मेरी भावना

  1. Biography – Meri bhavna – मेरी भावना
  2. सार्वभौमिक प्रार्थना: मेरी भावना!
  3. Meri Bhawana
  4. मेरी भावना – मुनि श्री 108 प्रणम्य सागर जी
  5. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
  6. My Inspirations (मेरी भावना)


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Biography – Meri bhavna – मेरी भावना

जीवन परिचय :- मेरी भावना के रचयिता जैन इतिहास के सूक्ष्म अन्वेषक, सुप्रसिद्ध लेखक कवि पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” जी हैं। इनकी यह रचना जन—जन का कण्ठहार बन गयी है। इसकी अभी तक करोड़ों प्रतियाँ छप चुकी हैं। अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, मराठी, कन्नड़ आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका हैं। अनेक विद्यालयों, अस्पतालों, कारखानों, बंदीगृहों इत्यादि स्थानों में प्रतिदिन इसका पाठ होता है। मेरी भावना में हमारा अपना जीवन्त जीवनशास्त्र है। जीवन की आचारसंहिता है। इसमें केवल जैनदर्शन का सार नहीं है, अपितु दुनियाँ के सभी धर्मों का नवनीत समाहित है। यह रचना भाईचारे और साम्प्रदायिक सहिष्णुता का पैगाम है। राष्ट्रीय चरित्र का शिलालेख है। मेरी भावना देश के विकास की इकाई के रूप में गाया गया एक मंगलगान है। यह जाति/धर्म/देश/समाज और भाषा की सीमा से उन्मुक्त, मनुष्य की मनुष्यता का गौरवगान है। जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था । इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था। पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था। इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी में मिली। 13-14 साल की उम्र में शादी के बाद, उन्होंने जैन दर्शन, हिंदी, संस्कृत, प्राकृत और अंग्रेजी भाषाओं का अध...

सार्वभौमिक प्रार्थना: मेरी भावना!

सार्वभौमिक प्रार्थना: मेरी भावना मेरी भावना के रचयिता जैन इतिहास के सूक्ष्म अन्वेषक, सुप्रसिद्ध लेखक कवि पं. जुगलकिशोर मुख्तार हैं। आपकी यह रचना जन—जन का कण्ठहार बन गयी है। इसकी अभी तक करोड़ों प्रतियाँ छप चुकी हैं। अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, मराठी, कन्नड़ आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। अनेक विद्यालयों, अस्पतालों, कारखानों, बंदीगृहों इत्यादि स्थानों में प्रतिदिन इसका पाठ होता है। जिसने रागद्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्षमार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया।। बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो।।१।। मेरी भावना में हमारा अपना जीवन्त जीवनशास्त्र है। जीवन की आचारसंहिता है। इसमें केवल जैनदर्शन का सार नहीं है, अपितु दुनियाँ के सभी धर्मों का नवनीत समाहित है। यह रचना भाईचारे और साम्प्रदायिक सहिष्णुता का पैगाम है। राष्ट्रीय चरित्र का शिलालेख है। मेरी भावना देश के विकास की इकाई के रूप में गाया गया एक मंगलगान है। मेरी भावना सभी धर्मों के पुराणों के प्रथम पृष्ठ पर लिखा जाने वाला मंगलाचरण है। यह जाति/धर्म/देश/समाज और भाषा की सीमा से उन्मुक्त, मनुष्य की मनुष्यता का गौरवगान है। हिन्दुस्तान टाइम्स के सम्पादक गाँधीजी के सुपुत्र देवदासजी गाँधी द्वारा इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध विचारशील लेखक जार्ज बर्नाडशा से पूछा गया प्रश्न—आपको सबसे प्रिय धर्म कौन—सा प्रतीत होता है। उत्तर—जैन/धर्म में आत्मा की पूर्ण उन्नति तथा पूर्ण विकास की प्रक्रिया बतायी गयी है, इस कारण मुझे जैनधर्म सबसे प्रिय है। पुन: प्रश्न—इसका क्या कारण है ? उत्तर—जैनधर्म।

Meri Bhawana

हिन्दी में पढ़ें Jisne Raag-dwesh Kamadik, Jeete Sab Jag Jaan Liya Sab Jeevon Ko Moksh Maarg Ka, Nispruh Ho Upadesh Diya, Buddh, Veer Jin, Hari, Har Brahma Ya Usko Swadhin Kaho Bhakti-bhaav Se Prerit Ho, Yah Chitt Usei Mein Leen Raho ॥1॥ Vishayon Ki Asha Nahin Jinke, Saamya Bhaav Dhan Rakhte Hain Nij-par Ke Heet Saadhan Mein, Jo Nishdin Tatpar Rahate Hain, Swarth Tyag Ki Kathin Tapasya, Bina Khaid Jo Karte Hain Aise Gyani Sadhu Jagat Ke, Duhkh-samooh Ko Harte Hain ॥2॥ Rahe Sada Satsang Unheen Ka, Dhyaan Unheen Ka Nitya Rahe Un Hi Jaisee Charrya Mein Yah, Chitt Sada Anurakt Rahe, Nahin Sataun Kisi Jeev Ko, Jhooth Kabhi Nahin Kaha Karun Par-dhan-vanita Par Na Lubhaun, Santoshaamrit Piya Karun ॥3॥ Ahankaar Ka Bhaav Na Rakhoon, Nahin Kisi Par Khed Karoon Dekh Dusroon Ki Badhti Ko, Kabhi Na Irsha-bhaav Dharoon, Rahe Bhavna Aisi Meri, Saral-satya-vyavahaar Karoon Bane Jahaan Tak Is Jeevan Mein, Auron Ka Upkaar Karoon ॥4॥ Maitreebhaav Jagat Mein, Mera Sab Jeevon Se Nity Rahe Deen-du:Khi Jeevon Par Mere, Ursse Karuna Shrot Bahe, Durjan-krur-kumarg Raton Par, Khybh Nahin Mujhko Aave Samyabhaav Rakhoon Main Un Par, Aisi Parinati Ho Jaave ॥5॥ Gunijanon Ko Dekh Hriday Mein, Mere Prem Umad Aave Bane Jahaan Tak Unki Seva, Karke Yah Man Sukh Paave, Hooun Nahin Kritaghn Kabhi Main, Droh Na Mere Ur Aave Gun-grahan Ka Bhaav Rahe Nit, Drishti Na Doshon Par Jaave ॥6॥ Koyi Bura Kaho Ya Achha, Lakshmi Aave Ya Jaave Laakhon Varshon Tak Jeeun, Ya Mrityu Aaj Hi Aa Jaave । Athva Koyi Kaisa Hi, Bhay...

मेरी भावना – मुनि श्री 108 प्रणम्य सागर जी

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जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। राम चरितमानस के बालकांड की इस चौपाई का अर्थ हैं- जिसकी जैसी भावना होती है, उसे उसी रूप में भगवान दिखते है।इस चौपाई के अर्थ को मैं आप सबको एक कहानी के माध्‍यम से बताना चाहूँगी… एक बार की बात है कि कबीर दास जी हमेशा की तरह अपने काम में मग्न होकर राम नाम रट रहे थे। तभी उनके पास कुछ तार्किक व्‍यक्ति आते हैं। उनमें से एक व्‍यक्ति उनसे पूछता है- “कबीर जी आपने यह गले में क्‍या पहन रखा है?” कबीर जी कहते है- “यह कंठी है?” (कंठी यानि गले में पहनी जाने वाली रूद्रा्क्ष की माला) तब दुसरा तार्किक व्‍यक्ति उनसे प्रश्‍न करता है- “भाई अपने माथे पर यह क्‍या लगा रखा है?” Advertisement “इसे तिलक कहते है मेरे भाई!” कबीर जी कहते हैं। उत्‍तर सुनकर एक अन्‍य तार्किक व्‍यक्ति फिर से उनसे प्रश्‍न करता है- “आपने, यह हाथ में क्‍या बांध रखा है?आप क्‍या कर रहे हो? यह सुनकर कबीर जी कुछ उन लोगों को कहते हैं- “मैं राम राम रट रहा हूँ। गुरु जी की आज्ञा है, राम नाम के भीतर सकल शास्त्र पुराण श्रुति का सार है। इसलिए मैं ‘नाम’ जप रहा हूँ। यह सुनकर उनमें से एक व्‍यक्ति कहता है, “अच्छा तो तुम राम नाम जपते हो! तो राम का भजन करते हो! “हां! मैं श्री राम का भजन करता हूँ।”- कबीर जी बोले। “तो फिर कौन से राम का भजन करते हो?” उस व्‍यक्ति ने कबीर जी से पूछा। “कौन से राम? क्‍या राम भी बहुत सारे हैं?” कबीर जी ने कहा। तो उनमें से एक व्‍यक्ति ने कहा, “लो इन्‍हें यह तो पता नहीं कि कौन से राम का भजन करते हो, और लग गए भजन करने। जिसे यही नहीं पता कि राम कितने तरीके के होते हैं, तो भजन का क्या फल? अब यह कहकर वे तार्किक व्‍यक्ति वहां से चलते समय कबीर जी को एक दोहा भी सुना गए। ।। दोहा ।।...

My Inspirations (मेरी भावना)

My Inspirations (मेरी भावना) Jisne Rag -Dvesh Kamadik Jeete Sab Jag Jaan Liya. Sab Jeevo(n) ko Moksh-Marg Ka Nishprih Ho Updesh Dia; Buddh Veer Jin Hari Har Brahma, Ya Usko Swadheen Kaho; Bhakti-Bhav se prert ho yeh, Chitt Usi Me Leen Raho. जिसने राग-द्वेष कामादिक , जीते सब जग जान लिया | सब जीवों को मोक्षमार्ग का , निस्पृह हो उपदेश दिया | बुद्ध, वीर, जिन, हरी, हर, ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो | भक्ति भाव से प्रेरित हो यह,चित्त उसी में लीन रहो ||१|| COMMENTARY His passions who has overcome, All nature’s secrets who has known Salvation’s path to every soul, Without a motive who has shown Buddha, Veer, Jina, Hari, Har, Brahma, Or the Self Him you may call; His attainments may, with devotion deep, My mind externally extols! Vishayon Ki Asha Nahi Jinke, Samya-Bhav Dhan Rakhte Hain Nij-Par Ke Hit-Sadhan Mein Jo, Nish Din Tatpar Rehte Hain; Swarth-Tyag Ki Kathin Tapasya Bina Khed Jo Karte Hain; Aise Gyanee Sadhu Jagat Ke, Dukkh-Samooh Ko Harte Hain. विषयों की आशा नहीं जिनके , साम्य-भाव धन रखते हैं निज-पर के हित-साधन में जो, निष् दिन तत्पर रहते हैं | स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या , बिना खेद जो करते हैं | ऐसे ज्ञानी साधू जगत के, दुःख समूह को हरते हैं ||२|| COMMENTARY Pleasures of life who ever despise, Equanimty’s wealth who seek; Devoted ever to uplift and raise, Themselves and other in every way; Onward who press on the thorny path, Of self denial, undismayed; Such saintly sages do relieve, The pain and misery of the world! Rahe Sada Satsang Unhee Ka, Dhyan Unhee Ka Nitya Rahe Unh...