मानव का प्रकृति करण क्या है

  1. पर्यावरण पर उपदेश और नसीहत के बजाय सोच बदलें
  2. मानव प्रजातियां
  3. Smile please: मानव निर्माण के लिए क्या जरूरी है नैतिकता !
  4. मानव प्रकृति: यह क्या है?, विशेषताएं और अधिक ️ पोस्टपोस्मो
  5. मानव जीवन के अस्तित्व का आधार है प्रकृति
  6. मानव की प्रकृति करण से आप क्या समझते हैं?
  7. प्रकृति की परिभाषा क्या है
  8. मानव भूगोल की प्रकृति। विषय क्षेत्र। मानव भूगोल।


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पर्यावरण पर उपदेश और नसीहत के बजाय सोच बदलें

प्रति वर्ष जून में विश्व पर्यावरण दिवस एक परंपरा निभाने की तरह मनाया जाता है। इसकी शुरूआत सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र के स्टॉकहोम अधिवेशन में हुई। इसे सामान्य नागरिक को स्वस्थ वातावरण देने और उसका बुनियादी अधिकार मानने के संकल्प की तरह देखा गया। हर साल एक थीम चुना जाता है और उसके अनुसार दुनिया भर में जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम बनाए जाते हैं और एक रिचुअल यानी रस्म अदायगी के बाद भुला दिया जाता है। इस बार भी प्लास्टिक के नुक्सान और उससे होने वाले प्रदूषण को समाप्त करने का थीम रखा गया। कथनी और करनी : हकीकत यह है कि दुनिया कुछ भी कहे और प्लास्टिक की जितनी चाहे बुराई कर ले, प्लास्टिक का इस्तेमाल रुकने वाला नहीं है। कारण यह है कि 400 मिलियन टन वार्षिक इसका उत्पादन होता है। 10 प्रतिशत से भी कम रिसाइकल होता है कुछ समुद्र में चला जाता है और शेष अपना घातक प्रभाव छोड़ता जाता है। बताते हैं कि इंसान हर साल लगभग 50 हजार माइक्रो प्लास्टिक के कण उपभोग करता है यानी खा जाता है जो सेहत के लिए हानिकारक है। यह बात इसलिए बताई कि जब उत्पादन बंद नहीं होगा तो किस मुंह से प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से बचने की बात की जाती है। कुछ दिन पहले सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने की बात सुनाई दी थी जो अब हवा हवाई हो चुकी है और धड़ल्ले से इसका पहले से भी ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है क्योंकि इसका उत्पादन बढ़ रहा है। पर्यावरण की व्याख्या : पर्यावरण या वातावरण को सीधी तरह समझा जाए तो यह और कुछ नहीं बल्कि ‘प्र’ से प्रकृति का आवरण या पर्दा है जो संसार के सभी जीवधारियों की सुरक्षा के लिए बना है। इसी प्रकार वातावरण का वात या वायु का आवरण या पर्दा है जो जीवन को बचाए रखता है क्योंकि हवा न हो तो सांस नहीं ले ...

मानव प्रजातियां

अनुक्रम • 1 प्रजाति की उत्पत्ति तथा विकास के कारक • 2 शारीरिक लक्षण • 3 मानव प्रजातियों का वर्गिकरण • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरी कड़ियाँ प्रजाति की उत्पत्ति तथा विकास के कारक [ ] • • शारीरिक लक्षण [ ] • • कद • चेहरा • बाल • सिर की बनावट अथवा कपाल सूचकांक • नाक की आकृति तथा नासिका सूचकांक मानव प्रजातियों का वर्गिकरण [ ] • • • • • • • • • • • • • सन्दर्भ [ ] • Alemannisch • العربية • مصرى • Asturianu • Беларуская • Беларуская (тарашкевіца) • Български • भोजपुरी • Bosanski • Català • کوردی • Čeština • Cymraeg • Dansk • Deutsch • English • Esperanto • Español • Eesti • Euskara • فارسی • Suomi • Français • Frysk • Galego • עברית • Hrvatski • Kreyòl ayisyen • Magyar • Հայերեն • Bahasa Indonesia • Ido • Íslenska • Italiano • 日本語 • ქართული • Қазақша • 한국어 • Кыргызча • Latina • Lietuvių • Latviešu • Македонски • मराठी • Bahasa Melayu • Plattdüütsch • Nederlands • Norsk nynorsk • Norsk bokmål • Polski • پښتو • Português • Runa Simi • Română • Русский • Русиньскый • Srpskohrvatski / српскохрватски • සිංහල • Simple English • Slovenčina • Slovenščina • Shqip • Српски / srpski • Svenska • Sakizaya • தமிழ் • Тоҷикӣ • ไทย • Tagalog • Türkçe • Татарча / tatarça • Тыва дыл • Українська • اردو • Oʻzbekcha / ўзбекча • Tiếng Việt • Winaray • 吴语 • Zeêuws • 中文 • 文言 • Bân-lâm-gú • 粵語

Smile please: मानव निर्माण के लिए क्या जरूरी है नैतिकता !

Smile please: जब हम मानव निर्माण की चर्चा करते हैं तो हमारे मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि हम पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर बढ़ें। पशु और मानव दोनों ही एक समान प्राणधारियों के अंतर्गत आते हैं, दोनों की मौलिक आवश्यकताएं प्राय: एक समान ही हैं। आहार, निद्रा, भय, मैथुन में सब प्रवृत्तियां पशुओं और मनुष्यों में एक समान पाई जाती हैं, परन्तु फिर भी दोनों में अंतर है। 1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें पशुओं का जीवन प्राकृतिक है, इसके विपरीत मानव जीवन सांस्कृतिक है। मानव में कला, विज्ञान और दर्शन का नित्य संवर्धन दिखाई पड़ता है। मानव ने प्रकृति की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके अपने जीवन को भौतिक दृष्टि से बड़ा समृद्ध बना लिया है। उसने प्राकृतिक नियमों का परिष्कार करके अपने भोजन, वस्त्र और मकान को बड़ा सुन्दर, सुदृढ़ और कलात्मक बना लिया है। इसी भौतिक समृद्धि को प्राय: संस्कृति शब्द से पुकारते हैं, सांस्कृतिक जीवन में कुछ तत्व प्राकृतिक जीवन से बाहर के भी हैं। इन तत्वों को नैतिक तथा आध्यात्मिक तत्व कहते हैं। नैतिक जीवन के मूल में बुद्धि तत्व आवश्यक है। धर्म और नीति का घनिष्ठ संबंध है। जब मनुष्य अपने कर्त्तव्य को ईश्वरीय आज्ञा के रूप में देखता है तो उसके लिए नीति धर्म बन जाती है। नीति, नैतिकता, शिष्टाचार, सदाचार, आचार, शील, चरित्र पर्यायवाची शब्द हैं। राजनियम हमारे कर्मों तक पहुंचते हैं, भावनाओं तक नहीं। यह त्रुटि धर्म पूरी करता है। धर्म का उद्देश्य भावनाओं को पवित्र करना है। प्रकृति में नैतिकता का कोई विशेष नियम नहीं है। प्रकृति का प्रमुख नियम है कि सक्षम ही जीवित रह पाएगा। ऐसी...

मानव प्रकृति: यह क्या है?, विशेषताएं और अधिक ️ पोस्टपोस्मो

अनुक्रमणिका • 1 मानव स्वभाव क्या है? • 2 सुविधाओं • 3 मूल • 3.1 चीनी दर्शन • 3.1.1 कन्फ्यूशीवाद • 3.1.2 विधिपरायणता • 4 पश्चिमी आधुनिक युग का दर्शन • 4.1 हन्ना अरेंड्ट की दृष्टि • 4.2 राजनीतिक क्षेत्र में समझने की प्रक्रिया • 5 कोनराड लोरेंजो का नैतिक विश्लेषण • 6 मानव प्रकृति का वर्तमान और भविष्य • 6.1 मानव प्रकृति के लिए इस वर्तमान तात्कालिकता का कारण क्या है? • 6.2 कौन सी अवधारणा आशाजनक है? • 6.2.1 भेद्यता, निर्भरता और स्वायत्तता • 6.2.2 मानव प्रकृति का एक कठोर परिवर्तन मानव स्वभाव क्या है? La मानव प्रकृति स्थिर और अपरिवर्तनीय विशेषताओं, सामान्य झुकाव और गुणों का एक समूह है जो व्यक्त करते हैं यह विचार कि एक व्यक्ति के पास एक निश्चित अपरिवर्तनीय प्रकृति है, शुरू में दर्शन के इतिहास में विशिष्ट चर्चाओं को उत्तेजित नहीं करता था, यह अनुमान लगाना महत्वपूर्ण था कि यह प्रकृति क्या है, हालांकि, की स्थिरता का विचार मनुष्य का स्वभाव इसे भीतर से कम आंका गया था: दार्शनिकों और राजनेताओं ने इस अवधारणा में पूरी तरह से विरोधी सामग्री डाली। जब कोई राजनेता या सामाजिक विचारक प्रचलित व्यवस्था को सही ठहराने की कोशिश करता है, तो वह स्वाभाविक रूप से इस विश्वास से शुरू होता है कि मानव प्रकृति अपरिवर्तनीय है, उदाहरण के लिए, आर्थिक प्रतिस्पर्धा की अनिवार्यता की बात करते हुए, प्रारंभिक पूंजीवाद के विचारकों ने माना कि मनुष्य स्वभाव से लाभ के लिए प्रयास करता है, संवर्धन सुविधाओं के बीच में मानव प्रकृति के लक्षण यह है कि यह रहस्यमय, दिलचस्प, राजसी है और पूरी तरह से समझ में नहीं आता है, यह हमें बताता है कि हम इंसान स्वभाव से कौन हैं और हमें दिखाते हैं कि हम क्या बन सकते हैं यदि हम अपनी सारी शक्ति का ...

मानव जीवन के अस्तित्व का आधार है प्रकृति

Edited By Riya bawa,Updated: 11 Jun, 2020 03:36 PM • • • • मानव प्रकृति का हिस्सा है|प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती|प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है - प्र और कृति|प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना |ईश्वर की श्रेष्ठ रचना... मानव प्रकृति का हिस्सा है|प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती|प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है - प्र और कृति|प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना |ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि|प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है|कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है |प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव प्रकृति |प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व - पृथ्वी , जल अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं|मानव प्रकृति में मन , बुद्धि और अहंकार शामिल हैं |हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ श्रीमद् भगवद्गीता में वर्णित(सातवां वां अध्याय व चौथा श्लोक) – भुमिरापोनलो वायु: खं मनो बुद्धि रेव च| अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।गीता 7:4 ।। अर्थ : भगवान् श्री कृष्ण गीता में कहते हैं -पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश ये पञ्चमहाभूत और मन, बुद्धि तथा अहंकार- यह आठ प्रकार के भेदों वालीमेरी अपरा प्रकृति है। हे महाबाहो ! इस अपरा प्रकृति से भिन्न जीवरूप बनी हुई मेरीपरा प्रकृतिको जान, जिसके द्वारा यह जगत् धारण किया जाता है। कहने का तात्पर्य- ये आठ प्रकार की प्रकृति समूचे ब्रह्माण्ड का निर्माण करती है|वेदों में वर्णित है की मनुष्य का शरीर पंचभूतों यानी अग्...

मानव की प्रकृति करण से आप क्या समझते हैं?

किसी भी विषय का अपना प्रकृति होता है। ठीक उसी प्रकार मानव भूगोल की अपनी प्रकृति है। मानव भूगोल कि प्रकृति से तातपर्य यह है कि मानव भूगोल के प्रत्येक विषय क्षेत्र में मानव तथा भौतिक तत्वों के अंतरसंबंध के विकास का अध्ययन किया जाता है। चाहे वह जनसंख्या हो या मानवीय क्रिया कलाप सभी में मानव और प्रकृति के बीच अन्तर्क्रिया के प्रतिफ़ल प्रदर्शित होता है। जैसे आदि मानव का रहन-सहन , खान-पान , जीवन-यापन वर्तमान समय के मानव के रहन-सहन, जिवन-यापन मे बहुत सारा परिवर्तन हुआ है। इसे निम्न विचारधराओं से समझा जा सकता है। विषयसूची Show • • • • • • • मानव का प्रकृतिकरण (निश्चयवाद ) प्रकृति का मानवीयकरण (संभववाद ) नव निश्चयवाद। मानव का प्रकृतिकरण —- मानव का प्रकृतिकरण का तातपर्य, प्रकृति के अनुसार मानव के सभी चीजों का निर्धारण होता है जैसे : मनुष्य का भोजन , पोशाक , आवास , शारीरिक गठन ,रंग ,मानव क्रियाकलाप इत्यादि इसका सबसे अच्छा उदहारण है। आदि मानव या वर्तमान समय के जनजातियाँ जो जंगलो , ध्रुवीय क्षेत्रो , समुद्रतटीय क्षेत्रो , पर्वतो मे रहते है। और प्रकृति के अनुसार जीवन यापन करते है। पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर रहते है। प्रकृति के प्रकोप से डरते है। प्रकृति का उपासना करते है। यही विचारधारा बाद मे पर्यावरणीय निश्चयवाद या नियतिवाद के नाम से जाना जाता है जिसके समर्थक फ्रेडरिक रेटजेल ,एलन कुमारी सैम्पल , पॉल वाइडल-डी-ला ब्लास थे। सैम्पल के अनुसार ”मानव पृथ्वी का धूल है।” प्रकृति मानव को जैसा चाहे वैसा ढाल सकता है , रंग दे सकता है , बर्बाद क्र सकता है। प्रकृति के सामने मानव का कोई अस्तित्व नही है। प्रकृति का मानवीयकरण —- जैसे-जैसे समय बीतता जाता है प्रकृति के नियमो से मानव सीखता जाता है और त...

प्रकृति की परिभाषा क्या है

प्रकृति का अर्थ भौतिक संसार होता है। प्रकृति भौतिक दुनिया की घटनाओं और सामान्य रूप से जीवन को संदर्भित करती है। प्रकृति का अध्ययन एक बड़ा विषय हैं। यह केवल विज्ञान का ही हिस्सा नहीं है। यद्यपि मनुष्य प्रकृति का हिस्सा हैं। मानव गतिविधि को अक्सर अन्य प्राकृतिक घटनाओं से अलग श्रेणी में रखाजाता है। प्रकृति की परिभाषा क्या है प्रकृति भौतिक दुनिया की घटनाओं को संदर्भित करती है। प्रकृति शब्द जीवित पौधों और जानवरों, मौसम और भौतिकी, जैसे पदार्थ और ऊर्जा को संदर्भित करता है। यह शब्द प्राकृतिक मानव हस्तक्षेप से निर्मित वस्तुओं और मानव संपर्क को आम तौर पर प्रकृति का हिस्सा नहीं माना जाता है, जब तक कि योग्य न हो। प्रकृति की यह अधिक पारंपरिक अवधारणा पृथ्वी के प्राकृतिक और कृत्रिम तत्वों के बीच एक भेद का तात्पर्य है, कृत्रिम के साथ जो मानव चेतना या मानव मन द्वारा अस्तित्व में लाया गया है। प्रकृति को अंग्रेजी मे नेचर कहा जाता हैं। प्रकृति शब्द लैटिन शब्द नटुरा से लिया गया है, और इसका शाब्दिक अर्थ जन्म है। नेचुरा ग्रीक शब्द फिसिस का लैटिन अनुवाद था, जो पौधों, जानवरों और दुनिया की अन्य विशेषताओं को जोड़ता है। प्रकृति की अवधारणा, भौतिक ब्रह्मांड, मूल धारणा के कई विस्तारों में से एक है। यह पूर्व दार्शनिकों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला शब्द है। पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसे वर्तमान में जीवन का समर्थन करने के लिए जाना जाता है, और इसकी प्राकृतिक विशेषताएं वैज्ञानिक अनुसंधान के कई क्षेत्रों का विषय हैं। सौर मंडल के भीतर, यह सूर्य के सबसे नजदीक तीसरा ग्रह है। यह सबसे बड़ा स्थलीय ग्रह है। इसकी सबसे प्रमुख जलवायु विशेषताएं हैं। वर्षा स्थान के साथ भिन्न होती है, प्रति वर्ष कई मीटर पानी से लेकर एक ...

मानव भूगोल की प्रकृति। विषय क्षेत्र। मानव भूगोल।

Table of Contents • • • • • मानव भूगोल की प्रकृति : किसी भी विषय का अपना प्रकृति होता है। ठीक उसी प्रकार मानव भूगोल की अपनी प्रकृति है। मानव का प्रकृतिकरण (निश्चयवाद ) प्रकृति का मानवीयकरण (संभववाद ) नव निश्चयवाद। मानव का प्रकृतिकरण —- मानव का प्रकृतिकरण का तातपर्य, प्रकृति के अनुसार मानव के सभी चीजों का निर्धारण होता है जैसे : मनुष्य का भोजन , पोशाक , आवास , शारीरिक गठन ,रंग ,मानव क्रियाकलाप इत्यादि इसका सबसे अच्छा उदहारण है। आदि मानव या वर्तमान समय के जनजातियाँ जो जंगलो , ध्रुवीय क्षेत्रो , समुद्रतटीय क्षेत्रो , पर्वतो मे रहते है। और प्रकृति के अनुसार जीवन यापन करते है। पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर रहते है। प्रकृति के प्रकोप से डरते है। प्रकृति का उपासना करते है। यही विचारधारा बाद मे पर्यावरणीय निश्चयवाद या नियतिवाद के नाम से जाना जाता है जिसके समर्थक फ्रेडरिक रेटजेल ,एलन कुमारी सैम्पल , पॉल वाइडल-डी-ला ब्लास थे। सैम्पल के अनुसार ”मानव पृथ्वी का धूल है।” प्रकृति मानव को जैसा चाहे वैसा ढाल सकता है , रंग दे सकता है , बर्बाद क्र सकता है। प्रकृति के सामने मानव का कोई अस्तित्व नही है। प्रकृति के प्रकोपों से बचाव के उपाय भी ढूंढ़ लेता है भोजन की अनिश्चिता को दूर करता है। और प्रकृति को बदलना सुरु करता है। जंगलो को विनास करता है। खनिज संपदा को दोहन करके प्रकृति के खिलाफ ही उपयोग करता है। मानव अपने आप को प्रकृति से बलवान समझने लगता है। प्रकृति को अंधाधुंध दोहन करता है पर्यावरण को प्रदूषित करता है। और मानव का प्रभाव प्रकृति पर दिखने लगता है। इसी परिवर्तन का प्रकृति का मनवीयकरण कहा जाता है। यही विचारधारा को बाद मे संभववाद के नाम से जाना जाता है। जिसके समर्थक लूसियन फैब्रे ,हम्बोल्...