महुआ की दारू कैसी लगी

  1. महुआ के दारू बनाने के तरीका, महुआ के दारू बनाने का विधि ( How to desi daru off drink Mahua )
  2. Mahua tree farming
  3. झारखंड से बिहार आता था महुआ, जयगीर के जंगल में रोज बनता था 15 हजार लीटर दारू, 300 गांवों में होती थी सप्लाई
  4. Top Pharma Consultants: महुआ
  5. सरगुजा का मादक पेय
  6. महुआ के फायदे और नुकसान
  7. जानें औषधीय रूप से मूल्यवान वृक्ष महुआ की खासियत और फायदे


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महुआ के दारू बनाने के तरीका, महुआ के दारू बनाने का विधि ( How to desi daru off drink Mahua )

- उसके बाद उस बर्तन को आग पर गरम किया जाता है और गरम होने पर जो भाप निकलती है उसको पाइप के द्वारा दूसरे बर्तन मैं इकट्ठा किया जाता है। - भाप ठंडी होने पर लिक्विड फॉर्म में जो मिलता है वह शराब होती है। इस तरह से बस्तर के लोग महुआ के दारू बनाते है और बाजारों एव मेले में बेचते है।बस्तर के लोग महुआ के बारू को बहुत ज्यदा पसंद करते है। और यहा पर काफी मात्रा में देसी दारू बिकता है !

Mahua tree farming

महुआ की खेती कैसे करे ? Mahua tree farming | महुआ की खेती कैसे करे ? महुआ (Mahua)प्राचीन काल से आदिवासी इलाके में रहने वाले लोगो की आमदनी का मुख्य जरिया रहा है. आज देश के विभिन्न राज्यों में इसकी व्यावसायिक खेती की जा रही है. जिससे किसानों की आय में बढ़ोत्तरी हो रही है. इसीलिए गाँव किसान आज अपने इस लेख में महुआ की खेती की जानकारी अपनी भाषा हिंदी में देगा. जिससे किसान भाई इसकी खेती कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सके. महुआ का महत्त्व (Importance of mahua) महुआ भारत के जनजातीय समुदाय का सबसे महत्वपूर्ण भोज्य पदार्थों में से एक है. इसके फूल और फल गर्मी के मौसम में उपजते है. देश के जनजातीय समुदाय अन्न व अन्य भोज्य पदार्थो के अभाव के समय इसे भोजन के रूप में उपयोग करते है. मध्य एवं पश्चिमी भारत के दूरदराज वन अंचलों में बसे ग्रामीण आदिवासी जनों के लिए रोजगार के साधन एवं खाद्य रूप में महुआ वृक्ष का महत्त्व बहुत अधिक है. महुआ को अलग-अलग राज्यों में विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है. हिंदी में इसे मोवरा, इंग्लिश में इन्डियन बटर ट्री, संस्कृत में मधुका, गुडपुष्पा आदि नामों से जाना जाता है. यह भी पढ़े : महुआ के फायदे (Benefits of Mahua) महुआ के फल भूरे केसरिया रंग के पके हुए गूदेदार बेरी के रूप में 1 से 4 चमकदार बीज पाए जाते है. बीज के अन्दर गिरी का वजन 70 प्रतिशत रहता है. इसके बीजों में पाए जाने वाले तेल (mahua oil) की मात्रा 33 से 43 प्रतिशत तक होती है. इसके तेल को महुआ बटर या कोको बटर के नाम से पुकारा जाता है. इसके तेल का उपयोग कन्फेक्सनरी, चाकलेट उद्योग, ग्रीस निर्माण, जूट एवं मोमबत्ती उद्योग में लिया जाता है. इसके अलावा इसके तेल का उपयोग औषधीय रूप में त्वचा रोगों, गठिया, सिरदर्द कब्ज...

झारखंड से बिहार आता था महुआ, जयगीर के जंगल में रोज बनता था 15 हजार लीटर दारू, 300 गांवों में होती थी सप्लाई

आज ही के दिन बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई थी। कानून बन गया था बिहार में शराब पीना, बनाना और बेचना अपराध होगा। पकड़े जाने पर जेल और जुर्माना तय होगा, लेकिन आज ही के दिन गया के बाराचट्‌टी के बुमेर और जयगीर जंगल में अवैध शराब निर्माण का बड़ा खुलासा हुआ है। यहां एक साल से अधिक समय से 25 शराब माफिया छिप कर देसी दारू बना रहे थे। पूरे जंगल में इनकी भटि्ठयां चल रही थी। यहां से बाराचट्‌टी, मोहनपुर और डोभी के करीब 300 गांवों में प्रतिदिन 50 लीटर के आसपास देसी शराब की सप्लाई की जाती थी। मोटे तौर पर इसका गणित समझें तो 300x50=15 हजार लीटर दारू रोज बनाया और बेचा जाता था। 10 लाख मूल्य की 1500 लीटर शराब नष्ट गया जिले के बाराचट्टी के बुमेर जयगीर जंगल में पुलिस ने 10 लाख रुपए की शराब को नष्ट कर दिया। बुमेर और जयगीर के जंगल में बड़ी-बड़ी भटि्ठयां बनाकर एल्मुनियम के बर्तन में शराब तैयार की जाती थी। तस्करों द्वारा महुआ को फूलने के लिए रखे गए कई बर्तन भी मिले। सुरक्षाबलों द्वारा सारे बर्तनों को नष्ट किया गया। शराब भट्‌ठी को भी नष्ट कर दिया गया। वनों के क्षेत्र पदाधिकारी मोहम्मद अफसार ने बताया कि जानकारी मिली थी कि जयगीर बुमेर जंगल के इलाके में बड़े पैमाने पर महुआ से शराब बनाने का धंधा चल रहा है और उसकी सप्लाई आसपास के प्रखंडों में की जा रही है। इसके बाद उत्पाद विभाग की मदद से बड़ी कार्रवाई की गई। हाथ नहीं लगे माफिया, नहीं तो होता और बड़ा खुलासा पुलिस की छापेमारी के दौरान शराब माफिया हाथ नहीं लगे। भनक लगते ही सब फरार हो गए। अगर ये पुलिस के हाथ लग जाते तो कई अन्य ठिकानों के बारे में भी बड़ा खुलासा होता। सूत्रों के मुताबिक 25 शराब माफिया अलग-अलग भटि्ठयों पर शराब का अवैध निर्माण से जुड़े थे। इनके अंडर ...

Top Pharma Consultants: महुआ

आज मै आपको एक ऐसी चीज के बारे में बताऊंगा... जिसका नाम सुनकर लोगो के मन में एक अलग ख्याल आता है और सोचने और देखने का नजरिया ही बदल जाता है... जिसका नाम है महुआ...! जी हा महुआ जो की मध्य और उतर भारत में पाया जाता है.ज्यादातर इसके पेड़ जंगलो में पाया जाता है ,कुछ लोग इसे अपने घर के पास खेत - खलिहान में लगाते है ताकी इसका फल भी मिले और इसके पत्ते से छाव भी मिल सके। अब आप तो समझ ही गए होंगे की मै किस चीज़ की बात कर रहा हु... महुआ... जिसका नाम सुनकर ज्यादार लोग यही सोचते है कि महुआ दारु। .. लेकिन आज मै उनको बताना चाहता हु की महुआ एक ऐसा पेड़ है कि जिससे कई गरीब लोगो का घर चलता है जो कुछ महीनो का उनका कमाने का जरिया होता है। लेकिन महुआ के पेड़जो की ये खुद से अपने आप जंगलो में निकल/उगजाते है.. महुआ एक ऐसा पेड़ है जो काफी लाभदायक पेड़ है सर्व गुण सम्पन पेड़ है महुआ.... आज तक ज्यादातर लोग महुआ से दारू बनता है यही सोचते है...! लेकिन मै आज आपको बताता हु की महुआ के कई फायदे है... ये एक औषधीय वृक्ष है जिसके पेड़ केसभी चीज काफी फायदे मंद है.. जैसे महुआ के पेड़, फल,फूल,पत्ते,महुआ के छाल बहुत ही औषधीय गुणहै। महुआ में एंटीऑक्सीडेंट प्रॉपर्टी जैसे विटामिन सी /ए /कैल्शियम/फॉस्फोरस पाए जाते है। महुआ के छाल जो की एक एनाल्जेसिक प्रॉपर्टी है आपके जॉइंट पेन ( जोड़ो का दर्द में) उसका छाल पीसकर लेप लगाने सेआपके जोड़ो का दर्द काफी काम होता है। महुआ के आयुर्वेदिक या घरेलु उपयोग है जैसे कीपेट के जंतु बाहर निकालनाऔर रेस्प्रेटरी इन्फेक्शन में काफी उपयोगी होता है। चर्म रोग में भी काफी उपयोगी है। महुआ के पतो को गरम कर के एक्जिमा के ऊप्पर चिपका देने से ये एक्जिमा कम होने में काफी मदत मिलती है। आज भी ग्रामीण भाग में म...

सरगुजा का मादक पेय

छत्तीसगढ़ राज्य का बस्तर और सरगुजा आदिवासी बहुल अंचल है। बस्तर में जो महत्व मादक पेय सल्फी का है, वही महत्व सरगुजा में महुआ का है। महुआ सरगुजा अंचल में आदिवासियों के जीवन ये सीधा जुडा हुआ है। इनके सभी कार्यक्रमों में महुआ या इससे बने दारु (शराब) मुख्यतः रहता है। भारतीय उष्ण कटिबंधीय वृक्ष महुआ उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में अधिक पाया जाता है। इस का वैज्ञानिक नाम ’’मधुका लोंगफोलिया’’ है। पादपों के सपोटेसी परिवार से संबंध रखने वाला महुआ शुद्व पर्यावरण के अनुकूल पर्णपाती वन का एक प्रमुख पेड़ है। इसकी खेती बीजों, फूलों और लकड़ी के लिए की जाती है। Image: A Mahua Tree/महुआ का पेड़. Photo Credit: Rohit Rajak (All pictures in this essay belong to Rohit Rajak unless otherwise specified.) बस्तर अंचल में महुआ का महत्व बस्तर अंचल के आदिवासी लोग महुआ वृक्ष की पूजा अपने ईस्ट देव के समतुल्य मानकर करते हैं। यहां के आदिवासियों के लिए यह काफी महत्व का वृक्ष है। महुए के फूल से बने शराब इनके सभी संस्कारों में उपयोग किया जाता है। Image: Offering Mahua to Kula Devata/कुला देवता को महुआ अर्पित करते हुए सरगुजा अंचल में महुआ का महत्व आदिवासी बहुल अंचल सरगुजा में महुए का महत्व अत्यधिक है। ये लोग इसके पत्ते, फूल, फल, और इसकी लकड़ी का उपयोग करते हैं। इनके जन्म से मृत्यु तक की सभी संस्कारों में महुए से बने दारु (देषी शराब) का उपयोग किया जाता है। जनमोत्सव से मृत्युत्सव तक अतिथियों का सतकार महुआ रसपान से करा करते हैं। ये लोग महुआ रसपान करने से पहले धरती पर छींटे मारकर अपने पितरों को चढाते हैं। पितरों और देवताओं को दारु (महुआ रस) अर्पित करने की परम्परा है। ग्राम पूजा और अपने घर में ईस्ट देव की पूज...

महुआ के फायदे और नुकसान

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जानें औषधीय रूप से मूल्यवान वृक्ष महुआ की खासियत और फायदे

• Home • जानें औषधीय रूप से मूल्यवान वृक्ष महुआ की खासियत और फायदे आदिवासी जनजातियों में महुआ का अपना ही एक अलग महत्व है. भारत में कुछ समाज इसे कल्पवृक्ष भी मानते है. मध्य एवं पश्चिमी भारत के दूरदराज वनअंचलों में बसे ग्रामीण आदिवासी जनजातियों के लिए रोजगार के साधन एवं खाद्य रूप में महुआ वृक्ष का महत्व बहुत अधिक हैं. इसे अलग-अलग राज्यों में विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता हैं. Mahua आदिवासी जनजातियों में महुआ का अपना ही एक अलग महत्व है. भारत में कुछ समाज इसे कल्पवृक्ष भी मानते है. मध्य एवं पश्चिमी भारत के दूरदराज वनअंचलों में बसे ग्रामीण आदिवासी जनजातियों के लिए रोजगार के साधन एवं खाद्य रूप में महुआ वृक्ष का महत्व बहुत अधिक हैं. इसे अलग-अलग राज्यों में विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता हैं. हिंदी में मोवरा, इंग्लिश में इंडियन बटर ट्री, संस्कृत में मधुका, गुड पुष्पा इत्यादि. महुआ को संस्कृत में मधु का कहते हैं, जिसका अर्थ है मीठा. जनजातियों में इसके वृक्ष को और इसे तैयार पेय को पवित्र माना जाता है. इसके वृक्ष की शाखा तोडना अशुभ माना जाता है. इस समुदाय के लोग महुआ के पेड़ को पुश्तैनी जायदाद में शामिल करते हैं और साथ ही, बाकि सम्पति की तरह इस का भी बटवारा करते हैं. इसको सम्पति समझने के विशिष्ट कारण इसकी उपयोगिता ये है. फागुन चैत में पत्तिया झड़ जाने के बाद इसके वृक्ष पर सफ़ेद रंग के फूल लगते हैं, जो की पिछड़ी जनजातियों में खाने के भी उपयोग में लाये जाते हैं. आमतौर पर वृक्ष में फूल फरवरी से अप्रैल माह तक रहता है. इसमें फूल गुच्छो के रूप में लगता है एक गुच्छे में 10-60 फूल लगते हैं. उसके बाद फल का मौसम जुलाई से अगस्त तक रहता है. इसके फल को आम भाषा में कलेंदी से जाना जाता है. जो ...