कुरुक्षेत्र में कितने सर्ग है

  1. दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' में राम का उदाहरण
  2. कुरुक्षेत्र: इतिहास, दर्शनीय स्थल, कैसे पहुंचे और घूमने का सबसे अच्छा समय
  3. कुरुक्षेत्र छठा सर्ग सारांश Material for 2023 हिन्दी काव्य
  4. कुरुक्षेत्र (सभी सर्ग )
  5. कुरुक्षेत्र
  6. कुरुक्षेत्र छठा सर्ग सारांश Material for 2023 हिन्दी काव्य
  7. कुरुक्षेत्र
  8. कुरुक्षेत्र (सभी सर्ग )
  9. दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' में राम का उदाहरण
  10. कुरुक्षेत्र: इतिहास, दर्शनीय स्थल, कैसे पहुंचे और घूमने का सबसे अच्छा समय


Download: कुरुक्षेत्र में कितने सर्ग है
Size: 65.20 MB

दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' में राम का उदाहरण

यहां बताया गया है कि किस प्रकार न्याय के लिए युद्ध करना बेहद ज़रूरी हो जाता है। वीर पुरुष युद्ध में जीतते हैं या मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अधिक दया करने से या अत्याचार सहने करने से पौरुष की क्षति होती है। कई बार क्रोध अनिवार्य है। प्रभु राम तीन दिन तक समुद्र की विनय करते रहे कि वह उन्हें रास्ता दे सके लेकिन समुद्र की ओर से कोई जवाब नहीं आया। तब राम अधीर हो गए और अपना धनुष उठा लिया। तब समुद्र उनकी शरण में आ गिरा। न्यायोचित अधिकार माँगने से न मिलें, तो लड़ के, तेजस्वी छीनते समर को जीत, या कि खुद मरके। किसने कहा, पाप है समुचित सत्व-प्राप्ति-हित लड़ना ? उठा न्याय के खड्ग समर में अभय मारना-मरना ? क्षमा, दया, तप, तेज, मनोबल की दे वृथा दुहाई, धर्मराज, व्यंजित करते तुम मानव की कदराई। हिंसा का आघात तपस्या ने कब, कहाँ सहा है ? देवों का दल सदा दानवों से हारता रहा है। मनःशक्ति प्यारी थी तुमको यदि पौरुष ज्वलन से, लोभ किया क्यों भरत-राज्य का? फिर आये क्यों वन से? पिया भीम ने विष, लाक्षागृह जला, हुए वनवासी, केशकर्षिता प्रिया सभा-सम्मुख कहलायी दासी क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल, सबका लिया सहारा; पर नर-व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ कब हारा? क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुए विनत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही। अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है, पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है। क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो। उसको क्या, जो दन्तहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो ? तीन दिवस तक पन्थ माँगते रघुपति सिन्धु-किनारे, बैठे पढते रहे छन्द अनुनय के प्यारे-प्यारे। उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से, उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से। सिन्धु देह धर 'त्राहि-त्राह...

कुरुक्षेत्र: इतिहास, दर्शनीय स्थल, कैसे पहुंचे और घूमने का सबसे अच्छा समय

• इतिहास • घूमने के स्थान • कैसे पहुंचा जाये हरियाणा के पवित्र शहरों में से एक, कुरुक्षेत्र का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है। इसे भगवत गीता की भूमि के रूप में जाना जाता है जो हिंदुओं की पवित्र पुस्तक है, और यहां तक ​​कि महाकाव्य महाभारत भी कुरुक्षेत्र के चारों ओर घूमता है। शहर का नाम राजा कुरु के नाम पर रखा गया है जो कौरवों और पांडवों के पूर्वज थे, जैसा कि महाकाव्य में दर्शाया गया है। साथ ही महाभारत का ऐतिहासिक कुरुक्षेत्र युद्ध भी इसी भूमि पर लड़ा गया था। इसके अलावा, यह वही जगह है जहां भगवान कृष्ण ने पहली बार भगवत गीता का पाठ किया था। हिंदू भक्तों के लिए इस तरह के महान महत्व और समृद्ध इतिहास वाला कोई अन्य पवित्र स्थान नहीं हो सकता है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, कुरुक्षेत्र सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि भगवान और राजाओं का निवास स्थान है। यह एक हिंदू तीर्थस्थल है जिसका अत्यधिक महत्व है और बहुत सारे भक्त यहां मंदिरों, तीर्थस्थलों और अन्य पवित्र स्थलों का पता लगाने के लिए आते हैं। कुरुक्षेत्र घूमने का सबसे अच्छा समय जबकि यह गंतव्य निश्चित रूप से एक यात्रा के लायक है, यह बेहतर है कि आप ऐसा सितंबर और मार्च के बीच करें, क्योंकि इन महीनों के दौरान, कुल मिलाकर मौसम काफी सुखद और दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए आदर्श है। कुरुक्षेत्र का इतिहास प्राचीन हिंदू ग्रंथों में कई अवसरों पर राजा कुरु का उल्लेख मिलता है। वह वह था जो भरत राजवंश पर शासन करता था जिसे कौरव और पांडवों (महाकाव्य महाभारत के समय भाइयों के दो समूह) के पैतृक मूल के रूप में भी माना जाता था। पुराणों में महाभारत के उस महान युद्ध का भी उल्लेख मिलता है जो कुरुक्षेत्र नगरी की भूमि पर लड़ा गया था। बाद के इतिहास में, कुरुक्षेत्र को...

कुरुक्षेत्र छठा सर्ग सारांश Material for 2023 हिन्दी काव्य

कुरुक्षेत्र छठा सर्ग –‘कुरुक्षेत्र’ एक प्रबंध काव्य है। इसका प्रणयन अहिंसा और हिंसा के बीच अंतर्द्वंद के फल स्वरुप हुआ। कुरुक्षेत्र की ‘कथावस्तु’ का आधार महाभारत के युद्ध की घटना है, जिसमें वर्तमान युग की ज्वलंत युद्ध समस्या का उल्लंघन है। ‘दिनकर’ के कुरुक्षेत्र प्रबंध काव्य की कथावस्तु सात सर्गो में विभक्त है। कुरुक्षेत्र छठा सर्ग के अंतर्गत आधुनिक युग की समस्याओं, मानवीय रचनात्मक प्रवृत्तियों तथा कोरे मानसिक उत्थान की निंदा की गई है। कवि रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। मानव वंशज की वायु, अग्नि ,आकाश, पृथ्वी सब कुछ है ।कवि खेद करता है कि मनुष्य के मानसिक विकास का उसके हृदय के साथ नहीं दिया है, उनकी उन्नति एकांकी है, अधूरी है अतएव परिपूर्ण महत्व नहीं है। उसके मिले-जुले विकास के लिए ज्ञान ही नहीं प्रेम और बलिदान भी आवश्यक है। मानव जीवन श्रेय का सर्वोच्च स्थान है, उसके लिए उसे असीमित मानव से प्रेम विषमता के अंतर को कम करने तथा हृदय एवं

कुरुक्षेत्र (सभी सर्ग )

कुरुक्षत्र रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी रचनाओं में से एक है। इस काव्य में इन्होनेमहाभारत के भीषण युधके पश्चात के एक महत्वपूर्ण अध्याय कासरल हिंदी तुकांत भाषा में वर्णन किया है। युधिष्ठिरका पश्चाताप, भीष्म की सिख, युद्ध का कारणं , युद्ध का अंतिम परिणाम तथा मानव जीवन के कुछ अमूल्य रहस्यों को समझातेहुए दिनकर जी ने बहुत ही अद्भुत शब्द चयन के साथ इस कविता की नीव राखी है। इनकी कुछ लाइन झझकोर देने वाली है जैसे यह मनुज , जो ज्ञान का आगार ! यह मनुज , जो सृष्टि का शृंगार ! नाम सुन भूलो नहीं , सोचो विचारो कृत्य ; यह मनुज , संहार सेवी वासना का भृत्य । छद्म इसकी कल्पना , पाषंड इसका ज्ञान , यह मनुष्य मनुष्यता का घोरतम अपमान । व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय , पर , न यह परिचित मनुज का , यह न उसका श्रेय । श्रेय उसका बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत ; श्रेय मानव कीअसीमित मानवों से प्रीत ; एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान तोड़ दे जो , है वही ज्ञानी , वही विद्वान । और मानव भी वही, जो जीव बुद्धि -अधीर तोड़ना अणु ही , न इस व्यवधान का प्राचीर ; वह नहीं मानव ; मनुज से उच्च , लघु या भिन्न चित्र-प्राणीहै किसी अज्ञात ग्रह का छिन्न । स्यात , मंगल या शनिश्चर लोक का अवदान अजनबी करता सदा अपने ग्रहोंका ध्यान । रसवती भू के मनुज का श्रेय यह नहीं विज्ञान , विद्या - बुद्धि यह आग्नेय ; विश्व - दाहक , मृत्यु - वाहक , सृष्टि का संताप , भ्रांत पाठ पर अंध बढ़ते ज्ञान का अभिशाप । भ्रमित प्रज्ञाका कौतुक यह इन्द्र जाल विचित्र , श्रेय मानव के न आविष्कार ये अपवित्र । सावधान , मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलव तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे, नीले वितान के तले दीप बहु जागे। टकटकी लगाए नयन सुरों के थे वे, परिणामोत्सुक उन भयातुरो...

कुरुक्षेत्र

सबसे लोकप्रिय भारतीय धर्मग्रन्थ भागवत गीता तथा सबसे चर्चित महाभारत युद्ध की बात आते ही, कुरुक्षेत्र का नाम स्वयं ही चर्चा में आ जाता है। कुरुक्षेत्र, जहां कौरवों तथा पांडवों के बीच धर्मयुद्ध हुआ था। कदाचित ही कोई भारतीय होगा जो कुरुक्षेत्र के विषय में नहीं जानता हो। मुझे आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं कि कौरवों तथा पांडवों के बीच हुए धर्मयुद्ध के आरम्भ में यहीं भगवान् कृष्ण ने पांडुपुत्र अर्जुन को भग्वदगीता का ज्ञान दिया था जो हिन्दुओ के लिए परमग्रन्थ है। इसलिए इसे धर्मक्षेत्र या धर्म की भूमि भी कहा जाता है। धर्मक्षेत्र यह शब्द भागवत गीता का पहला शब्द भी है। मैंने कुरुक्षेत्र की पहली यात्रा अपने बालपन में की थी जिसकी स्मृति मेरे मन में कुछ विशेष नहीं है। इसलिए कुछ दिनों पहले मैंने एक बार फिर कुरुक्षेत्र के दर्शन किये। कुरुक्षेत्र पर मेरा यह संस्मरण इसी यात्रा का परिणाम है। कुरुक्षेत्र कहाँ है? कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान देते श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र का शाब्दिक अर्थ है कुरु का क्षेत्र। कुरु भरत वंश के सम्राट थे। कालान्तर में कौरव तथा पांडव उनके वंशज हुए। क्षेत्र का अर्थ है भूभाग, ना कि नगर या कस्बा। वर्तमान में जिस कुरुक्षेत्र नगर को हम जानते हैं, वह सन १९४७ के पश्चात की संरचना है। कुरुक्षेत्र वास्तव में सन १९४७ के पश्चात स्थापित एक शरणार्थी शिविर था जो कालान्तर में एक नगर में परिवर्तित हो गया। यह प्राचीन स्थल जो महाभारत युद्ध से सम्बंधित है, उसे थानेसर भी कहा जाता है। यह स्थानेश्वर शब्द का अपभ्रंशित रूप है जो एक प्राचीन शिव मंदिर का नाम है। उपलब्ध सूत्रों के अनुसार कुरुक्षेत्र इन स्थलों से घिरा हुआ है- दक्षिण – तुरघन (कदाचित शत्रुघन शब्द का अपभ्रंश रूप) या पंजाब...

कुरुक्षेत्र छठा सर्ग सारांश Material for 2023 हिन्दी काव्य

कुरुक्षेत्र छठा सर्ग –‘कुरुक्षेत्र’ एक प्रबंध काव्य है। इसका प्रणयन अहिंसा और हिंसा के बीच अंतर्द्वंद के फल स्वरुप हुआ। कुरुक्षेत्र की ‘कथावस्तु’ का आधार महाभारत के युद्ध की घटना है, जिसमें वर्तमान युग की ज्वलंत युद्ध समस्या का उल्लंघन है। ‘दिनकर’ के कुरुक्षेत्र प्रबंध काव्य की कथावस्तु सात सर्गो में विभक्त है। कुरुक्षेत्र छठा सर्ग के अंतर्गत आधुनिक युग की समस्याओं, मानवीय रचनात्मक प्रवृत्तियों तथा कोरे मानसिक उत्थान की निंदा की गई है। कवि रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। मानव वंशज की वायु, अग्नि ,आकाश, पृथ्वी सब कुछ है ।कवि खेद करता है कि मनुष्य के मानसिक विकास का उसके हृदय के साथ नहीं दिया है, उनकी उन्नति एकांकी है, अधूरी है अतएव परिपूर्ण महत्व नहीं है। उसके मिले-जुले विकास के लिए ज्ञान ही नहीं प्रेम और बलिदान भी आवश्यक है। मानव जीवन श्रेय का सर्वोच्च स्थान है, उसके लिए उसे असीमित मानव से प्रेम विषमता के अंतर को कम करने तथा हृदय एवं

कुरुक्षेत्र

सबसे लोकप्रिय भारतीय धर्मग्रन्थ भागवत गीता तथा सबसे चर्चित महाभारत युद्ध की बात आते ही, कुरुक्षेत्र का नाम स्वयं ही चर्चा में आ जाता है। कुरुक्षेत्र, जहां कौरवों तथा पांडवों के बीच धर्मयुद्ध हुआ था। कदाचित ही कोई भारतीय होगा जो कुरुक्षेत्र के विषय में नहीं जानता हो। मुझे आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं कि कौरवों तथा पांडवों के बीच हुए धर्मयुद्ध के आरम्भ में यहीं भगवान् कृष्ण ने पांडुपुत्र अर्जुन को भग्वदगीता का ज्ञान दिया था जो हिन्दुओ के लिए परमग्रन्थ है। इसलिए इसे धर्मक्षेत्र या धर्म की भूमि भी कहा जाता है। धर्मक्षेत्र यह शब्द भागवत गीता का पहला शब्द भी है। मैंने कुरुक्षेत्र की पहली यात्रा अपने बालपन में की थी जिसकी स्मृति मेरे मन में कुछ विशेष नहीं है। इसलिए कुछ दिनों पहले मैंने एक बार फिर कुरुक्षेत्र के दर्शन किये। कुरुक्षेत्र पर मेरा यह संस्मरण इसी यात्रा का परिणाम है। कुरुक्षेत्र कहाँ है? कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान देते श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र का शाब्दिक अर्थ है कुरु का क्षेत्र। कुरु भरत वंश के सम्राट थे। कालान्तर में कौरव तथा पांडव उनके वंशज हुए। क्षेत्र का अर्थ है भूभाग, ना कि नगर या कस्बा। वर्तमान में जिस कुरुक्षेत्र नगर को हम जानते हैं, वह सन १९४७ के पश्चात की संरचना है। कुरुक्षेत्र वास्तव में सन १९४७ के पश्चात स्थापित एक शरणार्थी शिविर था जो कालान्तर में एक नगर में परिवर्तित हो गया। यह प्राचीन स्थल जो महाभारत युद्ध से सम्बंधित है, उसे थानेसर भी कहा जाता है। यह स्थानेश्वर शब्द का अपभ्रंशित रूप है जो एक प्राचीन शिव मंदिर का नाम है। उपलब्ध सूत्रों के अनुसार कुरुक्षेत्र इन स्थलों से घिरा हुआ है- दक्षिण – तुरघन (कदाचित शत्रुघन शब्द का अपभ्रंश रूप) या पंजाब...

कुरुक्षेत्र (सभी सर्ग )

कुरुक्षत्र रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी रचनाओं में से एक है। इस काव्य में इन्होनेमहाभारत के भीषण युधके पश्चात के एक महत्वपूर्ण अध्याय कासरल हिंदी तुकांत भाषा में वर्णन किया है। युधिष्ठिरका पश्चाताप, भीष्म की सिख, युद्ध का कारणं , युद्ध का अंतिम परिणाम तथा मानव जीवन के कुछ अमूल्य रहस्यों को समझातेहुए दिनकर जी ने बहुत ही अद्भुत शब्द चयन के साथ इस कविता की नीव राखी है। इनकी कुछ लाइन झझकोर देने वाली है जैसे यह मनुज , जो ज्ञान का आगार ! यह मनुज , जो सृष्टि का शृंगार ! नाम सुन भूलो नहीं , सोचो विचारो कृत्य ; यह मनुज , संहार सेवी वासना का भृत्य । छद्म इसकी कल्पना , पाषंड इसका ज्ञान , यह मनुष्य मनुष्यता का घोरतम अपमान । व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय , पर , न यह परिचित मनुज का , यह न उसका श्रेय । श्रेय उसका बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत ; श्रेय मानव कीअसीमित मानवों से प्रीत ; एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान तोड़ दे जो , है वही ज्ञानी , वही विद्वान । और मानव भी वही, जो जीव बुद्धि -अधीर तोड़ना अणु ही , न इस व्यवधान का प्राचीर ; वह नहीं मानव ; मनुज से उच्च , लघु या भिन्न चित्र-प्राणीहै किसी अज्ञात ग्रह का छिन्न । स्यात , मंगल या शनिश्चर लोक का अवदान अजनबी करता सदा अपने ग्रहोंका ध्यान । रसवती भू के मनुज का श्रेय यह नहीं विज्ञान , विद्या - बुद्धि यह आग्नेय ; विश्व - दाहक , मृत्यु - वाहक , सृष्टि का संताप , भ्रांत पाठ पर अंध बढ़ते ज्ञान का अभिशाप । भ्रमित प्रज्ञाका कौतुक यह इन्द्र जाल विचित्र , श्रेय मानव के न आविष्कार ये अपवित्र । सावधान , मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलव तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे, नीले वितान के तले दीप बहु जागे। टकटकी लगाए नयन सुरों के थे वे, परिणामोत्सुक उन भयातुरो...

दिनकर के 'कुरुक्षेत्र' में राम का उदाहरण

यहां बताया गया है कि किस प्रकार न्याय के लिए युद्ध करना बेहद ज़रूरी हो जाता है। वीर पुरुष युद्ध में जीतते हैं या मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अधिक दया करने से या अत्याचार सहने करने से पौरुष की क्षति होती है। कई बार क्रोध अनिवार्य है। प्रभु राम तीन दिन तक समुद्र की विनय करते रहे कि वह उन्हें रास्ता दे सके लेकिन समुद्र की ओर से कोई जवाब नहीं आया। तब राम अधीर हो गए और अपना धनुष उठा लिया। तब समुद्र उनकी शरण में आ गिरा। न्यायोचित अधिकार माँगने से न मिलें, तो लड़ के, तेजस्वी छीनते समर को जीत, या कि खुद मरके। किसने कहा, पाप है समुचित सत्व-प्राप्ति-हित लड़ना ? उठा न्याय के खड्ग समर में अभय मारना-मरना ? क्षमा, दया, तप, तेज, मनोबल की दे वृथा दुहाई, धर्मराज, व्यंजित करते तुम मानव की कदराई। हिंसा का आघात तपस्या ने कब, कहाँ सहा है ? देवों का दल सदा दानवों से हारता रहा है। मनःशक्ति प्यारी थी तुमको यदि पौरुष ज्वलन से, लोभ किया क्यों भरत-राज्य का? फिर आये क्यों वन से? पिया भीम ने विष, लाक्षागृह जला, हुए वनवासी, केशकर्षिता प्रिया सभा-सम्मुख कहलायी दासी क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल, सबका लिया सहारा; पर नर-व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ कब हारा? क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुए विनत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही। अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है, पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है। क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो। उसको क्या, जो दन्तहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो ? तीन दिवस तक पन्थ माँगते रघुपति सिन्धु-किनारे, बैठे पढते रहे छन्द अनुनय के प्यारे-प्यारे। उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से, उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से। सिन्धु देह धर 'त्राहि-त्राह...

कुरुक्षेत्र: इतिहास, दर्शनीय स्थल, कैसे पहुंचे और घूमने का सबसे अच्छा समय

• इतिहास • घूमने के स्थान • कैसे पहुंचा जाये हरियाणा के पवित्र शहरों में से एक, कुरुक्षेत्र का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है। इसे भगवत गीता की भूमि के रूप में जाना जाता है जो हिंदुओं की पवित्र पुस्तक है, और यहां तक ​​कि महाकाव्य महाभारत भी कुरुक्षेत्र के चारों ओर घूमता है। शहर का नाम राजा कुरु के नाम पर रखा गया है जो कौरवों और पांडवों के पूर्वज थे, जैसा कि महाकाव्य में दर्शाया गया है। साथ ही महाभारत का ऐतिहासिक कुरुक्षेत्र युद्ध भी इसी भूमि पर लड़ा गया था। इसके अलावा, यह वही जगह है जहां भगवान कृष्ण ने पहली बार भगवत गीता का पाठ किया था। हिंदू भक्तों के लिए इस तरह के महान महत्व और समृद्ध इतिहास वाला कोई अन्य पवित्र स्थान नहीं हो सकता है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, कुरुक्षेत्र सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि भगवान और राजाओं का निवास स्थान है। यह एक हिंदू तीर्थस्थल है जिसका अत्यधिक महत्व है और बहुत सारे भक्त यहां मंदिरों, तीर्थस्थलों और अन्य पवित्र स्थलों का पता लगाने के लिए आते हैं। कुरुक्षेत्र घूमने का सबसे अच्छा समय जबकि यह गंतव्य निश्चित रूप से एक यात्रा के लायक है, यह बेहतर है कि आप ऐसा सितंबर और मार्च के बीच करें, क्योंकि इन महीनों के दौरान, कुल मिलाकर मौसम काफी सुखद और दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए आदर्श है। कुरुक्षेत्र का इतिहास प्राचीन हिंदू ग्रंथों में कई अवसरों पर राजा कुरु का उल्लेख मिलता है। वह वह था जो भरत राजवंश पर शासन करता था जिसे कौरव और पांडवों (महाकाव्य महाभारत के समय भाइयों के दो समूह) के पैतृक मूल के रूप में भी माना जाता था। पुराणों में महाभारत के उस महान युद्ध का भी उल्लेख मिलता है जो कुरुक्षेत्र नगरी की भूमि पर लड़ा गया था। बाद के इतिहास में, कुरुक्षेत्र को...