मेघ आये कविता का भावार्थ

  1. मेघ आए के भावार्थ पढ़िए क्लास 9 हिंदी क्षितिज
  2. मेघ आए कविता का भावार्थ/व्याख्या │ Sahitya Sagar
  3. मेघ आए का भावार्थ
  4. Aadmi Naama Poem Summary in Hindi Class 9 (आदमी नामा


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मेघ आए के भावार्थ पढ़िए क्लास 9 हिंदी क्षितिज

जब प्रचंड गर्मी के बाद काले बादल आसमान पर छाने लगते हैं तो हर कोई बड़ी खुशी से उसका स्वागत करता है। इस कविता में मेघ के स्वागत की तुलना दामाद के स्वागत से की गई है। हमारे यहाँ हर जगह दामाद की बड़ी मान मर्यादा होती है। खासकर गांवों में तो जैसे पूरा गांव ही दामाद के स्वागत में जुट जाता है। मेघ किसी जमाई की तरह सज संवर कर आया है। उसके स्वागत में आगे-आगे नाचती गाती हुई हवा चल रही है, ठीक उसी तरह जैसे गांव की सालियाँ किसी जमाई के आने के समय करती हैं। लोग दरवाजे और खिड़कियाँ खोलकर उसकी एक झलक देखने को बेताब हैं। पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये बांकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूंघट सरके मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के। जब मानसून में तेज हवा चलती है तो पेड़ झुक जाते हैं और ऐसा लगता है जैसे वे गरदन उचका कर मेघ रूपी पाहुन को देख रहे हैं। आंधी चल रही है और धूल ऐसे भाग रही है जैसे कोई सुंदरी अपना घाघरा उठाये हुए भाग रही हो। नदी ठिठक कर अपना घूंघट सरका रही है और अपनी बांकी नजर से मेघ को निहार रही है। बूढ़े पीपल ने बढ़कर आगे जुहार की बरस बाद सुधि लीन्ही’ – बोली अकुलाई लता ओट हो किवाड़ की हरसाया ताल लाये पानी परात भर के मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के। पीपल के पेड़ प्राय: बहुत पुराने होते हैं, इसलिए यहाँ उसे बूढ़ा पीपल कहा गया है। बूढ़ा पीपल आगे बढ़कर मेघ को प्रणाम कर रहा है। लताएँ ऐसे किवाड़ की ओट में चिपक गई हैं जैसे व्याकुल होकर पूछ रही हों कि इस जमाई ने बहुत दिनों बाद उनकी सुधि ली हो। तालाब खुश होकर अपने विशाल परात में पानी भरकर लाया है। कई जगह मेहमान के आने पर उसके पाँव परात में धोने का रिवाज है। रामायण में केवट ने राम के पाँव धोए थे तब उन्हें अपनी नाव पर चढ़ाया था। क्षितिज अट...

मेघ आए कविता का भावार्थ/व्याख्या │ Sahitya Sagar

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मेघ आए का भावार्थ

• • • • • • कवि परिचय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन 1927 में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विष्वविधालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की। शुरुआत में उन्हें आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ा परन्तु बाद में उन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पादन किया। सन 1983 में इनका आकस्मिक देहांत हो गया। मेघआए कविता का प्रतिपाद्य: short summary ‘मेघ आए’ कविता में कवि श्री सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने प्रकृति का अद्भुत वर्णन किया है। मानवीकरण के माध्यम से कवि ने कविता को चत्ताकर्षक बना दिया है। कवि ने बादलों को मेहमान के समान बताया है। पूरे साल भर के इंतशार के बाद जब बादल आएए ग्रामीण लोग बादलों का स्वागत उसी प्रकार करने लगे जिस प्रकार कोई अपने (दामाद)का स्वागत करता है। किसी ने स्वागत किया तो किसी ने उलाहना भी दिया। बादलों के स्वागत में सारी प्रकृति ही उपस्थित हो गई। बादल मेहमान अर्थात दामाद की तरह बन-ठन कर तथा सज-ध्जकर आए हैं। हवा भी चंचल बालिका की तरह नाच-गाकर उनका स्वागत कर रही है। मेघों को देखने के लिए हर आदमी उतावला हो रहा है। इसीलिए सबने अपने.अपने घरों के दरवाजे तथा खिड़कियाँ खोल दिए हैं और बादलों को देख रहे हैं। आँधी चली और धूल इधर-उधर भागने लगी। धूल का भागना ऐसा लगाए मानो कोई गाँव की लड़की अपना घाघरा उठाकर घर की तरपफ भाग चली। गाँव की नदी भी एक प्रेमिका की तरह अपने मेहमान मेघों को देखकर ठिठक गई तथा उन्हें तिरछी नजर से देखने लगी। गाँव की सुंदरियों ने अपना घूँघट उठाकर बने-ठने? सजे.सँवरे मेहमानों के समान बादलों को देखा। बादल रूपी मेहमानों के आने पर पीपल ने गाँव के एक बड़े-बूढ़े बुजुर्ग की तरह झुककर उनका स्वागत किया। साल भर की गर्मी सहकर मुरझाई लताएँ ऐसे दरवाजे के पीछे चिपकी खड़ी...

Aadmi Naama Poem Summary in Hindi Class 9 (आदमी नामा

Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 Summary Aadmi Naama – Najir Akbarabaadi (आदमी नामा- नाजिर अ कबराबादी) नाजिर अकबराबादी का जीवन परिचय- Nazeer Akbarabadi Ka Jivan Parichay : नज़ीर अकबराबादी 18वीं सदी के प्रसिद्ध भारतीय शायर थे। इन्हें “नज़्म का पिता” कहा जाता है। इन्होंने कई ग़ज़लें लिखी, इनकी सबसे प्रसिद्ध व्यंग्यात्मक ग़ज़ल बंजारानामा है। ऐसा माना जाता है कि नज़ीर अकबराबादी का जन्म दिल्ली शहर में सन 1735 में हुआ था। युवा अवस्था में वे दिल्ली से आगरा चले गए और आगरा में ही उन्होंने अरबी और फारसी भाषा में तालीम हासिल की। नज़ीर आम लोगों के कवि थे। इन्होंने आम जीवन, ऋतुओं, त्योहारों, फलों, सब्जियों आदि विषयों पर लिखा। नजीर धर्म-निरपेक्षता के ज्वलंत उदाहरण हैं। कहा जाता है कि उन्होंने लगभग दो लाख रचनाएं लिखीं, परन्तु अब उनकी सिर्फ छह हज़ार के करीब ही रचनाएं हमारे बीच बची हैं और इन में से 600 के करीब ग़ज़लें हैं। समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी को नज़ीर साहब ने अपनी कविता में बड़ी ही सरलता से पेश किया है। नज़ीर साहब को आम जनता की शायरी करने के कारण उपेक्षित किया जाता रहा। ककड़ी, जलेबी और तिल के लड्डू जैसी आम चीजों पर लिखी गई कविताओं को आलोचक कविता मानने से इनकार करते रहे। बाद में नज़ीर साहब की ‘उत्कृष्ट शायरी’ को पहचाना गया और आज उन्हें उर्दू साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक माना जाता है। लगभग सौ वर्ष की आयु पाने पर भी इस शायर को जीते जी उतनी ख्याति नहीं प्राप्त हुई, जितनी कि उन्हें आज मिल रही है। भाषा के क्षेत्र में भी उनकी अच्छी पकड़ थी, उन्होंने अपनी शायरी में जन-संस्कृति का, जिसमें हिन्दू संस्कृति भी शामिल है, दिग्दर्शन कराया है और बड़ी सहजता से अपने काव्यों में हिन्दी के शब्दों का उप...