माता सती के 51 शक्तिपीठ

  1. Chaitra Navratri 2019: माता सती के 4 अज्ञात शक्तिपीठ, जिनको लेकर आज भी रहस्य है बरकरार
  2. Navratri 2019: यहां गिरा था माता सती का पट सहित वाम स्कंध, दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना, crowd of devotees at devi patan temple in balrampur
  3. Navratri: 51 शक्तिपीठ में आता है गुजरात का अंबा मंदिर, यहां नहीं कोई मूर्ति जहां गिरा था देवी सती का हृदय
  4. माता सती का जन्म और 51 शक्तिपीठ की उत्पत्ति कथा – Bhaktimaal


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Chaitra Navratri 2019: माता सती के 4 अज्ञात शक्तिपीठ, जिनको लेकर आज भी रहस्य है बरकरार

Chaitra Navratri 2019: माता सती के 4 अज्ञात शक्तिपीठ, जिनको लेकर आज भी रहस्य है बरकरार हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जिस-जिस स्थान पर माता सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र और आभूषण गिरे थे, वहां, वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. मुख्य तौर पर देवी सती के 51 शक्तिपीठ ही माने गए हैं, लेकिन इनमें भी 4 शक्तिपीठ ऐसे हैं जो अज्ञात हैं और उन पर रहस्य बरकरार है. Chaitra Navratri 2019: नवरात्रि (Navratri) का पावन पर्व मां दुर्गा (Godess Durga) की आराधना का पर्व है. नवरात्रि के दौरान कुल नौ दिनों तक मां भगवती के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. देवी पुराण के अनुसार, एक साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व आता है, लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि का पर्व देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि अन्य दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. मां भगवती की भक्ति और आराधना का पर्व चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) 6 अप्रैल से शुरु हो रहा है. इस दौरान प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरुप की पूजा की जाएगी. हिंदू धर्म के मान्यताओं के अनुसार, जिस-जिस स्थान पर माता सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र और आभूषण गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ (Shaktipeeth) अस्तित्व में आए. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है तो वहीं देवी भागवत में 108 शक्तिपीठ बताए जाते हैं. जबकि देवी गीता में 72 और तंत्रचूड़ामणि में 52 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है. मुख्य तौर पर देवी सती के 51 शक्तिपीठ ही माने गए हैं, लेकिन उनमें भी 4 शक्तिपीठ ऐसे हैं जो अज्ञात हैं और उन पर रहस्य बरकरार है. यह भी पढ़ें: 1- पंचसागर शक्तिपीठ देवी सती के 51 शक्तिपीठों में पंचसागर शक्तिपीठ को लेकर आज भी रहस्य बरकरार है. मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर म...

Navratri 2019: यहां गिरा था माता सती का पट सहित वाम स्कंध, दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना, crowd of devotees at devi patan temple in balrampur

बलरामपुर: शारदीय और चैत्र नवरात्रि में जिले के मां देवीपाटन शक्तिपीठ में देश-विदेश से श्रद्धालु मन में मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मां दुर्गा के भव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं. मान्यता है कि 51 शक्तिपीठों में से एक मां देवीपाटन शक्तिपीठ में हिमालय की पुत्री माता सती का वाम स्कंध गिरा था. शारदीय नवरात्रि के दिनों में मंदिर प्रांगण में 15 दिन का राजकीय मेला लगता है. चैत्र नवरात्रि में एक माह तक चलने वाले भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. शारदीय नवरात्रि में नौ दिन तक मां भगवती की यहां पर विशेष पूजा अर्चना होती है, जिसका अपना पौराणिक महत्व है. मां देवीपाटन शक्तिपीठ में गिरा था माता सती का वाम स्कंध. यहां गिरा था माता सती का वाम स्कंध स्कंद पुराण में मिलते विवरणों के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ कुंड में माता सती ने भगवान शिव के अपमान से आहत होकर प्रवेश कर अपने शरीर का परित्याग कर दिया था. यह सुनकर भगवान शिव यज्ञ स्थल पर पहुंचे. व्यथित शिव ने अपने कंधे पर माता सती का शरीर रखकर इधर-उधर घूमना और तांडव करना शुरू कर दिया. इससे सृष्टि के संचालन में बाधा पैदा होने लगी. तब देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका हल निकलने के लिए प्रार्थना की. नारायण ने अपने चक्र से माता सती के शरीर को काटकर गिराना शुरू किया. जिन 51 स्थानों पर सती के अंग गिरे, वह सभी शक्तिपीठ कहलाए. देवीपाटन में सती का वाम स्कंध पट सहित गिरा था. इससे यह स्थल सिद्धपीठ देवीपाटन के रूप में विख्यात हुआ. पढ़ें:- माता सीता ने यहां किया था पाताल लोक में प्रवेश इस सिद्ध पीठ के बारे में एक अन्य मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवती सीता ने इस स्थल पर ही पाताल लोक में प्रवेश किया था. इसका साक्ष्य गर्भ गृह में चांदी से ढंका चबूतरा ह...

Navratri: 51 शक्तिपीठ में आता है गुजरात का अंबा मंदिर, यहां नहीं कोई मूर्ति जहां गिरा था देवी सती का हृदय

डीएनए हिंदीः गुजरात में मौजूद देवी अंबाजी का मंदिर बेहद खास है. नवरात्रि में देवी के दर्शन करने यहां लोग दूर-दूर से आते हैं. खास बात ये है कि यहां देवी सती का हृदय गिरा था लेकिन यहां उनकी कोई प्रतिमा नहीं है. यहां उनकी पूजा किसी अलग ही तरह से होती है. 51 शक्तिपीठों में शामिल सबसे प्रमुख स्थल है अंबाजी मंदिर में दर्शन करने भर से दुखों से मुक्ति मिलने की मान्यता है. यहां माता सती का हृदय गिरा था इसलिए इस मंदिर में मान्यता है कि यह भी पढ़ेंः अंबाजी मंदिर गुजरात का सबसे प्रमुख मंदिर है और ये माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर स्थित है. यह देवी अंबा का प्राचीन शक्तिपीठ है और गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है. शक्‍तिपीठ बनने की कहानी शक्तिपीठ की पौराणिक कथा के अनुसार माता दुर्गा ने राजा प्रजापति दक्ष के घर में सती के रूप में जन्म लिया. भगवान शिव से उनका विवाह हुआ. एक बार ऋषि-मुनियों ने यज्ञ आयोजित किया था. जब राजा दक्ष वहां पहुंचे तो महादेव को छोड़कर सभी खड़े हो गए. यह देख राजा दक्ष को बहुत क्रोध आया. उन्होंने अपमान का बदला लेने के लिए फिर से यज्ञ का आयोजन किया. इसमें शिव और सती को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया. जब माता सती को इस बात का पता चला तो उन्होंने आयोजन में जाने की जिद की. शिवजी के मना करने के बावजूद वो यज्ञ में शामिल होने चली गईं. यह भी पढ़ेंः यज्ञ स्थल पर जब माता सती ने पिता दक्ष से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा तो उन्होंने महादेव के लिए अपमानजनक बातें कहीं. इस अपमान से माता सती को इतनी ठेस पहुंची कि उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी. वहीं, जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया. उन्होंने सती के पार्थिव शरीर क...

माता सती का जन्म और 51 शक्तिपीठ की उत्पत्ति कथा – Bhaktimaal

Table of Contents • • • • • • • • • प्रजापति दक्ष की तपस्या और आदि शक्ति जगदम्बा का वरदान एक बार की बात है जगत की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति से कहा –” पुत्र ! मैं तुम्हारे कल्याण की एक बात बता रहा हूँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनो। साक्षात् भगवान शिव ने परमा पूर्णा प्रकृति की आराधना की तथा उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने के विचार से उनसे प्रार्थना की। आदि शक्ति जगदम्बा ने भगवान शिव की वह बात स्वीकार कर ली। अतः वे महेश्वरी कहीं न कहीं जन्म लेकर शिव को पति रूप में अवश्य प्राप्त करेंगी। वे प्रकृति तुम्हारी पुत्री के रूप में उत्पन्न होकर शम्भू की भार्या होवें, इसके लिए तुम अति कठोर तपस्या के द्वारा भक्तिपूर्वक उनसे प्रार्थना करो। वे इस लोक में भाग्य से जिसकी पुत्री के रूप में उत्पन्न होंगी, उसका जीवन सफल हो जायेगा। “ दक्ष बोले –” पिताजी ! मैं आपकी आज्ञा से निश्चित रूप से वैसा ही प्रयत्न करूँगा, जिससे वे साक्षात् प्रकृतिरूपा जगदम्बा मेरी पुत्री के रूप में जन्म लें। “ ब्रह्मा जी से आज्ञा लेकर दक्ष प्रजापति ने तीन हजार वर्षों तक कठोर तपस्या की। दक्ष प्रजापति की तपस्या से प्रसन्न होकर माता जगदम्बा ने उन्हें दर्शन दिया और उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। तदन्तर दक्षपत्नी प्रसूति ने शुभ दिन में एक कन्या को जन्म दिया। वह कन्या भगवती पूर्णा ही थीं। वह कन्या गौरवर्ण थी और उसकी आभा करोड़ों चन्द्रमा के समान उज्जवल थी। उसके खिले हुए कमल के समान बड़े-बड़े नेत्र थे और उसका मुख अत्यंत सुन्दर था। उस कन्या को देखकर दक्ष अत्यंत प्रसन्न हुए और उसका नाम ‘ सती‘ रखा। वह कन्या शुक्लपक्ष के चन्द्रमा की भाँति दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी। देवताओं द्वारा भगवान शिव से सती के साथ विवाह का...