महालक्ष्मी स्तोत्र

  1. महालक्ष्मी स्तुति हिंदी अर्थ सहित
  2. Mahalaxmi Stotram
  3. Mahalakshmi Ashtakam in Hindi
  4. महालक्ष्मी अष्टकम लिरिक्स
  5. Shri Mahalakshmi Stotram lyrics in Hindi
  6. महालक्ष्मी स्तोत्र
  7. महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र पढ़ें
  8. पढ़ें मां लक्ष्मी का चमत्कारी स्तोत्र, स्वयं इन्द्र द्वारा रचित प्रभावशाली आराधना


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महालक्ष्मी स्तुति हिंदी अर्थ सहित

॥ महालक्ष्मी स्तुति ॥ मातर्नमामि कमले कमलायताक्षि श्रीविष्णुहृत्कमलवासिनि विश्वमातः । क्षीरोदजे कमलकोमलगर्भगौरि लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ॥1॥ अर्थ – कमल के समान विशाल नेत्रोंवाली माता कमले ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप भगवान विष्णु के हृदय कमल में निवास करनेवाली तथा सम्पूर्ण विश्व की जननी हैं। कमल के कोमल गर्भ के सदृश गौर वर्णवाली त्वं श्रीरूपेन्द्रसदने मदनैकमात – र्ज्योत्स्नासि चन्द्रमसि चन्द्रमनोहरास्ये । सूर्ये प्रभासि च जगत्त्रितये प्रभासि लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ॥2॥ अर्थ – मदन ( प्रद्युम्न ) की एकमात्र जननी रुक्मिणी रुप धारिणी माता ! आप भगवान विष्णु के वैकुण्ठधाम में ‘ श्री ‘ नाम से प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा के समान मनोहर मुखवाली देवि ! आप ही चन्द्रमा में चाँदनी हैं, सूर्य में प्रभा हैं और तीनों लोकों में आप ही प्रभासित होती हैं। प्रणतजनों को आश्रय देनेवाली माता लक्ष्मि ! आप सदा मुझपर प्रसन्न हों ॥2॥ त्वं जातवेदसि सदा दहनात्मशक्ति – र्वेधास्त्वया जगदिदं विविधं विदध्यात् । विश्वम्भरोऽपि बिभृयादखिलं भवत्या लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ॥3॥ अर्थ – आप ही अग्नि में दाहिका शक्ति हैं। ब्रह्माजी आपकी ही सहायता से विविध प्रकार के जगत की रचना करते हैं। सम्पूर्ण विश्व का भरण-पोषण करने वाले भगवान विष्णु भी आपके ही भरोसे सबका पालन करते हैं। शरण में आकर चरण में मस्तक झुकाने वाले पुरुषों की निरन्तर रक्षा करने वाली माता महालक्ष्मि ! आप मुझपर प्रसन्न हों ॥3॥ त्वत्त्यक्तमेतदमले हरते हरोऽपि त्वं पासि हंसि विदधासि परावरासि । ईड्यो बभूव हरिरप्यमले त्वदाप्त्या लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ॥4॥ अर्थ – निर्मल स्वरूप वाली देवि ! जिनको आपने त्याग दिया है, उन्हीं का भगवान रू...

Mahalaxmi Stotram

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि। सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि। मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि। योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:। सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।। एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।। त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।

Mahalakshmi Ashtakam in Hindi

WhatsApp Telegram Facebook Twitter LinkedIn Mahalakshmi Ashtakam is a hymn for worshipping Goddess Sri Mahalaxmi Devi, who is one of the eight avatars of Goddess Lakshmi Devi. It is also popular with its starting verse “Namastestu Mahamaye”. Sri Mahalaxmi Ashtakam is found in the Padma Purana and it was chanted by Lord Indra in praise of Goddess Lakshmi. Get Sri Mahalakshmi Ashtakam in Hindi lyrics Pdf or Namastestu Mahamaye Lyrics in Hindi here and chant it with devotion for the grace of goddess Mahalaxmi and be blessed with peace, prosperity, and good fortune in life and other benefits. Mahalakshmi Ashtakam in Hindi – श्री महालक्ष्मी अष्टकम इन्द्र उवाच । नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते । शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥ नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि । सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥ सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि । सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥ सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि । मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ४ ॥ आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि । योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ५ ॥ स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे । महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ६ ॥ पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि । परमेशि जगन्मातः महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ७ ॥ श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते । जगत्स्थिते जगन्मातः महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ८ ॥ फलश्रुति महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रम् यः पठेद्भक्तिमान्नरः । सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥ एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।...

महालक्ष्मी अष्टकम लिरिक्स

अर्थ – इन्द्र बोले – श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है. हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है। नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि । सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोSस्तु ते ।।2।। अर्थ – गरुड़ पर आरुढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है। सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि । सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोSस्तु ते ।।3।। अर्थ – सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि । मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोSस्तु ते ।।4।। अर्थ – सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें सदा प्रणाम है। आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि । योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोSस्तु ते ।।5।। अर्थ – हे देवि ! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है. स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे । महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोSस्तु ते ।।6।। अर्थ – हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बडे़-बड़े पापों का नाश करने वाली हो. हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि । परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोSस्तु ते ।।7।। अर्थ – हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरुपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मि ! तुम्हें मेरा प्रणाम है. श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते । जगत्स...

Shri Mahalakshmi Stotram lyrics in Hindi

Table of Contents • • • • • • • • • श्री महालक्ष्मी स्तोत्रम् हिंदी में Mahalakshmi Stotram lyrics in Hindi हिंदू पंचांग में सप्ताह के सात दिन होते हे, यह सात दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। इस प्रकार शुक्रवार का दिन महालक्ष्मी को समर्पित हे, और इस दिन महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है। महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करके महालक्ष्मी चालीसा, महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalakshmi Stotram) का पाठ करना चाहिए। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalakshmi Stotram) की रचना स्वयं इंद्र देव ने मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए की थी। शास्त्र कहता हे की महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से देवी महालक्ष्मी बहोत जल्द प्रसन्न होती है। यह पाठ करने से मनुष्य की हर मनोकामना मां लक्ष्मी पूर्ण कर देती है। श्री महालक्ष्मी स्तोत्र एक बहुत ही दिव्य स्तोत्र है। महालक्ष्मी स्तोत्र अधिक प्रभावशाली है। महालक्ष्मी स्तोत्र के पाठ करने से जीवन मे कभी निर्धनता कभी नहीं आएगी, धन की प्राप्ति होगी, श्री महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन जाप करने से उसका प्रभाव तुरंत दिखाय देता हे। देवराज इंद्र द्वारा रचित महालक्ष्मी स्त्रोत्र की कथा : स्वर्ग के राजा इंद्र देव अपने वाहन ऐरावत पर जा रहे थे। तभी इन्द्र देव के सामने महर्षि दुर्वासा ऋषि रास्ते में मिले, और दुर्वासा ऋषिने इन्द्र देव को निकालकर माला भेट की। इंद्र देव ने इस माला को दुर्वासा ऋषि के सामने ऐरावत हाथी को पहना दिया। ऐरावत हाथी ने इस माला की तीव्र गंध से परेशान होकर दुर्वासा ऋषि के सामने पृथ्वी पर फेंक दी। यह देख दुर्वासा ऋषि ने क्रोध वश इंद्र देव को शाप दिया की हे इंद्र जिस घमंड से तूने मेरी माला का अनादर ...

महालक्ष्मी स्तोत्र

अगस्त ऋषि द्वारा की गई इस महालक्ष्मी स्तोत्र स्तुति का जो सदा भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, उन्हें कभी सन्ताप और दरिद्रता नहीं होता और लक्ष्मीजी के सामीप्य की प्राप्ति होता है। यह स्तोत्र स्कन्दपुराण के काशीखण्ड-पूर्वार्ध में श्लोक ८०-८७ में वर्णित है। महालक्ष्मी स्तोत्र अगस्तिरुवाच।। मातर्नमामि कमले कमलायताक्षि श्रीविष्णुहृत्कमलवासिनि विश्वमातः ।। क्षीरोदजे कमलकोमलगर्भ गौरि लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ।। 4.1.5.८० ।। कमल के समान विशाल नेत्रोंवाली मातः कमले ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप भगवान् विष्णु के हृदयकमल में निवास करनेवाली तथा सम्पूर्ण विश्व की जननी हैं। कमल के कोमल गर्भ के सदृश गौर वर्णवाली क्षीरसागर की पुत्री महालक्ष्मी ! आप अपनी शरण में आये हुए प्रणतजनों का पालन करनेवाली हैं। आप सदा मुझ पर प्रसन्न हो । त्वं श्रीरुपेंद्रसदने मदनैकमातर्ज्योत्स्नासि चंद्रमसि चंद्रमनोहरास्ये। सूर्ये प्रभासि च जगत्त्रितये प्रभासि लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।। ८१ ।। मदन की एकमात्र जननी रुक्मिणीरूपधारिणी लक्ष्मी ! आप भगवान् विष्णु के वैकुण्ठधाम में श्री नाम से प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा के समान मनोहर मुखवाली देवि ! आप ही चन्द्रमा में चाँदनी हैं, सूर्य में प्रभा हैं और तीनों लोकों में आप ही प्रभासित होती हैं। प्रणतजनों को आश्रय देनेवाली माता लक्ष्मी ! आप सदा मुझपर प्रसन्न हों । त्वं जातवेदसि सदा दह्नात्मशक्तिर्वेधास्त्वया जगदिदं विविधं विदध्यात् ।। विश्वंभरोपि बिभृयादखिलं भवत्या लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ।। ८२ ।। आप ही अग्नि में दाहिका शक्ति हैं। ब्रह्माजी आपकी ही सहायता से विविध प्रकार के जगत् की रचना करते हैं । सम्पूर्ण विश्व का भरण-पोषण करनेवाले भगवान् विष्णु भी आपके ही भरोसे...

महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र पढ़ें

क्षीराब्धि संस्थिते लक्ष्मि, समागच्छ समाधवे। त्वत कृपादृष्टि सुधया, सततं मां विलोकय ॥ 5॥ रत्नगर्भ स्थिते लक्ष्मि, परिपूर्ण हिरण्यमयि। समागच्छ समागच्छ, स्थित्वा सु पुरतो मम ॥ 6 ॥ स्थिरा भव महालक्ष्मि, निश्चला भव निर्मले। प्रसन्ने कमले देवि, प्रसन्ना वरदा भव ॥ 7॥ श्रीधरे श्रीमहाभूते, त्वदंतस्य महानिधिम। शीघ्रम उद्धृत्य पुरत, प्रदर्शय समर्पय ॥ 8 ॥ वसुंधरे श्री वसुधे, वसु दोग्ध्रे कृपामयि। त्वत कुक्षि गतं सर्वस्वं, शीघ्रं मे त्वं प्रदर्शय ॥ 9 ॥ विष्णुप्रिये। रत्नगर्भे, समस्त फलदे शिवे। त्वत गर्भ गत हेमादीन, संप्रदर्शय दर्शय ॥ 10 ॥ अत्रोपविश्य लक्ष्मि, त्वं स्थिरा भव हिरण्यमयि। सुस्थिरा भव सुप्रीत्या, प्रसन्न वरदा भव ॥ 11 ॥ सादरे मस्तकं हस्तं, मम तव कृपया अर्पय। सर्वराजगृहे लक्ष्मि, त्वत कलामयि तिष्ठतु ॥ 12 ॥ यथा वैकुंठनगर, यथैव क्षीरसागरे। तथा मद भवने तिष्ठ, स्थिरं श्रीविष्णुना सह ॥ 13 ॥ आद्यादि महालक्ष्मि, विष्णुवामांक संस्थिते। प्रत्यक्षं कुरु मे रुपं, रक्ष मां शरणागतं ॥ 14 ॥ समागच्छ महालक्ष्मि, धन्य धान्य समन्विते। प्रसीद पुरत: स्थित्वा, प्रणतं मां विलोकय ॥ 15 ॥ दया सुदृष्टिं कुरुतां मयि श्री:। सुवर्णदृष्टिं कुरु मे गृहे श्री: ॥ 16 ॥ विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र रोमन में– Read Lakshmi Hrudaya Stotram śrīmata saubhāgyajananīṃ, staumi lakṣmīṃ sanātanīṃ। sarvakāmaphalāvāpti sādhanaika sukhāvahāṃ ॥1॥ śrī vaikuṃṭha sthite lakṣmi, samāgaccha mama agrata:। nārāyaṇena saha māṃ, kṛpā dṛṣṭyā avalokaya ॥ 2॥ satyaloka sthite lakṣmi,...

पढ़ें मां लक्ष्मी का चमत्कारी स्तोत्र, स्वयं इन्द्र द्वारा रचित प्रभावशाली आराधना

एक बार देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी पर चढ़कर जा रहे थे। रास्ते में दुर्वासा मुनि मिले। मुनि ने अपने गले में पड़ी माला निकालकर इन्द्र के ऊपर फेंक दी। जिसे इन्द्र ने ऐरावत हाथी को पहना दिया। तीव्र गंध से प्रभावित होकर ऐरावत हाथी ने सूंड से माला उतारकर पृथ्वी पर फेंक दी। यह देखकर दुर्वासा मुनि ने इन्द्र को शाप देते हुए कहा, 'इन्द्र! ऐश्वर्य के घमंड में तुमने मेरी दी हुई माला का आदर नहीं किया। यह माला नहीं, लक्ष्मी का धाम थी। इसलिए तुम्हारे अधिकार में स्थित तीनों लोकों की लक्ष्मी शीघ्र ही अदृश्य हो जाएगी।’ महर्षि दुर्वासा के शाप से त्रिलोकी श्रीहीन हो गई और इन्द्र की राज्यलक्ष्मी समुद्र में प्रविष्ट हो गई। देवताओं की प्रार्थना से जब वे प्रकट हुईं, तब उनका सभी देवता, ऋषि-मुनियों ने अभिषेक किया। देवी महालक्ष्मी की कृपा से सम्पूर्ण विश्व समृद्धशाली और सुख-शांति से संपन्न हो गया। आकर्षित होकर देवराज इन्द्र ने उनकी इस प्रकार स्तुति की : Pitro ki shanti ke upay : हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास हिंदू वर्ष का चौथा महीना होता है। आषाढ़ माह की अमावस्या के दिन का बहुत महत्व माना गया है। इस हलहारिणी अमावस्या भी कहते हैं। इसके बाद गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ हो जाता है। इस अमावस्या को दान-पुण्य और पितरों की शांति के लिए किए जाने वाले तर्पण के लिए बहुत ही उत्तम एवं विशेष फलदायी माना गया है। Vastu tips fro shoe and slipper: पहले के जमाने में लोग अपने जूते चप्पल घर के बाहर उतारक ही घर में जाते थे। घर में सभी बगैर चप्पल के रहते थे। परंतु आजकल कई लोग घर में चप्पल पहनकर रहते हैं। कुछ लोग तो घर में ही ही बाहर के जूते पहनकर आ जाते हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वास्तु के अनुसार घर में चप्पल पहनना ...