Meri bhavna

  1. Meri Bhavna (My Prayer)
  2. Meri Bhawana
  3. मेरी भावना: जैन पाठ
  4. Meri Bhavna Hindi
  5. मेरी भावना (Meri Bhavna) ऐसा भजन जिसमे है सच्ची ज़िन्दगी का सार


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Meri Bhavna (My Prayer)

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Meri Bhawana

हिन्दी में पढ़ें Jisne Raag-dwesh Kamadik, Jeete Sab Jag Jaan Liya Sab Jeevon Ko Moksh Maarg Ka, Nispruh Ho Upadesh Diya, Buddh, Veer Jin, Hari, Har Brahma Ya Usko Swadhin Kaho Bhakti-bhaav Se Prerit Ho, Yah Chitt Usei Mein Leen Raho ॥1॥ Vishayon Ki Asha Nahin Jinke, Saamya Bhaav Dhan Rakhte Hain Nij-par Ke Heet Saadhan Mein, Jo Nishdin Tatpar Rahate Hain, Swarth Tyag Ki Kathin Tapasya, Bina Khaid Jo Karte Hain Aise Gyani Sadhu Jagat Ke, Duhkh-samooh Ko Harte Hain ॥2॥ Rahe Sada Satsang Unheen Ka, Dhyaan Unheen Ka Nitya Rahe Un Hi Jaisee Charrya Mein Yah, Chitt Sada Anurakt Rahe, Nahin Sataun Kisi Jeev Ko, Jhooth Kabhi Nahin Kaha Karun Par-dhan-vanita Par Na Lubhaun, Santoshaamrit Piya Karun ॥3॥ Ahankaar Ka Bhaav Na Rakhoon, Nahin Kisi Par Khed Karoon Dekh Dusroon Ki Badhti Ko, Kabhi Na Irsha-bhaav Dharoon, Rahe Bhavna Aisi Meri, Saral-satya-vyavahaar Karoon Bane Jahaan Tak Is Jeevan Mein, Auron Ka Upkaar Karoon ॥4॥ Maitreebhaav Jagat Mein, Mera Sab Jeevon Se Nity Rahe Deen-du:Khi Jeevon Par Mere, Ursse Karuna Shrot Bahe, Durjan-krur-kumarg Raton Par, Khybh Nahin Mujhko Aave Samyabhaav Rakhoon Main Un Par, Aisi Parinati Ho Jaave ॥5॥ Gunijanon Ko Dekh Hriday Mein, Mere Prem Umad Aave Bane Jahaan Tak Unki Seva, Karke Yah Man Sukh Paave, Hooun Nahin Kritaghn Kabhi Main, Droh Na Mere Ur Aave Gun-grahan Ka Bhaav Rahe Nit, Drishti Na Doshon Par Jaave ॥6॥ Koyi Bura Kaho Ya Achha, Lakshmi Aave Ya Jaave Laakhon Varshon Tak Jeeun, Ya Mrityu Aaj Hi Aa Jaave । Athva Koyi Kaisa Hi, Bhay...

मेरी भावना: जैन पाठ

अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर खेद करूं देख दूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या-भाव धरूं, रहे भावना ऐसी मेरी, सरल-सत्य-व्यवहार करूं बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं। ॥4॥ मैत्रीभाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे दीन-दुखी जीवों पर मेरे उरसे करुणा स्त्रोत बहे, दुर्जन-क्रूर-कुमार्ग रतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे साम्यभाव रखूं मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे। ॥5॥ गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे, होऊं नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे गुण-ग्रहण का भाव रहे नित दृष्टि न दोषों पर जावे। ॥6॥ कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे लाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु आज ही आ जावे। अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे। तो भी न्याय मार्ग से मेरे कभी न पद डिगने पावे। ॥7॥ होकर सुख में मग्न न फूले दुख में कभी न घबरावे पर्वत नदी-श्मशान-भयानक-अटवी से नहिं भय खावे, रहे अडोल-अकंप निरंतर, यह मन, दृढ़तर बन जावे इष्टवियोग अनिष्टयोग में सहनशीलता दिखलावे। ॥8॥ सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे बैर-पाप-अभिमान छोड़ जग नित्य नए मंगल गावे, घर-घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावे ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना मनुज-जन्म फल सब पावे। ॥9॥ ईति-भीति व्यापे नहीं जगमें वृष्टि समय पर हुआ करे धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे, रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे परम अहिंसा धर्म जगत में फैल सर्वहित किया करे। ॥10॥ फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं कोई मुख से कहा करे, बनकर सब युगवीर हृदय से देशोन्नति-रत रहा करें वस्तु-स्वरूप विचार खुशी से सब दुख संकट सहा करें। ॥11॥

मेरी

Audio PDF कविश्री जुगलकिशोर Kaviśrī Jugalakiśōra जिसने राग-द्वेष-कामादिक जीते, सब जग जान लिया | सब जीवों को मोक्षमार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया || बुद्ध-वीर-जिन-हरि-हर-ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो | भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह, चित्त उसी में लीन रहो ||१|| Jisanē rāga-dvēṣa-kāmādika jītē, saba jaga jāna liyā | Saba jīvōṁ kō mōkṣamārga kā, nispr̥ha hō upadēśa diyā || Bud’dha-vīra-jina-hari-hara-brahmā, yā usakō svādhīna kahō | Bhakti-bhāva sē prērita hō yaha, citta usī mēṁ līna rahō ||1|| विषयों की आशा नहिं जिनको, साम्य-भाव धन रखते हैं | निज-पर के हित-साधन में जो, निश-दिन तत्पर रहते हैं || स्वार्थ-त्याग की कठिन-तपस्या, बिना खेद जो करते हैं | ऐसे ज्ञानी-साधु जगत् के, दु:ख-समूह को हरते हैं ||२|| Viṣayōṁ kī āśā nahiṁ jinako, sāmya-bhāva dhana rakhatē haiṁ | Nija-para kē hita-sādhana mēṁ jō, niśa-dina tatpara rahatē haiṁ || Svārtha-tyāga kī kaṭhina-tapasyā, binā khēda jō karatē haiṁ | Aisē jñānī-sādhu jagat kē, du:Kha-samūha kō haratē haiṁ ||2|| रहे सदा सत्संग उन्हीं का, ध्यान उन्हीं का नित्य रहे | उन ही जैसी चर्या में यह, चित्त सदा अनुरत्त रहे || नहीं सताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नहिं कहा करूँ | पर-धन-वनिता पर न लुभाऊँ, संतोषामृत पिया करूँ ||३|| Rahē sadā satsaṅga unhīṁ kā, dhyāna unhīṁ kā nitya rahē | Una hī jaisī caryā mēṁ yaha, citta sadā anurakta rahē || Nahīṁ satā’ūm̐ kisī jīva kō, jhūṭha kabhī nahiṁ kahā karūm̐ | Para-dhana-vanitā para na lubhā’ūm̐, santōṣāmr̥ta piyā karūm̐ ||3|| अहंकार का भाव न रक्खूँ, नहीं किसी पर क्रोध करूँ | देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न र्इर्या ह-भाव ध...

Meri Bhavna Hindi

ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुख-समूह को हरते हैं। ॥2॥ रहे सदा सत्संग उन्हीं का ध्यान उन्हीं का नित्य रहे उन ही जैसी चर्या में यह चित्त सदा अनुरक्त रहे, नहीं सताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नहीं कहा करूं पर-धन-वनिता पर न लुभाऊं, संतोषामृत पिया करूं। ॥3॥ अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर खेद करूं देख दूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या-भाव धरूं, रहे भावना ऐसी मेरी, सरल-सत्य-व्यवहार करूं बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं। ॥4॥ मैत्रीभाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे दीन-दुखी जीवों पर मेरे उरसे करुणा स्त्रोत बहे, दुर्जन-क्रूर-कुमार्ग रतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे साम्यभाव रखूं मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे। ॥5॥ गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे, होऊं नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे गुण-ग्रहण का भाव रहे नित दृष्टि न दोषों पर जावे। ॥6॥ कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे लाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु आज ही आ जावे। अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे। तो भी न्याय मार्ग से मेरे कभी न पद डिगने पावे। ॥7॥ होकर सुख में मग्न न फूले दुख में कभी न घबरावे पर्वत नदी-श्मशान-भयानक-अटवी से नहिं भय खावे, रहे अडोल-अकंप निरंतर, यह मन, दृढ़तर बन जावे इष्टवियोग अनिष्टयोग में सहनशीलता दिखलावे। ॥8॥ सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे बैर-पाप-अभिमान छोड़ जग नित्य नए मंगल गावे, घर-घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावे ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना मनुज-जन्म फल सब पावे। ॥9॥ ईति-भीति व्यापे नहीं जगमें वृष्टि समय पर हुआ करे धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे, रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे परम अहिंसा धर्म...

मेरी भावना (Meri Bhavna) ऐसा भजन जिसमे है सच्ची ज़िन्दगी का सार

दोस्तों आज आपके साथ मेरी भावना जोकि एक आध्यत्मिक पाठ और जैन भजन भी है वो आपके साथ सांझा कर रहे है. भले ही इसे जैन भजन के तौर पर जाना जाता हो, लेकिन एक बार इन शब्दों को पढ़िएगा जरुर, अगर हम सभी के भाव इस प्रकार से हो जाये तो किसी में भी रागद्वेष, काम-क्रोध, लोभ-अहंकार कुछ न बचे. यह पाठ हमे अपनी सब बुराईयों को दूर करने के लिए प्रेरित करता है. इसमें किसी भी भगवान या देव-देवी की वंदना नही अपितु यह कर्म अच्छे कैसे करे, इस बारे में हमे बताता है. याद रखिये मनुष्य जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है जो लोग जीवन में बुराईया करते रहते है, जब उन्हें उनकी बुराई का एहसास होता है तब वेह कहते है की “ चलो यह जन्म तो निकल गया, अगले जन्म में जरुर अच्छे कर्म करेंगे“, तो उनकी यह सोच काफी गलत है, याद रखिये मानुष जन्म बार-बार नहीं मिलता, देवता भी मनुष्य का जन्म प्राप्त करने के लिए तरसते है क्यूंकि 84 लाख जन्मों में इकलौता मनुष्य का ही जन्म है जो आत्मा को मुक्ति/सद्गति प्राप्त करवा सकता है. इसलिए याद रखिये ऐसा कहने से कुछ नही होने वाला कि यह जन्म तो निकल गया, जब आपकी आत्मा जागृत हो जाये तभी से अच्छे कर्मों की तरफ बढ़ जाईये. अच्छे कर्म कैसे करे, अच्छे भाव कैसे रखे अगर आपको यह जानना है तो इसी बात की शिक्षा हमे “ मेरी भावना” भजन के माध्यम से मिलती है. अगर हमारी ऐसी भावना बन जाये तो फिर जीवन का क्या कहने? अच्छे कर्मों से बढ़कर कोई पुण्य नहीं, क्यूंकि जब कर्म ही अच्छे है तो फिर किसी अन्य चीज की क्या आवश्यकता ? तो पढ़िये अब यह भजन, लेकिन एक-एक शब्द को समझकर पढ़िएगा तभी आप इसके गूढ़ महत्व को समझ पाएंगे. मेरी भावना भजन (Meri Bhavna Bhajan Lyrics In Hindi) जिसने राग द्वेष कामादिक जीते, सब जग जान लिया, सब जीवो को मोक्...