मछला हरण का सातवां भाग

  1. नवरात्रि का सातवां दिन देवी मां कालरात्रि के नाम, पढ़ें पौराणिक कथा
  2. शादी के 7 पवित्र वचन और उनके अर्थ तथा महत्व (Shadi ke 7 Pavitra Vachan aur unke Arth tatha Mahatva)
  3. हिन्दी पुस्तकों की सूची/श
  4. षोडश वर्ग अध्ययन – Astrologer
  5. हीरक प्रवचन
  6. नवरात्र का सातवां दिन: जानिए, काल का नाश करने वाली, मां कालरात्रि की पूजन विधि, मंत्र, आरती और महत्व


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नवरात्रि का सातवां दिन देवी मां कालरात्रि के नाम, पढ़ें पौराणिक कथा

इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है।

शादी के 7 पवित्र वचन और उनके अर्थ तथा महत्व (Shadi ke 7 Pavitra Vachan aur unke Arth tatha Mahatva)

हिन्दू धर्म में शादी यानी की विवाह के समय नव विवाहित जोड़ें 7 फेरें लेते है और उन सात फेरों के साथ-साथ खाने पड़ते है सात वचन (Saat Vachan) भी। इन 7 कसमों (7 Kasamon) या वचनों का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। ये 7 पवित्र वचन हिन्दू विवाह और नए दंपत्ति की बीच के रिश्ते का मूल आधार है। शादी के समय तो लोग उन कसमों को पूरा करने की हामी भर देते है पर अपने दाम्पत्य जीवन में कदम रखते ही नव विवाहित जोड़ें उन सातों कसमों को और उनके अर्थ को भूल बैठते है। लोग अगर उन कसमों को याद रखें तो वैवाहिक जीवन के कई समस्याओं से निजात पा सकते है। चुकी, ये मंत्र संस्कृत भाषा में लिखे गए है इसलिए विवाह के समय पंडित जी इन मंत्रों का उच्चारण संस्कृत में करते है जिसके कारण कई लोग इन मंत्रों का अर्थ समझ नहीं पाते। आज हम जानेंगे शादी के 7 पवित्र वचन ( Shadi ke 7 Pavitra Vachan) और उनके अर्थ के बारे में, तो चलिए शुरू करते है : पहला वचन अर्थ : ( Pehla Vachan) ।।तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।। ।।वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।। अर्थात :इस श्लोक के द्वारा कन्या अपने वर से कहती है कि मुझे प्रथम वचन दीजिए कि जब भी आप तीर्थ यात्रा पर जाएंगे तो मुझे भी अपने साथ लेकर जाएंगे। जब कभी भी आप कोई व्रत, पूजा या धर्म कर्म का काम करेंगे तो आप मुझे अपने वाम भाग पर स्थान दीजिएगा। अगर, आप इसे स्वीकार करते है तो ही मैं आपके वामांग में रहना स्वीकार करुँगी। पहले वचन के अनुसार किसी भी तरह के धार्मिक कार्य, पूजा पाठ में पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य है। पत्नी द्वारा कहे गए इस प्रथम वचन के द्वारा मंगल व धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभागिता को स्पष्ट किया गया है। दूसरा वचन अर्थ ...

हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

इस सूची के कुछआइटम विकिपीडिया के संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी • • • बंद पन्ने (काव्य संग्रह) -राजीव कुमार झा • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • •...

षोडश वर्ग अध्ययन – Astrologer

षोडश वर्ग का फलित ज्योतिष में विशेष महत्व है। जन्मपत्री का सूक्ष्म अध्ययन करने में यह विशेष सहायक है। इन वर्गों के अध्ययन के बिना जन्मकुंडली का विश्लेषण अधूरा होता है क्योंकि जन्म कुण्डली से केवल जातक के शरीर, उसकी संरचना एवं स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है, लेकिन षोडश वर्ग का प्रत्येक वर्ग जातक के जीवन के एक विशिष्ट कारकत्व या घटना के अध्ययन में सहायक होता है। जातक के जीवन के जिस पहलू के बारे में हम जानना चाहते हैं उस पहलू के वर्ग का जब तक हम अध्ययन न करें तो विश्लेषण अधूरा ही रहता है। वर्ग क्या है ? वर्ग वास्तव में गहो और लग्न का सूक्ष्म विभाजन है। यह इसलिए भी आवश्यक है की एक लग्न मे कई जातक जन्म लेते है। लेकिन हर एक का गुण, शरीर, धन, पराक्रम, सुख, बुद्धि, भार्या, भाग्य एक सा नही होता। अतः यही जानने के लिए वर्ग बनाये जाते है। एक राशि 30 अंशो की होती है इसके सूक्ष्म विभाजन करने पर कुल सोलह वर्ग बनते है। इनके नाम इस प्रकार है :- 01 लग्न, 02 होरा, 03 द्रेष्काण, 04 चतुर्थांश, 05 सप्तमांश, 06 नवमांश, 07 दशांश, 08 द्वादशंश, 09 षोडशांश, 10 विशांश, 11 चतुर्विंशांश, 12 त्रिशांश, 13 खवेदांश, 14 अक्षवेदांश, 15 भांश, 16 षष्टयांश (1 / 60) षट्वर्ग : लग्न, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश ये छः वर्ग होते है। सप्तवर्ग : उपरोक्त षट्वर्ग मे सप्तांश जोड़ देने पर सप्तवर्ग हो जाते है। दसवर्ग : उपरोक्त सप्तवर्ग मे दशांश, षोड़शांश, षष्टयांश जोड़ देने पर दस वर्ग होते है। सूर्य का अर्थात् सिंह और चंद्र का अर्थात् कर्क। ग्रह या तो चंद्र होरा में रहते हैं या सूर्य होरा में। बृहत पाराशर होराशास्त्र के अनुसार गुरु, सूर्य एवं मंगल सूर्य की होरा में और चंद्र, शुक्र एवं शनि चंद्...

हीरक प्रवचन

( १३ ]. पढ़ने से तपस्या करने की रुचि पैदा हो । दूसरी क्षमा करने की भावना जागृत हो । तीसरी झदट्दिसा, प्राखि मात्र पर करूणा करना विश्व के समसत- जीवों को झपने जैसा समकना । 'श्ीर उनके . सुख दुःख में भागीदार बनना | सत्साहित्य एक प्रकाश स्थम्म है। मानवों को अन्तर ज्योति का दर्शन कराता है। 'और भूले भटकों को मागें पर लाता है । जिससे गंतव्य स्थान पेर पहुंचा कर 'झात्म शान्ति देता है । ाप के द्वेथ में हीरक प्रवचन का सातवां भाग है । इसमें रहे हुए प्रबचन बहुत सुन्दर, झात्म शान्ति दिलाने बाले, मोच्ष- मागे के पथ प्रदर्शेक है। इसे इस निसंकोच सत्य सादित्य कह सकते हैं ! क्योंकि इन प्रबचनों में इन विषयों पर-- सुपात्र-सेवा सन की जलन... तपोमदिसा लि चिरालस्ब के झालम्ब भावना भवनाशिली संघर द्वार बन्घधन-विजय म् दिलका मलहस शल्य-चिरसन विकीन कल्याण की कसौटी मुक्ति की वरमाला स्सार बहुत 'ाक्षक एवं रोचक रूप से विशद्‌ विवेचन किया है । इन श्रवचनों के प्रवचनकार शाख््र विशारद पंडित मुस्ति श्री ीरालालजी म० हैं। 'झापने बाल्यकाल से ही शाचार्ये श्री खूबचन्दजी म० की सेवा में रद्द कर शास्रों का धष्ययन किया है | • Disclaimer: (Please Read the Complete Disclaimer • DMCA Notice: All Material available on this site which is available for download is collected from Various OpenSource platforms. Backlink/Reference to the original content source is provided below each Book with "Ebook Source" Label. • For Copyrighted Material, Only Ratings and Reviews are provided. If you want us to remove your material, please • आवश्यक सूचना :(सम्पूर्ण डिस्क्लेमर • कॉपीराइट सम्बंधित सूचना : इस साईट की सभी पुस्तकें OpenSource माध्यम से ...

नवरात्र का सातवां दिन: जानिए, काल का नाश करने वाली, मां कालरात्रि की पूजन विधि, मंत्र, आरती और महत्व

नवरात्र के सातवें दिन मां दुर्गा की सातवीं शक्ति मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि काल का अंत करने वाली हैं। वे अपने भक्तों पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखती हैं और उनके सभी विघ्न दूर करती हैं। मां शुभ फल देती हैं इसलिए इन्हें ‘ शुभंकरी ’ के नाम से भी जाना जाता है। मां अपने भक्तों के सभी तरह के भय दूर कर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। इनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तों को पूरे विधि-विधान से इनकी आराधना करनी चाहिए। तो, आइए, आपको बताते हैं मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजन विधि, मंत्र, आरती और महत्व के बारे में... बेहद भयानक है मां कालरात्रि का स्वरूप देवी कालरात्र का स्वरूप ऐसा है कि काल उनका रूप देखकर ही भाग जाए। उनके शरीर का रंग अंधकार के समान काला है। उनके बाल बिखरे हुए हैं। उनके गले की माला बिजली की भांति चमकती है। उनके श्वास से अग्नि निकली है। देवी पुराण के अनुसार मां के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल एवं गोल हैं जिनमें से बिजली निकलती है। मां के चार हाथ हैं जिनमें से एक में वे खड्ग यानी तलवार और दूसरे में लौह अस्त्र है। तीसरा हाथ अभयमुद्रा में और चौथा हाथ वर मुद्रा में है। मां का वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है जो सभी जीव-जन्तुओं में सबसे परिश्रमी माना जाता है। वह निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को इस संसार का विचरण करा रहा है। माता का यह स्वरूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है। मां कालरात्रि की पूजा का महत्व देवी भागवत पुराण के अनुसार जो भी मां की सच्चे मन से उपासना करता है उसके लिए कुछ भी प्राप्त करना दुर्लभ नहीं होता। मां अपन भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं। आदिशक्ति मां अपने भक्तों के कष्टों का जल्द ही निवारण कर देती हैं। काल से...