माँ ब्रह्मचारिणी बीज मंत्र

  1. दुर्गा मंत्र
  2. माता सरस्वती मंत्र
  3. नवदुर्गा
  4. माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्र


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दुर्गा मंत्र

• शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम: । • ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: । • चन्द्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम: । • कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम: । • स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम: । • कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: । • कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: । • महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: । • सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: ।

माता सरस्वती मंत्र

पहले ॐ गं गणपतये नम: ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।। कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्। वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्। सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।। वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:। देवी सरस्वती का मूल मंत्र ‘शारदा शारदाभौम्वदना। वदनाम्बुजे।सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रिया तू। अन्य सरस्वती देवी के मंत्र • ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम:| • ॐ श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा। • ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः। • ॐ महाविद्यायै नम: | • ॐ वाग्देव्यै नम: | • ॐ ज्ञानमुद्रायै नम: | सरस्वती देवी की स्तुति या कुंदेंदुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना ! या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ! मंत्र का अर्थ :- जो चन्द्रमा समान मुखमंडल लिए, हिम जैसे श्वेत कुंद फूलों के हार और शुभ्र वस्त्रों से अलंकृत हैं ,जो हाथों में श्रेष्ठ वीणा लिए श्वेत कमल पर विराजमान हैं,ब्रह्मा, विष्णु और सरस्वती माता का रक्षा मंत्र स्तुति या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌। हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌ वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥ सरस्वती रक्षा मंत्र स्तुति का अर्थ :- जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और...

नवदुर्गा

माँ ब्रह्मचारिणी – माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप दधाना करपदमाभ्याम्-अक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ माँ दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी (तप की चारिणी) का अर्थ है, तप का आचरण करने वाली। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी कथा अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। इन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं। उपवास के समय खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहे, इसके बाद में केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं। पत्तों को भी छोड़ देने के कारण उनका नाम अपर्णा भी पड़ा। इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया था। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना देवी अत्यन्त दुखी हो गयीं। उन्होंने उस कठिन तपस्या विरत करने के लिए उन्हें आवाज़ दी “उमा, अरे नहीं”। तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम उमा पड़ गया था। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था। देवता, ॠषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्त में पितामह ब्रह्मा ...

माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्र

माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्र मां दुर्गा के नौ अवतारों में दूसरे अवतार को मां ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। मां दुर्गा के इस अवतार की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ है, ‘तप का आचरण करने वाली।’ मां के इस स्वरूप की पूजा से अनंत फल की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। कठिन संघर्षों में भी साधक का मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी के स्वयं सिद्ध बीज मंत्र: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:। मां ब्रह्मचारिणी का पूजन मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:। जाप विधि: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’ मंत्र का जाप करने से मां का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस मंत्र को 108 बार जाप करना चाहिए, मंत्र जाप करते समय यज्ञ में घी की आहुति देने से विशेष फल मिलता है। दधानां करपद्माभ्याम् अक्षमाला कमंडलु। देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ मां दुर्गा के दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी का है। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अलौकिक है। मां के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है। मां के इस स्वरूप की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है और वो कभी भी जीवन में कठिन संघर्षों से नहीं हारता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के सभी स्वरूपों की पूजा के लिए अलग-अलग बीज...