कुल्लू वेदर 10-दिन

  1. कुल्लू
  2. Weather kullu 20 days
  3. मेले एवं त्यौहार
  4. कुल्लू दशहरा
  5. कुल्लू जिला
  6. Kullu Festival : कुल्लू का दशहरा पर हिन्दी निबंध


Download: कुल्लू वेदर 10-दिन
Size: 21.16 MB

कुल्लू

विवरण कुल्लू (भूतपूर्व सुल्तानपुर), मध्य राज्य ज़िला कुल्लू ज़िला भौगोलिक स्थिति उत्तर- 31.97°, पूर्व- 77.10° मार्ग स्थिति राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या– 21 द्वारा प्रसिद्धि कुल्लू अपने दशहरे के त्योहार के लिए प्रसिद्ध है। कब जाएँ कैसे पहुँचें हवाई जहाज, रेल, बस, टैक्सी नज़दीकी भुंटार हवाई अड्डा नज़दीकी रेलवे स्टेशन कालका, कुल्लू बस अड्डा क्या देखें घाटियों में संगीत घोलते झरनों, छोटी–मोटी वादियों, हरे–भरे मैदानों, कहाँ ठहरें होटल, अतिथि-ग्रह, धर्मशाला क्या ख़रीदें शॉल, टोपी, हस्तशिल्प वस्तुएँ एस.टी.डी. कोड 01902 ए.टी.एम लगभग सभी अद्यतन‎ कुल्लू का प्राचीन नाम कुलंतपीठ था। यह जगह सिल्‍वर वैली के नाम से मशहूर है। कुल्लू केवल सांस्‍कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के लिए ही नहीं बल्कि एडवेंचर स्‍पोर्ट के लिए भी प्रसिद्ध है। यातायात और परिवहन कुल्लू हवाई मार्ग हवाई जहाज़ के द्वारा कुल्लू के पास तक जाया जा सकता है। सप्ताह में तीन दिन शिमला से जैगसन एयरवेज की उड़ानें कुल्लू के निकटतम (10 किलोमीटर दूर) मुंतर हवाई अड्डा के लिए हैं। मुंतर से कुल्लू तक की दूरी टैक्सी वगैरह द्वारा तय की जा सकती है। रेल मार्ग रेल मार्ग द्वारा कुल्लू जाना हो तो कालका–शिमला रेलमार्ग से शिमला तक और वहाँ से बस या टैक्सी द्वारा कुल्लू पहुँचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त एक और रेलमार्ग पठानकोट से योगेंद्र नगर तक का है। कुल्लू की दूरी योगेंद्र नगर से भी बस या टैक्सी द्वारा तय की जा सकती है। सड़क मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या– 21 द्वारा कृषि और खनिज यह एक उद्योग और व्यापार हथकरघा बुनाई कुल्लू का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग है, जिसके अंतर्गत कुल्लू में टोपी, शॉल, रूमाल और गुलूबंद का निर्माण होता है। पर्यटन इस पर्यटन–स्थल क...

Weather kullu 20 days

Our site provides current weather forecast for India. You can follow our site for weather forecast of our important cities. Our site is updated every 10 minutes. Weather forecasts: 15-day, 10-day, 7-day and 5-day forecasts, 1-month weather, 2-month and 3-month weather forecasts are presented. Dangerous weather warnings such as heavy rain and storms can be found on our site. All visitors to our site will be deemed to have accepted the

मेले एवं त्यौहार

कुल्लू दशहरा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं। आश्विन महीने की दसवीं तारीख को इसकी शुरुआत होती है। कुल्लू का दशहरा पर्व, परंपरा, रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग और भी अधिक बढ़ने लगता है। कुल्लू में विजयदशमी के पर्व मनाने की परंपरा राजा जगत सिंह के समय से मानी जाती है। यहां के दशहरे को लेकर एक कथा प्रचलित है- जिसके अनुसार एक साधु कि सलाह पर राजा जगत सिंह ने कुल्लू में भगवान रघुनाथ जी की प्रतिमा की स्थापना की। उन्होंने अयोध्या से एक मूर्ति लाकर कुल्लू में रघुनाथ जी की स्थापना करवाई थी। कहते हैं कि राजा जगत सिंह किसी रोग से पीड़ित थे, अतः साधु ने उसे इस रोग से मुक्ति पाने के लिए रघुनाथ जी की स्थापना की सलाह दी। उस अयोध्या से लाई गई मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा और उसने अपना संपूर्ण जीवन एवं राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया। पिपल यात्रा / वसंतोत्सव वसंतोत्सव का पारंपरिक नाम पिपल यात्रा है या इसे राय-ri-Jach भी कहा जाता है। यह हर साल 16 वीं बैसाख पर ढलपुर, कुल्लू में होता है। कुल्लू के राजा को अपने कन्टरों के साथ पिपल ट्री के उठाए मंच पर ‘काला केंद्र’ के सामने बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता था और उनके सामने पारंपरिक नृत्य आयोजित किया जाता था। एक बार लगभग 16 कुल्लू देवताओं ने इस मेले में भाग लिया लेकिन इसके द्वारा और इसकी भव्यता खो दी। 1 9 76 में हिमाचल अकादमी ऑफ आर्ट्स, कल्चर एंड लैंग्वेज की मदद से इस मेले को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए गए। बैशखा कुल्लू घाटी में ब्लूमिंग व...

कुल्लू दशहरा

इस लेख में अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर (अगस्त 2022) स्रोत खोजें: · · · · कुल्लू दशहरा प्रकार जातीय, उत्सव उद्देश्य देवताओं का अभिनंदन उत्सव कुल्‍लू दशहरा पूरे इतिहास [ ] किंवदंती के अनुसार, महर्षि 16 वीं शताब्दी में, राजा जगत सिंह ने कुल्लू के समृद्ध और सुंदर राज्य पर शासन किया। शासक के रूप में, राजा को दुर्गादत्त के नाम से एक किसान के बारे में पता चला, जो जाहिर तौर पर कई सुंदर मोती रखते थे। राजा ने सोचा कि उसके पास ये क़ीमती मोती होने चाहिए, जबकि एकमात्र मोती दुर्गादत्त के पास ज्ञान के मोती थे। लेकिन राजा ने अपने लालच में दुर्गादत्त को अपने मोती सौंपने या फांसी देने का आदेश दिया। राजा के हाथों अपने अपरिहार्य भाग्य को जानकर, दुर्गादत्त ने खुद को आग पर फेंक दिया और राजा को शाप दिया, "जब भी तुम खाओगे, तुम्हारा चावल कीड़े के रूप में दिखाई देगा, और पानी खून के रूप में दिखाई देगा"। अपने भाग्य से निराश होकर, राजा ने एकांत की मांग की और एक सन्दर्भ [ ]

कुल्लू जिला

कुल्लू ज़िला Kullu district सूचना 5,503किमी² • 3,79,865 69/किमी² उपविभागों के नाम: उपविभागों की संख्या: 6 मुख्य भाषा(एँ): कुल्लू जिले का मुख्यालय इस जिले में कई पर्यटन स्थल हैं जिनमें में कुछ निम्न हैं- • मणिकर्ण- मणिकर्ण की समुद्र तल से ऊंचाई 1700 मीटर है। यह स्थान कुल्लू से 40 किलोमीटर दूर, कुल्लू-लेह राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित है। यह गर्म पानी के स्रोत, शिव मंदिर और गुरुद्वारे के लिए प्रसिद्ध है। मणिकर्ण में गर्म पानी के स्रोत हैं जिसमें स्नान करने से चर्म रोग दूर होता है क्योंकि यह पानी व्याधि निवारक होता है। • मनालीः मनाली की समुद्र तल से ऊंचाई 1926 मीटर है। यह कुल्लू से 40 किलोमीटर दूर कुल्लू-लेह राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित है। यहां पर हिडिंबा देवी का मंदिर, मनु मंदिर, नेहरू कुंड और पर्वतारोहण संस्थान है। मनाली विदेशी सैलानियों में प्रसिद्ध है। इस स्थान से 16 किलोमीटर दूर सोलंग घाटी है, जो स्कीइंग के लिए प्रसिद्ध है। • बिजली महादेवः इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 2460 मीटर है। कुल्लू से इसकी दूरी 10 किलोमीटर है। तथा बस अथवा गाडियोँ मे जाने के बाद 2.6 किलोमीटर पैदल सीड़ीयोँ से जाना पड़ता है। 60 फुट ऊंचा महादेव का लिंग चांदी की तरह चमकता है। भादो मास में इस पर बिजली गिरती है और इसके कइ टुकड़े हो जाते हैं, लेकिन फिर इसे गाँब वाले मख्खन से पुजारी की सहायता से जोड़ते हैँ। यह मान्यता है कि यदि कोई शिवलिँग का टुकड़ा छुट जाये तो मन्दिर के पुजारी को सपने मे यह सब पता चलता है और बह उस टुकड़े को ढुँढ कर मक्खन से जोड़ते हैँ। और यहाँ शिवरात्री के दिन घोटा भी तैयार किया जाता है। यहाँ मेले का आयोजन भी होता है। • बंजारः इस स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई 1524 मीटर है और यह कुल्लू से 58 किलोमीटर दूर...

Kullu Festival : कुल्लू का दशहरा पर हिन्दी निबंध

हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के दशहरा की शुरुआत हिन्दी कैलेंडर के अनुसार आश्विन महीने की दसवीं तारीख से होती है। जब देश में लोग दशहरा मना चुके होते हैं तब कुल्लू का दशहरा शुरू होता है। भारत में हिमाचल प्रदेश में दशहरा एक दिन का नहीं बल्कि सात दिन का त्योहार है। यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं। कुल्लू का दशहरा देश में सबसे अलग पहचान रखता है। कुल्लू का दशहरा पर्व परंपरा, रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं तथा आश्विन महीने की दसवीं तारीख को इसकी शुरुआत होती है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग और भी अधिक बढ़ने लगता है। यज्ञ का न्योता : कुल्लू के दशहरे में आश्विन महीने के पहले 15 दिनों में राजा सभी देवी-देवताओं को धालपुर घाटी में रघुनाथजी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए न्योता देते हैं। 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को रंगबिरंगी सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है। इस उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी, मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं। राजघराने के सब सदस्य देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं। निराली छटा बिखेरता उत्सव :इसके पश्चात रथ को पुन: उसके स्थान पर लाया जाता है और रघुनाथजी को रघुनाथपुर के मंदिर में पुन:स्थापित किया जाता है। इस तरह विश्वविख्यात कुल्लू का दशहरा हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण होता है। कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी पर उत्सव की शोभा निराली होती है। दशहरा पर्व भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है।...