्मन ..हमेशा के लिए सम्बंध खत्म … जबकि सॉरी Sorry छोटा सा शब्द है क्षमा और इसे मांगने से कोई छोटा बडा नही हो जाता … बल्कि माफ कर देना हमारा बडप्पन है … अपने व्यक्तित्व को ऐसे भी निखारा जा सकता है देखिए कई बार होता है कि हम माफ नही करना चाह्ते तो ऐसे में सोचिए कि अगर ये बात आपके साथ हुई होती और आपको माफी नही मिलती तो कैसा लगता… या फिर सोचिए कि अगर किसी ने गलत काम किया किसलिए किया किसलिए ये नौबत आई…उस परिस्थिति में जाएँ कि उसने ऐसा काम किया ही ही क्यूं कई बार नाराजगी इतनी ज्यादा होती है कि हम माफ करना ही नही चाह्ते तो कोई बात नही … समय बहुत मददगार होता है … कुछ समय गुस्से में रहें जब कुछ समय बाद गुस्सा उतर जाए तो माफ … या फिर ये सोचिए कि इंसान तो गलतियों का पुतला है, गलती करके ही सीखता है. अगर गलती हो हई तो कोई बात नही … और फिर नही समझ पा रहे हो कि माफ क्यो करें तो कोई ऐसी कहानी जिसने किसी को माफ किया हो … इतिहास की कोई ऐसी घटना पढे तो भी हमारा मन बदल सकता है … हम सोच लें कि हम सकारात्मक सोच रखत...

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् । ।

पहिला लक्षण – सदा धैर्य रखना, दूसरा – (क्षमा) जो कि निन्दा – स्तुति मान – अपमान, हानि – लाभ आदि दुःखों में भी सहनशील रहना; तीसरा – (दम) मन को सदा धर्म में प्रवृत्त कर अधर्म से रोक देना अर्थात् अधर्म करने की इच्छा भी न उठे, चैथा – चोरीत्याग अर्थात् बिना आज्ञा वा छल – कपट, विश्वास – घात वा किसी व्यवहार तथा वेदविरूद्ध उपदेश से पर – पदार्थ का ग्रहण करना, चोरी और इसको छोड देना साहुकारी कहाती है, पांचवां – राग – द्वेष पक्षपात छोड़ के भीतर और जल, मृत्तिका, मार्जन आदि से बाहर की पवित्रता रखनी, छठा – अधर्माचरणों से रोक के इन्द्रियों को धर्म ही में सदा चलाना, सातवां – मादकद्रव्य बुद्धिनाशक अन्य पदार्थ, दुष्टों का संग, आलस्य, प्रमाद आदि को छोड़ के श्रेष्ठ पदार्थों का सेवन, सत्पुरूषों का संग, योगाभ्यास से बुद्धि बढाना; आठवां – (विद्या) पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त यथार्थ ज्ञान और उनसे यथायोग्य उपकार लेना; सत्य जैसा आत्मा में वैसा मन में, जैसा वाणी में वैसा कर्म में वर्तना इससे विपरीत अविद्या है, नववां – (सत्य) जो पदार्थ जैसा हो उसको वैसा ही समझना, वैसा ही बोलना, वैसा ही करना भी; तथा दशवां – (अक्रोध) क्रोधादि दोषों को छोड़ के शान्त्यादि गुणों का ग्रहण करना धर्म का लक्षण है । (स० प्र० पंच्चम समु०) सदैव जीवित उत्साही कर्मठ मन्यु से प्रेरित जनों के जीवन से ही प्ररणा ले कर जी. प्रकार समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं. Adopt role models as people that lead an active zestful life. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life . — अथर्ववेद ३.३१.९ Dayanand Sagar